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स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi

इस लेख में आप स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi पढ़ेंगे। जिसमें आप उनका जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, महान कार्य तथा मृत्यु के विषय में पढ़ेंगे।

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू सन्यासी थे जो श्री रामकृष्ण के प्रत्यक्ष शिष्य थे। उन्हें भगवान का रूप माना जाता है। विवेकनद जी का भारतीय योग और पश्चिम में वेदांत दर्शन के ज्ञान को बांटने का बहुत ही अहम योगदान है। वर्ष 1893 में उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

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विवेकानंद ने पारंपरिक ध्यान का दर्शन दिलाया और निस्वार्थ सेवा को समझाया जिसे कर्म योग कहा जाता है। विवेकनद ने भारतीय महिलाओं के लिए मुक्ति और बुरे और बुरे जाती व्यवस्था को अंत करने का वकालत किया।

भारतीय लोगों और भारत देश का आत्मविश्वास बढाने में उनका बहुत ही अहम हाथ रहा और बाद मैं बहुत सारे राष्ट्रवादी नेताओं ने यह भी बताया की वे विवेकनद जी के सुविचारों और व्यक्तित्व से बहुत ही प्रेरित थे।

विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन Early life of Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत मैं एक परम्परानिष्ठ हिन्दू परिवार में हुआ था। उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। एक बच्चे के रूप में भी विवेकानंद में असीम उर्जा था और वह जीवन के कई पहलुओं से मोहित हो गए थे।

उन्होंने इश्वर चन्द्र विद्यासागर मेट्रोपोलीटैंट इंस्टीट्यूशन से अपनी पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की। पढाई में वह अच्छी तरह से पश्चिमी और पूर्वी दर्शनशास्त्र में निपुण हो गये। उनके शिक्षक यह टिप्पणी किया करते थे की विवेकानंद में एक विलक्षण स्मृति और जबरदस्त बौद्धिक क्षमता थी।

स्वामी विवेकानंद बहुत बुद्धिमान थे और वे पूर्व – पश्चिमी दोनों प्रकार के साहित्य में निपूर्ण थे। विवेकानंद विशेष रूप से पश्चिम के तर्कसंगत तरीके को पसंद करते थे जिसके कारण धार्मिक अंधविश्वासियों को निराशा भी हुई। इस चीज के कारण स्वामी विवेकानंद ब्राह्मो समाज से जुड़े।

ब्राह्मो समाज एक आधुनिक हिन्दू अन्दोलत था जिसमें उससे जुड़े लोगों ने भारतीय समाज और जीवन को पुनर्जीवित करने की मांग की और अध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा दिया। उन्होंने चित्र और मूर्ति पूजा जा विरोध किया।

हालाकिं ब्राह्मो समाज की समजदारी विवेकानंद को उतना आध्यात्मिकता नहीं दे सका। बहुत ही छोटी उम्र से हीउनके जीवन में अध्यात्मिक अनुभवों की शुरुवात हो गयी थी और 18 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने मन में “भगवान के दर्शन” पाने का एक भारी इच्छा बना लिया था।

श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद Ramakrishna Paramahansa and Swami Vivekananda

शुरुवात में कई बातों में रामकृष्ण परमहंस जी के विचार विवेकनंद से अलग थे। रामकृष्ण परमहंस जी एक अशिक्षित और साधारण ग्रामीण व्यक्ति थे जिन्होंने एक स्थानीय काली मंदिर में एक पद को लिया और वहां रहते थे तब भी उनके साधारण रूप में भी एक अत्याधुनिक अध्यात्मिक तेज़ दीखता था।

वे अपने मंदिर के माता काली के समक्ष तीव्र साधना करते थे और रामकृष्ण जी ने ना सिर्फ हिन्दू रसम रिवाज़ का पालन किया बल्कि सभी मुख्य धर्मों के आध्यात्मिक पथ को भी अपनाया। उनका यह मानना था कि सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है वो है एकता के साथ अनंत की खोज।

विवेकानंद के अध्यात्मिक शक्ति के विषय में रामकृष्ण को जल्द यह पता चल गया और जल्द ही उनका ध्यान विवेकानंद के ऊपर हुआ जो पहले रामकृष्ण के विचारों को सही तरीके से समझ नहीं पाते थे। विवेकानंद शुरुवात में रामकृष्ण के विचारों का विश्वास भी नहीं करते थे और उनके उपदेशों को बार-बार पूछते थे और उनकी शिक्षा के प्रति बहस भी करते थे।

हलाकि बाद में श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सकारात्मक विचारों ने विवेकानंद के हृदय को पिघला दिया और वो भी रामकृष्ण से उत्पन्न होने वाले वास्तविक आध्यात्मिकता का अनुभव करने लगे। लगभग 5वर्षों के अवधि के लिए, विवेकनद को सीधे मास्टर श्री रामकृष्ण जी से सिखने का मौका मिला। उनसे शिक्षा लेने के बाद स्वामी विवेकानंद को चेतना और समाधी के गहरे स्थिति का अनुभव हुआ।

विवेकानंद ने अपने गुरु से जीवन भर इस प्रकार के निर्वाण के परमानंद का अनुभव प्रदान करने के लिए पुछा। परन्तु श्री रामकृष्ण का उत्तर आया – मेरे लड़के, मुझे लगता है तुम्हारा जन्म कुछ बहुत बड़ा ही करने के लिए हुआ है।

रामकृष्ण के मृत्यु के बाद, अन्य शिष्यों ने विवेकानंद को उनका नेतृत्व करने के लिए कहा ताकि वे भी रामकृष्ण जी के अध्यात्मिक  विचारों से अवगत हो सकें। हलाकि विवेकानंद के लिए व्यक्तिगत मुक्ति काफी नहीं था उनका ध्यान तो गरीब, भूखे लोगों की और था। विवेकानंद जी का कहना था मात्र मानवता से ही इश्वर या भगवान् को पाया जा सकता है।

कई वर्षों के तप और ध्यान के पश्चात् स्वामी विवेकानंद ने भारत के कई पवित्र स्थानों का भ्रमण करना शुरू कर दिया। उसके बाद वे अमेरिका – विश्व धर्म संसद, सन्यासी का भेस धारण कर गेरुआ वस्त्र पहन कर गए।

विश्व धर्म संसद में विवेकानंद का भाषण Vivekananda Speech– World Parliament of Religions.

स्वामी विवेकानंद ने साल 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद के उद्घाटन में एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण दिया जिसमें उन्होंने विश्व के सभी धर्मों में एकता का मुद्दा उठाया।

उद्घाटन समारोह में विवेकानंद आखरी के कुछ भाषण देने वालों में से एक थे।  उनसे पहले भाषण देने वाले व्यक्ति ने अपने स्वयं के धर्म का अच्छाई और विशेष चीजों के बारे में बताया परन्तु स्वामी विवेकानंद ने सभी दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि उनका दृष्टिकोण मात्र  इश्वर के समक्ष सभी धर्मों की एकता है।

. ( see Speech to Parliament )

उन्होंने अपना भाषण कुछ इन शब्दों में शुरू किया –

Sisters and Brothers of America, It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; . . .

स्वामी विवेकानंद हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए चीन गए थे। लेकिन विवेकानंद ने अपने धर्म को बड़ा और अच्छा दिखाने का कोई कोशिश नहीं किया बल्कि उन्होंने वहां विश्व धर्म सद्भाव और मानवता के प्रति आध्यात्मिकता भाव को व्यक्त किया।

The New York Herald ने विवेकानंद के विषय में कहा –

He is undoubtedly the greatest figure in the Parliament of Religions. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation. निश्चित रूप से वो धर्म संसद में सबसे ज़बरदस्त व्यक्ति थे। उन्हें सुनने के बाद हम यह एहसास कर सकते हैं कि यह कितना मुर्खता है की हम अपने धर्म-प्रचारक इतने शिक्षित देश में भेजते हैं।

अमरीका में विवेकानंद ने अपने कुछ करीबी शिष्यों को ट्रेनिंग भी देना शुरू किया ताकि वे वेदांत की शिक्षाओं का प्रचार कर सकें। उन्होंने अपने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अमरीका और ब्रिटेन दोनों जगह छोटे सेंटर शुरू कर दिए। विवेकानंद को ब्रिटेन में भी कुछ ऐसे लोग मिले जो वेदांत की शिक्षा को लेने में इच्छुक हुए।

मिस मार्गरेट नोबल उन्ही में से एक ध्यान देने वाला नाम था जिसका नाम बाद में मिस निवेदिता पड़ा। वह आयरलैंड की रहनेवाली थी जो विवेकनद की एक शिष्या थी। उन्होंने आपना पूरा जीवन भारतीय लोगो के लिए समर्पण कर दिया। पश्चिमी देशों में कुछ वर्ष समय बिताने के बाद विवेकानंद भारत वापस आगए। सभी लोगों ने उनका उत्साहपूर्ण स्वागत किया।

भारत लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद ने भारत में अपने मठों का पुनर्गठन किया और अपने वेदान्तिक सिधान्तों के सच्चाई का उपदेश देना शुरू कर दिया। उन्होंने निःस्वार्थ सेवा के फायदों के बारे में भी बताया।

मृत्यु Death

4 जुलाई , 1902, बेलूर, भारत में 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद निधन हो गया। पर अपने इस जीवन के छोटे अवधि में भी वो बहुत कुछ सिखा कर गए जो आज तक पूरे विश्व को याद है। इसी कारण स्वामी विवेकानंद जी को आधुनिक भारत के संरक्षक संत का नाम दिया गया।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami Vivekananda Biography in Hindi”

He is real hero of world

Yes he Is a real hero of world

very nice, bhut hi badiya trike se btaya aapne thanks

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

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भारत के युवाओं के लिए फाड़ू किताब

Swami Vivekananda Biography in Hindi

Swami Vivekananda Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda No 1 biography pdf download

Swami Vivekananda Biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय। में आपको बायोग्राफी, शिक्षा, रामकृष्ण से भेंट, विवेकानंद का वैराग्य जीवन, अमेरिका यात्रा और शिकागो भाषन, पश्चिमी यात्रा के दौरान वेदान्त मठ की स्थापना करना फिर भारत को वापसी और अपना मठ का उत्तराधिकारी नियुकत कर महासमाधि में लिन ।

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Book Review

“विश्वगुरु विवेकानंद”  फिंगरप्रिंट प्रकाशक द्वारा प्रकाशित किया गया एक शानदार किताब! जिसके लेखक एम. आई. राजस्वी हैं। वैसे स्वामी विवेकानंद की बायोग्राफी तो बहुत सारे लेखकों द्वारा लिखी लिखी गई हैं लेकिन राजस्वी द्वारा लिखा गया इस किताब की खासियत ये है कि इसमें विश्वगुरु विवेकानंद की जीवन परिचय, प्रमुख यात्राएं , शिकांगों सहित चुनिंदा कुछ प्रमुख व्याख्यानों साथ-साथ अपने शिष्यों को लिखा गया पत्र और उनके मन-मस्तिष्क से उपजी , भावना रहित कुछ कविताएं भी शामिल हैं।  

मैने अपने पिछले ब्लॉग पोस्ट में एलन मस्क को पश्चिम का सूरज कहा था, अगर मैं विश्वगुरु स्वामी विवेकानंद को पूरब का सूरज कहूँ तो मुझे नहीं लगता कोई अतिशयोक्ति होंगी। जिसका जन्म सिर्फ और सिर्फ इसी उद्देश्य से हुआ कि आप ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को, खास कर पश्चिम के लोगों को( जिनका मन-मस्तिष्क अपनी छोली फैलाए, ज्ञान के लिए पूरब के तरफ आस लगाए बैठा है) उनके जीवन के मार्गदर्शन कर उचित दिशा दिखाए।

एक तरफ भारत पश्चिमी सभ्यता के पैरों तले रौंदा जा रहा था तो वही स्वामि विवेकानंद पश्चिम के लोगों का मार्गदर्शन कर उनकों सही दिशा में सही रास्ते पर लाने का काम कर रहे थे। भारत का परिचय दे रहे थे। ज्ञान की गंगा को उनकी छोटी सी झोली में उड़ेलते जा रहे थे। जिसके जवाब के सामने बड़े से बड़ा धर्म का ज्ञाता तनिक भी टिक नहीं पाता था।  

किसी धर्म गुरु ने कह दिया कि किसी भी धर्म के लोगों की तुलना में ईसाई धर्म के लोग आर्थिक रूप से बहुत मजबूत होते हैं। तब स्वामी विवेकानंद ने तुरंत जवाब दिया कि हाँ, सनातनियों को लूट कर। जो अभी भी जारी है। उस महापुरुष की जुबान पर एक भारी-भरकम ताला लग गया और महापुरुष तुरंत वहाँ से रफूचक्कर हो गए। तो ऐसे थे हमारे स्वामी विवेकानंद।

विश्वगुरु विवेकानंद एकमात्र ऐसे संत रहे हैं जिनके द्वारा स्थापित संघ आज भी निर्विवाद रूप से जन-कल्याण के व्रत का निर्वाह कर रहा है। यह पुस्तक ‘विश्वगुरु विवेकानंद’ ऐसे ही लघु मानव से महामानव और सामान्य सन्यासी से महासन्यासी बनने वाले विलक्षण व्यक्तित्व के दर्शन कराती है।   

Swami Vivekananda Biography in Hindi

प्रारम्भिक जीवन-.

नेन्द्रनाथ दत्त का जन्म 12 जनवरी 1863 को सुबह 6 बजकर 33 मिनट पर हुआ था। जिसके बाद माता भुनेश्वरी देवी और पिता विश्वनाथ दत्त खुशी से फुले नहीं समा रहे थे। तिजोरी में पड़े खजाने पिता द्वारा दास-दसियों को दोनों हाथों से लुटाए जाने जाने लगे। मुहल्लों में नगाड़ों की आवाज गुजने लगी। बधाइयों की बरसात हो गई।। जो कोई भी दरवाजे पर आता इस शुभ घटना से अपने को आनंदित होने से नहीं रोक पाता और विश्वनाथ दत्त उन सबका मुख मीठा कराए बिना नहीं जाने देते थे।

भुनेश्वरी के अराध्य शंकर जी के आशीर्वाद से जन्मे इस तेज को एक नाम दिया गया और विश्वनाथ दत्त विशेश्वर से ‘बिले’ पुकारने लगे। अन्नप्रास संस्कार के दौरान नाम रखने पर बिले ‘नरेन्द्रनाथ दत्त’ हो गए। नरेंद्र की बुध्दि प्रखर और तेज थी। आँख के सामने घटे हर एक घटना का बड़े ही उत्सुक देखते और चपलता से पिता से सवाल करते थे, जिसे पिता द्वारा जवाब नहीं दिए जाने पर उन्हे माता के पास भेज दिया जाता था।

रामकृष्ण से मुलाकात-

नरेंद्र की बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनके जीवन में शिक्षा के मानक भी बढ़ते गए। एक दिन वह भी आया जब नरेंद्र को अपने गुरु से भेंट हुई। हुआ यू कि नरेंद्र अपने सखा सुरेन्द्रनाथ घोष के घर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में पहुचे हुए थे। अपनी माता के साथ भजन-कीर्तन में लगने के कारण नरेंद्र को भी भजन आते थे। सखा के कहने पर नरेंद्र ने बड़े ही विनम्रता से भजन सुनाया और जिस पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा वो थे रामकृष्ण परमहंस।

नरेंद्र की मुलाकात गुरु से बहुत अद्भुत हुई। गुरुदेव अपने शिष्य के आभा को जान गए और ऐसे मंतमुग्ध हो गए जैसे उन्हे भगवान के दर्शन हुए हो। ये बात नरेंद्र को नहीं पची। उनका मानना था कि शिष्य की तलास गुरु को होती है नाकि गुरु को शिष्य की । गुरु ने कुछ नहीं कहा और मुसकुराते रहे। अपने निवास स्थान दक्षिणेश्वर आने का निमंत्रण देकर चलते बने।

एक दिन गुरुदेव नरेंद्र की तलास में पूजा-पाठ वाली जगह को पहुचे, जहां नरेंद्र पहले से ही मौजूद थे। उन सभी लोगों में से किसी ने भी गुरु के तरफ ध्यान नहीं दिया, नरेंद्र को यह अच्छा नहीं लगा, चुकी नरेंद्र गुरुदेव की शक्ति-ज्ञान से भली-भांति परिचित थे, अतः जब उनसे नहीं रहा गया तब हॉल की मेन लाइट काट कर गुरुदेव का हाथ पकड़ कर बाहर ले गए और गुरु के कहने पर दक्षिणेश्वर आने का वादा किया। 

अगले दिन जब उनकी मुलाकात गुरु से उनके स्थान पर हुई तो मिलते ही नरेंद्र ने गुरु से पूछा की क्या आपने भगवान को देखा है ? गुरु ने हाँ में जवाब दिया। और नरेंद्र के कहने पर अपने स्पर्श मात्र से गुरु ने छटा दिखाई, जिसके बाद नरेंद्र बदल गए। और अपने को आकाशगंगा में उपस्थित उन सप्त ॠषियों के गण की तरह देखने लगे।

पिता की मृत्यु और वैराग्य-

1884 से पिता की मृत्यु ने ठहरे पानी में ज्वार पैदा कर दी। ये समय ऐसा था कि नरेंद्र का जीवन बहुत उथल-पुथल हो गया। पिता द्वारा धन को इस प्रकार लुटाया गया कि घर में खाने को लाले पड़ गए। नरेंद्र ने अपने गुरु से इसकी उपाय मांगी। गुरु ने मंदिर में उपस्थित अपनी इष्ट देवी काली माँ से वो सारी चीजे मागने को कहा। लेकिन जब भी नरेंद्र मूर्ति के समक्ष जाते। धन-दौलत के जगह विद्या और वैराग्य मांग आते। ये गुरु जान कर बहुत प्रसन्न हुए आशीर्वाद दिया कि वो सभी चीजे मिलगे, जो जरूरत है। नरेंद्र ने गुरु के आशीर्वाद को ग्रहण किया।

धीरे-धीरे घर की स्थिति ठीक होने लगी और नरेंद्र की आस्था अपने गुरु में उतनी ही तेजी से बढ़ने लगा। गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के बाद शहर में घूम-घूम कर भिक्षा मांगने की बारी आई, जिसमें नरेंद्र सबसे आगे थे। परीक्षा पूर्ण होने पर नरेंद्र और और गुरु भाइयों की भांति उन्हे भी एक नया नाम मिला स्वामी विदिशानन्द ।

विदिशानन्द और मठ का उत्तरदाईत्व-

15 अगस्त, 1886 को परमहंस रामकृष्ण अपनी सारी बागडोर स्वामी विदिशानन्द के हाथों में सौप कर हमेशा के लिए महासमाधी में लिन हो गए। स्वामी विदिशनन्द अपना उत्तरदाईत्व समझते हुए ईमानदारी से गुरु के कार्यभार को संभाला और मठ चलने लगा। अपना मठ संभालने के बाद स्वामी विदिशानन्द भारत भ्रमण पर निकले और एक से एक संतों से मिलते हुए हर उस राज्य के राजा के दरबार को अपना ज्ञान की गंगा से पवित्र किया, जिसमें राजस्थान, लखनऊ, महाराष्ट्र, गुजरात, मद्रास के निजाम भी शामिल हैं।

इसी दौरान उन्हे ज्ञात हुआ कि पश्चिम में एक सर्व धर्म सम्मेलन होने वाला है। स्वामी विदिशानन्द अपने गुरु रामकृष्ण और गुरुमाता के मार्गदर्शन पर अमेरिका जाने की घोषणा की। लेकिन जाने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं था। स्वामी जी मदद के लिए बहुत सारे रईसों का दरवाजा खुला वो भी भरे दिल से लेकिन स्वामी जी स्वीकार नहीं किया क्योंकि इस धर्म कार्य के लिए ये उचित नहीं था कि वो पैसे गरीबों से लुटा गया हो।

खेतड़ी के राजा से मुलाकात-

स्वामी जी ने जनता से ही चंदा रूपी पैसा इकट्ठा करना शुरू किया। 10 फरवरी, 1892 को स्वामी हैदराबाद पहुचे तो लोगों ने उनका खूब स्वागत किया। वहाँ के निजाम ने बहुत खूब सेवा-स्वागत किया। और जब उन्हे भी स्वामी जी के जाने का पता चला तो उन्हे भी धन की पेशकश की लेकिन स्वामी जी ने खुशी-खुशी मना कर दिया ।

कुछ दिनों बाद खेतड़ी के राजा अजित सिंह मद्रास घूमने आए थे। स्वामी जी के मुलाकात से वो बड़े प्रभावित हुए क्योंकि स्वामी जी के ही आशीर्वाद से उन्हे पुत्र की प्राप्ति हुई थी। स्वामी जी ओज से प्रभावित होकर उन्होंने एक नया नाम दिया। स्वामी विवेकानन्द। और महाराजा अजित सिंह ने पुत्र-प्राप्ति के भेट स्वरूप विवेकानन्द को अपने दीवान जगमोहन लाल के साथ  ढेर सारा पैसा और अमेरिका की टिकट के साथ मुंबई बंदरगाह को रवाना कर दिया।

31 मई, 1899 को बंबई बंदरगाह से भारतीय वेदान्त की ध्वजा लेकर स्वामी विवेकानन्द करोड़ों भारतीयों की आशाओं के साथ पनिन्सुलर स्टीमर में चढ़े तो उनके शुभचिंतकों और शिष्यों ने हर्षध्वनि के साथ उन्हे विदाई दी। स्वामी जी सिंगापूर, जापान, कनाडा होते हुए बैंकुवर के रेल मार्ग से अमेरिका पहुचे।

शिकागों में प्रवेश-

विवेकानंद ने अमेरिका के शहरों में कुछ दिन बिताया और अपने ज्ञान का प्रकाश वहाँ की गलियों मे फैलाते चले। जिनमें बहुत सारे अमेरिकी उनके शिष्य बनते गए। उन्ही शिष्यों में खास थे, मिस्टर राइट । विवेकानंद ने मिस्टर राइट को अपने अमेरिका आने का उद्देश्य बताया और जब उसका समय आ गया तो मिस्टर राइट ने शिकागो की टिकेत के साथ रेल में बैठा दिया। 9 सितंबर, 1893 को शिकागो पहुचे। 

मिस्टर राइट द्वारा दिया गया पता कहीं गुम हो गया। और स्वामी जी सड़कों पर भटकने लगे। तब एक फरिस्ता बन कर श्री माती जॉर्ज डब्ल्यू. हेल ने स्वामी जी के तरफ मदद का हाथ बताया और उन्हे पाने घर ले गई। स्वामी जी से सारा वाकया सुनने के बाद हेल ने बताया कि उनके पति उस सम्मेलन में हिस्सेदार है। जिसे जानकार स्वामी जी बहुत खुश हुए और मिस्टर हेल ने उस धर्म सम्मेलन के अध्यक्ष से मिलाया।

शिकागों में भाषण-

11 सितंबर, 1893 को अमेरिका के साथ-साथ भारत भी इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। स्वामी जी थोड़े घबराए हुए थे। क्योंकि उनके जितने भी प्रतिद्वंदी थे, उनके पास अपना बनाया हुआ नोट्स था और सवामी जी खाली हाथ। भाषण देना आरंभ हुआ। एक के बाद एक धर्म अधिकारी देते चले गए। जब भी स्वामी जी का नंबर आटा वो टाल देते और दूसरे को भेजने के लिए कहते। आखिर वो भी समय आ गया जब मंच से स्वामी जी का नाम पुकारा गया।

स्वामी जी मंच पर पहुचे और थोड़ा-बहुत इधर-उधर देखने के बाद अपने वाक्य को कहना प्रारंभ किया…

“सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका…!” बस फिर क्या था, श्रोतागण के कानों में अभी इतने ही वाक्य पहुचे कि सभी खुशी और उन्माद से चिल्लाने लगे और सात मिनट तक पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजता रहा।

स्वामी जी को थोड़ा उत्साह मिला और स्वामी जी निरंतर उन्माद के साथ बोलते रहे। जब तक स्वामी जी अपनी जुबान को विराम देते, पूरा हॉल और लगभग सभी धर्म-अधिकारी भी मंत्रमुग्ध हो चुके थे। अगली सुबह अमेरिका के चारों ओर सिर्फ और सिर्फ स्वामी जी की ही गूंज थी। सारे लोग स्वामी जी से मिलने को मतवाले हो गए। और विपक्ष हो गया अपने ही देश से आए हुए कुछ धर्म अधिकारी। और यहाँ के उपस्थित ईसाई वर्ग के पोप।

भिन्न देशों की यात्रा-

न्यूयार्क, पेरिस और लंदन में एक के बाद एक भाषण देने के बाद वहाँ के लोगों में हिन्दू धर्म को स्थापित कर, हिन्दू धर्म के दीपक को जला कर भारत को रवाना हो गए। श्री लंका होते हुए मद्रास पहुचे। लाखों भारतीय उनकी स्वागत को फूल-माला लिए खड़े रहे। और लोगों के अभिवादन को स्वीकार कर चेन्नई में एक भाषण दिया और फिर कोलकाता को लौट आए।

भारत वापसी-

कलकत्ता मे अपने घर-बार और शिष्यों से मिलने बाद 1, मई, 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की गई। और अपने शिष्यों के साथ लोगों को जागृत करते हुए उत्तर भारत और फिर कलकत्ता को वापसी कर ली। मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना कर दूसरी बार पश्चिम देशों की यात्रा पर निकल पड़े और न्यूयार्क को प्रस्थान किया।

स्वामी विवेकानंद यही नहीं रुके, सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की भी सथापना किया। जिससे वहाँ के लोगों को जोड़ कर सही मार्ग दिखाया जा सके और उन्हे अंधेरे से प्रकाश की ओर लाया जा सके। न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा के बाद यूरोप को रवाना हुए। जिसमें वियना, हंगरी, ग्रीस, मिश्र, आदि देशों की यात्रा की। फिर भारत में 26 नवंबर, 1900 को वापसी किया।

महासमाधि में लिन-

10 जनवरी, 1901 को मायावती की यात्रा करने के बाद पूर्वी बंगाल और असम की यात्रा की। फिर उत्तर भारत में बोधगया और वाराणसी की यात्रा कर बैलूर मठ को वापस आए और कुछ दिन गुजारने के बाद विवेकानंद अपना कार्यभार अपने सबसे चहेते शिष्य प्रेमानन्द को मठ का उत्तराधिकारी बना कर   4 जुलाई, 1902 को महा समाधि में लिन हो गए।

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शिकांगों में दिया गया भाषण-

अमेरिकावासी बहनों और भाइयों!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उसके लिए प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से परिपूर्ण हो रहा है। संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ, धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटी-कोटी हिंदुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय यह बताया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रसारित करने के गौरव का दावा कर सकते  हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति- दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वाश नहीं करते, वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं।

मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभीमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों तथा शरणार्थियों को आश्रय प्रदान किया है। मुझे आपको यह बताते हुए गर्व का अनुभव होता है कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट अंश को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत में आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल धूसित कर दिया गया था।

ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान जरथुस्त्रा जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है।

भाइयों, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंकियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं अपने वचन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं-

रुचिनां वैचित्र्य दृजुकुटिलनानापथजूषाम|

नृणामेको गम्यस्टवमसि पयसामर्णव इव||

अर्थात हे प्रभो! विभिन्न नदियां जिस प्रकार भिन्न-भिन्न स्त्रोतों से निकलकर समुद्र में समाहित हो जाती हैं, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अंत में तुझमें ही आकार मिल जाते हैं।          

सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्माधता इस सुनदार  पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है। ये पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है। ये पृथ्वी को हिंसा से भारती रही है, बारम्बार मानवता के रक्त से नहाती रही है, सभ्यताओं का विध्वंश करती और पूरे-पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही है। यदि ये वीभत्स दानवाताएं न होती तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता।

अब उनका अंत समय आआ गया है और मैं आंतरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घंटाध्वनि हुई है, वह समस्त धर्माधता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होने वाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर  अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्परिक कटुताओं का मृत्युनिनाद सिद्ध हो। 

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चरित्र-चित्रण-

जिज्ञासु, प्रखर बुद्धि, दयालु, तार्किक मन और सोच-विचार, निर्भीकता, धार्मिक-प्रकृति, मुहफट, चरित्रवान, सत्यवादी और सज्जन । स्वामी विवेकानंद के अंदर इतने सारे गुण विद्यमान थे।

विवेकानंद के अनमोल विचार-

  • किसी मनुष्य के प्राण बचाना सबसे बड़ा धर्म है।
  • जब व्यक्ति कुछ करना चाहता है तो उसकी लगन और परिश्रम से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • समाज में कुछ ऐसे लोग भी पाए जाते हैं,  जो अज्ञान के कारण किसी भी बात का बतंगण बना देते हैं।
  • शिक्षित युवा स्वतंत्र निर्णय लेने वाले होते हैं।
  • जीव पर दया नहीं, बल्कि शिवज्ञान से जीव की सेवा करों।   
  • अभी और भी बहुत सारे हैं लेकिन ज्यादा होने के कारण वो आपको दूसरे ब्लॉग पोस्ट में मिलेंगे।  

स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखी गई कविता-

स्वामी विवेकानंद कौन थे.

स्वामी विवेकानंद भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के आध्यात्मिक गुरु या नेता और समाज सुधारक थे।

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था।

स्वामी विवेकानंद के गुरु का क्या नाम था?

स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस, जो माता काली के परम भक्त थे।

स्वामी विवेकानन्द ने शिकागों में भाषण कब दिया दिया था?

स्वामी विवेकानंद ने शिकागो शहर में अपना पहला भाषण 18 सितंबर, 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में दिया था। 

स्वामी विवेकानंद को अमेरिका जाने में किसने मदद की थी?    

स्वामी विवेकानंद को विश्व धर्म सम्मेलन में अमेरिका जाने के लिए खेतड़ी नरेश राजा अजित सिंह ने मदद की थी।

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Book का नाम- स्वामी विवेकानंद की जीवनी (vigyan bhairav tantra pdf)
book लेखक का नाम- रोमा रोलां ( Romain Rolland )
प्रकाशक का नाम- सूपर फाइन प्रिंटर्स, इलाहाबाद

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

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शिकागो वक्तृता [ स्वामी विवेकानन्द,विश्व धर्म सभा, शिकागो ] | Swami Vivekananda's Complete Speech In Hindi At World's Parliament Of Religions, Chicago

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Nice post meri bhi blog hai http://www.hindihint.com is par bhi aap hindi me biography ke saath bhut kuch pad skte hai

Aapne sawami ji ke baare me bahut achhi jankari di hai.

biography of vivekananda in hindi pdf

bhai ek baat bolna tha.... pura to wikipedia ko he chhaap diya uska bhin link dene bolte na.....

You have written a very good article. You have given very interesting information about Swami Vivekananda. Here you have explained all the facts very beautifully.

bahut achha lekh

Very good information about sawami vivekananda

सारगर्भित और ज्ञान से ओत-प्रोत जानकारी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

Very nice information

It is very good biography on my idel Swami Vivekananda

अद्भुत ज्ञान के भंडार हैं स्वामी विवेकानंद जी

Very nice biography

Bahut achha likha hai aapne Swami ji ke bare main

swami ji 1 din me 700 page yaad kar lete the

Bhut hi shandar likha sir aapne bhut si bate nahi janta jo ab jan gya

Great 🙏🙏🙏🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤

kashto se bhara jiban apne laskh or Hindu dharm ko bataye

Swami ji ka lekh pada bahut acchha laga

◦•●◉✿Great man✿◉●•◦

Swami vivekanand ji ko mera namaskar kitne vidvaan hai swami vivekanand ji

Thanku so much this information

संक्षिप्त में बहुमूल्य जानकारी।

आपको हमारे तरफ से बहुत धनबाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

बहुत-बहुत धन्यवाद भारत के इतिहास के सबसे बड़े व्यक्ति के जीवन के बारे में बताने के लिए।

if a real good we can talk to anyone that is vivakanand, my hero good is thru but vivakanand is master of everyone. his word to protact other befor himself , i real like

very nice sir

very informational and high quality article about Swami Vivekananda

आपने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में अच्छी जानकारी दी है

I am able to write my project with it

Bahut hi sundar raha hai ye anubhav mere liye

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Swami Vivekananda biography in Hindi PDF{स्वामी विवेकानन्द की जीवनी हिंदी में PDF}

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के माध्यम से स्वामी विवेकानंद के जन्म , शिक्षा , मृत्यु , स्वामी वेवकानद जी का भ्रमण , स्वामी विवेकानन्द की श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात और उनके ऐतिहासिक कार्यो को बताया गया जिससे उनके बचपन से लेकर मृत्यु तक सभी महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में हम विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं शुरू उनके बचपन से करते हैं क्युकी उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्र के दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और फ़ारसी के विद्वान थे। 25 वर्ष की आयु में नरेंद्र ने अपना परिवार छोड़ दिया और साधु बन गये। उनकी मां, भुवनेश्वरी देवी, दृढ़ धार्मिक विश्वास वाली एक धर्मनिष्ठ महिला थीं, जो मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा के प्रति समर्पित थीं। नरेंद्र के पिता और उनके परिवार की प्रगतिशील और बौद्धिक मानसिकता ने उनके विचारों और व्यक्तित्व को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Swami Vivekananda biography in Hindi

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका पूरा नाम नरेंद्र नाथ विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके 9 भाई-बहन थे और घर पर वे सभी उन्हें नरेंद्र कहकर बुलाते थे।

स्वामी विवेकानन्द के पिता कोलकाता उच्च न्यायालय के एक प्रसिद्ध और सफल वकील थे, जो अंग्रेजी और फ़ारसी दोनों भाषाओं में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते थे। स्वामी विवेकानन्द की माँ एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं जिन्हें रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों की अच्छी समझ थी। वह एक प्रतिभाशाली और बुद्धिमान महिला भी थीं जिन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था। अपने माता-पिता के पालन-पोषण और दिए गए मूल्यों की बदौलत स्वामी विवेकानन्द ने अपने जीवन में उच्च स्तर की सोच विकसित की। उनका मानना ​​था, “अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए तब तक प्रयास करते रहें जब तक आप उन्हें प्राप्त नहीं कर लेते।

  • 1871 में नरेंद्र नाथ को ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मार्गदर्शन में मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में भर्ती कराया गया।
  • 1877 में कुछ कारणों से नरेंद्र नाथ के परिवार को रायपुर आना पड़ा। इस कदम से तीसरी कक्षा में उनकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हुई।
  • 1879 में, अपने परिवार के कोलकाता लौटने के बाद, नरेंद्र नाथ ने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किये |
  • नरेंद्र जी हमेशा पारंपरिक भारतीय संगीत में निपुण थे, शारीरिक व्यायाम, खेल और सभी प्रकार की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होते थे। उन्हें वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत और पुराण जैसे हिंदू धार्मिक ग्रंथों में गहरी रुचि थी।
  • स्वामी विवेकानन्द ने 1881 में ललित कला की परीक्षा पूरी की और 1884 में कला के क्षेत्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • 1884 में उन्होंने बी.ए. पास किया। की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की और बाद में कानून की पढ़ाई शुरू की।
  • 1884 में, स्वामी विवेकानन्द के पिता के निधन के बाद, उनके नौ भाई-बहनों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उनके कंधों पर आ गई। हालाँकि, वह इस चुनौती के सामने न तो डगमगाये और न ही डगमगाये। वह अपने निश्चय पर दृढ़ रहे और अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाया।
  • 1889 में नरेन्द्र जी का परिवार कोलकाता लौट आया। अपनी तीव्र बुद्धि के कारण वह एक बार फिर स्कूल में प्रवेश पाने में सफल रहे और उन्होंने तीन साल का पाठ्यक्रम केवल एक वर्ष में पूरा कर लिया।
  • स्वामी विवेकानन्द को दर्शन, धर्म, इतिहास और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में गहरी रुचि थी। इसी लगन के कारण उन्होंने इन विषयों का अध्ययन बड़े मनोयोग से किया। यह समर्पण ही था जिसने उन्हें न केवल पारंगत बनाया बल्कि शास्त्रों और ग्रंथों का प्रकांड विद्वान भी बनाया।
  • उन्होंने जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में यूरोपीय इतिहास का अध्ययन किया।
  • स्वामी विवेकानन्द बांग्ला भाषा में पारंगत थे। वह हर्बर्ट स्पेंसर के लेखन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने स्पेंसर की पुस्तक “एजुकेशन” का बंगाली में अनुवाद किया।
  • स्वामी विवेकानन्द को अपने गुरुओं से बहुत प्रशंसा मिली, यही कारण है कि उन्हें “श्रुतिधर” भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है पवित्र ज्ञान रखने वाला और प्रदान करने वाला।

स्वामी विवेकानन्द की श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात:

स्वामी विवेकानन्द की सहज जिज्ञासा उनके प्रारंभिक वर्षों से ही स्पष्ट थी। इसी जिज्ञासा से प्रेरित होकर, उन्होंने एक बार महर्षि देवेन्द्रनाथ से एक गहन प्रश्न पूछा, “क्या आपने कभी भगवान को देखा है?” इस पूछताछ ने महर्षि देवेन्द्रनाथ को आश्चर्यचकित कर दिया, जिससे उन्होंने सुझाव दिया कि स्वामीजी अपनी ज्ञान की प्यास को शांत करने के लिए श्री रामकृष्ण परमहंस से उत्तर मांगें।

स्वामी विवेकानन्द की श्री रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात

इस सलाह पर कार्य करते हुए, स्वामी विवेकानन्द ने श्री रामकृष्ण को अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार किया और उनके द्वारा प्रकाशित मार्ग पर चलने की यात्रा शुरू की। इस महत्वपूर्ण मुलाकात ने स्वामी विवेकानन्द को गहराई से प्रभावित किया, जिससे उनके मन में अपने गुरु के प्रति अटूट भक्ति और गहरा सम्मान पैदा हुआ जो समय के साथ विकसित होता रहा।

1885 में रामकृष्ण परमहंस कैंसर से बीमार पड़ गये। इसके बाद स्वामी विवेकानन्द ने स्वयं को अपने गुरु की सेवा में समर्पित कर दिया। इससे उनका रिश्ता और भी गहरा हो गया. रामकृष्ण जी के निधन के बाद नरेंद्र नाथ ने वाराणसी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। बाद में इसका नाम बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद, नरेंद्र नाथ ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और वह स्वामी विवेकानन्द में परिवर्तित हो गये।

25 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने गेरुआ वस्त्र धारण किया और उसके बाद वे पैदल ही पूरे भारत की यात्रा पर निकल पड़े। इस तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने आगरा, अयोध्या, वाराणसी, वृन्दावन, अलवर और कई अन्य स्थानों का दौरा किया। रास्ते में, उन्होंने प्रचलित सामाजिक पूर्वाग्रहों और पूर्वाग्रहों का सामना किया और उन्हें मिटाने के प्रयास किये|

23 दिसंबर, 1892 को स्वामी विवेकानन्द ने कन्याकुमारी में तीन दिन गहन ध्यान में बिताए। इसके बाद, वह वापस लौटे और राजस्थान में अपने गुरु-भाइयों, स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले।

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के माध्यम से उनके कुछ प्रमुख योगदान के बारे में बताया गया हैं|

  • 30 वर्ष की आयु में, स्वामी विवेकानन्द ने संयुक्त राज्य अमेरिका में विश्व धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया।
  • सांस्कृतिक भावनाओं के माध्यम से लोगों को जोड़ने का प्रयास किया गया।
  • जातिवाद से जुड़ी प्रथाओं को खत्म करने और निचली जातियों के महत्व पर जोर देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया गया।
  • स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय धार्मिक रचनाओं के सार को सही ढंग से समझने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • स्वामी विवेकानन्द ने दुनिया को हिंदू धर्म का महत्व समझाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • स्वामी विवेकानन्द ने धार्मिक परम्पराओं का सामंजस्यपूर्ण एकीकरण स्थापित किया।

4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द का निधन हो गया। उनके शिष्यों के अनुसार वे महासमाधि में लीन हो गये थे। अपनी भविष्यवाणी में, उन्होंने उल्लेख किया था कि वह 40 वर्ष की आयु से अधिक जीवित नहीं रहेंगे। इस महान आत्मा का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।

स्वामी विवेकानन्द का इतिहास:

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के माध्यम से उनके इतिहास के बारे में यह कहा जाता हैं की उन्होंने अपने गुरु के निधन के बाद, ट्रस्टियों से वित्तीय सहायता कम हो गई, और कई शिष्यों ने अधिक पारंपरिक जीवन चुनते हुए, अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं को छोड़ दिया। हालाँकि, स्वामी विवेकानन्द इस स्थान को एक मठ में बदलने के अपने दृढ़ संकल्प पर दृढ़ रहे। वहां, वह और कुछ समर्पित अनुयायी लंबे समय तक ध्यान में लगे रहे और अपनी धार्मिक प्रथाओं को जारी रखा।

दो साल बाद, 1888 से 1893 तक, उन्होंने पूरे भारत में एक व्यापक यात्रा शुरू की, अपने साथ केवल एक बर्तन और दो किताबें – भगवद गीता और द इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट – ले गए। उन्होंने भिक्षा मांगकर अपना भरण-पोषण किया और खुद को राजाओं सहित विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के विद्वानों और नेताओं की संगति में समर्पित कर दिया।

उन्होंने लोगों द्वारा अनुभव की गई गहन गरीबी और पीड़ा को देखा और इससे उनके भीतर अपने साथी प्राणियों के प्रति सहानुभूति की गहरी भावना जागृत हुई। इसके बाद, उन्होंने 1 मई, 1893 को पश्चिम की यात्रा शुरू की। उनकी यात्रा उन्हें जापान, चीन, कनाडा तक ले गई और अंततः 30 जुलाई, 1893 को शिकागो पहुंचे। धर्म संसद में सितंबर 1893 में हार्वर्ड के प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट की सहायता से आयोजित इस सम्मेलन में उन्होंने हिंदू धर्म और भारतीय मठ में की जाने वाली आध्यात्मिक प्रथाओं की बहुत ही स्पष्टता से व्याख्या की। उल्लेखनीय रूप से, उन्होंने खुद को नरेंद्रनाथ के बजाय विदेश में विवेकानंद के रूप में प्रस्तुत किया, यह सुझाव खेतड़ी के अजीत सिंह ने दिया था, जिन्होंने मठ में अपने शिक्षण के दिनों के दौरान पहली बार उनसे मुलाकात की थी और उनके ज्ञान से गहराई से प्रभावित हुए थे। विवेकानन्द नाम संस्कृत के शब्द “विवेक” से लिया गया है, जिसका अर्थ है ज्ञान और “आनंद”, जिसका अर्थ है आनंद।

Swami Vivekananda Biography in Hindi PDF Download:

स्वामी विवेकानन्द की जीवनी हिंदी में पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करे:

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स्वामी विवेकानंद का परिचय कैसे दें?

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 (विद्वानों के अनुसार वर्ष 1920 की मकर संक्रांति को) को कोलकाता में एक प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन के घर का नाम “विश्वेश्वर” था, लेकिन उनका औपचारिक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कोलकाता उच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध वकील थे।

स्वामी विवेकानंद कौन से धर्म के थे?

स्वामी विवेकानन्द दिन और रात दोनों समय लगभग डेढ़ से दो घंटे ही सोते थे। हर चार घंटे में वह 15 मिनट की झपकी लेते थे।

स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म के बारे में क्या कहा?

स्वामी विवेकानन्द ने हिंदू धर्म के बारे में कहा है कि हिंदू धर्म का सच्चा संदेश लोगों को अलग-अलग धार्मिक संप्रदायों में बांटना नहीं है, बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधना है। इसी तरह, भगवद गीता में, भगवान कृष्ण भी संदेश देते हैं कि परम प्रकाश, अपने विभिन्न मार्गों के बावजूद, एक ही है।

इस लेख Swami Vivekananda biography in Hindi के आलावा और भी लेख लिखे गए हैं जिसको अवश्य पढ़ें:

Praggnanandhaa Biography In Hindi PDF(प्रज्ञानानंद की जीवनी हिंदी में)

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography In Hindi

Swami Vivekananda Biography in hindi

स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे. जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म के मूल आधार और नैतिक मूल्यों से परिचय कराया. स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में निपुण थे. स्वामी विवेकानंद को सयुंक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में हिन्दू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया. उनका जन्म कलकत्ता के के उच्च कुलीन परिवार में हुआ था. उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था. युवावस्था में वह गुरु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आये और उनका झुकाव सनातन धर्म की और बढ़ने लगा.

गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलने के पहले वह एक आम इंसान की तरह अपना साधारण जीवन व्यतीत कर रहे थे. गुरूजी ने उनके अन्दर की ज्ञान की ज्योति जलाने का काम किया. उन्हें 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में दिए गए अपने भाषण के लिए जाना जाता हैं. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” कहकर की थी. स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा से पहले भारत को दासो और अज्ञान लोगों की जगह माना जाता था. स्वामी जी ने दुनिया को भारत के आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन कराये.

स्वामी विवेकानंद का जन्म और परिवार (Swami Vivekananda Birth and Family)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ. स्वामी जी के बचपन का नाम नरेन्द्र दास दत्त था. वह कलकत्ता के एक उच्च कुलीन परिवार के सम्बन्ध रखते थे. इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक नामी और सफल वकील थे. वह कलकत्ता में स्थित उच्च न्यायालय में अटॅार्नी-एट-लॉ (Attorney-at-law) के पद पर पदस्थ थे. माता भुवनेश्वरी देवी बुद्धिमान व धार्मिक प्रवृत्ति की थी. जिसके कारण उन्हें अपनी माँ से ही हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला.

स्वामी विवेकानंद का बचपन (Swami Vivekananda Childhood)

स्वामी जी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले और बढे. उनके पिता पाश्चात्य संस्कृति में विश्वास करते थे इसीलिए वह उन्हें अग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते थे. उनका कभी भी अंग्रेजी शिक्षा में मन नहीं लगा. बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत था. उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक मिले थे.

माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थी वह नरेन्द्रनाथ (स्वामीजी के बचपन का नाम) के बाल्यकाल में रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थी. जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बढते चले गयी. कहानियाँ सुनते समय उनका मन हर्षौल्लास से भर उठता था.रामायण सुनते-सुनते बालक नरेन्द्र का सरल शिशुहृदय भक्तिरस से भऱ जाता था. वे अक्सर अपने घर में ही ध्यानमग्न हो जाया करते थे. एक बार वे अपने ही घर में ध्यान में इतने तल्लीन हो गए थे कि घर वालों ने उन्हें जोर-जोर से हिलाया तब कहीं जाकर उनका ध्यान टूटा.

स्वामी विवेकानंद का सफ़र (Swami Vivekananda Life Journey)

वह 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपना घर और परिवार को छोड़कर संन्यासी बनने का निर्धारण किया. विद्यार्थी जीवन में वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आये. स्वामी जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने नरेन्द्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी.

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी थे. परमहंस जी की कृपा से स्वामी जी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और वे परमहंस जी के प्रमुख शिष्य हो गए.

1885 में रामकृष्ण परमहंस जी की कैंसर के कारण मृत्यु हो गयी. उसके बाद स्वामी जी ने रामकृष्ण संघ की स्थापना की. आगे चलकर जिसका नाम रामकृष्ण मठ व रामकृष्ण मिशन हो गया.

Swami Vivekananda Biography In Hindi

शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन (Swami Vivekananda’s chicago Dharma Sammelan)

11 सितम्बर 1893 के दिन शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन होने वाला था. स्वामी जी उस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

जैसे ही धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने अपनी ओजस्वी वाणी से भाषण की शुरुआत की और कहा “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” वैसे ही सभागार तालियों की गडगडाहट से 5 मिनिट तक गूंजता रहा. इसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण में भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति के विषय में अपने विचार रखे. जिससे न केवल अमेरीका में बल्कि विश्व में स्वामीजी का आदर बढ़ गया.

स्वामी जी द्वारा दिया गया वह भाषत इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है. धर्म संसद के बाद स्वामी जी तीन वर्षो तक अमेरिका और ब्रिटेन में वेदांत की शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते रहे. 15 अगस्त 1897 को स्वामी जी श्रीलंका पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ.

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स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग (Swami Vivekananda Story in Hindi)

जब स्वामी जी की ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी थी. तब उनसे प्रभावित होकर एक विदेशी महिला उनसे मिलने आई. उस महिला ने स्वामी जी से कहा- “मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ.” स्वामी जी ने कहा- हे देवी मैं तो ब्रह्मचारी पुरुष हूँ, आपसे कैसे विवाह कर सकता हूँ? वह विदेशी महिला स्वामी जी से इसलिए विवाह करना चाहती थी ताकि उसे स्वामी जी जैसा पुत्र प्राप्त हो सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपने ज्ञान को फैला सके और नाम रोशन कर सके.

उन्होंने महिला को नमस्कार किया और कहा- “हे माँ, लीजिये आज से आप मेरी माँ हैं.” आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचर्य का पालन भी हो जायेगा. यह सुनकर वह महिला स्वामी जी के चरणों में गिर गयी.

Swami Vivekananda Biography In Hindi

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (Swami Vivekananda Death)

4 जुलाई 1902 को स्वामी जी ने बेलूर मठ में पूजा अर्चना की और योग भी किया. उसके बाद वहां के छात्रों को योग, वेद और संस्कृत विषय के बारे में पढाया. संध्याकाल के समय स्वामी जी ने अपने कमरे में योग करने गए व अपने शिष्यों को शांति भंग करने लिए मना किया और योग करते समय उनकी मृत्यु हो गई.

मात्र 39 वर्ष की आयु में स्वामी जी जैसे प्रेरणा पुंज का प्रभु मिलन हो गया. स्वामी जी के जन्मदिवस को पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस“ के रूप में मनाया जाता हैं.

स्वामी जी के अनमोल विचार (Swami Vivekananda’s Quotes in Hindi)

  • ‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ. अपने मानव जन्म को सफल बनाओ और तब तक नहीं रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लो’
  • हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र निर्माण हो. मानसिक शक्ति का विकास हो. ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं.

More…

3 thoughts on “स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | Swami Vivekananda Biography In Hindi”

बहुत बढ़िया लिखा है नीस , स्वामी विवेकानंद जी से जुडी रोचक जानकारियां जानने के लिए यहां किल्क करें।

very nice biography .. thanks for sharing

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Hindi Yatra

Swami Vivekananda Biography in Hindi | विवेकानंद की जीवनी

Swami Vivekananda Biography in Hindi : स्वामी विवेकानंद को भारत में उनको सन्यासी का अमेरिका में उनका नाम पड़ा साइक्लॉनिक हिन्दू का टाटा समूह के पितामह ने उनसे शिक्षा का प्रचार प्रसार का ज्ञान लिया तो कर्म कान्डियो के लिए Swami Vivekananda बन के उभरे एक विद्रोही।

भारत में समाज सुधार की धर्म की, अध्यात्म की दर्शनशास्त्र की, प्रगतिशील विचारों की जब भी बात होगी तो स्वामी विवेकानंद –  Swami Vivekananda के बिना वो चर्चा हमेशा अधूरी रहेगी।

उनमे किस तरह का अनूठा Convention Power था स्वामी विवेकानंद में कि वह अपने मस्तिष्क पर कंट्रोल कर सकते थे और फिर कर सकते थे Multitasking।

Swami Vivekananda Biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद सबसे कहते थे, कि महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनकी बेहतरी चाहते हैं उनकी हालत सुधारना चाहते हैं तो उनके लिए कुछ करिए नहीं बस उनको अलग छोड़ दीजिए

वह जो करना चाहे वह उन्हें करने का अवसर दीजिए वह पुरुषों से ज्यादा सक्षम है अपनी बेहतरी स्वयं कर सकती हैं महिलाएं भी स्वामी विवेकानंद जी के विचारों से बेहद प्रभावित रहती थी।

Swami Vivekananda का नाम Cyclonic Hindu क्यों पड़ा

11 सितंबर 1893 में शिकागो मैं हुई विश्वधर्म परिषद में स्वामी विवेकानंद ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया यह वह भाषण था इस भाषण में उन्होंने सबसे पहले बोला “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों”  इस को सुनकर वह बैठे सभी लोगो ने खड़े होकर तालिया बजाई।

इस भाषण के बाद स्वामी विवेकानंद की ख्याति फैल गई जिसके बाद स्वामी विवेकानंद 3 साल तक अमेरिका में रहे अमेरिकी मीडिया ने उनका नाम Cyclonic Hindu Swami Vivekananda रख दिया।

स्वामी विवेकानंद ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना पूरे विश्व के युवाओं मैं एक नई अलख जगाई है उनका प्रमुख नारा भी युवाओं के लिए का युवाओं में दृढ़ इच्छा और विश्वास पैदा करने के लिए उन्होंने यह नारा दिया था।

“उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक जीवनी  (Swami Vivekananda Biography in Hindi)

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प्रारंभिक जीवन, जन्म और बचपन- (Swami Vivekananda life History)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर सक्रांति के दिन 6:35 पर सूर्य उदय से पहले भारत के कोलकाता शहर में उनके पैतृक घर में होता है। स्वामी विवेकानंद का का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था और पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाई कोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे। वह नए विचारों को मानने वाले आदमी थे।

और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धर्म कर्म में मानने वाली गृहिणी थी। वह नरेंद्र नाथ को रामायण रामायण और महाभारत के किस्से कहानियां सुनाया करती थी इस कारण बचपन से ही नरेंद्र की हिंदू धर्म ग्रंथों मैं बहुत रुचि थी। नरेंद्र नाथ का पालन पोषण बहुत ही खुशहाली मैं हुआ क्योंकि उनका परिवार बहुत ही सुखी और संपन्न परिवार था।

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स्वामी विवेकानंद की मां ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि भगवान शिव आप मुझे एक प्यारा सा बेटा दीजिए, तब भुवनेश्वरी देवी के सपने में शिव भगवान आते हैं और उनको कहा कि तुम परेशान मत हो मैं आ रहा हूं और स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ।

Swami Vivekananda के परिवार में उनके दादा दुर्गाचरण दत्ता भी जो की संस्कृत और फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान् थे। वह ईश्वर की साधना में मग्न रहते थे और एक दिन ऐसा आया कि उन्होंने 25 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे।

नरेंद्र नाथ बचपन में बहुत ही शरारती और नटखट थे उनकी शरारतों के कारण सभी तंग रहते थे एक दिन की बात है नरेंद्र कुछ शरारत कर के भाग खड़े हुए उनकी बहन उनको पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ी, यह देखकर नरेंद्र घबरा गया और वह नाली के पास जाकर नाली का कीचड़ अपने ऊपर लगा लिया और फिर अपनी बहन से बोले अब पकड़कर दिखाओ मुझे, यह देखकर उनकी बहन आश्चर्यचकित रह गई और नरेंद्र को वह पकड़ नहीं पाई क्योंकि नरेंद्र कीचड़ में लिपटा हुआ था।

एक बार नरेंद्र नाथ अपने शहर में लगा मेला देखने गए तब नरेंद्र की उम्र सिर्फ 8 साल थी वह मेले में तरह तरह के रंग बिरंगे चीजें देखकर बहुत ही प्रसन्न हो गई और पूरे दिन मेले में घूमते रहे।

और जैसे ही शाम ढलने लगी घर जाने का समय हुआ तो स्वामी विवेकानंद दें एक दुकानदार से मिट्टी का शिवलिंग खरीद लिया इसके बाद उनके पास बहुत कम 4 आने वैसे ही बचे थे इसके बाद वह सोच रहे थे कि भी इन 4 आने को कहां खर्च करें तभी उनको एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी।

जब उन्होंने उस बच्चे से पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो तो बच्चे ने बहुत ही सैनी से आवाज में जवाब दिया कि वह अपने घर से कुछ पैसे लेकर आया था लेकिन मेले में कहीं गुम हो गए अगर वह खाली हाथ घर गया तो उसकी मां उसको बहुत मारेगी यह देख नरेंद्र के मन में दयालुता का भाव उमड़ा और उन्होंने अपने बचे हुए 4 आने उस बच्चे को दे दिए।

इस घटना से यह पता चलता है कि स्वामी जी बचपन से ही कितने दयालु स्वभाव के थे।

जब नरेंद्र की माता को इस बात का पता चला तो उनकी मां ने उनको गले से लगा लिया और कहा कि जीवन में सदैव ही ऐसे काम करते रहना।

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स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – (Swami Vivekananda Education)

नरेंद्र की उम्र 8 साल थी तब उनका दाखिला ईश्वर चंद विद्यासागर मेट्रो मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में करवाया गया, उनके पिताजी चाहते थे कि कि उनका बेटा अंग्रेजी पढ़े लेकिन बचपन से ही स्वामी विवेकानंद का मन वेदों की ओर था। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज का एंट्रेंस एग्जाम दिया और परीक्षा को फर्स्ट डिवीजन से पास करने वाले पहले विद्यार्थी बने।

वे दर्शन शास्त्र, इतिहास, धर्म, सामाजिक ज्ञान, कला और साहित्य सभी विषयों के बड़े उत्सुक पाठक थे बहुत रुचि थी उनको इन सभी विषयों में बचपन से ही हिंदू धर्म ग्रंथों मैं उनकी बहुत रुचि थी और साथ ही उनको योग करना, खेलना बहुत पसंद था।

भारतीय अध्यात्म, भारतीय दर्शन और धर्म के साथ-साथ नरेंद्र की दिलचस्पी पश्चिमी जीवन और यूरोपीय इतिहास मैं भी बहुत रुचि थी इसलिए उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (वर्तमान – स्कॉटिश चर्च कॉलेज) से किया था। उस जमाने के सभी वेस्टर्न राइटरस उन्होंने बहुत गहन अध्ययन किया था।

उन्होंने 1881 में ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली थी।

उस जमाने के जाने माने शिक्षा वेद और फ़लॉसफ़र William Hastie ने एक जगह लिखा है कि नरेंद्र बहुत होशियार है और मैंने दुनिया भर के विद्यार्थियों को देखा है और अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में गया हूं लेकिन जब Philosophy (दर्शनशास्त्र) का सवाल आता है तो नरेंद्र के दिमाग और कुशलता के आगे मुझे कोई और स्टूडेंट नहीं दिखता।

रामकृष्ण के साथ – (Swami Vivekananda Teacher Ramakrushna)

नरेंद्र पढ़ने लिखने लिखने में बहुत ही अच्छे छात्र थे लेकिन उनका मन हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा था सांसारिक मोह माया के पीछे वह नहीं भागते थे लेकिन जब तक उनके पिताजी जिंदा थे स्वामी विवेकानंद का मन दीन-दुनिया से अलग नहीं हुआ था उनका मोह भंग नहीं हुआ था

वेदांत में योग में इन सब में उनकी दिलचस्पी तो पहले भी थी। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद Swami Vivekananda का मन दीन- दुनिया से उठ गया।

एक दिन की बात है जब William Hastie धर्म और दर्शन पर व्याख्या कर रहे थे और उन्होंने देखा कि नरेंद्र नाथ आंखें बंद करके बैठे हुए हैं उन्होंने तुरंत नरेंद्र को कहा कि क्या तुम सो रहे हो, नरेंद्र ने तुरंत आंखें खोली और कहां जी नहीं William Hastie मैं कुछ सोच रहा था

Ramakrishna paramahamsa

William Hastie ने कहा किस विषय में सोच रहे हो तुम, तब नरेंद्र ने कहा क्या आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे।

William Hastie ने कहा क्यों नहीं बोलो नरेंद्र क्या प्रश्न पूछना चाहते हो तुम।

नरेंद्र ने कहा क्या आपने कभी ईश्वर के दर्शन किए हैं

तब William Hastie ने कहा नरेंद्र नाथ तुमने बहुत ही कठिन प्रश्न पूछा है तुम इस प्रश्न के उत्तर के लिए गंभीर भी हो, निराश ना हो मैं तुम्हें एक ऐसे संत का नाम बताऊंगा जो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सही प्रकार से दे सकते हैं यदि वास्तव में ही ईश्वर के दर्शन करना और सत्य की प्राप्ति ही तुम्हारा उद्देश्य है तो तुम दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस के पास चले जाओ, वही तुम्हें ईश्वर के विषय में बता देते हैं।

नरेंद्र को William Hastie की बात सही लगी और 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने चले गए।

और वहां पहुंच कर उन्होंने वही प्रश्न रामकृष्ण परमहंस ने किया लेकिन रामकृष्ण परमहंस नए जब नरेंद्र को देखा तो वह उन्हें एकटक देखते ही रहे मानो जैसे वह दोनों एक दूसरे से पहले से ही परिचित थे।

फिर उन्होंने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा हां मैंने ईश्वर को देखा है ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें देख रहा हूं यदि कोई सच्चे हृदय से ईश्वर को याद करता है तो वह अवश्य ईश्वर से मिल सकता है।इसके बाद रामकृष्ण परमहंस ने कहा की यदि तुम मेरे कहे अनुसार कार्य करो तो मैं तुम्हें भी ईश्वर के दर्शन करा सकता हूं।

रामकृष्ण की इन बातों का नरेंद्र पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। और वह उनकी ओर आकर्षित होने लगे। इसके बाद महेंद्र रामकृष्ण परमहंस के सच्चे शिष्य बन गए उन्होंने उनके विचारों को अपनाया और अपने जीवन में उतारा।

नरेंद्र के पिता विश्वनाथ दत्त की 1884 में अचानक मृत्यु हो गयी उसके बाद उनके घर की हालत इतनी खराब हो गयी कि उनके खाने के भी लाले पड़ गये। उनका परिवार अगर सुबह भोजन कर लेता तो शाम का पता नही होता था। कई कई बार तो वे 2-3 दिन तक भोजन नहीं करते थे। स्वामी विवेकानंद के पास पहनने को कपड़े भी नहीं थे।

विवेकानंद के दोस्त उन्हें खाने के लिए देते भी थे लेकिन वह यह बोल कर मना कर देते थे की उनका परिवार भूखा होगा। वह ईश्वर को कोसने लगे थे। फिर वह सब कुछ छोड़ छाड़ के अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास चले गए।

रामकृष्ण ने उनके परिवार के हालत की सुधार के लिए उनको मां काली की उपासना करने को कहा लेकिन विवेकानंद मूर्ति और धातु पूजा में नहीं मानते थे क्योंकि कॉलेज के दिनों में उनका ध्यान ब्रह्म समाज की ओर हो गया था। ब्रह्म समाज मूर्ति पूजा को नहीं मानता था इसलिए विवेकानंद ने भी मां काली की उपासना करने से मना कर दिया।

और विरोध करने लगे और रामकृष्ण का उपहास भी उड़ाया। लेकिन रामकृष्ण परमहंस यह सब शांति पूर्वक देखते रहे और नरेंद्र की शांत होने पर उन्होंने कहा कि ”सभी दृष्टिकोणों से सत्य जानने का प्रयास करे” ।

नरेंद्र को भी यह बात सही लगी तब उन्होंने मां काली की उपासना करना चालू कर दिया और अंत में उनको मां काली के दर्शन हुए उन्होंने मां काली से सब कुछ मांगा और जब वे ध्यान से बाहर आए तो रामकृष्ण ने कहा कि तुमने अपने प्यार के लिए सब कुछ मांग लिया।

तो नरेंद्र ने कहा मांग लिया तो रामकृष्ण ने कहा तुमने अपने परिवार के लिए धन मांगा कि नहीं…

फिर नरेंद्र ने उत्तर दिया कि नहीं वह तो मैं भूल गया..

रामकृष्ण ने कहा तुम फिर से ध्यान लगाओ और अपने परिवार के लिए धन मांगो।

नरेंद्र ने करीब 3 बार ध्यान लगाया लेकिन तीनों ही बार वह सब कुछ मांग लेते लेकिन अपने परिवार के लिए धन मांगना भूल जाते थे।

तब उनको एहसास हो गया कि धन और मोह माया उनके लिए नहीं बनी है इसके बाद उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को गुरु मान लिया । और रामकृष्ण परमहंस ने भी उनको शिष्य बनाया और जितना भी ज्ञान उनको था वह पूरा ज्ञान नरेंद्र को दे दिया।

लेकिन कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस बीमार रहने लगे थे उन्हें पता चल गया था कि अब उनके जीवन के अधिक दिन नहीं रह गए हैं उन्हें पता चला कि उनको कैंसर हैं।इसलिए 1885 में रामकृष्ण परमहंस को इलाज के लिए कोलकाता जाना पड़ा लेकिन वह वहां पर ठीक नहीं हो पाये।

फिर नरेंद्र ने उनके अंतिम दिनों में उनकी सेवा की, रामकृष्ण ने अपने अंतिम दिनों में उन्हें सिखाया की मनुष्य की सेवा करना ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है। करीब 1 वर्ष के बाद 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।  उन्होंने अपना जीवन गुरुदेव श्री रामकृष्ण को समर्पित कर दिया 25 साल की उम्र में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए यानी कि उन्होंने सन्यास ले लिया और निकल गए पूरे भारत की यात्रा पर।

श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद नरेंद्र ही उनके उत्तराधिकारी बने वे केवल नाम के ही उत्तराधिकारी नहीं थे उन्होंने वैसा कार्य भी करके दिखाया। उन्होंने अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की गुरु के विचारों का पूरी दुनिया में विस्तार किया और देश की दीन दुखियों की सहायता की और अनेक कल्याणकारी योजनाएं भी चलाई।

स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्र में लिखा था “मुझे ईश्वर में विश्वास है, मुझे मनुष्य में विश्वास है, मुझे दिन दुखियों की सहायता में विश्वास है और यही मेरा कर्तव्य है” ।

इसी दृढ़ निश्चय को लेकर उन्होंने भारत के अंतिम शहर कन्याकुमारी के समुंद्र में चट्टान थी वहां पर उन्होंने 2 दिन 2 रात तक अटूट ध्यान किया इसी ध्यान के दौरान उनके मन में अतीत और वर्तमान भारत के चित्र उभर आए जिस शिला पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था वह आज विवेकानंद स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है आज भी लाखों लोग कन्याकुमारी में स्थित उस शीला के दर्शन करने आते हैं।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद नाम कैसे पड़ा (How did Narendra name Swami Vivekananda?)-

1893 जब नरेंद्र नाथ दत्त बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए एक सन्यासी के रूप में यात्रा करने लगे और वह पूरे भारत में जगह-जगह भ्रमण करने लगे थे इस बीच उनकी मुलाकात 4 जून 1891 को माउंट आबू में खेतड़ी के राजा अजीत सिंह से हुई।

नरेंद्र और अजीत सिंह की कुछ बात हुई नरेंद्र की ज्ञान की बातें सुनकर राजा अजीत सिंह बहुत खुश हुए। और उन्होंने नरेंद्र नाथ को अपने महल खेतड़ी में आने के लिए निमंत्रण दिया।

maharaja ajit singh and swami vivekananda

नरेंद्र ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और 7 अगस्त 1891 को भारत का भ्रमण करते हुए खेतड़ी राजस्थान पहुंचे। वहां पर राजा अजीत सिंह ने उनका स्वागत किया और नरेंद्र वहां पर कुछ दिन रुके इस बीच राजा अजीत सिंह और नरेंद्र के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी।

तब राजा अजय सिंह ने नरेंद्र को पगड़ी बांधने का सुझाव दिया और राजस्थानी वेशभूषा पहनने को कहा इस बात पर नरेंद्र राजी हो गए और तभी से स्वामी विवेकानंद ने पगड़ी बांधना चालू किया था। यह देख कर राजा अजीत सिंह ने उनका नाम नरेंद्र से विवेकानंद रख दिया था जिसका मतलब “ समझदार ज्ञान का आनंद ” था।

विश्व धर्म सम्मेलन (World Religions Conference)-

विश्व धर्म सम्मेलन का दिन उनके लिए बहुत बड़ा साबित हुआ क्योंकि उस दिन के बाद उन्होंने पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त कर ली थी वह अब हर देश जाकर ज्ञान बांटने लगे थे लेकिन आपको हम उनके विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने के पहले की बात बताते हैं।

Swami Vivekananda के पास विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए ध्यान नहीं था इसलिए वह दोबारा अपने मित्र राजा अजीत सिंह से मिलने खेतड़ी गए वह 21 अप्रैल 1893 से 10 मई 1893 तक खेतड़ी में रहे। उन्होंने अजीत सिंह को बताया कि वह विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होना था चाहते हैं तो अजीत सिंह ने कहा कि आप धर्म सम्मेलन में शामिल हुई है धन की परवाह मत कीजिए वह सब बंदोबस्त कर दूंगा।

Swami Vivekananda at Parliame nt of Religions

बड़ी कठिनाइयों के बाद स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शहर शिकागो पहुंचे लेकिन वहां पहुंचने के बाद उनको पता चला कि विश्व धर्म सम्मेलन की तारीख आगे बढ़ा दी गई है इसलिए उनको बड़ी चिंता हुई क्योंकि उनके पास तो सिर्फ 4 से 5 दिन के खर्चे के लिए ही धनराशि थी और वह वापस भी नहीं लौट सकते थे इसलिए उन्होंने वही ठहरने का निर्णय लिया।

लेकिन शिकागो जैसे शहर में एक आम भारतीय संत का रहना बहुत ही मुश्किल था। फिर उनको वहीं के एक प्रोफेसर मिले वह उनको अपने घर लेकर गए और उनको अपने घर में रहने को कहा उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बहुत सेवा की।

1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद का आयोजन हुआ स्वामी विवेकानंद वहां पहुंचे भारत के प्रतिनिधि के बतौर यह वह दौर था जब यूरोप और अमेरिका के लोग भारत वासियों को बहुत ही ही दृष्टि से देखते थे कुछ लोगों का मानना है कि उस धर्म परिषद में पहले यह भी तय नहीं हुआ था की विवेकानंद जी पर कोई भाषण देंगे।

क्योंकि विश्व धर्म सम्मेलन में अपने विचार प्रकट करने का कोई विधिवत निमंत्रण नहीं मिला था। जब गई पश्चिमी सभ्यता के लोग बोल चुके हैं उनका संबोधन हो चुका था तो कुछ अमेरिकी प्रोफेसर ने इस बात पर जोर दिया अब कुछ मौका पूर्व से आने वालों को भी दिया जाए।

तब सबका ध्यान गया गेरुआ वस्त्र पहने एक खूबसूरत भारतीय नौजवान पर जिसका नाम था स्वामी विवेकानंद , जब Swami Vivekananda ने खड़े होकर बोलना शुरू किया और जिस धारा प्रवाह अंग्रेजी में उन्होंने बहुत ही पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी और

बोले “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” इतना सुनकर वहां के सभी लोगों ने करीब 2 मिनट तक खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाई थी। क्योंकि स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे अलग व्यक्ति थे जिन्होंने रटे-रटाए धर्मों और ग्रंथों के अलावा कुछ नई बात कही थी।

विश्व कवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि अगर आपको भारत की संस्कृति धर्म और इतिहास के बारे में जानना है तो आपको स्वामी विवेकानंद का अध्ययन करना चाहिए।

मृत्यु – (Swami Vivekananda Death)

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अंतिम दिनों तक ध्यान करने की अपनी दिनचर्या को नहीं बदला वह रोज सुबह 2 से 3 घंटे ध्यान लगाते थे दमा और शुगर के साथ उन्हें कई शारीरिक बीमारियों ने घेर लिया था उन्होंने एक जगह लिखा भी कि “यह बीमारियां मुझे 40 वर्ष की आयु को पार नहीं करने देंगी” और उनकी यह वाणी सच भी हुई।

सत्येंद्र मजमूदार ने अपनी किताब विवेक चरित्र में लिखा है कि 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ थे । सुबह स्वामी जी ने अपने शिष्यों को बुलाया और अपने हाथों से सभी शिष्यों के पाव धोए।

शिष्यों ने कहा कि यह क्या कर रहे हैं Swami Vivekananda जी का उत्तर था कि Jesus Christ ने भी अपने शिष्यों के पाव धोए थे फिर सभी ने साथ बैठकर खाना खाया उसके बाद विवेकानंद जी ने कुछ आराम किया दोपहर 1:30 बजे सभी सभागार में इकट्ठे हुए और डेढ़ 2 घंटे तक काफी हंसी-मजाक चला शाम को विवेकानंद जी मठ में घूमकर अपने कमरे में वापस चले गए।

और दरवाजे और खिड़कियां बंद की और ध्यान में बैठ गए उसके बाद उन्होंने खिड़कियां खोली और बिस्तर पर लेट गए। और ओम का उच्चारण करते हुए उन्होंने प्राण त्यागे।

“संत विवेकानंद अमर तुम, अमर तुम्हारी पवन वाणी तुम्हें सदा ही शीश नवाते भारत के प्राणी प्राणी”

स्वामी विवेकानंद से सम्बंधित रोचक बाते (Swami Vivekananda life History in hindi )

1) स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बन गए थे।

2) बचपन में स्वामी विवेकानंद बड़े शरारती और नटखट स्वभाव के थे।

3) 1881 के अंत और 1882 में प्रारंभ में वह दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए थे।

4) 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई।

5) स्वामी विवेकानंद 1893 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।

6) स्वामी विवेकानंद पहली बार राजा अजीत सिंह से 4 अगस्त 1891 को माउंट आबू में मिले थे।

7) 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद नहीं शिकागो शहर में विश्व धर्म सम्मेलन मैं अपना पहला भाषण दिया था।

8) स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन 12 जनवरी को अब पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस” के रुप में मनाया जाता है।

9) 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में अपने प्राण त्याग दिए।

Rahim ke Dohe Class 7 – रहीम के दोहे अर्थ सहित कक्षा 7

Swami Vivekananda Quotes in Hindi – स्वामी विवेकानंद के विचार

Swami Vivekananda Biography in Hindi आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके बताएंगे  अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके बताएं और शेयर करना ना भूले।

12 thoughts on “Swami Vivekananda Biography in Hindi | विवेकानंद की जीवनी”

This article will help me a lot.

Thank you Dilip Singh Sisodiya.

very nice Biography …Today we need just like Biography who show to our society and new generation…my new generation going to wrong side about RELIGION…

Thank you Devendra Nath Thakur for appreciation, keep visiting hindi yatra.

आपने स्वामी विवेकानंद के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी दी है। आपने विवेकानंद के सभी विषय को बहुत खूबसूरती से समझाया है।

निरंजन सुबेदी, सराहना के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे ही ही हिंदी यात्रा पर आते रहे

hame aise hi sant ki jaroorat hai jo hamari dharm ,sanskrit ka prachar prasar kare aur apne desh ki shiksha padhat hamare desh ke p.m. lagu kare.

Premnath Yadav ji aap ne shi bola, agar hum unke vicharo par chle toek acche samaj ka nirmaan kar sakte hai. Hindi yatra par aane ke liye ka bhut bhut dhanyawad.

Bahut hi gajab biography h

Thank you Mohammed Azam khan for appreciation.

स्वामी विवेकानंद 1828 में बेंगलुरु मठ से पूरे भारत में आध्यात्मिक और वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा की थी।

ye Date Galat hai..har jagah. isko sudhar liya jaye

Raj Singh ji hame hmari galti batane ke liye Dhanyawad, hamne galti ko thik kar liya hai.

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Swami Vivekananda – Modern Indian History Notes PDF in English & Hindi for all Competitive Exams

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Swami Vivekananda: Swami Vivekananda’s life and teachings continue to inspire individuals in India and around the world. His emphasis on the unity of all religions and the importance of service to humanity remains highly relevant in today’s multicultural and interconnected world.

Swami Vivekananda

Swami Vivekananda (1863-1902) was a renowned Indian Hindu monk and spiritual leader who played a crucial role in the introduction of Indian philosophies of Vedanta and Yoga to the Western world. He was a key figure in the late 19th and early 20th-century Indian renaissance and the broader global spread of Indian spirituality and philosophy. Here are some key aspects of Swami Vivekananda’s life and contributions:

Early Life:

  • Swami Vivekananda was born as Narendranath Datta in Kolkata, India, on January 12, 1863. He came from a well-educated and culturally rich family.

Meeting Ramakrishna:

  • In his youth, Narendranath was deeply interested in philosophy and spirituality. He met the mystic and spiritual teacher Sri Ramakrishna Paramahamsa, who would become his guru and greatly influence his life and teachings.

Spiritual Journey:

  • After the passing of Sri Ramakrishna, Narendranath (now known as Swami Vivekananda) embarked on a profound spiritual journey, seeking to realize the truths of spirituality through meditation and self-discovery.

Chicago World’s Parliament of Religions (1893):

  • One of Swami Vivekananda’s most iconic moments was his address at the World’s Parliament of Religions held in Chicago in 1893. His speech began with the famous words, “Sisters and brothers of America,” and he went on to promote the ideals of religious tolerance, universal acceptance, and the harmony of world religions. This speech made him an international sensation and is still remembered for its message of interfaith understanding.

Formation of the Ramakrishna Mission:

  • After his return to India, Swami Vivekananda founded the Ramakrishna Math and the Ramakrishna Mission, organizations dedicated to the propagation of his guru’s teachings, as well as education, social service, and spiritual development.

Social Service and Education:

  • Swami Vivekananda emphasized the importance of selfless service to humanity. His teachings inspired numerous social service activities, including the establishment of schools, colleges, hospitals, and orphanages. He believed that education and knowledge were essential for individual and societal progress.

Writings and Lectures:

  • Swami Vivekananda was a prolific writer and speaker. His lectures and writings on a wide range of topics, including Vedanta, spirituality, and social issues, have been widely read and continue to influence people worldwide.

Philosophy:

  • He promoted Vedanta as a way of life and believed in the divinity of every individual. He taught that the true nature of the self is divine and that realizing this divinity is the goal of human life.
  • Swami Vivekananda’s legacy endures through the global spread of the Ramakrishna Mission and the Vedanta Society, as well as his writings and teachings. He is celebrated as a spiritual and philosophical luminary who contributed to the harmonious coexistence of different faiths and the betterment of humanity.

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Vivekananda: A Biography

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आज हम आपको Educational Philosophy Of Swami Vivekananda In Hindi (स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन) के नोट्स देने जा रहे है जिनको पढ़कर आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और आप अपनी कोई भी टीचिंग परीक्षा पास कर सकते है | ऐसे हे और नोट्स फ्री में पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर रेगुलर आते रहे हम नोट्स अपडेट करते रहते है | तो चलिए जानते है,स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक दर्शन के बारे में विस्तार से |

“शिक्षा मनुष्य में पहले से ही पूर्णता की अभिव्यक्ति है।” स्वामी विवेकानंद (1863 – 1902)

यह उद्धरण बताता है कि शिक्षा केवल ज्ञान या कौशल प्राप्त करने के बारे में नहीं है, बल्कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर मौजूद जन्मजात क्षमता को प्रकट करने और विकसित करने के बारे में है। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति में महानता की क्षमता होती है और शिक्षा को इस क्षमता को बाहर लाने में मदद करनी चाहिए और लोगों को उनकी पूर्ण क्षमताओं का एहसास कराने में सक्षम बनाना चाहिए। इस अर्थ में, शिक्षा केवल अंत का साधन नहीं है, बल्कि आत्म-खोज और आत्म-साक्षात्कार की एक प्रक्रिया है। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि हर इंसान में निहित पूर्णता को पहचानकर शिक्षा एक अधिक प्रबुद्ध और सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने में मदद कर सकती है, जिसमें हर व्यक्ति अधिक अच्छे में योगदान दे सकता है।

Educational-Philosophy-Of-Swami-Vivekananda-In-Hindi

हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो चरित्र का निर्माण करे, मन की शक्ति को बढ़ाए, बुद्धि का विकास करे और व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाए। इस तरह की शिक्षा हमें सभी जीवों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण, दयालु और सार्वभौमिक दृष्टिकोण रखने की शिक्षा भी देनी चाहिए। यह हमें न केवल ज्ञान बल्कि ज्ञान और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।

संक्षेप में, हमें एक ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो हमें पूर्ण मानव में बदल सके और हमें एक उद्देश्यपूर्ण और परिपूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाए।

स्वामी विवेकानंद का जीवन और शिक्षा

(life and teachings of swami vivekananda), i. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा (early life and education).

  • 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में जन्म हुआ |
  • उनका असली नाम नरेंद्रनाथ था |
  • बचपन से प्रतिभाशाली, साहित्य, इतिहास, दर्शन, कविता, संगीत, व्यायाम, संगीत वाद्ययंत्र और तैराकी में उत्कृष्ट |

II. आध्यात्मिक जागृति (Spiritual Awakening)

  • स्वामी रामकृष्ण परमहंस के भक्त बन गए |
  • आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया और नरेंद्रनाथ से विवेकानंद बन गए |

III. यात्राएं और शिक्षाएं (Travels and Teachings)

  • अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में भ्रमण किया |
  • 1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म सम्मेलन में भाग लिया |
  • अपने व्याख्यान से सभी को प्रभावित किया और पश्चिमी मंच से वेदांत के सत्य का वर्णन करने वाले पहले व्यक्ति बने |
  • वेदांत के माध्यम से विश्व बंधुत्व की लहर पैदा की |
  • पूरे विश्व में भारत के स्वाभिमान और प्रतिष्ठा का विकास किया |

IV. विरासत और मृत्यु (Legacy and Death)

  • 04 जुलाई, 1902 को निधन हो गया |
  • उन्होंने अपनी शिक्षाओं और लेखन के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी, जो दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करती रही है |
  • रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो जरूरतमंद लोगों को शिक्षा और मानवीय सेवाएं प्रदान करता है |
  • भारत और विश्व के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बना हुआ है |

उदाहरण: आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक विकास के महत्व पर स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं। सार्वभौमिक भाईचारे और सभी धर्मों की एकता के उनके संदेश ने विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन और मठ, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आपदा राहत जैसी मानवीय सेवाएं प्रदान करना जारी रखे हुए हैं। उनकी विरासत भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है और उनके योगदान को दुनिया भर में पहचाना और मनाया जाना जारी है।

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स्वामी विवेकानंद का शैक्षिक दर्शन

(educational philosophy of swami vivekananda).

स्वामी विवेकानंद एक भारतीय हिंदू भिक्षु और एक प्रमुख दार्शनिक थे जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका शैक्षिक दर्शन वेदों और उपनिषदों पर आधारित है, जो प्राचीन भारत में ज्ञान के प्राथमिक स्रोत थे। नीचे उनके शैक्षिक दर्शन के कुछ प्रमुख पहलू हैं:

  • ज्ञान मनुष्य के भीतर है (Knowledge is within man): स्वामी विवेकानन्द का मानना था कि समस्त ज्ञान मनुष्य के भीतर पहले से ही विद्यमान है। यह ज्ञान बाहरी स्रोतों से नहीं आता बल्कि हर इंसान में निहित है। उनके अनुसार, शिक्षा की भूमिका व्यक्तियों को इस आंतरिक ज्ञान की खोज में मदद करना है। उदाहरण: एक बच्चे में संगीत या पेंटिंग के लिए एक अंतर्निहित प्रतिभा हो सकती है, और उस प्रतिभा को पहचानना और उसका पोषण करना शिक्षक का काम है।
  • शिक्षा आंतरिक ज्ञान का अनावरण करती है (Education unveils inner knowledge): शिक्षा ज्ञान प्रदान करने के बारे में नहीं है बल्कि उस ज्ञान को उजागर करने के बारे में है जो पहले से ही एक व्यक्ति के भीतर मौजूद है। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को व्यक्ति की बुद्धि और चरित्र के विकास पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण: एक छात्र का विज्ञान के प्रति स्वाभाविक झुकाव हो सकता है। शिक्षा की भूमिका उसे विज्ञान में अपनी रुचि को आगे बढ़ाने और विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण और संसाधन प्रदान करना है।
  • आंतरिक शिक्षक सीखने को प्रेरित करता है (Inner teacher inspires learning): स्वामी विवेकानंद के अनुसार बाहरी शिक्षक केवल सुझाव देता है, लेकिन आंतरिक शिक्षक ही व्यक्ति को समझने और सीखने की प्रेरणा देता है। उनका मानना था कि शिक्षक की भूमिका एक सूत्रधार के रूप में कार्य करना है जो व्यक्तियों को अपने भीतर के शिक्षक को खोजने में मदद करता है। उदाहरण: एक शिक्षक एक छात्र को मार्गदर्शन और संसाधन प्रदान कर सकता है, लेकिन यह छात्र की आंतरिक प्रेरणा और जुनून है जो उसे सीखने के लिए प्रेरित करता है।
  • शिक्षा प्रणाली की आलोचना (Criticism of the education system): स्वामी विवेकानंद अपने समय की शिक्षा प्रणाली के आलोचक थे। उनका मानना था कि उस समय की शिक्षा मनुष्य में कोई गुण पैदा नहीं करती थी और व्यक्तियों को मशीन बना रही थी। उन्होंने इस शिक्षा को नकारात्मक शिक्षा कहा। उदाहरण: स्वामी विवेकानंद का मानना था कि उनके समय की शिक्षा प्रणाली आलोचनात्मक सोच कौशल और रचनात्मकता विकसित करने के बजाय याद करने और रटने पर केंद्रित थी।
  • व्यावहारिक शिक्षा पर जोर (Emphasis on practical education): स्वामी विवेकानंद व्यावहारिक शिक्षा में विश्वास करते थे जो वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के लिए प्रासंगिक कौशल और ज्ञान विकसित करने पर केंद्रित थी। उनका मानना था कि संपूर्ण व्यक्तियों के निर्माण के लिए केवल सैद्धांतिक शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है। उदाहरण: एक छात्र कक्षा की सेटिंग में सैद्धांतिक अवधारणाओं को सीख सकता है, लेकिन यह उन अवधारणाओं का व्यावहारिक अनुप्रयोग है जो उसे किसी विशेष क्षेत्र में कौशल और विशेषज्ञता विकसित करने में सक्षम बनाता है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य

(aims of education according to swami vivekananda).

एक भारतीय दार्शनिक और शिक्षक स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है बल्कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को विकसित करना भी है। नीचे स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा के कुछ प्रमुख उद्देश्य दिए गए हैं:

  • पूर्णता का प्रकटीकरण (Manifestation of the Perfection): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का अंतिम उद्देश्य व्यक्तियों को उनकी आंतरिक पूर्णता को प्रकट करने में मदद करना है। उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति के पास कौशल और प्रतिभा का एक अनूठा समूह होता है जिसे शिक्षा के माध्यम से पहचानने और पोषित करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण: एक छात्र जो संगीत में रूचि रखता है उसे संगीत करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, और शिक्षा को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए आवश्यक संसाधन और प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  • शारीरिक विकास (Physical Development): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शारीरिक विकास शिक्षा का एक अनिवार्य पहलू है। उनका मानना था कि शिक्षा को व्यक्तियों को एक मजबूत और स्वस्थ शरीर विकसित करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: स्कूलों और कॉलेजों में शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम जो शारीरिक फिटनेस और तंदुरूस्ती को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • असली आदमी बनाना (Making the Real Man): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को किसी व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं सहित संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान देना चाहिए। उनका मानना था कि शिक्षा को व्यक्तियों को “असली आदमी” बनने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो व्यक्तियों को उनके महत्वपूर्ण सोच कौशल, रचनात्मकता और समस्या को सुलझाने की क्षमता विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  • मानसिक विकास (Mental Development): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि मानसिक विकास उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि शारीरिक विकास। शिक्षा को व्यक्तियों को अपने मानसिक संकायों को विकसित करने और ज्ञान प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो महत्वपूर्ण सोच कौशल, रचनात्मकता और समस्या को सुलझाने की क्षमता विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • चरित्र निर्माण (Character Development): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को व्यक्ति के चरित्र के विकास पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा को व्यक्तियों को ईमानदारी, अखंडता और आत्म-अनुशासन जैसे गुणों को विकसित करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्म-अनुशासन जैसे मूल्यों को बढ़ावा देते हैं।
  • धार्मिक विकास (Religious Development): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को धार्मिक विकास को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षा को व्यक्तियों को विभिन्न धर्मों को समझने और उनकी सराहना करने और सहिष्णुता और सद्भाव की भावना विकसित करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो धार्मिक सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा देते हैं।
  • राष्ट्रवाद का विकास (Development of Nationalism): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षा को व्यक्तियों को उनकी संस्कृति, इतिहास और परंपराओं को समझने और उनकी सराहना करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो राष्ट्रीय इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के अध्ययन को बढ़ावा देते हैं।
  • सार्वभौमिक भाईचारे की भावना का विकास (Development of the Feeling of Universal Brotherhood): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को सार्वभौमिक भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षा को व्यक्तियों को दुनिया की विविधता को समझने और उसकी सराहना करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो सांस्कृतिक विविधता और बहुसंस्कृतिवाद को बढ़ावा देते हैं।
  • आत्मविश्वास की विकास भावना (Development Feeling of Self-Confidence): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को व्यक्तियों में आत्मविश्वास विकसित करने में मदद करनी चाहिए। शिक्षा को व्यक्तियों को उनकी पूरी क्षमता का एहसास करने और उनकी क्षमताओं में आत्मविश्वास बनने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • व्यावसायिक दक्षता का विकास (Development of Vocational Efficiency): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को व्यावसायिक दक्षता को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षा को व्यक्तियों को उनके चुने हुए पेशे में सफल होने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए। उदाहरण: शिक्षा कार्यक्रम जो व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार पाठ्यक्रम

(curriculum according to swami vivekananda).

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं सहित छात्रों के समग्र विकास पर ध्यान देना चाहिए। नीचे स्वामी विवेकानंद के अनुसार पाठ्यक्रम के कुछ प्रमुख बिंदु हैं:

  • सत्य को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए (Truth should be included in the Curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम में सत्य का समावेश होना चाहिए। सत्य सभी सीखने की नींव होना चाहिए। उदाहरण: पाठ्यक्रम में नैतिकता और नैतिकता पर पाठ्यक्रम शामिल करना।
  • पाठ्यक्रम में न हो कोई रोक-टोक (There should be no Prohibition in the curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम में क्या पढ़ाया जा सकता है, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। शिक्षा किसी भी प्रकार की सेंसरशिप से मुक्त होनी चाहिए। उदाहरण: छात्रों को विभिन्न संस्कृतियों और विश्वासों के बारे में जानने की अनुमति देना, भले ही वे स्वयं से भिन्न हों।
  • पाठ्यक्रम को छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार बदलना चाहिए (The curriculum should be changed according to the needs of the students): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए और छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए। उदाहरण: छात्रों की बदलती जरूरतों के आधार पर नए पाठ्यक्रम शुरू करना या मौजूदा पाठ्यक्रम को संशोधित करना।
  • पाठ्यक्रम को छात्रों की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों के विकास में मदद करनी चाहिए (The curriculum should help in the development of the physical, mental, and spiritual powers of the students): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम को छात्रों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उदाहरण: शारीरिक शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास पर पाठ्यक्रम शामिल करना।
  • पाठ्यक्रम में विज्ञान शिक्षा को मिले महत्वपूर्ण स्थान (Science education should get an important place in the curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि विज्ञान शिक्षा समाज की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है और इसे पाठ्यक्रम में प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए। उदाहरण: जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और अन्य वैज्ञानिक विषयों पर पाठ्यक्रम सहित।
  • गतिविधियों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए (Activities should be included in the curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम में ऐसी व्यावहारिक गतिविधियाँ शामिल होनी चाहिए जो छात्रों को अनुभव के माध्यम से सीखने में मदद करें। उदाहरण: पाठ्यक्रम में परियोजनाओं, प्रयोगों और क्षेत्र यात्राओं को शामिल करना।
  • पाठ्यक्रम में अतीत, वर्तमान और भविष्य की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए (Past, present, and future should not be neglected in the curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम में मानव इतिहास और ज्ञान के सभी पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए। उदाहरण: इतिहास, वर्तमान घटनाओं और भविष्य के रुझानों पर पाठ्यक्रम शामिल करना।
  • पाठ्यचर्या में उन सभी विषयों को शामिल किया जाना चाहिए जिनसे छात्रों की आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ भौतिक उन्नति भी होती है (All those subjects should be included in the curriculum through which there is spiritual progress as well as material progress of the students): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक और भौतिक प्रगति दोनों को बढ़ावा देने वाले विषयों को शामिल किया जाना चाहिए। उदाहरण: कंप्यूटर प्रोग्रामिंग या व्यवसाय प्रबंधन जैसे व्यावहारिक कौशल के साथ-साथ योग, ध्यान और दिमागीपन पर पाठ्यक्रम शामिल करना।
  • आध्यात्मिक प्रगति के लिए वेद, पुराण, दर्शन, धर्म और उपदेश आवश्यक हैं (Vedas, Puranas, Darshana, Dharma, and Updesh are necessary for spiritual progress): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि आध्यात्मिक विकास के लिए प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों का अध्ययन आवश्यक है। उदाहरण: वेदों, पुराणों और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों पर पाठ्यक्रम सहित।
  • सांसारिक उन्नति के लिए भाषा, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति, कला, गणित, व्यावसायिक विषय, व्यायाम, खेलकूद, समाजसेवा आदि विषयों का होना आवश्यक है। (For worldly progress, subjects like language, science, history, geography, economics, politics, art, mathematics, vocational subjects, exercise, sports, social service, etc. are necessary):  स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक पूर्ण शिक्षा में भौतिक प्रगति को बढ़ावा देने वाले विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होनी चाहिए। उदाहरण: भाषा, विज्ञान, अर्थशास्त्र और अन्य व्यावहारिक विषयों पर पाठ्यक्रम सहित।
  • पाठ्यक्रम में संगीत के अध्ययन को महत्वपूर्ण माना गया (The study of music was considered important in the curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि रचनात्मकता और आध्यात्मिक विकास के विकास के लिए संगीत महत्वपूर्ण था। उदाहरण: संगीत सिद्धांत, रचना और प्रदर्शन पर पाठ्यक्रम सहित।
  • धार्मिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए (Religious education should be included in the curriculum): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों के आध्यात्मिक विकास के लिए धार्मिक शिक्षा महत्वपूर्ण है। उदाहरण: विभिन्न धर्मों और उनकी प्रथाओं पर पाठ्यक्रम शामिल करना।

स्वामी विवेकानंद के शिक्षण के तरीके

(teaching methods of swami vivekananda).

  • चर्चा विधि (Discussion Method): स्वामी विवेकानंद ने इंटरएक्टिव लर्निंग के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने विषय वस्तु की बेहतर समझ को बढ़ावा देने के लिए समूह चर्चा को प्रोत्साहित किया। यह विधि छात्रों को अपने विचार व्यक्त करने, शंकाओं को स्पष्ट करने और अपने साथियों के दृष्टिकोण से सीखने में सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिए, एक इतिहास शिक्षक छात्रों को अमेरिकी गृहयुद्ध के कारणों और परिणामों के बारे में चर्चा में शामिल कर सकता है।
  • स्वाध्याय विधि (Self-Study Method): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि स्वाध्याय ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका है। उन्होंने छात्रों से अपने सीखने की जिम्मेदारी लेने और नियमित रूप से अध्ययन करने की आदत विकसित करने का आग्रह किया। यह पद्धति छात्रों को अपनी गति से सीखने, आत्म-अनुशासन विकसित करने और सीखने के लिए प्यार पैदा करने में सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिए, एक भाषा सीखने वाला अपनी शब्दावली और व्याकरण को बेहतर बनाने के लिए स्व-अध्ययन कार्यक्रम का उपयोग कर सकता है।
  • तर्क विधि (Logic Method): स्वामी विवेकानंद ने जटिल अवधारणाओं को समझने के लिए तार्किक तर्क का उपयोग करने की वकालत की। उनका मानना था कि इस पद्धति से छात्रों को महत्वपूर्ण सोच कौशल विकसित करने और सूचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। इस पद्धति में जटिल विचारों को छोटे-छोटे भागों में तोड़ना, उनका विश्लेषण करना और उन्हें तार्किक रूप से जोड़ना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक गणित शिक्षक जटिल समीकरण को समझाने के लिए तर्क विधि का उपयोग कर सकता है।
  • विश्लेषण विधि (Analysis Method): स्वामी विवेकानंद ने विषय वस्तु की गहरी समझ हासिल करने के लिए सूचना के विश्लेषण के महत्व पर बल दिया। उन्होंने छात्रों को अनुमानों पर सवाल उठाने, सबूतों का मूल्यांकन करने और तर्क और सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकालने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पद्धति में जानकारी को छोटे घटकों में तोड़ना, पैटर्न की पहचान करना और निष्कर्ष निकालना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक विज्ञान शिक्षक किसी प्रयोग से डेटा का विश्लेषण करने के लिए विश्लेषण पद्धति का उपयोग कर सकता है।
  • वाद-विवाद विधि (Debate Method): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि वाद-विवाद छात्रों को उनके तर्क और संचार कौशल विकसित करने में मदद करता है। उन्होंने छात्रों को अपने विचारों का परीक्षण करने, धारणाओं को चुनौती देने और अपने साथियों से सीखने के लिए बहस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पद्धति में किसी विशेष विषय के पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करना और साक्ष्य और तार्किक तर्क के साथ अपनी स्थिति का बचाव करना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक सामाजिक अध्ययन शिक्षक लोकतंत्र बनाम अधिनायकवाद के विषय पर एक बहस का आयोजन कर सकता है।
  • कहानी कहने की विधि (Story Telling Method): स्वामी विवेकानंद ने जटिल विचारों को सरल और आकर्षक तरीके से व्यक्त करने के लिए कहानियों का उपयोग किया। उनका मानना था कि कहानियां छात्रों को प्रेरित कर सकती हैं, उनकी कल्पना को आकर्षित कर सकती हैं और उन्हें महत्वपूर्ण अवधारणाओं को याद रखने में मदद कर सकती हैं। इस पद्धति में प्रमुख बिंदुओं को स्पष्ट करने के लिए उपाख्यानों, दृष्टांतों और आख्यानों का उपयोग करना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक अंग्रेजी शिक्षक छात्रों को समानुभूति की शक्ति के बारे में सिखाने के लिए एक कहानी का उपयोग कर सकता है।
  • समस्या समाधान विधि (Problem-Solving Method): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि जीवन में सफलता के लिए समस्या समाधान कौशल जरूरी है। उन्होंने छात्रों को वास्तविक दुनिया की समस्याओं से निपटने, समाधान विकसित करने और अपनी गलतियों से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पद्धति में एक समस्या की पहचान करना, समाधानों पर मंथन करना, उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना और सर्वोत्तम को लागू करना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक व्यावसायिक शिक्षक छात्रों को एक सफल स्टार्टअप शुरू करने का तरीका सिखाने के लिए समस्या-समाधान पद्धति का उपयोग कर सकता है।
  • फील्ड ट्रिप विधि (Field Trip Method): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि सीखना केवल कक्षा तक सीमित नहीं होना चाहिए। उन्होंने छात्रों को अपने आसपास की दुनिया का पता लगाने और अपने अनुभवों से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पद्धति में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, या वैज्ञानिक महत्व के स्थानों का दौरा करना और उनका अवलोकन करना और उनका विश्लेषण करना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक भूगोल शिक्षक छात्रों को जैव विविधता के बारे में पढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय उद्यान की एक फील्ड यात्रा का आयोजन कर सकता है।
  • उपदेश विधि (Updesh Method): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षक की भूमिका छात्रों को प्रेरित करने, मार्गदर्शन करने और सलाह देने की होती है। उन्होंने शिक्षकों को उदाहरण के द्वारा नेतृत्व करने, नैतिक मूल्यों को प्रदान करने और अपने छात्रों के चरित्र का पोषण करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस पद्धति में व्यक्तिगत अनुभव साझा करना, सलाह देना और छात्रों के अनुसरण के लिए एक सकारात्मक उदाहरण स्थापित करना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक शारीरिक शिक्षा शिक्षक छात्रों को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने और एक स्वस्थ जीवन शैली जीने के लिए प्रेरित करने के लिए अद्यतन पद्धति का उपयोग कर सकता है।
  • व्याख्यान विधि (Lecture Method) : स्वामी विवेकानंद ने व्यापक दर्शकों तक जटिल विचारों को पहुंचाने में व्याख्यानों के महत्व को पहचाना। उनका मानना था कि व्याख्यान आकर्षक, सूचनात्मक और विचारोत्तेजक होने चाहिए। इस पद्धति में दृश्य-श्रव्य साधनों का उपयोग करके और दर्शकों के साथ बातचीत को प्रोत्साहित करते हुए एक संरचित और संगठित तरीके से जानकारी प्रस्तुत करना शामिल है। उदाहरण के लिए, एक मनोविज्ञान के प्रोफेसर छात्रों को मनोविज्ञान में विचार के विभिन्न स्कूलों के बारे में पढ़ाने के लिए व्याख्यान पद्धति का उपयोग कर सकते हैं।

कुल मिलाकर, स्वामी विवेकानंद की शिक्षण विधियों की विशेषता अनुभवात्मक शिक्षा, आलोचनात्मक सोच और समग्र विकास पर उनका जोर था। उनके तरीकों का उद्देश्य छात्रों के बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास को विकसित करना और उन्हें एक पूर्ण और उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए तैयार करना था।

Educational-Philosophy-Of-Swami-Vivekananda-In-Hindi

शिक्षक के चरित्र पर स्वामी विवेकानंद के विचार

(swami vivekananda’s ideas on the character of the teacher).

  • उच्च मानक चरित्र (High Standard Character): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शिक्षक का चरित्र उच्च नैतिक और नैतिक मानकों का होना चाहिए। एक मजबूत चरित्र वाला शिक्षक छात्रों को सही रास्ते की ओर प्रेरित और मार्गदर्शन कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो ईमानदार, जिम्मेदार और सम्मानित है, छात्रों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में काम कर सकता है।
  • शिक्षण में प्रवीणता (Proficiency in Teaching): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षक जिस विषय को पढ़ाते हैं, उसमें उन्हें पूरी तरह से दक्ष होना चाहिए। एक कुशल शिक्षक जटिल विचारों को सरल और समझने योग्य तरीके से व्यक्त कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक गणित शिक्षक जो गणित में प्रवीण है, कैलकुलस या ज्योमेट्री जैसी कठिन अवधारणाओं को इस तरह से समझा सकता है जिसे छात्र आसानी से समझ सकें।
  • शिक्षार्थियों के कल्याण के लिए समर्पण (Dedication to the Welfare of the Learners): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शिक्षक का प्राथमिक ध्यान शिक्षार्थियों का कल्याण होना चाहिए। एक शिक्षक जो शिक्षार्थियों के कल्याण के लिए समर्पित है, एक सकारात्मक सीखने का माहौल बना सकता है जो बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो शिक्षार्थियों के कल्याण के लिए समर्पित है, संघर्षरत छात्रों को अतिरिक्त सहायता प्रदान कर सकता है या सभी छात्रों को उत्कृष्टता प्राप्त करने के अवसर पैदा कर सकता है।
  • निष्पक्ष व्यवहार और आचरण (Fair Behavior and Conduct): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शिक्षक का व्यवहार और आचरण निष्पक्ष और निष्पक्ष होना चाहिए। एक निष्पक्ष शिक्षक छात्रों में विश्वास और सम्मान की भावना पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो पक्षपात के बजाय योग्यता के आधार पर असाइनमेंट ग्रेड करता है, वह सभी छात्रों का विश्वास और सम्मान अर्जित कर सकता है।
  • शुद्ध हृदय और मन (Pure Heart and Mind): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शिक्षक का दिल और दिमाग शुद्ध होना चाहिए। एक शुद्ध हृदय और मन वाला शिक्षक एक सकारात्मक सीखने का माहौल बना सकता है जो छात्रों के भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास का पोषण करता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो करुणा, सहानुभूति और दयालुता का अभ्यास करता है, एक सुरक्षित और सहायक शिक्षण वातावरण बना सकता है।
  • छात्रों के लिए प्यार और सहानुभूति (Love and Sympathy for Students): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शिक्षक के दिल में अपने छात्रों के लिए प्यार और सहानुभूति होनी चाहिए। एक शिक्षक जो अपने छात्रों से प्यार और सहानुभूति रखता है, उनके साथ एक सकारात्मक और देखभाल करने वाला रिश्ता बना सकता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो व्यक्तिगत मुद्दों से जूझ रहे छात्रों के लिए चिंता और सहानुभूति दिखाता है, एक सहायक शिक्षण वातावरण बना सकता है।
  • छात्रों की क्षमताओं और क्षमताओं का ज्ञान (Knowledge of Students’ Abilities and Capabilities): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि एक शिक्षक को शिक्षार्थियों की क्षमताओं और क्षमताओं का पूरा ज्ञान होना चाहिए। एक शिक्षक जो अपने छात्रों की अद्वितीय ताकत और कमजोरियों को समझता है, व्यक्तिगत सीखने की योजना बना सकता है जो उनकी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो अपने छात्रों की विभिन्न सीखने की शैलियों को समझता है, वह विभिन्न शिक्षण रणनीतियों का उपयोग कर सकता है जो प्रत्येक छात्र की सीखने की शैली के अनुरूप हो।

कुल मिलाकर, शिक्षक के चरित्र पर स्वामी विवेकानंद के विचार सकारात्मक सीखने के माहौल को बनाने के महत्व पर जोर देते हैं जो बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देता है। एक शिक्षक जो इन विचारों को मूर्त रूप देता है, छात्रों को एक पूर्ण और उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए प्रेरित, मार्गदर्शन और सलाह दे सकता है।

छात्र के चरित्र पर स्वामी विवेकानंद के विचार

(swami vivekananda’s ideas on the character of the student).

  • एकाग्रता और समर्पण (Concentration and Dedication): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों में पढ़ाई के प्रति एकाग्रता और समर्पण होना चाहिए। एकाग्रता छात्रों को सीखने पर अपना ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है और उन्हें अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है। अपनी पढ़ाई के प्रति समर्पण छात्रों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जो अपनी पढ़ाई के लिए समर्पित है, वह अध्ययन में अधिक समय और अन्य गतिविधियों पर कम समय व्यतीत करेगा।
  • ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा (Curiosity to Acquire Knowledge): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए उत्सुक होना चाहिए। एक जिज्ञासु विद्यार्थी प्रश्न पूछता है, उत्तर खोजता है और नई चीजें सीखने में रुचि रखता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जो विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं के बारे में जानने के लिए उत्सुक है, वह किताबें पढ़ेगा, वृत्तचित्र देखेगा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेगा।
  • मन, कर्म और वचन में सत्य (Truth in Mind, Action, and Word): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों को मन, कर्म और वचन से सत्य का पालन करना चाहिए। एक सच्चा छात्र अपने विचारों, शब्दों और कर्मों में ईमानदार और ईमानदार होता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जो सच्चा है वह परीक्षा में नकल नहीं करेगा या अपने शिक्षकों से झूठ नहीं बोलेगा।
  • कड़ी मेहनत करने की इच्छाशक्ति (Willpower to Work Hard): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों में कड़ी मेहनत करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। इच्छाशक्ति चुनौतियों और बाधाओं के सामने केंद्रित और प्रेरित रहने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जिसके पास इच्छाशक्ति है वह थके होने या विचलित होने पर भी अध्ययन करना जारी रखेगा।
  • इंद्रियों पर नियंत्रण (Control over the Senses): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों को अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। एक छात्र जिसका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण है, वह अपना ध्यान सीखने पर केंद्रित कर सकता है और विकर्षणों से बच सकता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जिसका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण है, पढ़ाई के दौरान सोशल मीडिया या वीडियो गेम से विचलित नहीं होगा।
  • शिक्षकों के प्रति सम्मान और विश्वास (Respect and Faith in Teachers): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि छात्रों को अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान और विश्वास होना चाहिए। शिक्षकों का सम्मान छात्रों को सीखने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है और उन्हें कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जो अपने शिक्षक का सम्मान करता है, उनके निर्देशों को सुनेगा, उनकी सलाह का पालन करेगा और सीखने में मदद करने के उनके प्रयासों की सराहना करेगा।

कुल मिलाकर, छात्र के चरित्र पर स्वामी विवेकानंद के विचार सीखने की दिशा में अच्छी आदतें और दृष्टिकोण विकसित करने के महत्व पर जोर देते हैं। एक छात्र जो इन विचारों को ग्रहण करता है वह शैक्षणिक सफलता, व्यक्तिगत विकास और आध्यात्मिक विकास प्राप्त कर सकता है।

अनुशासन पर स्वामी विवेकानंद के विचार

(swami vivekananda’s ideas on discipline).

  • आत्म-नियंत्रण पर जोर (Emphasis on Self-Control): स्वामी विवेकानंद ने अनुशासन के प्रमुख पहलू के रूप में आत्म-नियंत्रण के महत्व पर जोर दिया। आत्म-नियंत्रण का अर्थ है किसी की भावनाओं, आवेगों और व्यवहारों को नियंत्रित करने की क्षमता। आत्म-नियंत्रण विकसित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोगों को नकारात्मक व्यवहार से बचने और सकारात्मक विकल्प बनाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, एक छात्र जिसके पास आत्म-संयम है, वह नशीली दवाओं के उपयोग या डराने-धमकाने जैसे नकारात्मक व्यवहार में संलग्न होने के लिए साथियों के दबाव में नहीं आएगा।
  • शारीरिक दंड के किसी भी रूप का विरोध किया (Opposed any form of Corporal Punishment): स्वामी विवेकानंद स्कूलों में किसी भी प्रकार के शारीरिक दंड के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि शारीरिक दंड छात्रों को अनुशासित करने का एक प्रभावी तरीका नहीं है और इससे शारीरिक और भावनात्मक नुकसान हो सकता है। इसके बजाय, उन्होंने अनुशासन के सकारात्मक रूपों की वकालत की जो अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करने और नकारात्मक व्यवहार के परिणाम प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो सकारात्मक अनुशासन का अभ्यास करता है, वह छात्रों को प्रशंसा या विशेषाधिकारों के साथ अच्छे व्यवहार के लिए पुरस्कृत कर सकता है और विशेषाधिकारों या अतिरिक्त असाइनमेंट की हानि जैसे नकारात्मक व्यवहार के लिए परिणाम प्रदान कर सकता है।
  • आत्म-अनुशासन का महत्व (Importance of Self-Discipline): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि आत्म-अनुशासन व्यक्तिगत विकास और आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। आत्म-अनुशासन का अर्थ है किसी बाहरी प्रेरणा या दंड के बिना अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहारों को नियंत्रित करने की क्षमता। आत्म-अनुशासन विकसित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्तियों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और एक सार्थक जीवन जीने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, आत्म-अनुशासन रखने वाला व्यक्ति लक्ष्य निर्धारित करेगा, उन्हें प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाएगा और बाधाओं या असफलताओं का सामना करने पर भी अपने लक्ष्यों की दिशा में लगातार काम करेगा।

कुल मिलाकर, अनुशासन पर स्वामी विवेकानंद के विचार आत्म-नियंत्रण और अनुशासन के सकारात्मक रूपों के विकास के महत्व पर जोर देते हैं। आत्म-अनुशासन और अनुशासन के सकारात्मक रूपों का अभ्यास करके, व्यक्ति व्यक्तिगत विकास, सफलता और आध्यात्मिक विकास प्राप्त कर सकते हैं।

महिला शिक्षा पर स्वामी विवेकानंद के विचार

(swami vivekananda’s ideas on women’s education).

  • महिलाओं की स्थिति के लिए चिंता (Concern for Women’s Condition): स्वामी विवेकानंद समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति से बहुत दुखी थे। उन्होंने देखा कि महिलाओं को अक्सर प्रताड़ित किया जाता था, उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें शिक्षा और अन्य अवसरों तक पहुंच से वंचित कर दिया जाता था। उनका मानना था कि यह बहुत बड़ा अन्याय है और जब तक महिलाओं को सशक्त नहीं किया जाएगा तब तक समाज प्रगति नहीं कर सकता।
  • शिक्षा का महत्त्व (Importance of Education): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा महिलाओं की स्थिति में सुधार की कुंजी है। उन्होंने देखा कि निरक्षरता महिलाओं की समस्याओं का एक प्रमुख कारण थी और शिक्षा उन्हें अधिक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनने के लिए सशक्त बना सकती थी। उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं की पुरुषों के समान शिक्षा तक पहुंच होनी चाहिए और उन्हें वे सभी विषय पढ़ाए जाने चाहिए जो उनके लिए उपयोगी हों।
  • समाज में महिलाओं की भूमिका (Women’s Role in Society): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और वे अपने समुदायों की प्रगति और विकास में योगदान दे सकती हैं। उन्होंने देखा कि महिलाएं नेता, शिक्षक और समाज सुधारक हो सकती हैं और वे समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। उन्होंने तर्क दिया कि समाज को महिलाओं की क्षमता को पहचानना चाहिए और उन्हें अपनी क्षमता को पूरा करने के लिए आवश्यक अवसर और संसाधन प्रदान करना चाहिए।

कुल मिलाकर, महिला शिक्षा पर स्वामी विवेकानंद के विचार शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनने के लिए आवश्यक अवसर और संसाधन प्रदान करने के महत्व पर जोर देते हैं। महिलाओं को शिक्षित करने और उनकी क्षमता को पहचानने से समाज प्रगति कर सकता है और अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत बन सकता है।

जन शिक्षा पर स्वामी विवेकानंद के विचार

(swami vivekananda’s ideas on mass education).

  • गरीब और निरक्षर के लिए चिंता (Concern for the Poor and Illiterate): स्वामी विवेकानंद भारत में कई लोगों की गरीब और अशिक्षित स्थितियों से बहुत दुखी थे। उनका मानना था कि शिक्षा उनके जीवन को बेहतर बनाने की कुंजी है और देश के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
  • आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा का महत्व (Importance of Education for Economic Progress): स्वामी विवेकानंद ने देखा कि शिक्षा न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए बल्कि देश की आर्थिक प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है। उनका मानना था कि एक शिक्षित आबादी राष्ट्र की वृद्धि और विकास में अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकती है और शिक्षा के माध्यम से गरीबी और बेरोजगारी को कम किया जा सकता है।
  • सार्वभौमिक शिक्षा पर जोर (Emphasis on Universal Education): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा सार्वभौमिक होनी चाहिए और जाति, लिंग या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना देश के प्रत्येक व्यक्ति तक इसकी पहुंच होनी चाहिए। उन्होंने शिक्षा को लोगों को सशक्त बनाने और उन्हें जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक उपकरण देने के साधन के रूप में देखा।
  • शिक्षा में सरकार की भूमिका (Role of Government in Education): स्वामी विवेकानंद का मानना था कि जन शिक्षा को बढ़ावा देने में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने तर्क दिया कि सरकार को शिक्षा में निवेश करना चाहिए और ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक व्यक्ति की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच हो।

कुल मिलाकर, सामूहिक शिक्षा पर स्वामी विवेकानंद के विचार व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर देते हैं। उनका मानना था कि शिक्षा सार्वभौमिक और सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए और शिक्षा को बढ़ावा देने और इसकी पहुंच सुनिश्चित करने वाली नीतियां बनाने में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है।

Swami Vivekananda’s Contribution to Education

(स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान।).

महान भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक नेता स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वास्तविक जीवन के उदाहरणों के साथ उनके योगदानों का वर्णन और व्याख्या करने के लिए यहां कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:

  • वेदांत का व्यावहारिक रूप (The practical form of Vedanta): विवेकानंद ने वेदांत के प्राचीन भारतीय दर्शन को व्यावहारिक रूप दिया। उनका मानना था कि आध्यात्मिक शिक्षा व्यावहारिक वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए और दैनिक जीवन में सिद्धांतों के अनुप्रयोग पर केंद्रित होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, उनका प्रसिद्ध उद्धरण “उठो, जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए” कार्रवाई के लिए एक व्यावहारिक आह्वान है जो व्यक्तियों को दृढ़ संकल्प और ध्यान के साथ अपने लक्ष्यों का पीछा करने के लिए प्रेरित करता है।
  • आध्यात्मिक और भौतिक दोनों जरूरतों को पूरा करने पर जोर (Emphasis on fulfilling both spiritual and material needs): विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तियों की आध्यात्मिक और भौतिक दोनों जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि आध्यात्मिक विकास की खोज भौतिक भलाई की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, उनकी शिक्षाओं ने आत्मनिर्भरता के महत्व और अपने और अपने परिवार का समर्थन करने के लिए व्यावहारिक कौशल के विकास पर जोर दिया।
  • सभी प्रकार के विषयों का अध्ययन (Study of all kinds of subjects): विवेकानंद ने आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार के विषयों के अध्ययन पर जोर दिया। उनका मानना था कि एक संपूर्ण शिक्षा में न केवल पारंपरिक शैक्षणिक विषयों बल्कि व्यावहारिक कौशल और शारीरिक शिक्षा को भी शामिल किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन्होंने छात्रों को अपने शरीर और शारीरिक व्यायाम और स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जानने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • शारीरिक शिक्षा पर विशेष जोर (Special emphasis on physical education): विवेकानंद का मानना था कि शारीरिक शिक्षा पूर्ण शिक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा है। उन्होंने शारीरिक व्यायाम के महत्व और शारीरिक शक्ति और धीरज के विकास पर जोर दिया। उदाहरण के लिए, उन्होंने अपने अनुयायियों के बीच शारीरिक फिटनेस को बढ़ावा देने के लिए रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय बेलूर मठ में एक व्यायामशाला की स्थापना की।
  • प्राचीन और आधुनिक शिक्षा के बीच एकीकरण (Integration between ancient and modern education): विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा को प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ को एकीकृत करना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि पारंपरिक भारतीय ज्ञान और ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन्होंने गणित और भौतिकी जैसे आधुनिक वैज्ञानिक विषयों के साथ-साथ वेदों और उपनिषदों जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहित किया।
  • शिक्षा में संस्कृत की प्रमुखता (The prominence of Sanskrit in education): विवेकानंद ने शिक्षा में संस्कृत के महत्व पर बल दिया। उनका मानना था कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं बल्कि प्राचीन भारतीय ज्ञान और ज्ञान का स्रोत है। उदाहरण के लिए, उन्होंने संस्कृत और उसके साहित्य के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए कलकत्ता में एक संस्कृत कॉलेज की स्थापना की।
  • मानव सेवा पर जोर (Emphasis on human service): विवेकानंद ने शिक्षा के अभिन्न अंग के रूप में मानव सेवा के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य न केवल व्यक्तिगत विकास बल्कि मानवता की सेवा करना भी होना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो एक सामाजिक और आध्यात्मिक संगठन है जो गरीबी और पीड़ा को कम करने के लिए काम करता है।
  • औद्योगिक शिक्षा पर जोर (Emphasis on industrial education): विवेकानंद का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना होना चाहिए। उन्होंने औद्योगिक शिक्षा और व्यावहारिक कौशल के महत्व पर जोर दिया ताकि छात्रों को खुद का समर्थन करने और समाज में योगदान करने में सक्षम बनाया जा सके। उदाहरण के लिए, उन्होंने बढ़ईगीरी और बुनाई जैसे व्यावहारिक कौशल में युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए बेलूर मठ में एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की।

Famous books written by Swami Vivekananda

(स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तकें).

यहाँ स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित कुछ प्रसिद्ध पुस्तकों की एक तालिका दी गई है, जिसमें प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

ये स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखी गई कई पुस्तकों के कुछ उदाहरण हैं, जिनमें से प्रत्येक उन लोगों के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि और शिक्षा प्रदान करती है जो आध्यात्मिकता, दर्शन और आत्म-साक्षात्कार की अपनी समझ को गहरा करना चाहते हैं।

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  • Education Philosophy of Tarabai Modak in Hindi (Pdf Notes)
  • Educational Philosophy of Mahatma Gandhi in Hindi PDF NOTES
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    He took the philosophy of India to the whole world. The entire western world was affected by Vivekananda's speech in Chicago. He introduced the spiritual knowledge of India to the world. Romain Rolland was impressed by his ideas and wrote a biography of Swami Vivekananda. His biography of Swami Vivekananda became very famous.

  8. स्वामी विवेकानंद की जीवनी ~ Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

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    Swami Vivekananda once spoke of himself as a 'condensed India.' His life and teachings are of inestimable value to the West for an understanding of the mind of Asia. William James, the Harvard philosopher, called the Swami the 'paragon of Vedantists.' Max Müller and Paul Deussen, the famous Orientalists of the nineteenth

  17. PDF Swamiji Biography

    May 31, 1893, Vivekananda set sail for America from Bombay. The ship sailed via China and Japan, and in July reached Vancouver, from where the Swami travelled to Chicago. Vivekananda gave his first lecture at the Parliament of Religions in Chicago on the inaugural day, September 11, 1893. He was an instant success at the Parliament, given his

  18. Swami Vivekananda

    He was a key figure in the late 19th and early 20th-century Indian renaissance and the broader global spread of Indian spirituality and philosophy. Here are some key aspects of Swami Vivekananda's life and contributions: Early Life: Swami Vivekananda was born as Narendranath Datta in Kolkata, India, on January 12, 1863.

  19. ध्यान (स्वामी विवेकानंद) : स्वामी विवेकानंद : Free Download, Borrow

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  20. Vivekananda: A Biography : Swami Nikhilananda

    Herein the readers will find his life described in a short compass, without sacrificing the essential details. This is a masterly presentation of his life from the pen of a scholar of repute. A worthy book for all those who want to study Vivekananda in brief without loosing the crucial aspects of his life.

  21. Swami Vivekanand Books in Hindi PDF

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  22. Vivekananda A Biography by Swami Nikhilananda.pdf

    who saw or heard Vivekananda even once still cherish his memory after a lapse of more than half a century. In America Vivekananda's mission was the interpretation of India's spiritual culture, especially in its Vedantic setting. He also tried to enrich the religious consciousness of the Americans through the rational and humanistic teachings

  23. Educational Philosophy Of Swami Vivekananda In Hindi (PDF)

    Educational-Philosophy-Of-Swami-Vivekananda-In-Hindi. हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो चरित्र का निर्माण करे, मन की शक्ति को बढ़ाए, बुद्धि का विकास करे और व्यक्ति को ...