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भारतीय संविधान पर निबंध Essay on Indian Constitution in Hindi

इस लेख में आप भारतीय संविधान पर निबंध Essay on Indian constitution in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमें आपको भारतीय संविधान का इतिहास, प्रकार, विशेषताएं, लेखक, धराएं जैसी की महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई है।

Table of Content

विश्व के तमाम देशों को व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए कुछ नियम और कानून तय किए गए हैं। यह अलग-अलग प्रकार के नियम कानून लिखित और मौखिक भी हो सकते हैं। 

इसे संविधान कहा जाता है, जो एक तरह से कानून की किताब है। यह देश की सर्वोच्च विधि होती है, जिसके अनुसार ही किसी भी देश के शासन प्रशासन को संचालित किया जाता है। 

भारतीय संविधान की बात करें तो यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के संचालन के लिए जानी जाती है। सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ ही हमारा संविधान भी दुनिया में लिखित तौर पर बहुत ही विशाल है।

भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां शासन तंत्र जनता के बहुमत के आधार पर ही निर्धारित होता है। भारतीय संविधान में हर किसी के लिए मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के साथ साथ सैकड़ों कानूनों की चर्चा की गई है। 

दुनिया में भारतीय संविधान अपनी एक अलग पहचान रखता है। यह विविधताओं से भरा है, जिसे तैयार करने में लगभग 2 साल 11 महीने और 14 दिनों का समय लगा था। 

बाबासाहेब आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है। बाबासाहेब के साथ ही अन्य कई बुद्धिजीवियों और सर्वश्रेष्ठ लोगों द्वारा इसे तैयार किया गया था।

भारतीय संविधान का इतिहास History of Indian Constitution in Hindi

भारत जब ब्रिटिश सरकार के औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र होने के पड़ाव पर था, तभी देश को एक नए ढंग से चलाने के लिए संविधान सभा को बनाया गया था। भारत के लिए एक नए संविधान को गढ़ने में बहुत समय और विभिन्न बैठकों का आयोजन हुआ था। 

9 दिसंबर 1946 के दिन पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई थी। 26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान को लागू किया गया था। प्रारंभ में भारतीय संविधान में कुल मिलाकर 22 भाग 8 अनुसूचियां व 395 अनुच्छेद का समावेश हुआ था।

लेकिन समय-समय पर कई संशोधन हुए, जिसके परिणाम स्वरूप नए-नए प्रावधानों को भी इसमें जोड़ा गया। आज के समय में भारतीय संविधान में कुल मिलाकर 25 भाग 12 अनुसूचियां और 395 अनुच्छेद मौजूद हैं। 

संविधान बनाने वाले लोगों के उत्कृष्ट विचार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि संविधान इस तरह से बनाया गया था जहां कोई भी प्रत्यक्ष रूप से किसी भी कानून को जड़ से खत्म नहीं कर सकता और ना ही मनमानी कर के नए कानूनों को जोड़ सकता है। 

इसके लिए बहुत ही लंबा कानूनी क्रियाकलाप के बाद ही कोई भी संशोधन किया जा सकता है। अधिकतर जितने भी अधिनियम को संशोधित किया गया, उनके जरिए नए उप खंडों को भारतीय संविधान में जगह दी गई। 

यदि संविधान निर्माण की बात करें तो ब्रिटिशों ने भारत पर लंबे समय तक राज किया। जिसके कारण उनके नियम कानूनों की छाप हमारे देश पर बहुत ही प्रभावी ढंग से पढ़ चुकी थी। 

संविधान निर्माण कर्ताओं ने इसी कारण ब्रिटिश राज्य व्यवस्था के संसदीय प्रशासन प्रणाली को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान का निर्माण किया था।

भारतीय संविधान के प्रकार Types of Indian Constitution in Hindi

संविधान की रचना के आधार पर, (i) विकसित संविधान (evolved constitution).

यह संविधान का वह प्रकार है, जो बिना किसी निश्चित समय, सिद्धांत और सभा द्वारा तैयार नहीं किया जाता। बल्कि कई सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप ऐसे संविधान का निर्माण होता है। 

(ii) निर्मित संविधान (Enacted Constitution)

संविधान का ऐसा प्रारूप जो किसी निश्चित समय और ध्येय के कारण सभा से पारित किया जाता है। भारतीय संविधान एक तरह का निर्मित संविधान है, जो एक निश्चित समय 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।

संविधान के स्वरूप के आधार पर

(i)लिखित संविधान (written constitution).

संविधान काफी विचार विमर्श करने के पश्चात तथा संविधान सभा द्वारा निश्चित सैद्धांतिक क्रियाकलापों के पश्चात लागू किया जाता है। लिखित संविधान आमतौर पर निर्मित किया गया संविधान होता है, जिसमें स्पष्ट रूप से सिद्धांत और नियमों का वर्णन होता है।

(ii) अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि वह संविधान जो लिखित नहीं है, लेकिन उसके नियम और सिद्धांतों को अनिवार्य रूप से माना जाता है, अलिखित संविधान कहलाता है। हालांकि किसी भी प्रकार का संविधान पूर्ण रूप से अलिखित या मौखिक नहीं हो सकता है।

संविधान में संशोधन प्रक्रिया के आधार पर 

(i) लचीला संविधान (flexible constitution).

जिस कानूनी प्रक्रिया में विधायिका को कानून निर्माण की प्रक्रिया में सरलता होती है तथा संवैधानिक दृष्टिकोण से आवश्यक बदलाव को बड़े ही आसानी से कानूनी प्रक्रिया से प्रसार करके उसे लागू कर दिया जाता है, वह लचीले संविधान की श्रेणी में आता है। लचीला संविधान किसी भी तरह के संशोधन बदलावों को आसानी से स्वीकार कर सकता है।

(ii) कठोर संविधान (Rigid Constitution)

लचीला संविधान के प्रकृति के बिल्कुल विपरीत कठोर संविधान, जिसमें संशोधनों के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है तथा प्रकृति में कठोर होता है, जिनमें बदलावों को शामिल करना बेहत कठिन कार्य होता है ऐसे संविधान कठोर संविधान के प्रवृत्ति के अंतर्गत आते हैं।

भारतीय संविधान की विशेषताएं Important Features of Indian Constitution in Hindi

  • भारतीय संविधान पूरी तरह से लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी विचारधारा पर आधारित है।
  • विश्व का सबसे व्यापक लिखित तौर पर मौजूद एकमात्र भारतीय संविधान है।
  • भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों और अधिकारों को विशेष जगह दी गई है।
  • अनुसूचित जैसे तमाम पिछड़े वर्गो से ताल्लुक रखने वाले समुदायों के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
  • संविधान पूर्ण रूप से अंतर्राष्ट्रीय शांति और समृद्धि को विकसित करने पर विश्वास रखता है।
  • भारतीय संविधान के आधार पर देश के संचालन व्यवस्था के लिए संसदात्मक शासन पद्धति अपनाई गई है।
  • भारतीय न्याय व्यवस्था कठोरता और लचीला दोनों ही प्रकृति का एक अद्भुत मिश्रण है।
  • विश्व के सामने यह एक आश्चर्य का मुद्दा है, कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी को इतने प्रभावी ढंग से भारतीय संविधान संचालित करने में पूर्ण रूप से सफल रहा है।

भारतीय संविधान के लेखक 

हमारे भारतीय संविधान के निर्माण की जब भी बात आती है, तो सभी के मन में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का ही जिक्र होता है। 

लेकिन बाबा भीमराव अंबेडकर के अलावा बहुत से लोगों के अथाह प्रयास के पश्चात संविधान का निर्माण संभव हो सका था। यदि उन महान लोगों के प्रयासों के बिना भारतीय संविधान के निर्माण की बात की जाए तो यह अधूरा रहेगा।

नंदलाल बोस के निर्देशन में भारतीय संविधान का सजावट काम अन्य शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा संपन्न किया गया था। 1934 में ही श्री एम.एन. राव ने भारतीय संविधान की नींव रख दी थी। 

गौरतलब है कि राव साहब को साम्यवादी विचारधारा के पहले अन्वेषक के रूप में भी जाना जाता है। कांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखने वाले कई बुद्धिजीवियों के कड़ी मेहनत के पश्चात हमारा संविधान बना था। 

श्री राजगोपाल चारी, राजेंद्र प्रसाद , जवाहरलाल नेहरू , सरदार वल्लभभाई पटेल इत्यादि जैसे अन्य दूर दृष्टि रखने वाले राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों ने भी संविधान निर्माण में अपना योगदान दिया था।

भारतीय संविधान की धाराएं

शुरूआत में 26 नवंबर, 1949 के दरमियान अपनाए गए संविधान में कुल मिलाकर एक प्रस्तावना, 22 भागों में 395 लेख और 8 अनुसूचियाँ शामिल की गई थी। 

1950 में किए गए अधिनियमन में बदलाओं के बाद वर्तमान में 104 संशोधनों के कारण लेखों की संख्या बढ़कर 448 पहुंच गई है और साथ ही संविधान में अब 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं।

भारतीय संविधान कब लागू हुआ

1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद ही देश के संचालन के लिए कई तरह की परियोजनाएं बनाई जा रही थी। 26 नवंबर 1949 में भारतीय संविधान को अंगीकृत किया गया था, जिसमें कुछ प्रावधान तो उसी समय बना दिए गए थे। 

इसके बाद 26 जनवरी 1950 में इसे लागू किया गया। संविधान निर्माण के विशेष दिन के उपलक्ष में ही प्रति वर्ष 26 जनवरी को पूरे भारत में “ गणतंत्रता दिवस ” मनाया जाता है।

भारतीय संविधान की परिभाषा

कानूनों का ऐसा समुच्चय जो अपने सैद्धांतिक नियमों के अंतर्गत किसी भी देश के व्यवस्थित रूप से संचालन में अनिवार्य रूप से भागीदार होता है, उसे संविधान कहा जाता है। 

जो भी राजनीतिक पक्ष देश पर शासन करती है, उसे सरकार कहते हैं। सरकार के प्रमुख अंगों में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का समावेश होता है। जो प्रमुख रूप से संविधान का मुख्य अंग माना जाता है। 

संविधान एक तरह से विस्तृत कानूनी दस्तावेज होता है, जो किसी भी देश का सर्वोच्च विधि माना जाता है। दूसरे शब्दों में देश में कानूनी व्यवस्था को संचालित करने वाले मूल कानूनी सिद्धांतों को संविधान का नाम दिया जाता है।

भारतीय संविधान के प्रमुख भाग Major Parts of Indian Constitution

  • भाग 1 – संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र : अनुच्छेद 1 से 4
  • भाग 2 – नागरिकता : अनुच्छेद 5 से 11
  • भाग 3 – मौलिक अधिकार : अनुच्छेद 12 से 35
  • भाग 4 – नीति निर्देशक तत्व : अनुच्छेद 36 से 51
  • भाग 4( क) – मूल कर्तव्य : अनुच्छेद 51
  • भाग 5 – संघ : अनुच्छेद 52 से 151
  • भाग 6 – राज्य : अनुच्छेद 152 से 237
  • भाग 7 – संविधान अधिनियम : अनुच्छेद 238
  • भाग 8 – संघ राज्य क्षेत्र : अनुच्छेद 239 से 242
  • भाग 9 – पंचायत : अनुच्छेद 243 से 243
  • भाग 10 – नगर पालिका : अनुच्छेद 243P-243ZG
  • भाग 11 – अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र : अनुच्छेद 244 से 244A
  • भाग 12 – संघ और राज्य के बीच संबंध : अनुच्छेद 245 से 263
  • भाग 13 – वित संपत्ति : अनुच्छेद 264- 300
  • भाग 14 – व्यापार वाणिज्य और समागम : अनुच्छेद 301 से 307
  • भाग 15 – संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं : अनुच्छेद 308 से 322
  • भाग 16 – अधिकरण : अनुच्छेद 323A से 323B
  • भाग 17 – निर्वाचन : अनुच्छेद 324 से 329A
  • भाग 18 – कुछ वर्गों के लिए विशेष संबंध : अनुच्छेद 330 से 342
  • भाग 19 – राजभाषा : अनुच्छेद 343 से 351
  • भाग 20 – आपात उपबंध : अनुच्छेद 352 से 307
  • भाग 21 – प्रकीर्ण : अनुच्छेद 361 से 367
  • भाग 22 – संविधान के संशोधन : अनुच्छेद 368

भारतीय संविधान के स्रोत

केवल ब्रिटिश शासन पद्धति ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत से देशों की शासन प्रणाली से सुझाव लेकर भारतीय संविधान बना हुआ है। 

हमारा संविधान अमेरिकी संविधान जिसमें मूल अधिकार, उपराष्ट्रपति पद, राष्ट्रपति के महाभियोग, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अन्य न्यायिक सिद्धांतों के आधार पर तैयार किया गया है।

वही ब्रिटिश संविधान से एकल नागरिकता, विधाई प्रक्रिया, संसदीय विशेषाधिकार, मंत्रिमंडलीय सिद्धांत, द्विसदनीय विशेषता और विधि द्वारा निर्मित प्रक्रिया इत्यादि का सुझाव लिया गया। 

इसके अलावा फ्रांस, भूतपूर्व सोवियत संघ, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड इत्यादि जैसे देशों के संवैधानिक प्रणाली के आधार पर मिलाजुला कर भारतीय संविधान की स्थापना की गई है। 

यह भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता है कि कई सारे देशों के संवैधानिक नियमों के मिश्रण के परिणाम स्वरूप हमारा संविधान बना हुआ है।

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नमस्कार रीडर्स, मैं बिजय कुमार, 1Hindi का फाउंडर हूँ। मैं एक प्रोफेशनल Blogger हूँ। मैं अपने इस Hindi Website पर Motivational, Self Development और Online Technology, Health से जुड़े अपने Knowledge को Share करता हूँ।

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17 Comments

NYC Essay on Indian Constitution in Hindi

Nice thanks for this posting

Very good and very nice

Wow so nice every speech is very nice its very short and very simple essay

Very Nice and short essay Thanks

wow is very good peragraph

Our constitution are very important to the Indian people,cultural, and others etc.

Dr.babasaheb ambedakr is the father of Indian contitution.

Very very nice

Very creative

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Essay on Constitution of India in Hindi: जानिए परीक्षाओं में पूछे जाने वाले भारत के संविधान पर निबंध

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  • Updated on  
  • नवम्बर 17, 2023

भारत के संविधान पर निबंध

भारत का संविधान एक नियम पुस्तिका की तरह है जो यह निर्देशित करती है कि देश को कैसे चलाया जाए। यह लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत का संविधान पूरे विश्व  सबसे लंबा है, और यह बुनियादी सिद्धांतों, प्रक्रियाओं और सरकारी शक्तियों को निर्धारित करता है। यह 26 नवंबर, 1949 को लिखा गया था और आधिकारिक तौर पर 26 जनवरी, 1950 को काम करना शुरू किया। कई बार विद्यार्थियों से भारत के संविधान के बारे में निबंध तैयार करने के लिए दिया जाता है। यदि आप भी भारत के संविधान पर निबंध के बारे में जानने की इच्छा रखते हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

भारत का संविधान क्या है, भारत के संविधान पर निबंध सैंपल 1, भारत के संविधान पर निबंध सैंपल 2, भारत का संविधान कैसे बना, भारत के संविधान की विशेषताएं, भारतीय संविधान पर 10 लाइन्स .

भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। यह भारत के शासन के लिए रूपरेखा है और सरकारी संस्थानों की संरचना, शक्तियों और कर्तव्यों को स्थापित करता है। भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया, यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारत का संविधान दुनिया में सबसे लंबे लिखित संविधान के रूप में जाना जाता है। इसका पेनिंग स्टेटमेंट संविधान के आदर्शों और उद्देश्यों, जैसे न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को रेखांकित करता है। भारत में सरकार का फेडरल स्ट्रक्चर है जिसमें केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है। इसके साथ यह भारत सरकार की संसदीय प्रणाली का पालन करता है, जिसमें राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख और प्रधान मंत्री सरकार का प्रमुख होता है।

भारत का संविधान एक नियम पुस्तिका है जो हमारे देश का मार्गदर्शन करती है। यह बेहद खास है और हमें यह बताता है कि चीजों को निष्पक्ष और समान तरीके से कैसे काम करना चाहिए। इसे हमारी सरकार का मार्गदर्शक भी कहा जाता है। यह भारतीय संविधान 1949 में बनाया गया था लेकिन आधिकारिक तौर पर इसका काम 26 जनवरी 1950 को शुरू हुआ। भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। 

यह हमारे अधिकारों जैसी अच्छी चीज़ों के बारे में बात करता है, जो हमारे लिए विशेष शक्तियों की तरह हैं। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करे। इसमें यह भी कहा गया है कि हमें अपने देश को बेहतर बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।  हमारे संविधान में सरकार के लिए क्या करें और क्या न करें की एक बड़ी सूची है, और यह यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सब कुछ उचित तरीके से हो। 

भारत का संविधान एक बड़ी मार्गदर्शक पुस्तक है जो हमें बताती है कि हमारा देश कैसे चलना चाहिए। यह देश के संचालन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। 26 जनवरी 1950 के दिन इसे लागू किया गया था। भारतीय संविधान अन्य देशों की तुलना में वर्ल्ड की सबसे बड़ी रूल बुक है। इसमें हमारे लिए विशेष आधिकारों का विवरण शामिल है। 

भारतीय संविधान यह सुनिश्चित करता है सरकार सभी के साथ वैसा ही व्यवहार करे, जैसा कि किसी विशेष दर्जे के व्यक्ति के साथ किया जाता है। हमारे संविधान में चीजों को व्यवस्थित रखने के लिए उन चीजों की एक सूची भी है जो सरकार को करनी चाहिए और नहीं करनी चाहिए। 

भारतीय संविधान हमें यह दर्शाता है की हमें अपने देश को और भी बेहतर बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।  भारत का संविधान हमारे लिए अधिकारों की एक ढाल की तरह है, और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति इनसे छूट न जाए।

जब भी हम अपने झंडे को ऊंचा लहराते हुए देखते हैं, तो यह याद दिलाता है कि हमारा संविधान ही असली नायक है, जो हमारा ख्याल रखता है और हमारे देश को रहने के लिए एक शानदार जगह बनाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हर किसी को उचित मौका मिले और हमारा देश चमकता रहे।

भारत के संविधान पर निबंध सैंपल 3

Essay On Constitution Of India In Hindi पर निबंध सैंपल 3 यहां दिया गया है-

26 जनवरी वर्ष 1950 के दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। इसीलिए हम 26 जनवरी को प्रतिवर्ष भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। भारत के स्वतंत्र होते हैं देश को एकता के साथ चलाने के लिए एक मजबूत संविधान की मांग शुरू हुई। फिर संविधान सभा का गठन किया गया और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे महान दिग्गजों द्वारा इसका निर्माण किया गया। हालांकि संविधान सभा का गठन देश की आजादी से पहले हो चुका था। 

भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों ने मिलकर भारतीय संविधान का निर्माण किया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सब कुछ सही था, उनके बीच बहुत सारी चर्चाएँ और बातचीत हुई। भारत का संविधान विश्व स्तर पर सबसे विस्तृत संविधान है, जिसमें छोटी से छोटी बातों पर भी ध्यान दिया गया है।

9 दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था जिसका कार्य था एक मजबूत संविधान का निर्माण करना। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस सभा के अध्यक्ष बने। उन्होंने संविधान का शुरुआती ढांचा बनाने के लिए ड्राफ्टिंग कमिटी का निर्माण किया और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर इसके चेयर मैन थे। इसे पूरा करने में उन्हें लगभग तीन साल में 166 दिन लगे।  

एक मजबूत संविधान बनाने के लिए कुछ अच्छे विचार प्राप्त करने के लिए उन्होंने ब्रिटेन, आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अन्य देशों के संवैधानिक नियमों को देखा। भारत का संविधान इन सभी स्थानों से विचार प्राप्त करने के बाद से अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में स्थापित हुआ। यह हमारे देश के इंस्ट्रक्शन मैनुअल की तरह है, और यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि चीजें सभी के लिए निष्पक्ष और सुव्यवस्थित हों।

आइए भारत के संविधान की विशेषताओं के बारे में जानते हैं-

  • विश्व का सबसे लंबा संविधान: भारत का संविधान दुनिया में सबसे लंबा होने का रिकॉर्ड रखता है। जब इसकी शुरुआत 26 जनवरी 1950 को हुई तो इसमें 395 अनुच्छेद थे जो 8 अनुसूचियों के साथ 22 भागों में विभाजित थे। समय के साथ, इसमें 25 भागों और 12 अनुसूचियों में 448 लेख शामिल हो गए। अब तक कई अमेंडमेंट हो चुके हैं, जिनमें से नवीनतम संशोधन 25 जनवरी, 2020 को हुआ। इस विशेष संशोधन ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सीटों के आरक्षण को बढ़ा दिया। भारतीय संविधान एक जीवित दस्तावेज़ की तरह है, जो राष्ट्र की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बदल रहा है और विकसित हो रहा है।
  • भारत का संविधान कितना लचीला है? हमारा संविधान विशेष है क्योंकि यह अमेरिकी संविधान की तरह अत्यधिक सख्त या ब्रिटिश संविधान की तरह पूरी तरह लचीला नहीं है। यह दोनों का मिश्रण है, जो इसे आंशिक रूप से कठोर और आंशिक रूप से लचीला बनाता है। इस अद्वितीय गुण का मतलब है कि यह समय के साथ अनुकूलित और विकसित हो सकता है, जिससे हमारे देश के लिए समय के साथ बदलाव करना आसान हो जाता है।
  • एकात्मक विशेषताओं वाली संघीय व्यवस्था: भारत में सरकार की शक्तियाँ केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच बंटी हुई हैं। संविधान तीन राज्य शाखाओं – कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की शक्तियों को विभाजित करता है।  यह व्यवस्था संघीय व्यवस्था को दर्शाती है। जबकि इसमें एकता की विशेषताएं हैं, जैसे एक मजबूत केंद्रीय प्राधिकरण, आपातकालीन प्रावधान और राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति, यह संघीय तत्वों को भी बनाए रखता है, जिससे केंद्र और राज्य स्तरों के बीच शक्ति का संतुलित वितरण सुनिश्चित होता है।
  • मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य: भारत का संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों का एक विस्तृत विवरण प्रदान करता है। इन अधिकारों के साथ-साथ 11 जिम्मेदारियों की एक सूची भी है, जिन्हें मौलिक कर्तव्य कहा जाता है। इन कर्तव्यों में राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दिखाना, देश की एकता और अखंडता को बढ़ावा देना और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना जैसे कार्य शामिल हैं।
  • गणतंत्र: भारत एक गणतंत्र के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि यह किसी तानाशाह या राजा द्वारा शासित नहीं है। इसके बजाय, सरकार लोगों द्वारा, लोगों के लिए और लोगों की बनाई जाती है।  हर पांच साल में, नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से देश के नेता को नामांकित और निर्वाचित करके भाग लेते हैं।

भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक के लिए निर्देशों के एक समूह के रूप में कार्य करता है, जो भारत को विश्व स्तर पर एक गणतंत्र का दर्जा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि सरकारें बदल सकती हैं, राजनीतिक दल बन सकते हैं और टूट हो सकते हैं, लेकिन देश को कायम रहना चाहिए और वास्तव में भारत के इस लोकतंत्र को स्थायी रूप से हमेशा के लिए कायम रहना चाहिए।

भारत के संविधान पर निबंध जानने के बाद भारतीय संविधान पर 10 लाइन्स जान लेते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं:

  • हमारे संविधान ने पिछले विभिन्न संविधानों से प्रेरणा ली, जिससे यह विश्व स्तर पर सबसे लंबा बन गया।
  • डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता माना जाता है।  
  • इसकी नींव भारत सरकार अधिनियम, 1935 में निहित है। 
  • संविधान सभा पहली बार 5 दिसंबर, 1946 को बुलाई गई।
  • भारत के संविधान को तैयार करने में लगभग तीन साल लगे।  
  • 26 जनवरी 1950 को कानूनी रूप से लागू किया गया। 
  • भारत का राष्ट्रीय प्रतीक 8 जनवरी 1950 को अपनाया गया था।
  • शुरुआत में हिंदी और अंग्रेजी में लिखा गया, संविधान का प्रत्येक पृष्ठ कलात्मक रूप से डिजाइन किया गया था।
  • डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। 
  • भारत के संविधान में आज तक कुल 100 से भी अधिक अमेंडमेंट किए गए हैं। 

भारतीय संविधान सर्वोच्च कानूनी दस्तावेज है जो भारत गणराज्य के शासन के लिए रूपरेखा और सिद्धांत स्थापित करता है। यह सरकार की संरचना की रूपरेखा तैयार करता है, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है, और मौलिक और आधिकारिक नियम प्रदान करता है।

ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष के रूप में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर को से “भारतीय संविधान के जनक” के रूप में मान्यता प्राप्त है।

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था।

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में भारत के संविधान पर निबंध के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य निबंध से सम्बंधित ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।

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दा इंडियन वायर

भारतीय संविधान पर निबंध

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By विकास सिंह

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भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभावी हुआ। यह डॉ. बी.आर अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक समिति द्वारा लिखा गया था।

यह सबसे लंबा लिखित संविधान है जो भारत के सरकारी संस्थानों की शक्ति, प्रक्रियाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है और हमारे देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का विस्तृत विवरण देता है।

भारतीय संविधान पर निबंध, essay on indian constitution in hindi (200 शब्द)

भारत का संविधान डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में तैयार किया गया था, जिन्हें भारतीय संविधान के पिता के रूप में जाना जाता है। संविधान का मसौदा तैयार करने में लगभग तीन साल लग गए। संविधान का मसौदा तैयार करते समय समाज के विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं पर ध्यान दिया गया। प्रारूपण समिति ने मूल्यवान आदानों की तलाश के लिए ब्रिटेन, फ्रांस और जापान सहित कई अन्य काउंटियों की संविधानों का भी उल्लेख किया।

भारत के संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्तव्य, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत और भारत सरकार के संघीय ढांचे शामिल हैं। भारतीय संविधान में हर नीति, अधिकार और कर्तव्य को समझाया गया है, जिससे यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है।

इसे स्वीकृत करवाने के लिए भारत के संविधान में 2000 से अधिक संशोधन किए जाने थे। यह 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को पूरी तरह से लागू किया गया था। यह वह दिन था जब हमारे देश को भारतीय गणराज्य के रूप में जाना जाने लगा।

26 जनवरी तब से गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर फहराया जाता है और दिन को आनन्दित करने के लिए राष्ट्रगान गाया जाता है। राष्ट्रीय संविधान दिवस, विशेष रूप से भारतीय संविधान को समर्पित एक दिन, 2015 में अस्तित्व में आया।

भारतीय संविधान पर निबंध, essay on indian constitution in hindi (300 शब्द)

प्रस्तावना:

भारत के संविधान को सर्वोच्च दस्तावेज के रूप में जाना जाता है जो भारत के नागरिकों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों की विस्तृत जानकारी देता है। इसने एक मानक तय किया है जिसे समाज में कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पालन करने की आवश्यकता है और इसे विकसित और समृद्ध करने में भी मदद की जाने की आवश्यकता है।

संविधान भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करता है:

भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों को देश के संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल हैं।

ये मूल अधिकार हैं जो देश के सभी नागरिकों को उनकी जाति, रंग, पंथ या धर्म के होने के बावजूद हकदार हैं। भारतीय नागरिक के कुछ मौलिक कर्तव्य संविधान का सम्मान करना, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना, एकता की रक्षा करना, देश की विरासत का संरक्षण करना, भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करना, भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना, करुणा रखना है।

जीवित प्राणियों के लिए, उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें और शांति बनाए रखने में अपना योगदान दें। इनका उल्लेख भारतीय संविधान में भी है।

संविधान सरकार की संरचना और कार्य को परिभाषित करता है:

भारत के संविधान में सरकार की संरचना और कार्य की लंबाई भी बताई गई है। संविधान में उल्लेख है कि भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली है। यह प्रणाली केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी मौजूद है। प्रधान मंत्री और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के पास सभी प्रमुख निर्णय लेने की शक्ति है। दूसरी ओर, भारत के राष्ट्रपति के पास नाममात्र की शक्तियाँ हैं।

निष्कर्ष:

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर अपनी छह सदस्यों की टीम के साथ जो समिति का हिस्सा थे, भारत के संविधान को पेश किया। कई संशोधनों के बाद संविधान को मंजूरी दी गई। संविधान के लागू होने के बाद कई संशोधन भी किए गए हैं।

भारतीय संविधान पर निबंध, indian constitution essay in hindi (400 शब्द)

प्रस्तावना :.

भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बना था। संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया था, जो कानूनन समझी जाने वाली और गैर-कानूनी समझी जाने वाली प्रथाओं का विस्तृत विवरण देती है और दंडनीय होती है।

संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। संविधान लागू होने के साथ ही हमारे देश को भारतीय गणराज्य के रूप में जाना जाने लगा।

भारत के संविधान के लिए विशेष समिति:

भारत के संविधान को प्रारूपित करने का कार्य बहुत जिम्मेदारी का था। संविधान सभा ने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए एक विशेष मसौदा समिति का गठन किया। प्रारूप समिति में सात सदस्य थे।

इनमें प्रमुख भारतीय नेता शामिल थे, बी.आर. अम्बेडकर, बी.एल. मित्तर, के.एम. मुंशी, एन. गोपालस्वामी अयंगार, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, डीपी और मोहम्मद सादुल्लाह आदि शामिल हैं।  डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने मसौदा समिति का नेतृत्व किया। अम्बेडकर को भारतीय संविधान के जनक के रूप में जाना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह उनके मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण के तहत था कि यह बड़ा मसौदा तैयार हुआ।

भारतीय संविधान – अन्य देशों के संविधान द्वारा प्रेरित:

भारत के संविधान ने विभिन्न अन्य देशों के गठन से प्रेरणा प्राप्त की। हमारे संविधान में शामिल कई अवधारणाओं और कृत्यों को फ्रांस, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, रूस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के गठन से उधार लिया गया है।

भारतीय संविधान की प्रारूप समिति ने भारत सरकार अधिनियम 1858, भारत सरकार अधिनियम 1919 और 1935 और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को संविधान में शामिल किए जाने वाले कार्यों और सुविधाओं के बारे में विचार करने के लिए संदर्भित किया।

इन पिछले कृत्यों ने समिति को देश के नागरिकों की स्थिति और आवश्यकता को समझने में मदद की। इस प्रकार हमारे संविधान को अक्सर उधार के बैग के रूप में जाना जाता है। इसके अधिनियमन के समय इसमें 395 लेख, 22 भाग और 8 अनुसूचियां शामिल थीं। यह हस्तलिखित और सुलेखित था।

ड्राफ्टिंग कमेटी ने भारत के संविधान के अंतिम मसौदे को प्रस्तुत करने के लिए बहुत प्रयास करने के बाद कई संशोधन करने का सुझाव दिया। समिति ने संविधान को मंजूरी देने के लिए 2000 से अधिक संशोधन करने के लिए एक साथ बैठे।

अनुमोदन प्राप्त करने के लिए उपयुक्त संशोधन करने के लिए सदस्यों ने कई चर्चाएं कीं। भारत की संविधान सभा के 284 सदस्यों ने उसी पर अपनी स्वीकृति देने के लिए संविधान पर हस्ताक्षर किए। यह संविधान के प्रवर्तन से दो दिन पहले किया गया था।

भारत का संविधान लेखन का एक बड़ा हिस्सा है जिसमें भारतीय प्रणाली के लिए डॉस और डोनट का एक विस्तृत विवरण शामिल है। इसके गठन के बाद से लगभग 100 संशोधन हुए हैं।

भारतीय संविधान पर निबंध, essay on indian constitution in hindi (500 शब्द)

भारत का संविधान – देश की सर्वोच्च शक्ति:

भारत के संविधान को सही रूप में देश की सर्वोच्च शक्ति कहा जाता है। भारतीय संविधान में उल्लिखित कानूनों, संहिताओं, अधिकारों और कर्तव्यों का देश के नागरिकों द्वारा कड़ाई से पालन किए जाने की आवश्यकता है। भारत के संसद और उच्चतम न्यायालय में किए गए निर्णय सभी भारत के संविधान में परिभाषित कानूनों और संहिताओं पर आधारित हैं। भारत की संसद के पास भी संविधान को अनदेखा करने की शक्ति नहीं है।

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर – भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार:

डॉ. बी आर अम्बेडकर ने भारत के संविधान को लिखने के लिए गठित मसौदा समिति का नेतृत्व किया। वह इस समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने कई मूल्यवान इनपुट देकर संविधान के निर्माण में बहुत योगदान दिया और इस प्रकार भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाना जाने लगा।

मसौदा समिति में छह अन्य सदस्य थे जो भारत की संविधान सभा द्वारा गठित किए गए थे। इन सदस्यों ने डॉ. अंबेडकर के मार्गदर्शन में काम किया।

भारत का संविधान भारत सरकार अधिनियम को फिर से प्रतिस्थापित करता है:

भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने भारत के संविधान के गठन तक भारत के मूलभूत शासी दस्तावेज के रूप में कार्य किया। भारत की संविधान सभा ने नवंबर 1949 में भारत के संविधान को अपनाया। उस समय संविधान के कई लेख लागू हुए थे। 26 जनवरी 1950 को संविधान को प्रभावी रूप से लागू किया गया जिसे भारतीय गणतंत्र दिवस के रूप में जाना जाता है। शेष लेख इस तिथि पर प्रभावी हो गए। हमारा देश जो उस समय तक ब्रिटिश क्राउन का डोमिनियन कहलाता था, भारत के संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में जाना जाने लगा।

भारत के संविधान को मनाने के लिए विशेष दिन:

गणतंत्र दिवस

भारतीय संविधान का गठन और प्रवर्तन प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस पर भव्य पैमाने पर मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस देश में एक राष्ट्रीय अवकाश है। देश के संविधान का सम्मान करने के लिए गणतंत्र दिवस पर इंडिया गेट, नई दिल्ली में एक विशाल कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

भारत का संवैधानिक प्रमुख, अर्थात्, इसका अध्यक्ष राजपथ पर राष्ट्रीय ध्वज फहराता है। भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति और देश के विभिन्न राज्यों के कई मुख्यमंत्री इस कार्यक्रम में उपस्थित होते हैं। स्कूली बच्चों और सशस्त्र बलों द्वारा परेड राजपथ पर आयोजित की जाती हैं। स्कूली बच्चे नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्य भी करते हैं। विभिन्न भारतीय राज्यों की संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली सुंदर झांकी की परेड भी आयोजन के दौरान आयोजित की जाती है।

भारतीय संविधान की याद में पूरे देश में विभिन्न कार्यालयों और स्कूलों में कई छोटे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पेंटिंग, निबंध और संगीत प्रतियोगिताएं स्कूल और कॉलेजों में आयोजित की जाती हैं। देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं और भारत के संविधान के बारे में भाषण दिए जाते हैं।

राष्ट्रीय संविधान दिवस:

वर्ष 2015 में, भारतीय प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने, हमारे संविधान को एक विशेष दिन समर्पित करने का सुझाव दिया। चूंकि भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था, इसलिए इस तिथि को संविधान का सम्मान करने के लिए चुना गया था। 26 नवंबर को 2015 से राष्ट्रीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

इस दिन भारत भर के स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी संस्थानों में कई छोटे और बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन घटनाओं के दौरान भारतीय संविधान के महत्व पर बल दिया गया है। देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं और दिन को मनाने के लिए सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।

भारत का संविधान आम आदमी के हित के साथ-साथ देश के समग्र हित को ध्यान में रखते हुए सटीकता के साथ तैयार किया गया है। यह हमारे देश के नागरिकों के लिए एक उपहार है।

भारतीय संविधान पर निबंध, essay on importance of indian constitution in hindi (600 शब्द)

26 जनवरी 1950 को लागू किया गया भारत का संविधान डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में सात सदस्यों वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया था। यह भारत के नागरिकों, देश के सरकारी निकायों और अन्य अधिकारियों को सही तरीके से कार्य करने के लिए मार्गदर्शन करता है। इसने देश में शांति और समृद्धि बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत के संविधान की मुख्य विशेषताएं:

यहाँ भारत के संविधान की प्रमुख मुख्य विशेषताएं हैं:

सबसे लंबा लिखित संविधान:

भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इस विस्तृत संविधान को लिखने में लगभग तीन साल लगे। इसमें एक प्रस्तावना, 448 लेख, 25 समूह, 12 अनुसूचियां और 5 परिशिष्ट हैं। यह अमेरिकी संविधान की तुलना में बहुत लंबा है जिसमें केवल 7 लेख शामिल हैं।

कठोरता और लचीलापन का समामेलन:

भारत का संविधान कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण है। हालांकि यह सर्वोच्च शक्ति है जिसे देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरी लगन से पालन करने की आवश्यकता है, नागरिक उन प्रावधानों को संशोधित करने की अपील कर सकते हैं जो वे पुराने या कठोर हैं।

हालांकि कुछ प्रावधानों में कुछ कठिनाई के साथ संशोधन किया जा सकता है, जबकि अन्य में संशोधन करना आसान है। इसके प्रवर्तन के बाद से हमारे देश के संविधान में 103 संशोधन किए गए हैं।

भारतीय संविधान की अच्छी तरह से तैयार की गई प्रस्तावना संविधान के दर्शन का एक विस्तृत विवरण देती है। इसमें कहा गया है कि भारत एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है। यह एक कल्याणकारी राज्य है जो अपने लोगों को पहले रखता है। यह अपने लोगों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय में विश्वास करता है। जबकि शुरू से ही लोकतांत्रिक समाजवाद का पालन किया गया था, समाजवाद शब्द को 1976 में ही जोड़ा गया था।

भारत – एक धर्मनिरपेक्ष देश:

संविधान ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया है। भारत किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता है। यह अपने नागरिकों को अपना धर्म चुनने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह धर्म के नाम पर लोगों को उकसाने वाले धार्मिक समूहों की निंदा करता है।

भारत – एक गणराज्य:

संविधान भारत को एक गणराज्य घोषित करता है। देश में एक मनोनीत प्रमुख या सम्राट द्वारा शासित नहीं किया जाता है। इसका एक निर्वाचित प्रमुख होता है जिसे राष्ट्रपति कहा जाता है। राष्ट्रपति, देश के लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित, 5 साल की अवधि के लिए सत्ता में आता है।

भारत – संघवाद और इकाईवाद का मिश्रण

संविधान भारत को कई एकात्मक विशेषताओं के साथ एक संघीय ढांचे के रूप में वर्णित करता है। इसे क्वैसी-फेडरेशन या यूनिटेरियन फेडरेशन कहा जाता है। एक महासंघ की तरह, भारत ने केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति को विभाजित किया है। इसमें दोहरी प्रशासन प्रणाली है।

इसका एक लिखित, सर्वोच्च संविधान है जिसका धार्मिक रूप से पालन करने की आवश्यकता है। इसमें केंद्र-राज्य विवादों को तय करने की शक्ति के साथ एम्बेडेड एक स्वतंत्र न्यायपालिका शामिल है। साथ ही इसमें एकात्मक विशेषताएं हैं जैसे कि एक मजबूत आम संविधान, आम चुनाव आयोग और कुछ को नाम देने के लिए आपातकालीन प्रावधान।

नागरिकों के मौलिक कर्तव्य:

भारत का संविधान स्पष्ट रूप से अपने नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को बताता है। इनमें से कुछ भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को अपलोड करने और उसकी रक्षा करने, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करने, देश की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करने, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने और सभी के साथ समान व्यवहार करने के लिए हैं।

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत:

भारत के संविधान में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया है। ये सिद्धांत मूल रूप से राज्य को प्रदान किए गए दिशा-निर्देश हैं जो आगे की सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अपनी नीतियों के माध्यम से हैं।

भारत का संविधान अपने नागरिकों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करता है। भारतीय संविधान में सब कुछ अच्छी तरह से परिभाषित है। इसने भारत को एक गणतंत्र का दर्जा प्राप्त करने में मदद की है। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के सदस्यों ने वास्तव में एक सराहनीय कार्य किया है जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Essay on indian constitution in hindi भारतीय संविधान पर निबंध.

The nation wants to know information about the Indian Constitution in Hindi (भारतीय संविधान). So we are sharing भारतीय संविधान पर निबंध – Essay on Indian Constitution in Hindi for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12. Read Essay on Indian Constitution in Hindi भारतीय संविधान पर निबंध.

Essay on Indian Constitution in Hindi

Essay on Indian Constitution in Hindi 800 Words

स्वतंत्र भारत का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 में लागू किया गया था। संविधान के अनुसार भारत को गणतंत्री व्यवस्था वाला राज्य गणराज्य घोषित किया गया। संविधान का निर्माण करते समय इंग्लैड, अमेरिका, फ्राँस आदि राष्ट्रों के संविधान से कई अच्छी बातें ग्रहण की गई। इस दृष्टि से भारतीय संविधान विश्व का एक श्रेष्ठतम संविधान स्वीकार किया जाता है। भारतीय संविधान की सब से बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि इसमें देश को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। इस घोषणा के अनुसार भारत में सभी धर्मों, जातियों, वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा। सभी को अपने विश्वासों-निष्ठाओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करने की पूरी स्वतंत्रता रहेगी। राज्य उसमें किसी तरह का हस्तक्षेप या बाधा उपस्थित नहीं करेगा। अपनी इच्छानुसार सभी को पूजा-पद्धति अपनाने की भी पूरी स्वतंत्रता रहेगी। राज्य का आचरण-व्यवहार ऐसा रहेगा कि सभी लोग हर प्रकार की सुविधा पाने और विकास करने का समान अवसर प्राप्त कर सकें।

संविधान में कही गई ये सभी बातें अच्छी लगती हैं। संविधान स्त्री-पुरुष, बालक-बालिका आदि को समान मानकर उन्हें समान अधिकार भी प्रदान करता है। सम्पत्ति में भी स्त्री-पुरुष दोनों का समान अधिकार स्वीकार करता है। समानता का व्यवहार करने वाली ये सभी बातें बड़ी ही अच्छी एवं आकर्षक प्रतीत होती हैं। इन सभी तरह की समानताओं के आलोक में भारत को ‘धर्म-निरपेक्ष राज्य’ उचित ही घोषित किया गया। लेकिन लगता है, धर्म-निरपेक्षता से वास्तविक अभिप्राय क्या है, धर्म-निरपेक्ष किसे कहते हैं या कहना-मानना चाहिए, संविधान निर्माता इसे पारिभाषित करना भूल गए। इस कारण शासक वर्ग मात्र वोट पाने और अपनी कुर्सी बनाए रखने के लिए यहाँ के मूल धर्म-जाति की तो उपेक्षा करता रहता है और बाकी सबके प्रति उसका व्यवहार, तुष्टिकरण का रहता है। दूसरे, धर्म-निरपेक्षता का अर्थ धर्म-विहीनता ले लिया जाता है जबकि संविधान का रक्षक शासक दल स्वयं सभी धर्म-स्थलों के चौखटे चाटता फिरता है। धर्म-निरपेक्षता का वास्तविक अर्थ है राज्य का किसी एक धर्म के साथ न बन्धे रहना, न कि धर्म-विहीन होना। सो यदि संविधान में इस शब्द की उचित व्याख्या कर दी जाती, तो आज यह भ्रमक स्थिति न रहती।

भारतीय संविधान एक समग्र एवं सार्वभौमिक राज्य की परिकल्पना परिपुष्ट करने वाला है। एक राष्ट्रीयता की बात भी पूरा बल देकर कहता है। सभी के साथ समानता रखने, समान व्यवहार करने की बात भी खम ठोंक कर कहता है। लेकिन बड़ी विसंगति यह रह गई है कि सभी देशवासियों को मात्र ‘भारतीय’ न कह कर उन्हें बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक, जन-जाति, अनुसूचित जाति जैसे कई विभेदमूलक खानों में बाँट जाता है। एक ही साँस में ऐसा कह और मान लेना ‘धर्म-निरपेक्ष’ और ‘एक राष्ट्र’ ‘एक समान राष्ट्रीयता’ जैसी बातों के साथ भला कैसे मेल खा सकता है? इतना ही नहीं, अल्पसंख्यक वर्ग के अन्तर्गत संविधान में लगभग सभी धर्मों, जातियों, वर्गों, उपवर्गों आदि को गिना दिया गया है कि जो हिन्दू नहीं या रह नहीं गईं। इस का स्पष्ट अर्थ और संकेत यही है कि अपने-आप को ‘अभेदमूलक’ कहकर भी भारतीय संविधान ने वस्तुतः ‘भेदमूलक’ दृष्टि अपनाए रखी है और ‘एक भारतीयता’ को कई खण्डों में बाँट दिया है। इतना ही नहीं यहाँ बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के लिए अनेक सामाजिक क्रिया-प्रक्रियाओं में, व्यवहारों और कानूनी व्यवस्थाओं में भी विभेद बनाए रखा गया है। फलस्वरुप संविधान सभा या संसद द्वारा पारित कई कानून सारे देश पर समान रूप से लागू नहीं किये जा सकते। फलतः असन्तोष और बिलगाव की स्थितियाँ बने रहना बड़ा स्वाभाविक है।

संसार के श्रेष्ठ संविधानों में से एक माने जाने वाले संविधान की यह एक विडम्बना ही कही जाएगी कि उसके अनुसार सभी देशवासी एक होकर भी एक नहीं अनेक हैं। तभी तो किसी एक वर्ग, धर्म या जाति को खुश रखने के लिए संविधान में ऐसे टाँके लगाए जाते हैं कि जो वर्तमान परिवर्तनशील परिस्थितियों के, नए जीवन और धर्म-वर्गहीन समाज के अनुकूल कतई न होकर अपनी विद्रूपता का स्वयं ही उजागर कर दिया करते या करते हरते हैं और तुष्टिकरण की नीतियों को उजागर करने वाले स्पष्टतः भेदमूलक भी हैं कि जिस का सही रूप में उपयोग न कर-करा वैसी ही अन्य धाराएँ-उपधाराएँ बना कर जोड़ दी जाती हैं। इस प्रकार संविधान का संरक्षक शासक वर्ग ही वस्तुतः यहाँ उस की अवमानना करता रहता है। फिर कैसे मान लिया जाए कि वह सर्वश्रेष्ठ संविधान है।

इसमें सन्देह नहीं कि भारतीय संविधान में अनेक अच्छी बुनियादी बाते हैं। ऊपर के विवेचन से उस की विद्रूप सीमाएँ भी स्पष्ट हैं । इस विद्रूपता का मूल करण संविधान की सही व्याख्या न कर सत्ता की कुर्सी और वोट हथियाने के लिए शासक वर्ग द्वारा की गई मनमानी व्याखाएँ ही हैं। यदि संविधान में सभी के लिए मात्र ‘भारतीय’ शब्द का प्रयोग कर सारे नियमों-कानूनों का समान पालन करवाया जाए, तो निश्चय ही उसकी श्रेष्ठता बनी रह सकती है, अन्यथा उसके साथ-साथ देश का शीराजा भी बिखर जाएगा।

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indian constitution in hindi | भारतीय संविधान

Indian Constitution in hindi

भारत का संविधान: प्रस्तावना

हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य बनाने और इसके सभी नागरिकों को सुरक्षित करने का गंभीरता से संकल्प लेते हैं:

न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक; भारत का संविधान विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता; स्थिति और अवसर की समानता; और उन सभी के बीच प्रचार करना व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता;

नवंबर 1949 के इस छब्बीसवें दिन हमारी संविधान सभा में, इस संविधान को अपनाएं, अधिनियमित करें और स्वयं को सौंप दें।

constitution of india | भारत का संविधान

Indian constitution in hindi | भारत के संविधान की विशेषताएं, भाग i: संघ और उसका क्षेत्र.

  • अनुच्छेद 1: संघ का नाम और क्षेत्र.
  • अनुच्छेद 2 : नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना।
  • 2ए [निरस्त]
  • अनुच्छेद 3 : नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
  • अनुच्छेद 4 : पहली और चौथी अनुसूची और पूरक, आकस्मिक और परिणामी मामलों में संशोधन के लिए अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानून

भाग II: नागरिकता

  • अनुच्छेद 5: संविधान के प्रारंभ में नागरिकता।
  • अनुच्छेद 6: कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार जो पाकिस्तान से भारत चले आये हैं।
  • अनुच्छेद 7: पाकिस्तान जाने वालों को नागरिकता।
  • अनुच्छेद 8: भारत से बाहर रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार।
  • अनुच्छेद 9: व्यक्ति स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं, नागरिक नहीं हैं।
  • अनुच्छेद 10: नागरिकता के अधिकारों का जारी रहना.
  • अनुच्छेद 11: संसद कानून द्वारा नागरिकता के अधिकार को विनियमित करेगी।

भाग III: मौलिक अधिकार सामान्य

  • अनुच्छेद 12 परिभाषा.
  • अनुच्छेद 13 मौलिक अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाले कानून।
  • समानता का अधिकार
  • अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता.
  • अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
  • अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता।
  • अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का उन्मूलन.
  • अनुच्छेद 18 उपाधियों का उन्मूलन.
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • अनुच्छेद 19 बोलने की स्वतंत्रता आदि के संबंध में कुछ अधिकारों का संरक्षण।
  • अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण।
  • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा.
  • अनुच्छेद 21A शिक्षा का अधिकार
  • अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक।
  • अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  • अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म का स्वतंत्र व्यवसाय, अभ्यास और प्रचार।
  • अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 27 किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिए करों के भुगतान के संबंध में स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 28 कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में उपस्थिति के संबंध में स्वतंत्रता।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
  • अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा।
  • अनुच्छेद 30 शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यकों का अधिकार।
  • अनुच्छेद 31 [निरस्त।]
  • कुछ कानूनों की बचत
  • अनुच्छेद 31A सम्पदा आदि के अधिग्रहण के लिए प्रावधान करने वाले कानूनों की बचत।
  • अनुच्छेद 31B कुछ अधिनियमों और विनियमों का सत्यापन।
  • अनुच्छेद 31C कुछ निदेशक सिद्धांतों को प्रभावी करने वाले कानूनों की बचत।
  • अनुच्छेद 31D [निरस्त]
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  • अनुच्छेद 32 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को लागू करने के उपाय।
  • अनुच्छेद 32A [निरस्त]
  • अनुच्छेद 33 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को बलों आदि पर लागू करने में संशोधन करने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 34 किसी क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू होने पर इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 35 इस भाग के प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए विधान।

भाग IV: राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत

  • अनुच्छेद 36 परिभाषा.
  • अनुच्छेद 37 इस भाग में निहित सिद्धांतों का अनुप्रयोग।
  • अनुच्छेद 38 राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करेगा।
  • अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा पालन किये जाने वाले नीति के कुछ सिद्धांत।
  • अनुच्छेद 39A समान न्याय और निःशुल्क कानूनी सहायता।
  • अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का संगठन।
  • अनुच्छेद 41 कुछ मामलों में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार।
  • अनुच्छेद 42 काम की उचित और मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत के लिए प्रावधान।
  • अनुच्छेद 43 श्रमिकों के लिए जीवन निर्वाह मजदूरी आदि।
  • अनुच्छेद 43A उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी.
  • अनुच्छेद 43B सहकारी समितियों को बढ़ावा देना।
  • अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता।
  • अनुच्छेद 45 बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।
  • अनुच्छेद 46 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
  • अनुच्छेद 47 पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाना तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना राज्य का कर्तव्य है।
  • अनुच्छेद 48 कृषि एवं पशुपालन का संगठन।
  • अनुच्छेद 48A पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार तथा वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा।
  • अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थानों तथा वस्तुओं का संरक्षण।
  • अनुच्छेद 50 न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना।
  • अनुच्छेद 51 अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देना।

भाग IVA: मौलिक कर्तव्य

  • अनुच्छेद 51A मौलिक कर्तव्य.

अध्याय I: कार्यकारी

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति

  • अनुच्छेद 52 भारत के राष्ट्रपति.
  • अनुच्छेद 53. संघ की कार्यपालिका शक्ति.
  • अनुच्छेद 54 राष्ट्रपति का चुनाव.
  • अनुच्छेद 55. राष्ट्रपति के चुनाव की रीति.
  • अनुच्छेद 56. राष्ट्रपति का कार्यकाल.
  • अनुच्छेद 57 पुनः चुनाव के लिए पात्रता.
  • अनुच्छेद 58 राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के लिए योग्यताएँ।
  • अनुच्छेद राष्ट्रपति कार्यालय की 59 शर्तें.
  • अनुच्छेद 60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान.
  • अनुच्छेद 61. राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया.
  • अनुच्छेद 62. राष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए चुनाव कराने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति के पद की अवधि।
  • अनुच्छेद 63 भारत के उपराष्ट्रपति.
  • अनुच्छेद 64 उपराष्ट्रपति का राज्य सभा का पदेन सभापति होना।
  • अनुच्छेद 65 उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या कार्यालय में आकस्मिक रिक्तियों के दौरान या राष्ट्रपति की अनुपस्थिति के दौरान अपने कार्यों का निर्वहन करना।
  • अनुच्छेद 66. उपराष्ट्रपति का चुनाव।
  • अनुच्छेद 67. उपराष्ट्रपति का कार्यकाल।
  • अनुच्छेद 68 उपराष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए चुनाव कराने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति के पद की अवधि।
  • अनुच्छेद 69 उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान।
  • अनुच्छेद 70 अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन।
  • अनुच्छेद 71 राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित या उससे जुड़े मामले।
  • अनुच्छेद 72 क्षमा आदि देने और कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, कम करने या कम करने की राष्ट्रपति की शक्ति।
  • अनुच्छेद 73. संघ की कार्यपालिका शक्ति की सीमा.
  • मंत्री परिषद्
  • अनुच्छेद राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए 74 मंत्रिपरिषद।
  • अनुच्छेद 75 मंत्रियों के संबंध में अन्य प्रावधान।
  • भारत के महान्यायवादी
  • अनुच्छेद 76 भारत के अटॉर्नी-जनरल।
  • सरकारी कामकाज का संचालन
  • अनुच्छेद 77 भारत सरकार के कामकाज का संचालन.
  • अनुच्छेद 78 राष्ट्रपति को सूचना प्रस्तुत करने आदि के संबंध में प्रधान मंत्री के कर्तव्य।

अध्याय II: संसद

  • अनुच्छेद 79 संसद का संविधान.
  • अनुच्छेद 80 राज्यों की परिषद की संरचना।
  • अनुच्छेद 81 लोक सभा की संरचना।
  • अनुच्छेद 82 प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन।
  • अनुच्छेद 83 संसद के सदनों की अवधि.
  • अनुच्छेद 84 संसद की सदस्यता के लिए योग्यता.
  • अनुच्छेद संसद के 85 सत्र, सत्रावसान और विघटन।
  • अनुच्छेद 86 सदनों को संबोधित करने और संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार।
  • अनुच्छेद 87 राष्ट्रपति का विशेष संबोधन।
  • अनुच्छेद 88 सदनों के संबंध में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार।
  • संसद के अधिकारी
  • अनुच्छेद 89 राज्यों की परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष।
  • अनुच्छेद 90 उपसभापति का पद रिक्त होना, त्यागपत्र देना और पद से हटाया जाना।
  • अनुच्छेद 91 उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की अध्यक्ष के कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने या उसके रूप में कार्य करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 92. जब पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति या उपसभापति को अध्यक्षता नहीं करनी चाहिए।
  • अनुच्छेद 93 लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष।
  • अनुच्छेद 94 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, त्यागपत्र देना और पद से हटाया जाना।
  • अनुच्छेद 95 उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 96 अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को तब अध्यक्षता नहीं करनी चाहिए जब उन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो।
  • अनुच्छेद 97 सभापति एवं उपसभापति तथा सभापति एवं उपसभापति के वेतन एवं भत्ते।
  • अनुच्छेद 98 संसद सचिवालय।
  • व्यापार करना
  • अनुच्छेद 99 सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान.
  • अनुच्छेद सदनों में 100 मतदान, रिक्तियों और कोरम के बावजूद सदनों की कार्य करने की शक्ति।
  • सदस्यों की अयोग्यताएँ
  • अनुच्छेद 101 सीटों की रिक्ति।
  • अनुच्छेद 102 सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ.
  • अनुच्छेद 103 सदस्यों की अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय।
  • अनुच्छेद 104 अनुच्छेद 99 के तहत शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या योग्य न होने पर या अयोग्य घोषित होने पर बैठने और मतदान करने के लिए दंड। संसद और उसके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और प्रतिरक्षाएँ
  • अनुच्छेद 105 संसद के सदनों और उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार आदि।
  • विधायी प्रक्रिया
  • अनुच्छेद 107 विधेयकों को पेश करने और पारित करने के संबंध में प्रावधान।
  • अनुच्छेद 108 कुछ मामलों में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
  • अनुच्छेद 109 धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया.
  • अनुच्छेद 110 “धन विधेयक” की परिभाषा।
  • वित्तीय मामलों में प्रक्रिया
  • अनुच्छेद 112 वार्षिक वित्तीय विवरण।
  • अनुच्छेद 113 अनुमानों के संबंध में संसद में प्रक्रिया।
  • अनुच्छेद 114 विनियोग विधेयक।
  • अनुच्छेद 115 अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान.
  • अनुच्छेद 116 लेखानुदान, श्रेय मत और असाधारण अनुदान।
  • सामान्यतः प्रक्रिया
  • अनुच्छेद प्रक्रिया के 118 नियम.
  • अनुच्छेद 119 वित्तीय व्यवसाय के संबंध में संसद में प्रक्रिया का कानून द्वारा विनियमन।
  • अनुच्छेद संसद में प्रयोग की जाने वाली 120 भाषाएँ।
  • अनुच्छेद 121 संसद में चर्चा पर प्रतिबंध.
  • अनुच्छेद 122 न्यायालय संसद की कार्यवाही की जांच नहीं करेंगे।

अध्याय III: राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ

  • अनुच्छेद 123 संसद के अवकाश के दौरान अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति।

अध्याय IV: संघ न्यायपालिका

  • अनुच्छेद 124 सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना एवं गठन।
  • अनुच्छेद 124A राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग। (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित, हालाँकि संसद द्वारा निरस्त नहीं किया गया)
  • अनुच्छेद 124B आयोग के कार्य।
  • अनुच्छेद 124C कानून बनाने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 125 न्यायाधीशों के वेतन आदि।
  • अनुच्छेद 126 कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति.
  • अनुच्छेद 127 तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति.
  • अनुच्छेद 128 उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति।
  • अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा।
  • अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट की 130 सीट.
  • अनुच्छेद 131 उच्चतम न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार।
  • अनुच्छेद 131A [निरस्त]
  • अनुच्छेद 132 कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपील में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार।
  • अनुच्छेद 133 सिविल मामलों के संबंध में उच्च न्यायालयों से अपील में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार।
  • अनुच्छेद 134 आपराधिक मामलों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार।
  • अनुच्छेद उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए 134ए प्रमाणपत्र।
  • अनुच्छेद 135 मौजूदा कानून के तहत संघीय न्यायालय का क्षेत्राधिकार और शक्तियां सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रयोग की जाएंगी।
  • अनुच्छेद 136 उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील करने की विशेष अनुमति।
  • अनुच्छेद 137 उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णयों या आदेशों की समीक्षा।
  • अनुच्छेद 138 उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार का विस्तार।
  • अनुच्छेद 139 सर्वोच्च न्यायालय को कुछ रिट जारी करने की शक्तियाँ प्रदान करना।
  • अनुच्छेद 139A कुछ मामलों का स्थानांतरण।
  • अनुच्छेद 140 सर्वोच्च न्यायालय की सहायक शक्तियाँ।
  • अनुच्छेद उच्चतम न्यायालय द्वारा 141 कानून को सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी घोषित किया गया।
  • अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय की डिक्री और आदेशों का प्रवर्तन और खोज आदि के संबंध में आदेश।
  • अनुच्छेद 143 सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति.
  • अनुच्छेद 144 सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों को सर्वोच्च न्यायालय की सहायता के लिए कार्य करना।
  • अनुच्छेद 144A [निरस्त]
  • अनुच्छेद 145 न्यायालय आदि के नियम।
  • अनुच्छेद 146 उच्चतम न्यायालय के अधिकारी एवं सेवक तथा व्यय।
  • अनुच्छेद 147 व्याख्या.

अध्याय V: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

  • अनुच्छेद 148 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक।
  • अनुच्छेद 149 नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्य एवं शक्तियाँ।
  • अनुच्छेद 150 संघ और राज्यों के खातों का प्रपत्र.
  • अनुच्छेद 151 लेखापरीक्षा रिपोर्ट।

भाग VI: राज्य

अध्याय i: सामान्य.

  • अनुच्छेद 152 परिभाषा.

अध्याय II: कार्यकारी

  • अनुच्छेद 153 राज्यों के राज्यपाल।
  • अनुच्छेद 154 राज्य की कार्यपालिका शक्ति.
  • अनुच्छेद 155 राज्यपाल की नियुक्ति.
  • अनुच्छेद 156 राज्यपाल का कार्यकाल.
  • अनुच्छेद 157 राज्यपाल के रूप में नियुक्ति के लिए योग्यताएँ।
  • अनुच्छेद 158 राज्यपाल के कार्यालय की शर्तें
  • अनुच्छेद 159 राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान.
  • अनुच्छेद 160 कतिपय आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कार्यों का निर्वहन।
  • अनुच्छेद 161 क्षमा आदि देने और कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, कम करने या कम करने की राज्यपाल की शक्ति।
  • अनुच्छेद 162 राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार.
  • अनुच्छेद 163 राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद।
  • अनुच्छेद 164 मंत्रियों के संबंध में अन्य प्रावधान।
  • राज्य के महाधिवक्ता
  • अनुच्छेद 165 राज्य के लिए महाधिवक्ता।
  • अनुच्छेद 166 किसी राज्य की सरकार के कामकाज का संचालन।
  • अनुच्छेद 167 राज्यपाल को सूचना प्रस्तुत करने आदि के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य।

अध्याय III: राज्य विधानमंडल

  • अनुच्छेद 168 राज्यों में विधानमंडलों का गठन।
  • अनुच्छेद 169 राज्यों में विधान परिषदों का उन्मूलन या सृजन।
  • अनुच्छेद 170 विधान सभाओं की संरचना।
  • अनुच्छेद 171 विधान परिषदों की संरचना।
  • अनुच्छेद 172 राज्य विधानमंडलों की अवधि.
  • अनुच्छेद 173 राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए योग्यता.
  • अनुच्छेद राज्य विधानमंडल के 174 सत्र, सत्रावसान और विघटन।
  • अनुच्छेद 175 सदन या सदनों को संबोधित करने और संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार।
  • अनुच्छेद 176 राज्यपाल का विशेष अभिभाषण।
  • अनुच्छेद 177 सदनों के संबंध में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार।

राज्य विधानमंडल के अधिकारी

  • अनुच्छेद 178 विधान सभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष।
  • अनुच्छेद 179 अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, त्यागपत्र देना और पद से हटाया जाना।
  • अनुच्छेद 180 उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 181 जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तो वह अध्यक्षता नहीं करेंगे।
  • अनुच्छेद 182 विधान परिषद् के सभापति एवं उपसभापति।
  • अनुच्छेद 183 सभापति और उपसभापति का पद रिक्त होना, त्यागपत्र देना और पद से हटाया जाना।
  • अनुच्छेद 184 उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की अध्यक्ष के कार्यालय के कर्तव्यों का पालन करने या उसके रूप में कार्य करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 185 सभापति या उपसभापति को तब अध्यक्षता नहीं करनी चाहिए जब उन्हें पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो।
  • अनुच्छेद 186 अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा सभापति एवं उपसभापति के वेतन एवं भत्ते।
  • अनुच्छेद 187 राज्य विधानमंडल का सचिवालय।
  • अनुच्छेद 188 सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान।
  • अनुच्छेद 189 सदनों में मतदान, रिक्तियों और कोरम के बावजूद सदनों की कार्य करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 190 सीटें खाली।
  • अनुच्छेद 191 सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ.
  • अनुच्छेद 192 सदस्यों की अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय।
  • अनुच्छेद 193 अनुच्छेद 188 के तहत शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले बैठने और मतदान करने के लिए दंड, या जब योग्य न हो या अयोग्य हो।
  • राज्य विधानमंडलों और उनके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ
  • अनुच्छेद 194 विधानमंडलों के सदनों और उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार आदि।
  • अनुच्छेद 195 सदस्यों के वेतन एवं भत्ते।
  • अनुच्छेद 196 विधेयकों को पेश करने और पारित करने के संबंध में प्रावधान।
  • अनुच्छेद 197 धन विधेयक के अलावा अन्य विधेयकों के संबंध में विधान परिषद की शक्तियों पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 198 धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया.
  • अनुच्छेद 199 “धन विधेयक” की परिभाषा।
  • अनुच्छेद 200 विधेयकों पर सहमति।
  • अनुच्छेद 201 विधेयक विचार के लिए आरक्षित।
  • अनुच्छेद 202 वार्षिक वित्तीय विवरण।
  • अनुच्छेद 203 प्राक्कलन के संबंध में विधानमंडल में प्रक्रिया।
  • अनुच्छेद 204 विनियोग विधेयक।
  • अनुच्छेद 205 अनुपूरक, अतिरिक्त या अतिरिक्त अनुदान।
  • अनुच्छेद 206 लेखानुदान, श्रेय मत और असाधारण अनुदान।
  • अनुच्छेद 207 वित्तीय विधेयकों के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद प्रक्रिया के 208 नियम.
  • अनुच्छेद 209 वित्तीय व्यवसाय के संबंध में राज्य के विधानमंडल में प्रक्रिया का कानून द्वारा विनियमन।
  • अनुच्छेद 210 विधानमंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा।
  • अनुच्छेद 211 विधानमंडल में चर्चा पर प्रतिबंध.
  • अनुच्छेद 212 न्यायालय विधानमंडल की कार्यवाही की जांच नहीं करेंगे

अध्याय IV: राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ

  • अनुच्छेद 213 विधानमंडल के अवकाश के दौरान अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल की शक्ति।

अध्याय V: राज्योंमेंउच्चन्यायालय

  • अनुच्छेद राज्यों के लिए 214 उच्च न्यायालय।
  • अनुच्छेद 215 उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होंगे।
  • अनुच्छेद 216 उच्च न्यायालयों का गठन।
  • अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद की नियुक्ति और शर्तें।
  • अनुच्छेद 218 उच्चतम न्यायालय से संबंधित कुछ प्रावधानों का उच्च न्यायालयों पर लागू होना।
  • अनुच्छेद 219 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान।
  • अनुच्छेद 220 स्थायी न्यायाधीश होने के बाद प्रैक्टिस पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 221 न्यायाधीशों के वेतन आदि।
  • अनुच्छेद 222 किसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण।
  • अनुच्छेद 223 कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद 224 अतिरिक्त एवं कार्यवाहक न्यायाधीशों की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद 224ए उच्च न्यायालयों की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद 225 विद्यमान उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार।
  • अनुच्छेद 226 कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति।
  • अनुच्छेद 226ए [निरस्त..]
  • अनुच्छेद 227 उच्च न्यायालय द्वारा सभी न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति।
  • अनुच्छेद 228 कुछ मामलों का उच्च न्यायालय में स्थानांतरण।
  • अनुच्छेद 228ए [निरस्त]
  • अनुच्छेद 229 उच्च न्यायालयों के अधिकारी एवं सेवक तथा व्यय।
  • अनुच्छेद 230 उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का केंद्र शासित प्रदेशों तक विस्तार।
  • अनुच्छेद 231 दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक सामान्य उच्च न्यायालय की स्थापना।

अध्याय VI: अधीनस्थ न्यायालय

  • अनुच्छेद 233 जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद 233A कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्तियों और उनके द्वारा दिए गए निर्णयों आदि का सत्यापन।
  • अनुच्छेद 234 न्यायिक सेवा में जिला न्यायाधीशों के अलावा अन्य व्यक्तियों की भर्ती।
  • अनुच्छेद 235 अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण.
  • अनुच्छेद 236 व्याख्या.
  • अनुच्छेद 237 इस अध्याय के प्रावधानों का कुछ वर्ग या वर्गों के मजिस्ट्रेटों पर लागू होना।

भाग VII: पहली अनुसूची के भाग बी में राज्य

  • अनुच्छेद 238 [निरस्त]

भाग VIII: केंद्र शासित प्रदेश

  • अनुच्छेद 239 संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन.
  • अनुच्छेद 239A कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों का निर्माण।
  • अनुच्छेद 239AA दिल्ली के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 239AB संवैधानिक मशीनरी की विफलता के मामले में प्रावधान।
  • अनुच्छेद 239B विधानमंडल के अवकाश के दौरान अध्यादेश प्रख्यापित करने की प्रशासक की शक्ति।
  • अनुच्छेद 240 कुछ संघ राज्य क्षेत्रों के लिए नियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति।
  • अनुच्छेद केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 241 उच्च न्यायालय।
  • अनुच्छेद 242 [निरस्त]

भाग IX: पंचायतें

  • अनुच्छेद 243 परिभाषाएँ।
  • अनुच्छेद 243ए ग्राम सभा.
  • अनुच्छेद 243बी पंचायतों का गठन।
  • अनुच्छेद 243सी पंचायतों की संरचना।
  • अनुच्छेद 243डी सीटों का आरक्षण.
  • अनुच्छेद 243ई पंचायतों की अवधि, आदि।
  • अनुच्छेद 243एफ सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ।
  • अनुच्छेद 243जी पंचायतों की शक्तियाँ, प्राधिकार एवं उत्तरदायित्व।
  • अनुच्छेद 243H पंचायतों द्वारा और उनकी निधियों पर कर लगाने की शक्तियाँ।
  • अनुच्छेद 243-I वित्तीय स्थिति की समीक्षा हेतु वित्त आयोग का गठन।
  • अनुच्छेद 243J पंचायतों के खातों की लेखापरीक्षा।
  • अनुच्छेद 243K पंचायतों के चुनाव।
  • अनुच्छेद 243एल केंद्र शासित प्रदेशों के लिए आवेदन।
  • अनुच्छेद 243एम भाग का कुछ क्षेत्रों पर लागू न होना।
  • अनुच्छेद 243एन मौजूदा कानूनों और पंचायतों का जारी रहना।
  • अनुच्छेद 243-ओ चुनावी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर रोक।

भाग IXA: नगर पालिकाएँ

  • अनुच्छेद 243पी परिभाषाएँ।
  • अनुच्छेद 243Q नगर पालिकाओं का संविधान.
  • अनुच्छेद 243आर नगर पालिकाओं की संरचना.
  • अनुच्छेद 243एस वार्ड समितियों का गठन और संरचना, आदि।
  • अनुच्छेद 243टी सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 243यू नगर पालिकाओं की अवधि, आदि।
  • अनुच्छेद 243V सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ.
  • अनुच्छेद 243W नगर पालिकाओं आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व।
  • अनुच्छेद 243X. नगर पालिकाओं द्वारा और उनकी निधियों पर कर लगाने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 243 वित्त आयोग।
  • अनुच्छेद 243Z नगर पालिकाओं के खातों की लेखापरीक्षा।
  • अनुच्छेद 243ZA नगर पालिकाओं के लिए चुनाव।
  • अनुच्छेद 243ZB केंद्र शासित प्रदेशों के लिए आवेदन।
  • अनुच्छेद 243जेडसी भाग का कुछ क्षेत्रों पर लागू न होना।
  • अनुच्छेद 243ZD जिला योजना हेतु समिति।
  • अनुच्छेद 243ZE महानगरीय योजना हेतु समिति।
  • अनुच्छेद 243ZF मौजूदा कानूनों और नगर पालिकाओं को जारी रखना।
  • अनुच्छेद 243ZG चुनावी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर रोक

भाग IXB: सहकारी समितियाँ

  • अनुच्छेद 243ZH परिभाषाएँ
  • अनुच्छेद 243ZI सहकारी समितियों का निगमन
  • अनुच्छेद 243ZJ बोर्ड के सदस्यों और उसके पदाधिकारियों की संख्या और कार्यकाल।
  • अनुच्छेद 243 जेडके बोर्ड के सदस्यों का चुनाव।
  • अनुच्छेद 243ZL बोर्ड और अंतरिम प्रबंधन का अधिक्रमण और निलंबन।
  • अनुच्छेद 243ZM सहकारी समितियों के खातों का ऑडिट।
  • अनुच्छेद 243ZN सामान्य निकाय की बैठकें आयोजित करना।
  • अनुच्छेद 243ZO किसी सदस्य का सूचना प्राप्त करने का अधिकार,
  • अनुच्छेद 243ZP रिटर्न।
  • अनुच्छेद 243ZQ अपराध और दंड.
  • अनुच्छेद 243ZR बहु-राज्य सहकारी समितियों के लिए आवेदन।
  • अनुच्छेद 243ZS केंद्र शासित प्रदेशों के लिए आवेदन।
  • अनुच्छेद 243ZT मौजूदा कानूनों को जारी रखना।

भाग X: अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र

  • अनुच्छेद 244 अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन।
  • अनुच्छेद 244ए असम में कुछ जनजातीय क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक स्वायत्त राज्य का गठन और उसके लिए स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों का निर्माण।

भाग XI: संघ और राज्यों के बीच संबंध

अध्याय i: विधायी संबंध.

विधायी शक्तियों का वितरण

  • अनुच्छेद 245 संसद और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों का विस्तार।
  • अनुच्छेद 246 संसद और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों का विषय-वस्तु।
  • अनुच्छेद 246ए वस्तु एवं सेवा कर के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 247 कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 248 विधान की अवशिष्ट शक्तियाँ।
  • अनुच्छेद 249 राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के किसी मामले के संबंध में कानून बनाने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 250 यदि आपातकाल की उद्घोषणा लागू है तो राज्य सूची के किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 251 अनुच्छेद 249 और 250 के तहत संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच असंगतता।
  • अनुच्छेद 252 दो या दो से अधिक राज्यों के लिए सहमति से कानून बनाने और किसी अन्य राज्य द्वारा ऐसे कानून को अपनाने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 253 अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को प्रभावी बनाने के लिए विधान।
  • अनुच्छेद 254 संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच असंगतता।
  • अनुच्छेद 255 सिफारिशों और पिछली मंजूरी से संबंधित आवश्यकताओं को केवल प्रक्रिया के मामले के रूप में माना जाएगा।

अध्याय II: प्रशासनिक संबंध

  • अनुच्छेद 256 राज्यों और संघ का दायित्व।
  • अनुच्छेद 257 कुछ मामलों में राज्यों पर संघ का नियंत्रण।
  • अनुच्छेद 257ए [निरस्त]
  • अनुच्छेद 258 कुछ मामलों में राज्यों को शक्तियाँ आदि प्रदान करने की संघ की शक्ति।
  • अनुच्छेद 258ए संघ को कार्य सौंपने की राज्यों की शक्ति।
  • अनुच्छेद 259 [निरस्त]
  • अनुच्छेद 260 भारत के बाहर के प्रदेशों के संबंध में संघ का क्षेत्राधिकार।
  • अनुच्छेद 261 सार्वजनिक कार्य, अभिलेख और न्यायिक कार्यवाही।
  • जल से संबंधित विवाद
  • अनुच्छेद 262 अंतरराज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों का न्यायनिर्णयन।
  • राज्यों के बीच समन्वय
  • अनुच्छेद 263 अंतर-राज्य परिषद के संबंध में प्रावधान।

भाग XII: वित्त , संपत्ति , अनुबंध और मुकदमे

अध्याय i: वित्त.

  • अनुच्छेद 264 व्याख्या.
  • अनुच्छेद 265 कानून के अधिकार के बिना कर नहीं लगाया जाएगा।
  • अनुच्छेद 266 भारत और राज्यों की समेकित निधि और सार्वजनिक खाते।
  • अनुच्छेद 267 आकस्मिकता निधि।
  • संघ और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण
  • अनुच्छेद 268 कर्तव्य संघ द्वारा लगाए गए लेकिन राज्य द्वारा एकत्र और विनियोजित किए गए।
  • अनुच्छेद 268ए [निरस्त]
  • अनुच्छेद 269 कर संघ द्वारा लगाए और वसूले जाते हैं लेकिन राज्यों को सौंपे जाते हैं।
  • अनुच्छेद 269ए अंतरराज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल और सेवा कर का उद्ग्रहण और संग्रहण।
  • अनुच्छेद 270 कर संघ और राज्यों के बीच लगाए और वितरित किए गए।
  • अनुच्छेद 271 संघ के प्रयोजनों के लिए कुछ कर्तव्यों और करों पर अधिभार।
  • अनुच्छेद 272 [निरस्त]
  • अनुच्छेद 273 जूट और जूट उत्पादों पर निर्यात शुल्क के बदले अनुदान।
  • अनुच्छेद 274 कराधान को प्रभावित करने वाले विधेयकों के लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुशंसा आवश्यक है जिसमें राज्यों की रुचि हो।
  • अनुच्छेद 275 संघ से कुछ राज्यों को अनुदान।
  • अनुच्छेद 276 व्यवसायों, व्यापार, आजीविका और रोजगार पर कर।
  • अनुच्छेद 277 बचत.
  • अनुच्छेद 278 [निरस्त]
  • अनुच्छेद 279 “शुद्ध आय” आदि की गणना।
  • अनुच्छेद 279ए वस्तु एवं सेवा कर परिषद।
  • अनुच्छेद 280 वित्त आयोग।
  • अनुच्छेद 281 वित्त आयोग की सिफ़ारिशें।
  • विविध वित्तीय प्रावधान
  • अनुच्छेद 282 संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से चुकाया जाने वाला व्यय।
  • अनुच्छेद 283 समेकित निधियों, आकस्मिक निधियों और सार्वजनिक खातों में जमा किए गए धन की अभिरक्षा, आदि।
  • अनुच्छेद 284 लोक सेवकों और न्यायालयों द्वारा प्राप्त दावेदारों की जमाराशियों और अन्य धन की अभिरक्षा।
  • अनुच्छेद 285 संघ की संपत्ति को राज्य कराधान से छूट।
  • अनुच्छेद 286 माल की बिक्री या खरीद पर कर लगाने के संबंध में प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 287 बिजली पर करों से छूट.
  • अनुच्छेद 288 कुछ मामलों में पानी या बिजली के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से छूट।
  • अनुच्छेद 289 किसी राज्य की संपत्ति और आय को संघ कराधान से छूट।
  • अनुच्छेद 290 कुछ खर्चों और पेंशन के संबंध में समायोजन।
  • अनुच्छेद 290ए कुछ देवासम निधियों को वार्षिक भुगतान।
  • अनुच्छेद 291 [निरस्त।]

अध्याय II: उधार लेना

  • अनुच्छेद 292 भारत सरकार द्वारा उधार लेना।
  • अनुच्छेद 293 राज्यों द्वारा उधार लेना।

अध्याय III: संपत्ति, अनुबंध, अधिकार, दायित्व, दायित्व और मुकदमे

  • अनुच्छेद 294 कुछ मामलों में संपत्ति, परिसंपत्तियों, अधिकारों, देनदारियों और दायित्वों का उत्तराधिकार।
  • अनुच्छेद 295 अन्य मामलों में संपत्ति, परिसंपत्तियों, अधिकारों, देनदारियों और दायित्वों का उत्तराधिकार।
  • अनुच्छेद 296 राजद्रोह या व्यपगत से या वास्तविक रिक्ति के रूप में अर्जित संपत्ति।
  • अनुच्छेद 297 क्षेत्रीय जल या महाद्वीपीय शेल्फ के भीतर मूल्यवान चीजें और विशेष आर्थिक क्षेत्र के संसाधनों को संघ में निहित करना।
  • अनुच्छेद 298 व्यापार आदि जारी रखने की शक्ति
  • अनुच्छेद 299 अनुबंध।
  • अनुच्छेद 300 मुकदमे और कार्यवाही।

अध्याय IV: संपत्ति का अधिकार

  • अनुच्छेद 300ए कानून के अधिकार के बिना किसी व्यक्ति को संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।

भाग XIII: भारत के क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और इंटरकोर्स

  • अनुच्छेद 301 व्यापार, वाणिज्य और संभोग की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 302 व्यापार, वाणिज्य और संभोग पर प्रतिबंध लगाने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 303 व्यापार और वाणिज्य के संबंध में संघ और राज्यों की विधायी शक्तियों पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 304 राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और संभोग पर प्रतिबंध।
  • अनुच्छेद 305 मौजूदा कानूनों और राज्य के एकाधिकार प्रदान करने वाले कानूनों की बचत।
  • अनुच्छेद 306 [निरस्त]
  • अनुच्छेद 307 अनुच्छेद 301 से 304 के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति।

भाग XIV: संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ

अध्याय i: सेवाएँ.

  • अनुच्छेद 308 व्याख्या.
  • अनुच्छेद 309 संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें।
  • अनुच्छेद 310 संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों का कार्यकाल।
  • अनुच्छेद 311 संघ या राज्य के अधीन नागरिक क्षमताओं में कार्यरत व्यक्तियों की बर्खास्तगी, निष्कासन या पद में कमी।
  • अनुच्छेद 312 अखिल भारतीय सेवाएँ।
  • अनुच्छेद 312ए कुछ सेवाओं के अधिकारियों की सेवा शर्तों में बदलाव करने या उन्हें रद्द करने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 313 संक्रमणकालीन प्रावधान।
  • अनुच्छेद 314 [दोहराया गया।]

अध्याय II: लोक सेवा आयोग

  • अनुच्छेद संघ और राज्यों के लिए 315 लोक सेवा आयोग।
  • अनुच्छेद 316 सदस्यों की नियुक्ति एवं कार्यकाल.
  • अनुच्छेद 317 लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाया जाना और निलंबित किया जाना।
  • अनुच्छेद 318 आयोग के सदस्यों और कर्मचारियों की सेवा की शर्तों के संबंध में नियम बनाने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 319 आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने पर प्रतिषेध।
  • अनुच्छेद लोक सेवा आयोगों के 320 कार्य।
  • अनुच्छेद 321 लोक सेवा आयोगों के कार्यों का विस्तार करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 322 लोक सेवा आयोगों के व्यय।
  • अनुच्छेद लोक सेवा आयोगों की 323 रिपोर्टें।

भाग XIVA: न्यायाधिकरण

  • अनुच्छेद 323ए प्रशासनिक न्यायाधिकरण।
  • अनुच्छेद अन्य मामलों के लिए 323बी न्यायाधिकरण।

भाग XV: चुनाव

  • अनुच्छेद 324 चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण एक चुनाव आयोग में निहित किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 325 कोई भी व्यक्ति धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने या शामिल होने का दावा करने के लिए अयोग्य नहीं होगा।
  • अनुच्छेद 326 लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे।
  • अनुच्छेद 327 विधानमंडलों के चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
  • अनुच्छेद 328 किसी राज्य के विधानमंडल की ऐसे विधानमंडल के लिए चुनाव के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 329 चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक।
  • अनुच्छेद 329ए [निरस्त]

भाग XVI: कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान

  • अनुच्छेद 330 लोक सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 331 लोक सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व।
  • अनुच्छेद 332 राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण।
  • अनुच्छेद 333 राज्यों की विधान सभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व।
  • अनुच्छेद 334 साठ वर्षों के बाद सीटों का आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व समाप्त हो जायेगा।
  • अनुच्छेद 335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावे।
  • अनुच्छेद 336 कुछ सेवाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 337 एंग्लो-इंडियन समुदाय के लाभ के लिए शैक्षिक अनुदान के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 338 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग।
  • अनुच्छेद 338ए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग।
  • अनुच्छेद 338ए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग।
  • अनुच्छेद 339 अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण पर संघ का नियंत्रण।
  • अनुच्छेद 340 पिछड़े वर्गों की स्थितियों की जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति।
  • अनुच्छेद 341 अनुसूचित जातियां।
  • अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियाँ।
  • अनुच्छेद 342ए सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग।

भाग XVII: राजभाषा

अध्याय i: संघ की भाषा.

  • अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा.
  • अनुच्छेद 344 राजभाषा आयोग एवं संसद समिति।

अध्याय II: क्षेत्रीय भाषाएँ

  • अनुच्छेद 345 किसी राज्य की आधिकारिक भाषा या भाषाएँ।
  • अनुच्छेद 346 एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या एक राज्य और संघ के बीच संचार के लिए राजभाषा।
  • अनुच्छेद 347 किसी राज्य की जनसंख्या के एक वर्ग द्वारा बोली जाने वाली भाषा से संबंधित विशेष प्रावधान।

अध्याय III: सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा।

  • अनुच्छेद 348 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा।
  • अनुच्छेद 349 भाषा से संबंधित कुछ कानूनों के अधिनियमन के लिए विशेष प्रक्रिया।

अध्याय IV: विशेष निर्देश Chapter

  • अनुच्छेद 350 शिकायतों के निवारण के लिए अभ्यावेदन में उपयोग की जाने वाली भाषा। Article
  • अनुच्छेद 350A प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा।
  • अनुच्छेद 350बी भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी।
  • अनुच्छेद 351 हिन्दी भाषा के विकास हेतु निर्देश।

भाग XVIII: आपातकालीन प्रावधान Part

  • अनुच्छेद 352 आपातकाल की उद्घोषणा।
  • अनुच्छेद 353 आपातकाल की उद्घोषणा का प्रभाव.
  • अनुच्छेद 354 आपातकाल की उद्घोषणा लागू होने पर राजस्व के वितरण से संबंधित प्रावधानों का लागू होना।
  • अनुच्छेद 355 बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्यों की रक्षा करना संघ का कर्तव्य।
  • अनुच्छेद राज्यों में संवैधानिक मशीनरी की विफलता के मामले में 356 प्रावधान।
  • अनुच्छेद 357 अनुच्छेद 356 के तहत जारी उद्घोषणा के तहत विधायी शक्तियों का प्रयोग।
  • अनुच्छेद 358 आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 19 के प्रावधानों का निलंबन।
  • अनुच्छेद 359 आपातकाल के दौरान भाग III द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन का निलंबन।
  • अनुच्छेद 359ए [निरस्त]
  • अनुच्छेद वित्तीय आपातकाल के संबंध में 360 प्रावधान।

भाग XIX: विविध

  • अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपालों तथा राजप्रमुखों की सुरक्षा।
  • अनुच्छेद 361ए संसद और राज्य विधानमंडलों की कार्यवाही के प्रकाशन का संरक्षण।
  • अनुच्छेद 361बी लाभकारी राजनीतिक पद पर नियुक्ति के लिए अयोग्यता।
  • अनुच्छेद 362 [निरस्त]
  • अनुच्छेद 363 कुछ संधियों, समझौतों आदि से उत्पन्न विवादों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक।
  • अनुच्छेद 363ए भारतीय राज्यों के शासकों को दी गई मान्यता समाप्त कर दी गई और प्रिवीपर्स समाप्त कर दिए गए।
  • अनुच्छेद 364 प्रमुख बंदरगाहों और हवाई अड्डों के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 365 संघ द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन करने या उन्हें प्रभावी करने में विफलता का प्रभाव।
  • अनुच्छेद 366 परिभाषाएँ।
  • अनुच्छेद 367 व्याख्या.

भाग XX: संविधान का संशोधन

  • अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया।

भाग XXI: अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान

  • अनुच्छेद 369 संसद को राज्य सूची के कुछ मामलों के संबंध में कानून बनाने की अस्थायी शक्ति, जैसे कि वे समवर्ती सूची के मामले हों।
  • अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371A नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371B असम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371C मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371D आंध्र प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371I आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना।
  • अनुच्छेद 371F सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371G मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371H अरुणाचल प्रदेश राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371-I गोवा राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 371J कर्नाटक राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 372 मौजूदा कानूनों का लागू रहना और उनका अनुकूलन।
  • अनुच्छेद 372A कानूनों को अनुकूलित करने की राष्ट्रपति की शक्ति।
  • अनुच्छेद 373 कुछ मामलों में निवारक निरोध के तहत व्यक्तियों के संबंध में आदेश देने की राष्ट्रपति की शक्ति।
  • अनुच्छेद 374 संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों और संघीय न्यायालय में या परिषद में महामहिम के समक्ष लंबित कार्यवाही के संबंध में प्रावधान।
  • अनुच्छेद 375 न्यायालय, प्राधिकरण और अधिकारी संविधान के प्रावधानों के अधीन कार्य करते रहेंगे।
  • अनुच्छेद 376 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के संबंध में 376 प्रावधान।
  • अनुच्छेद 377 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के संबंध में 377 प्रावधान।
  • अनुच्छेद 378 लोक सेवा आयोगों के संबंध में 378 प्रावधान।
  • अनुच्छेद 378A आंध्र प्रदेश विधान सभा की अवधि के संबंध में विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद 379-391 [निरस्त]
  • अनुच्छेद 392 कठिनाइयों को दूर करने की राष्ट्रपति की शक्ति.

भाग XXII: संक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ, हिंदी में आधिकारिक पाठ और निरसन

  • अनुच्छेद 393 लघु शीर्षक.
  • अनुच्छेद 394 प्रारंभ.
  • अनुच्छेद 394A हिंदी भाषा में प्रामाणिक पाठ।
  • अनुच्छेद 395 निरसन.

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indian Constitution in hindi 1

FAQs On constitution of india | भारत का संविधान

भारत के संविधान में कितने अनुच्छेद हैं.

भारत के संविधान में कुल मिलाकर 470 अनुच्छेद होते हैं।

भारत के संविधान में क्या लिखा है?

भारत के संविधान में विभिन्न प्रकार के विषयों पर विस्तारपूर्वक विचार किए गए हैं, जो देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्तव्यों को स्थापित करते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है: प्रस्तावना (Preamble) : संविधान की प्रस्तावना में देश के संरक्षण, समृद्धि, समाजवाद और सामाजिक न्याय की स्थापना का उल्लेख किया गया है। मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) : संविधान द्वारा नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जैसे कि अच्छूतों, दलितों, और महिलाओं के अधिकार, स्वतंत्रता, समानता, और धार्मिक स्वतंत्रता। संघटनात्मक अधिकार (Directive Principles of State Policy) : ये अधिकार सरकार को नीतिगत मार्गदर्शन करते हैं और समाज के आरामदायक जीवन की स्थापना के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। राज्य-सरकारी व्यवस्था (Federal Structure) : संविधान में भारत के राज्यों और केंद्र सरकार के बीच संघटित व्यवस्था का विवरण दिया गया है। राजनीतिक प्रतिष्ठान (Political Provisions) : संविधान में भारतीय संघ और उसके सदस्यों के प्रतिष्ठान की व्यवस्था, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद की निर्वाचन प्रक्रिया, और संघ राष्ट्रपति के शक्तियों का विवरण शामिल है। न्यायिक व्यवस्था (Judicial System) : संविधान में भारतीय न्यायिक प्रणाली की स्थापना की गई है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों की व्यवस्था है। नागरिकता (Citizenship) : संविधान में भारतीय नागरिकता के प्रावधान और नागरिकता प्राप्ति की प्रक्रिया का वर्णन है। विशेष उपाधि (Special Provisions) : संविधान में सामान्य जातियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और अन्य समुदायों के लिए विशेष उपाधियों की प्रावधानिकता दी गई है। संविधान संशोधन (Constitution Amendment) : संविधान में संशोधन की प्रक्रिया और विवरण शामिल है, जिसके माध्यम से संविधान को समय-समय पर संशोधित किया जा सकता है।

भारत के संविधान का जनक कौन है?

भारत के संविधान के जनक का श्रेय डॉ. भीमराव अंबेडकर को जाता है। डॉ. अंबेडकर ने संविधान संग्रहण समिति के अध्यक्ष के रूप में काम करके भारतीय संविधान का निर्माण किया और उसके तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान के निर्माण में भारतीय समाज की विभिन्न वर्गों के हितों को संरक्षित करने का प्रयास किया और उसमें समानता, स्वतंत्रता, और न्याय के मूल सिद्धांतों को शामिल किया।

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Indian Constitution Day Essay in Hindi | संविधान दिवस पर निबंध

Indian Constitution Day Essay in Hindi

Indian Constitution Day  2020: संविधान नियमों और कानूनों का एक सेट है जिसके अनुसार देश को नियंत्रित किया जाता है। भारत में संविधान दिवस 26 नवंबर को भारत में मनाया जाता है। डॉ। बी आर अंबेडकर भारत के संविधान के अध्यक्ष और पिता हैं। भारत का संविधान दिवस 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था। हम संविधान दिवस इसलिए मनाते हैं क्योंकि भारत में लोग अपने इतिहास को याद करते हैं और भारत के स्वयं के संविधान को लॉन्च करने के बाद हर साल स्वतंत्रता और शांति का जश्न मनाते हैं। भारत का संविधान दिवस 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था।

भारतीय संविधान के लेखक

संविधान दिवस (Constitution Day) हर साल 26 नवंबर (November 26) को मनाया जाता है. 1949 में 26 नवंबर यानी आज ही के दिन भारत का संविधान (Constitution Of India) बनकर तैयार हुआ था. डॉ. भीमराव अंबेडकर (B. R. Ambedkar) ने संविधान को दो साल, 11 महीने और 18 दिनों में तैयार कर राष्ट्र को समर्पित किया था. हमारा संविधान विश्‍व का सबसे बड़ा संविधान माना जाता है. भारत का संविधान (Indian Constitution) 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया था. भारत सरकार द्वारा पहली बार 2015 में “संविधान दिवस” मनाया गया. डॉ. भीमराव अंबेडकर के योगदान को याद करने और संविधान के महत्व का प्रसार करने के लिए “संविधान दिवस” (Constitution Day of India) मनाया जाता है. बता दें कि संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे. जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. संविधान का मसौदा तैयार करने में किसी भी तरह की टाइपिंग या प्रिंटिंग का इस्तेमाल नहीं किया गया था. आज संविधान दिवस के मौके पर हम आपको भारत के संविधान से जुड़ी 5 बातें बताने जा रहे हैं. भारत के संविधान से जुड़ी 5 बातें 1. भारतीय संविधान (Constitution Day) 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ था. भारतीय संविधान को दो साल, 11 महीने और 18 दिनों में तैयार किया गया था. भारतीय संविधान में 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं और ये 25 भागों में विभाजित है. 2. संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे फिर दो दिन बाद 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था. 3. संविधान (Constitution) का मसौदा तैयार करने में किसी भी तरह की टाइपिंग या प्रिंटिंग का इस्तेमाल नहीं किया गया था. 4. 29 अगस्त 1947 को भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना की गई थी और इसके अध्यक्ष के तौर पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की नियुक्ति हुई थी. जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. टिप्पणियां 5. संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपये आया था.

essay on constitution of india in 700 words

भारत में संविधान दिवस 26 नवंबर को हर साल सरकारी तौर पर मनाया जाने वाला कार्यक्रम है जो संविधान के जनक डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर को याद और सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। भारत के लोग अपना संविधान शुरू करने के बाद अपना इतिहास, स्वतंत्रता, स्वतंत्रता और शांति का जश्न मनाते है। संविधान दिवस भारत के संविधान के महत्व को समझाने के लिए प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर के दिन मनाया जाता है। जिसमें लोगो को यह समझाया जाता है कि आखिर कैसे हमारा संविधान हमारे देश के तरक्की के लिए महत्वपूर्ण है तथा डॉ अंबेडकर को हमारे देश के संविधान निर्माण में किन-किन कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। आजादी के पहले तक भारत में रियासतों के अपने अलग-अलग नियम कानून थे, जिन्हें देश के राजनितिक नियम, कानून और प्रक्रिया के अंतर्गत लाने की आवश्यकता थी। इसके अलावा हमारे देश को एक ऐसे संविधान की आवश्कता थी। जिसमें देश में रहने वाले लोगों के मूल अधिकार, कर्तव्यों को निर्धारित किया गया हो ताकि हमारा देश तेजी से तरक्की कर सके और नयी उचाइयों को प्राप्त कर सके। भारत की संविधान सभा ने 26 जनवरी 1949 को भारत के संविधान को अपनाया और इसके प्रभावीकरण की शुरुआत 26 जनवरी 1950 से हुई। संविधान दिवस पर हमें अपने अंदर ज्ञान का दिपक प्रज्जवलित करने की आवश्यकता है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ीयों को हमारे देश के संविधान के महत्व को समझ सके, जिससे की वह इसका सम्मान तथा पालन करें। इसके साथ ही यह हमें वर्तमान से जोड़ने का कार्य करता है, जब लोग जनतंत्र का महत्व दिन-प्रतिदिन भूलते जा रहे है। यही वह तरीका जिसे अपनाकर हम अपने देश के संविधान निर्माताओं को सच्ची श्रद्धांजली प्रदान कर सकते है और लोगो में उनके विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकते है। यह काफी आवश्यक है कि हम अपनी आने वाली पीड़ीयो को अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष और इसमें योगदान देने वाले क्रांतिकारियों के विषय में बताए ताकि वह इस बात को समझ सकें की आखिर कितनी कठिनाइयों का बाद हमारे देश को स्वतंत्रता की प्राप्ति हुई है। संविधान दिवस वास्तव में वह दिन है जो हमें हमारे ज्ञान के इस दीपक को हमारे आने वाली पीढ़ीयों तक पहुंचाने में हमारी सहायता करता है। भारत में संविधान दिवस कैसे मनाया जाता है संविधान दिवस वह दिन है, जब हमें अपने संविधान के विषय में और भी ज्यादे जानने का अवसर प्राप्त होता है। इस दिन सरकारी तथा नीजी संस्थानों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। संविधान दिवस के दिन जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है वह है लोगो को “भारत के संविधान के प्रस्तावना” की जानकारी देना, जिसके विषय में देशभर के विद्यालयों, कालेजों और कार्यलयों में समूहों द्वारा लोगो काफी आसान भाषा में समझाया जाता है। इसके साथ ही विद्यालयों में कई तरह के प्रश्नोत्तर प्रतियोगिताएं, भाषण और निबंध प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है, जो भारत के संविधान और डॉ भीमराव अंबेडकर के उपर केंद्रित होती हैं। इसके साथ ही इस दिन कई सारे व्याख्यानों और सेमिनारों का भी आयोजन किया जाता है, जिनमें हमारे संविधान के महत्वपूर्ण विषयों के बारे में समझाया जाता है। इसी तरह कई सारे विद्यालयों में छात्रों के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें छात्रों द्वारा कई सारे विषयों पर चर्चा की जाती है। प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर के दिन संविधान सभा का विशेष सत्र बुलाया जाता है, जिसमें सभी राजनैतिक पार्टियों द्वारा डॉ बी. आर. अंबेडकर को देश के संविधान निर्माण में अपना अहम योगदान देने के लिए उन्हें श्रद्धांजलि प्रदान करते है। इसी तरह आज के दिन डॉ अंबेडकर के स्मारक पर भी विशेष साज-सजावट की जाती है। इसके साथ ही इस दिन खेल मंत्रालय द्वारा हमारे देश के संविधान निर्माता और सबके प्रिय डॉ भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि प्रदान करने के लिए मिनी मैराथनों का आयोजन किया जाता है।

Short essay on Constitution Day | Pdf Download

Indian Constitution Day Essay in english

भारत में 26 नवम्बर को हर साल संविधान दिवस मनाया जाता है, क्योंकि वर्ष 1949 में 26 नवम्बर को संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को स्वीकृत किया गया था जो 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारत के संविधान का जनक कहा जाता है। भारत की आजादी के बाद काग्रेस सरकार ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारत के प्रथम कानून मंत्री के रुप में सेवा करने का निमंत्रण दिया। उन्हें 29 अगस्त को संविधान की प्रारुप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। वह भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार थे और उन्हें मजबूत और एकजुट भारत के लिए जाना जाता है। भारतीय संविधान का पहला वर्णन ग्रानविले ऑस्टिन ने सामाजिक क्रांति को प्राप्त करने के लिये बताया था। भारतीय संविधान के प्रति बाबा साहेब अम्बेडकर का स्थायी योगदान भारत के सभी नागरिकों के लिए एक बहुत मददगार है। भारतीय संविधान देश को एक स्वतंत्र कम्युनिस्ट, धर्मनिरपेक्ष स्वायत्त और गणतंत्र भारतीय नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए, न्याय, समानता, स्वतंत्रता और संघ के रूप में गठन करने के लिए अपनाया गया था। जब भारत के संविधान को अपनाया गया था तब भारत के नागरिकों ने शांति, शिष्टता और प्रगति के साथ एक नए संवैधानिक, वैज्ञानिक, स्वराज्य और आधुनिक भारत में प्रवेश किया था। भारत का संविधान पूरी दुनिया में बहुत अनोखा है और संविधान सभा द्वारा पारित करने में लगभग 2 साल, 11 महीने और 17 दिन का समय ले लिया गया। भारतीय संविधान की विशेषताओं में से कुछ निम्नलिखित हैं: यह लिखित और विस्तृत है। यह लोकतांत्रिक सरकार है – निर्वाचित सदस्य। मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, यात्रा, रहने, भाषण, धर्म, शिक्षा आदि की स्वतंत्रता, एकल राष्ट्रीयता, भारतीय संविधान लचीला और गैर लचीला दोनों है। राष्ट्रीय स्तर पर जाति व्यवस्था का उन्मूलन। समान नागरिक संहिता और आधिकारिक भाषाएं, केंद्र एक बौद्ध ‘के समान है, बुद्ध और बौद्ध अनुष्ठान का प्रभाव, भारतीय संविधान अधिनियम में आने के बाद, भारत में महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला है। दुनिया भर में विभिन्न देशों ने भारतीय संविधान को अपनाया है। पड़ोसी देशों में से एक भूटान ने भी भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली को स्वीकार कर लिया है।

Essay in English

Constitution is a set of rules and laws according to which country is governed. Constitution Day in India is celebrated on 26th of November in India. Dr. B.R Ambedkar is the chairman and father of constitution of India. The constitution day of India was adopted on 26 November 1949.  We celebrate constitution day because People in India remember their history and celebrate independence and peace every year after launching the own constitution of India. The constitution day of India was adopted on 26 November 1949.  A Draft Constitution was submitted to the Assembly on November 4, 1947. This was debated for over two years, and more than 2000 amendments were moved. All the hard work culminated in the adopting of the Constitution on November 26, 1949. Two months later, India became a Republic.  There is a preamble provide by Indian constitution. The constitution defines as the form of the government that is wheather it is monarchy or a democracy etc.  The introduction to the constitution is called preamble. It is a unique feature of Indian constitution. It deals with the aims, objectives and the ideals of constitution. Constitution Day of India also called as Samvidhan Diwas in Hindi it is celebrated on the the day which India adopted its constitution .India adopted its constitution on 26 November 1949 . Therefore constitution is celebrated every year 26th on November in order to remember our history etc The Government of India declared 26 November as Constitution Day in 2015 by our honorable Prime Minister Shri Narendra Modi. Constitution day is celebrated as an honor of an country as it is the most important day for all the citizens of the country. lt is really difficult to make a constitution for the vast country like ours but our leader made it most of the credit goes to BR Ambedkar ans he is declared as the father of constitution of India because of his intelligence it took more than 2 yrs to make our constitution . Constitution Day in India is the greatest day because without constitution India could not be democratic and it s because of democracy we are living happily and we elect our own representatives and our constitution gives us the chance to rule ourselves and we have the room to correct our mistakes This day should celebrated in a wonderful way and remember the sacrifices made by our leaders to amend the constitution

Essay in punjabi

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ਸੰਵਿਧਾਨ ਨਿਯਮਾਂ ਅਤੇ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਦੇਸ਼ ਚਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ 26 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਡਾ.ਬੀ.ਆਰ. ਅੰਬੇਦਕਰ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੇ ਚੇਅਰਮੈਨ ਅਤੇ ਪਿਤਾ ਹਨ। ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਦਿਨ 26 ਨਵੰਬਰ 1949 ਨੂੰ ਅਪਣਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਅਸੀਂ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਇਸ ਲਈ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਾਂ ਕਿਉਂਕਿ ਭਾਰਤ ਦੇ ਲੋਕ ਆਪਣਾ ਇਤਿਹਾਸ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਆਪਣੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹਰ ਸਾਲ ਆਜ਼ਾਦੀ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ। ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਦਿਨ 26 ਨਵੰਬਰ 1949 ਨੂੰ ਅਪਣਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। 4 ਨਵੰਬਰ, 1947 ਨੂੰ ਅਸੈਂਬਲੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਡਰਾਫਟ ਸੰਵਿਧਾਨ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਉੱਤੇ ਦੋ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਬਹਿਸ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ 2000 ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੋਧਾਂ ਲਾਗੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ। ਸਾਰੀ ਮਿਹਨਤ ਦਾ ਅੰਤ 26 ਨਵੰਬਰ 1949 ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਵੇਲੇ ਹੋਇਆ। ਦੋ ਮਹੀਨਿਆਂ ਬਾਅਦ, ਭਾਰਤ ਗਣਤੰਤਰ ਬਣ ਗਿਆ। ਇੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੁਆਰਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਤਾਵਿਤ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ. ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਰੂਪ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਰਾਜਤੰਤਰ ਜਾਂ ਲੋਕਤੰਤਰ ਆਦਿ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਨੂੰ ਪ੍ਰਸਤਾਵਤ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਇਕ ਵਿਲੱਖਣ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਹੈ. ਇਹ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ਾਂ, ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਅਤੇ ਆਦਰਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ. ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਨੂੰ ਹਿੰਦੀ ਵਿਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਉਸ ਦਿਨ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦਿਨ ਭਾਰਤ ਨੇ ਆਪਣਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਅਪਣਾਇਆ .ਇਸ ਨੇ 26 ਨਵੰਬਰ 1949 ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਅਪਣਾਇਆ. ਇਸ ਲਈ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਾਡੇ ਇਤਿਹਾਸ ਆਦਿ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਾਲ 26 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸਾਡੇ ਮਾਣਯੋਗ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸ੍ਰੀ ਨਰਿੰਦਰ ਮੋਦੀ ਦੁਆਰਾ ਸਾਲ 2015 ਨੂੰ 26 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਵਜੋਂ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਨਮਾਨ ਵਜੋਂ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਾਰੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦਿਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਸਾਡੇ ਵਰਗੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਸੰਵਿਧਾਨ ਬਣਾਉਣਾ ਸੱਚਮੁੱਚ ਮੁਸ਼ਕਲ ਹੈ ਪਰ ਸਾਡੇ ਨੇਤਾ ਨੇ ਇਸ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸਿਹਰਾ ਬੀ ਆਰ ਅੰਬੇਦਕਰ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਜਿਸ ਨੂੰ ਉਹ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਾ ਪਿਤਾ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸਦੀ ਅਕਲ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਸ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ 2 ਸਾਲ ਤੋਂ ਵੱਧ ਦਾ ਸਮਾਂ ਲੱਗਿਆ। ਸਾਡਾ ਸੰਵਿਧਾਨ. ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਦਿਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੇ ਬਗੈਰ ਭਾਰਤ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਅਤੇ ਇਹ ਲੋਕਤੰਤਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਸੀਂ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਨਾਲ ਜੀ ਰਹੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਨੁਮਾਇੰਦੇ ਚੁਣਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਸਾਡਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਰਾਜ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਆਪਣਾ ਸੁਧਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਜਗ੍ਹਾ ਹੈ ਗਲਤੀਆਂ ਇਸ ਦਿਨ ਨੂੰ ਸ਼ਾਨਦਾਰ inੰਗ ਨਾਲ ਮਨਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਡੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿੱਚ ਸੋਧ ਕਰਨ ਲਈ ਦਿੱਤੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ

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भारतीय संविधान पर निबंध हिंदी में | Essay on Indian Constitution in Hindi

प्रिय साथियो आपका स्वागत है Essay on Indian Constitution in Hindi में  हम आपके साथ भारतीय संविधान पर निबंध हिंदी में   साझा कर रहे हैं.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 तक के बच्चों को भारत का संविधान पर सरल निबंध सरल भाषा  में लिखे गये   हिन्दी निबंध   को परीक्षा के लिहाज से याद कर लिख सकते हैं.

भारतीय संविधान पर निबंध Essay on Indian Constitution in Hindi

भारतीय संविधान पर निबंध Essay on Indian Constitution in Hindi

किसी समाज के लिए बुनियादी नियमों का समूह उपलब्ध कराकर समाज में तालमेल बिठाने, समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट कर सरकार का निर्माण करने, सरकार की शक्तियों पर सीमाएं लगाने तथा नागरिकों को मूल अधिकार एवं मौलिक स्वतन्त्रता प्रदान करने,

सरकार को वह सामर्थ्य प्रदान करने जिससे वह कुछ सकारात्मक लोक कल्याणकारी कदम उठा सके एवं राष्ट्र की बुनियादी पहचान के लिए संविधान की अत्यंत आवश्यकता हैं. संविधान अपने कामों से समाज की इन आवश्यकताओं की पूर्ति करता हैं.

संविधान का अर्थ – संविधान वह दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज हैं जो यह बताता हैं कि राज्य का गठन कैसे होगा और वह किन सिद्धांतों का पालन करेगा.

भारत का संविधान जहाँ एक लिखित संविधान हैं वहीँ इंग्लैंड का संविधान दस्तावेजों एवं निर्णयों की एक लम्बी श्रंखला के रूप में हैं. जिसे सामूहिक रूप से संविधान कहा जाता हैं.

संविधान की आवश्यकता व कार्य

संविधान तालमेल बिठाता हैं- संविधान का पहला काम यह हैं कि वह बुनियादी नियमों का एक ऐसा संमूह उपलब्ध कराए जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे.

किसी भी समूह  को  सार्वजनिक रूप से मान्यता प्राप्त कुछ बुनियादी नियमों की आवश्यकता होती हैं. जिसे समूह के   सदस्य जानते हो, ताकि आपस में एक न्यूनतम समन्वय बना रहे, लेकिन ये नियम केवल पता ही नहीं होने चाहिए वरन उन्हें लागू भी किया जाना चाहिए.

इसलिए जब इन नियमों को न्यायालय द्वारा लागू किया जाता हैं,   इससे सभी को विश्वास हो जाता  हैं  कि और लोग भी इन नियमों का पालन करेंगे.

क्योंकि ऐसा न करने पर उन्हें दंड दिया जाएगा. संविधान ऐसे नियमों को न केवल उपलब्ध कराता हैं बल्कि उन्हें न्यायालय द्वारा लागू भी करवाता हैं.

निर्णय लेने की शक्ति का निर्धारण – संविधान का दूसरा काम यह स्पष्ट करना हैं कि  समाज में  निर्णय लेने की  शक्ति  किसके पास होगी संविधान यह भी तय करता हैं कि सरकार कैसे निर्मित होगी संविधान कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांतों का समूह हैं जिसके आधार पर राज्य का निर्माण और शासन का निर्माण होता हैं.

वह समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता हैं तथा यह तय करता हैं कि कानून कौन बनाएगा, राजा या एक दल विशेष या जनता या जनता के प्रतिनिधि.

यदि यह काम जन प्रतिनिधियों द्वारा करना हैं तो संविधान यह भी तय करता हैं कि उन प्रतिनिधियों का चयन कैसे होगा और कुल कितने प्रतिनिधि होंगे. इस प्रकार संविधान सरकार का निर्माण करने वाली संस्था हैं.

सरकार की शक्तियों पर सीमाएं – संविधान का तीसरा काम यह हैं कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किये जाने वाले कानूनों की कोई सीमा तय करे. ये सीमाएं इस रूप में मौलिक होती हैं कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती हैं.

संविधान सरकार की शक्तियों को कई प्रकार से सिमित करता हैं यथा

  • वह नागरिकों के मूल अधिकारों को स्पष्ट कर देता है ताकि कोई भी सरकार उनका उल्लंघन न कर सके.
  • वह नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना किसी कारण गिरफ्तार करने के विरुद्ध अधिकार प्रदान करता हैं.
  • वह नागरिकों को कुछ मौलिक स्वतंत्रताए प्रदान कर देता हैं जैसे भाषण की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता आदि.

व्यवहार में इन अधिकारों व स्वतंत्रताओं को राष्ट्रीय आपातकाल में सीमित किया जा सकता हैं और संविधान उन परिस्थतियों का भी उल्लेख करता हैं, जिनमें अधिकारों को वापिस लिया जा सकता हैं.

समाज की आकांक्षाएं और लक्ष्य – संविधान का चौथा काम यह हैं कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करे जीससे वह जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थतियों का निर्माण कर सके.

आधुनिक संविधान निर्णय लेने की शक्ति के वितरण और सरकार की शक्ति पर प्रतिबन्ध लगाने के काम के साथ साथ एक ऐसा सक्षम ढांचा भी प्रदान करते हैं जिससे सरकार कुछ सकारत्मक कार्य कर सके और समाज की आकांक्षाएं और उसके लक्ष्य को अभिव्यक्ति दे सके.

उदहारण के लिए भारत के संविधान में मौलिक अधिकार और राज्य की नीति निर्देशक तत्व ऐसे ही प्रावधान हैं.

राष्ट्र की बुनियादी पहचान – संविधान किसी समाज की बुनियादी पहचान होती हैं अर्थात इसके माध्यम से किसी समाज की एक सामूहिक इकाई के रूप में पहचान होती हैं.

संविधान द्वारा कोई समाज  कुछ बुनियादी नियमों और सिद्धांतों पर   सहमत होकर अपनी मूलभूत राजनीतिक पहचान बनाता हैं.

संविधान आधिकारिक बंधन लगाकर यह तय कर देता हैं कि कोई क्या कर सकता हैं और क्या नहीं. इस तरह संविधान उस समाज को नैतिक पहचान भी देता हैं.

अधिकतर संविधान कुछ मूलभूत अधिकारों की रक्षा करते हैं. और ऐसी सरकारे संभव बनाते हैं जो किसी न किसी रूप में लोकतांत्रिक होती हैं.

लेकिन राष्ट्रीय पहचान की अवधारणा अलग अलग संविधानों में अलग अलग होती हैं. जहाँ जर्मनी के संविधान ने जर्मन नस्ल को नागरिकता की अभिव्यक्ति दी हैं.

वहां भारतीय संविधान ने जातीयता या नस्ल को नागरिकता के आधार के रूप में मान्यता नहीं दी हैं. विभिन्न राष्ट्रों में देश की केंद्रीय सरकार और विभिन्न क्षेत्रों के बीच सम्बन्धों को लेकर विभिन्न अवधारणाए होती हैं यह सम्बन्ध उस देश की राष्ट्रीय पहचान बनाते हैं.

भारतीय संविधान कैसे बना

औपचारिक रूप से एक संविधान सभा को बनाया गया जिसे अविभाजित भारत ने कैबिनेट मिशन की योजना के अनुसार भारत में निर्वाचित किया गया था.

इसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त 1947 को विभाजित भारत की संविधान सभा के रूप में इसकी बैठक पुनः हुई.

विभाजन के बाद संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई. इनमें से 26 नवम्बर 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थे.

इन्होने ही संविधान को अंतिम रूप से पारित व इस पर हस्ताक्षर किये. इस प्रकार संविधान सभा ने 9 दिसम्बर 1946 से संविधान निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया जिसे 26 नवम्बर 1949 को पूर्ण किया.

भारतीय संविधान सभा का स्वरूप

भारत की संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1935 में स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ, जिसमें 292 सदस्य ब्रिटिश प्रान्तों से और 93 सीटें देशी रियासतों से आवंटित होनी थी.

प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों मुसलमान, सिक्ख और सामान्य सीटों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया.

इस प्रकार हमारी संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गये थे. पर उसे अधिकाधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने के प्रयास किये गये.

सभी धर्म के सदस्यों को तथा अनुसूचित वर्ग के सदस्यों को उसमें स्थान दिया गया. संविधान सभा में यदपि 82 प्रतिशत सीटें कांग्रेस दल से सम्बद्ध थी, लेकिन कांग्रेस दल स्वयं विविधताओं से भरा हुआ था.

संविधान सभा के कामकाज की शैली

संविधान सभा के सदस्यों ने पुरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार विमर्श किया. सदस्यों में हुए मतभेद वैध सैद्धांतिक आधारों पर होते थे. संविधान सभा में लगभग उन सभी विषयों पर गहन चर्चा हुई जो आधुनिक राज्य की बुनियाद हैं.

संविधान सभा में केवल एक सार्वभौमिक मताधिकार के अधिकार का प्रावधान बिना किसी वाद विवाद के ही पारित हुआ.

संविधान सभा की कार्यविधि

संविधान सभा की सामान्य कार्यविधि में भी सार्वजनिक विवेक का महत्व स्पष्ट दिखाई देता था. विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ कमेटियां थी.

प्रायः पं नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और डॉ अम्बेडकर इन कमेटियों को अध्यक्षता किया करते थे.

जिनके विचार हर बात पर एक दूसरे के समान नहीं थे. फिर भी सबने एक साथ मिलकर काम किया. प्रत्येक कमेटी ने संविधान के कुछ कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गई.

प्रायः प्रयास यह किया गया कि निर्णय आम राय से हो, लेकिन कुछ प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन करके भी लिए गये.

राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत

संविधान सभा केवल उन सिद्धांतों को मूर्त रूप और आकार दे रही थी जो उसने राष्ट्रीय आंदोलन से विरासत में प्राप्त किये थे.

इस सिद्धांतों का सारांश नेहरु द्वारा 1946 में प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव में मिलता हैं. प्रस्ताव के आधार पर संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और सम्प्रभुता को संस्थागत स्वरूप दिया गया था.

संस्थागत व्यवस्थाएं

संविधान को प्रभावी बनाने का तीसरा कारक यह हैं कि सरकार की सभी संस्थाओं को संतुलित ढंग से व्यवस्थित किया जाये. मूल सिद्धांत यह रखा गया कि सरकार लोकतांत्रिक रहे और जन कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो,

संविधान सभा ने शासन के तीनों अंगों के बीच समुचित संतुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार मंथन किया, संविधान सभा ने संसदीय शासन व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्थाओं को स्वीकार किया.

शासकीय संस्थाओं की संतुलित व्यवस्था स्थापित करने में हमारे संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोग एव अनुभवों को सीखने में कोई संकोच नहीं किया.

अतः उन्होंने विभिन्न देशों से अनेक प्रावधानों को लिया, संवैधानिक परम्पराओं को ग्रहण किया तथा उन्हें भारत की समस्याओं और परिस्थतियों के अनुकूल ढालकर अपना लिया.

भारतीय संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव

संविधान सभा के समक्ष 13 दिसम्बर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया. 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा ने यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया.

उद्देश्य प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु – उद्देश्य प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं.

  • भारत एक स्वतंत्र सम्प्रभु गणराज्य हैं.
  • भारत ब्रिटेन के अधिकार में आने वाले भारतीय क्षेत्रों, देशी रियासतों और देशी रियासतों के बाहर के ऐसे क्षेत्र जो हमारे संघ का अंग बनना चाहते हैं, का संघ होगा.
  • संघ की इकाइयां स्वायत्त होगी और उन सभी शक्तियों का प्रयोग और कार्यों का सम्पादन करेगी जो संघीय सरकार को नहीं दी गयी हैं.
  • सम्प्रभु और स्वतंत्र भारत तथा इसके संविधान की समस्त शक्तियों और सत्ता का स्रोत जनता हैं.
  • भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक न्याय, कानून के समक्ष समानता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तथा कानून और सार्वजनिक नैतिकता की सीमाओं में रहते हुए भाषण, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, व्यवसाय, संगठन और कार्य करने की मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी व सुरक्षा दी जाएगी.
  • अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्र, दलित व अन्य पिछड़े वर्गों को समुचित सुरक्षा दी जाएगी.
  • गणराज्य की क्षेत्रीय अखंडता तथा थल, जल और आकाश में इसके संप्रभु अधिकारों की रक्षा सभ्य राष्ट्रों के कानून और न्याय के अनुसार की जाएगी.
  • विश्व शांति एवं मानव कल्याण के विकास के लिए देश स्वेच्छापूर्वक और पूर्ण योगदान करेगा.

इस प्रकार उद्देश्य प्रस्ताव में संविधान की सभी आकांक्षाओं और मूल्यों को समाहित किया गया था. इसी प्रस्ताव के आधार पर हमारे संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, सम्प्रभुता और एक सर्वजनीन पहचान जैसी बुनियादी प्रतिबद्धताओं को संस्था गत स्वरूप दिया गया.

विभिन्न देशों से लिए गये प्रावधान

शासकीय संस्थाओं की सर्वाधिक संतुलित व्यवस्था स्थापित करने में भारत के संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ सीखने में संकोच नहीं किया.

उन्होंने अन्य संवैधानिक परम्पराओं से कुछ ग्रहण करने से भी परहेज नहीं किया. साथ ही उन्होंने ऐसे बौद्धिक तर्क या ऐतिहासिक उदाहरण की अनदेखी नहीं की जो उनके कार्य को सम्पन्न करने के लिए जरुरी थी. अतः उन्होंने विभिन्न देशों से निम्नलिखित प्रावधानों को ग्रहण किया.

ब्रिटिश संविधान से लिए गये प्रावधान – भारतीय संविधान निर्माताओं ने ब्रिटिश संविधान से निम्नलिखित प्रावधान लिए.

  • सर्वाधिक मत के आधार पर चुनाव में जीत का फैसला
  • सरकार का संसदीय स्वरूप
  • कानून के शासन का विचार
  • विधायिका में अध्यक्ष का पद व उसकी भूमिका
  • कानून निर्माण की विधि

अमेरिका के संविधान से लिए गये प्रावधान – भारतीय संविधान निर्माताओं ने अमेरिका के संविधान से निम्नलिखित प्रावधान लिए.

  • मौलिक अधिकारों की सूची
  • न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता

कनाडा के संविधान से लिए गये प्रावधान – कनाडा के संविधान से ये प्रावधान ग्रहण किये गये.

  • एक अर्द्ध संघात्मक सरकार का स्वरूप
  • अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धांत

अन्य संविधानों से ग्रहण किये गये प्रावधान – भारतीय संविधान निर्माताओं ने अन्य संविधानों से भी निम्न प्रावधान ग्रहण किये.

  • आयरलैण्ड के संविधान से उन्होंने राज्य के नीति निर्देशक तत्व के प्रावधानों को ग्रहण किया.
  • फ्रांस के संविधान से उन्होंने स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के सिद्धांत को ग्रहण किया.

लेकिन इन प्रावधानों को लेना कोई नकलची मानसिकता का परिणाम नहीं था. बल्कि उन्होंने प्रत्येक प्रावधान को इस कसौटी पर कसा कि वह भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप हैं.

इस प्रकार एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने इन प्रावधानों को ग्रहण किया तथा भारत की समस्याओं को ग्रहण किया और उन्हें अपना बना लिया. इसलिए यह कहना गलत है कि यह संविधान उधार का था.

भारत का संविधान एक परिचय | Bhartiya Samvidhan, Indian Constitution in Hindi

संविधान किसी देश के आधारभूत कानूनों का संग्रह होता है, इसके द्वारा न केवल सरकार का गठन होता है अपितु सरकार और नागरिकों के आपसी सम्बन्धों का निर्धारण भी होता है.

संविधान देश की सरकार के विभिन्न अंगो अर्थात व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का स्वरूप तय करता है, उनकी शक्तियों व सीमाओं का फैसला करता है. एक नजर भारत का संविधान एक परिचय  पर

संविधान के कार्य एवं शक्तियां (Acts and Powers of the Indian Constitution)

नागरिकों के क्या अधिकार होंगे, उनके क्या कर्तव्य होंगे, किसको कितना कर देना है, पुलिस कैसी होगी, न्यायालय कैसे होंगे, आदि इन सभी बातों का निर्धारित देश के संविधान द्वारा होता है. इस प्रकार संविधान किसी राष्ट्र का जीवंत प्रतिरूप होता है.

लोकतंत्र में शक्ति जनता में निहित होती है. अपने आदर्श रूप में तो इस शक्ति का प्रयोग स्वयं जनता को करना चाहिए, जैसा कि प्राचीन भारत में सभा एवं समिति के द्वारा किया जाता था.

लेकिन वर्तमान में राष्ट्रों के आकार बड़े है, जहाँ प्रत्यक्ष लोकतंत्र का होना संभव नही है. आजकल प्रतिनिधीयात्मक लोकतंत्र का युग है,

जहाँ जनता वयस्क मताधिकार के द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती हो, और वे प्रतिनिधि शासन का कार्य करते है. जनता अपनी इस शक्ति का सबसे पहला प्रयोग तब करती है जब अपने लिए एक संविधान का निर्माण करती है.

संविधान की आवश्यकता एवं निर्माण प्रक्रिया (Indian Constitution requirement and construction process)

संविधान लिखित व निर्मित हो सकता है, अलिखित भी हो सकता है और विकसित भी. जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका आदि का संविधान निर्मित और लिखित है, जबकि इंग्लैंड का संविधान अलिखित व विकसित माना जाता है.

भारत अपने प्राचीन गौरवपूर्ण एवं प्रेरक अतीत के बाद मध्यकाल से ही विदेशी आक्रमणों का शिकार रहा है. इन विदेशी आक्रान्ताओं ने अपने क्रूरतम तरीकों से भारतीयों पर शासन किया.

उनके प्रयास जनता को संतुष्ट करने की बजाय अपने धर्म का विस्तार करना और सम्पति को एकत्रित करना ही था. फिर भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद का शिकार बना. ईस्ट इण्डिया कंपनी, जो कि 1600 ईस्वी में व्यापार के लिए निर्मित हुई थी.

धीरे धीरे वह राजनितिक मामलों में हस्तक्षेप करने लगी. 1757 ई. में प्लासी के युद्ध और 1764 के बक्सर युद्ध के पश्चात भारत का बड़ा भाग इस कम्पनी के अधीन हो गया.

अब कम्पनी के सामने यह प्रश्न था कि भारत पर शासन किन कानूनों के माध्यम से करे. अतः उसने ब्रिटिश सरकार से भारतीय प्रशासन के लिए कानून बनाने का आग्रह किया.

संविधान निर्माण की मांग (Demand for Indian Constitution creation)

तब लम्बे समय के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट कानून बनाती थी. जैसे रेग्युलेटिंग एक्ट, पिट्स इंडिया एक्ट, 1813 ईस्वी का एक्ट, 1909 का भारत शासन अधिनियम, 1918 का भारत शासन अधिनियम और 1935 का अधिनियम आदि.

इधर भारत में धीरे धीरे राजनीतिक जागरण होने लगा जिसकी प्रेरणा स्वामी दयानन्द सरस्वती, महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, वीर सांवरकर, बाल गंगाधर तिलक इत्यादि मनीषियों के चिन्तन से मिली.

इस प्रकार 20 वीं सदी के प्रारम्भ तक संविधान निर्माण की मांग स्वतंत्रता की मांग के साथ अभिन्न रूप से जुड़ चुकी थी.

1922 ईस्वी में महात्मा गांधी ने संविधान निर्माण की मांग प्रस्तुत की. 1925 में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमे संविधान निर्माण से संबंधित प्रस्ताव पारित हुआ.

अगस्त प्रस्ताव एवं कैबिनेट मिशन का भारत आना (August Proposal and Cabinet Mission to come to India)

जब सन 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ, तब ब्रिटिश सरकार को युद्ध में भारतीय सहायता की आवश्यकता थी. इसलिए 1940 ई को अगस्त प्रस्ताव के द्वारा अंग्रेजो ने भारतीयों की संविधान निर्माण की मांग को स्वीकार कर लिया गया.

जुलाई, 1945 में इंग्लैंड में लेबर पार्टी की नयी सरकार सता में आई, जिसने जल्द ही भारत को स्वतंत्र करने एवं संविधान निर्माण के संकेत दे दिए.

मार्च 1946 में ब्रिटिश सरकार ने तीन सदस्यीय आयोग भारत भेजा, जिसे केबिनेट मिशन कहते है. केबिनेट मिशन की योजना से भारतीय संविधान सभा का गठन हुआ, जिसने भारतीय संविधान का निर्माण किया.

मिशन का यह मानना था कि संविधान सभा के गठन की सबसे सन्तोषजनक स्थति यह होती है कि उसका गठन व्यस्क मताधिकार से चुनाव के माध्यम से किया जाए.

मुस्लिम लीग और भारतीय संविधान का निर्माण (Muslim League and the Indian Constitution)

भारतीय संविधान के निर्माण के समय ही मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान निर्माण की मांग को लेकर हिंसक कार्यवाही प्रारम्भ कर दी. जिसके कारण कानून व्यवस्था की स्थति खराब हो गई.

सनः 1935 में भारत शासन अधिनियम से भारतीय प्रान्तों में विधान सभाओं का गठन किया गया था. इन विधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ था.

केबिनेट मिशन ने विधान सभा के इन निर्वाचित विधायकों को यह अधिकार दिया कि वे अपने अपने प्रान्त के संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन करे. मौटे तौर पर दस लाख लोगों पर एक संविधान सभा के सदस्य का होना निर्धारित किया गया.

संविधान सभा का गठन एवं उनके सदस्य (Indian Constitution Assembly members and their members)

जैसे किसी प्रान्त की जनसंख्या एक करोड़ थी, तब उस प्रान्त के दस सदस्य होंगे, जिनका चुनाव प्रांतीय विधानसभा के सदस्य करेगे.

उस समय भारत दो भागों में बटा हुआ था- ब्रिटिश प्रान्त एवं देशी रियासते. देशी रियासतों के लिए भी संविधान सभा की सदस्यता हेतु जनसंख्या का मापदंड वही रखा गया था.

लेकिन चूँकि देशी रियासतों में विधान सभाएं नही थी, इसलिए वहां से संविधान सभा के सदस्यों का मनोनयन होना तय था. इस तरह भारतीय संविधान सभा में निर्वाचित और मनोनीत दोनों तरह के सदस्य थे.

संविधान सभा के कुल सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई, जिनमें से 296 ब्रिटिश भारत से व 93 सदस्य देशी रियासतों के लिए जाने थे. जुलाई 1946 को संविधान सभा के 296 स्थानों के लिए चुनाव हुए,

जिनमे कांग्रेस को 208 स्थान प्राप्त हुए, जबकि मुस्लिम लीग को केवल 73 स्थान हासिल हुए. अन्य स्थान छोटे दलों में विभक्त हो गये. उधर 3 जून 1947 की माउंटबेटन योजना से देश का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन तय हो गया.

मुस्लिम लीग की इस मांग को मान लिया कि मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की स्थापना की जाए. इसलिए संविधान सभा का पुनर्गठन हुआ और उनकी संख्या 324 निर्धारित हुई.

अंतिम रूप से 284 सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए. देशी रियासतों के सदस्य अलग अलग समय में संविधान सभा में शामिल हुए .

राजस्थान की विभिन्न रियासतों से 13 सदस्य संविधान सभा में शामिल हुए. हैदराबाद एकमात्र ऐसी रियासत थी, जिनका कोई प्रतिनिधि संविधान सभा में शामिल नही हुआ था.

भारत के संविधान का निर्माण (Construction of the Constitution of India)

संविधान सभा का 9 दिसम्बर 1946 प्रातः 11 बजे संसद के केन्द्रीय हॉल में विधिवत उद्घाटन हुआ. पहली बैठक में 211 सदस्यों ने भाग लिया. सच्चीदानंद सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया.

11 दिसम्बर 1946 को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया. बी एन राव वैधानिक सलाहकार बनाएं गये.

13 दिसम्बर 1946 को पंडित जवाहरलाल नेहरु ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव रखा, जिसे 22 जनवरी 1947 को पारित किया गया.

संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियों का गठन किया गया, जिसमे सबसे महत्वपूर्ण प्रारूप समिति थी, जिसका गठन अगस्त 1947 को हुआ. सात सदस्यीय प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर थे, जो प्रख्यात वकील और कानूनी मामलों के जानकार थे.

भारतीय संविधान का निर्माण के लिए गठित समितियां (Committees constituted for the constitution creation)

संविधान का प्रारूप (ड्राफ्ट) बनाने का कार्य प्रारूप समिति का ही था. इस प्रारूप को संविधान सभा वाद विवाद, बहस और मतदान के बाद पारित करती थी. इसलिए अम्बेडकर को भारतीय संविधान का जनक (Father of Indian Constitution) कहा जाता है.

विभिन्न समितियों के प्रस्तावों पर विचार करने के बाद प्रारूप समिति ने फरवरी 1948 में पहला प्रारूप प्रकाशित किया. भारत के लोगों को इस पर विचार करने और सुझाव देने के लिए आठ माह का समय दिया.

उन सुझावों और संशोधनों के अनुरूप प्रारूप बनकर नवम्बर 1948 को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया.

इस प्रारूप का संविधान सभा में तीन बार वाचन हुआ. 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान बनकर तैयार हो गया. इसी दिन भारतीय संविधान अगिकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित हुआ.

संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई, जिस दिन संविधान सभा के सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किये. 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया.

भारतीय संविधान का इतिहास (history of indian constitution in hindi)

मूल संविधान में एक प्रस्तावना जिसे उद्देशिका भी कहते है, आठ अनुसूचियाँ, 22 भाग व 395 अनुच्छेद थे. वर्तमान में अनुसूचियाँ 8 से बढ़ाकर 12 कर दी गई है.

प्रस्तावना को संविधान की आत्मा, सार और उनकों समझने की कुंजी कहा जाता है. संविधान सभा ने भारतीय संविधान के निर्माण के अतिरिक्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी किये.

जुलाई 1947 को उसने राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया और जनवरी 1950 में राष्ट्रीय गीत एवं राष्ट्रीय गान को स्वीकार किया तथा डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को भारत का पहला राष्ट्रपति निर्वाचित किया, जिन्होंने 26 जनवरी 1950 को शपथ ली. इसके साथ ही गणतंत्र राष्ट्र राज्य के रूप में भारत का उदय हुआ.

भारतीय संविधान निर्माण में लगा समय एवं प्रसिद्ध भाषण (Indian Constitution manufacturing time and famous speech)

इस तरह संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन में लगभग 64 लाख रूपये खर्च कर भारतीय संविधान निर्माण का ऐतिहासिक कार्य पूरा किया गया किन्तु संविधान के पूरा होने से ही हमारी यात्रा पूरी नही हो जाती है.

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने नवम्बर 1949 को संविधान सभा में कहा था “मै महसूस करता हु कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो,

यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौपा जाएगा, वे खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा”.

डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने अपने समापन भाषण में कहा ” यदि लोग जो चुनकर आएगे, योग्य, चरित्रवान और ईमानदार हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देगे, यदि उनमे गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नही कर सकता”

प्रत्येक संविधान उसके संस्थापको एवं निर्माताओं के आदर्शों सपनों तथा मूल्यों का दर्पण होता है. संविधान निर्विध्न अपने उद्देश्यों को पूरा कर सके, इसके लिए हमे उतरदायी नागरिक, बलिदानी और राष्ट्रवादी बनना होगा.

  • मानव अधिकार आयोग पर निबंध
  • न्यायिक पुनरावलोकन पर निबंध
  • भारत की विरासत पर निबंध

Note: I Hope You Will Like “भारतीय संविधान पर निबंध हिंदी में | Essay on Indian Constitution in Hindi ” & more essay, paragraph, Short Speech Nibandh Bhashan For Kids And Students. Read More Article Related To Indian Constitution.

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भारतीय संविधान पर निबंध

Essay on Constitution of India in Hindi : हमारे देश का संविधान हमारे देश का एक मुख्य अंग हैं। हमारा देश लोकतान्त्रिक देश हैं और देश का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान हैं। हम यहां पर अलग-अलग शब्द सीमा में भारतीय संविधान पर निबंध (Essay on constitution of india in hindi) शेयर कर रहे हैं। यह निबन्ध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होंगे।

Essay-on-Constitution-of-India-in-Hindi-

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भारतीय संविधान पर निबंध | Essay on Constitution of India in Hindi

भारतीय संविधान पर निबंध ( 250 शब्द ) .

हमारा भारत देश आज पुरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। हमारा भारत देश एक लोकतान्त्रिक देश हैं। लोकतान्त्रिक का अर्थ हैं इस देश में जनता और संविधान को पहले मान्यता दी जाती हैं। हमारे देश के लिए एक लिखित संविधान भी हैं, जो देश की आजादी के बाद लिखा गया था। संविधान भले ही देश की आजादी के बाद लिखा गया हो परन्तु इसकी तेयारी देश की आजादी से पूर्व से ही की जा चुकी थी। 

2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन में बना हमारे देश का संविधान एक लिखित दस्तावेज हैं, जो मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखा गया हैं। इस संविधान में 25 भाग, 8 अनुसूचियां और 395 मुख्य अनुच्छेद हैं, यह इस संविधान के मुख्य अंग हैं। संविधान को बनाने के लिए एक संविधान समिति का भी गठन किया गया था, जिस में देश के कई नेताओं और देश की तत्कालीन रियासतों के राजाओं ने भी भाग लिया था। 

देश का संविधान देश के लिए सर्वोच्च हैं, जिसको 26 नवम्बर 1949 को पारित किया गया था  और यह संविधान देश में 25 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया था। 26 नवम्बर को देश का संविधान दिवस घोषित किया गया था वही 26 जनवरी को देश में हम गणतंत्रा दिवस धूम धाम से मानते हैं। डॉ भीमराव अम्बेडकर को देश के संविधान का प्रधान निर्माता कहा जाता हैं। 

संविधान सभा के लिए पहली बैठक दिसम्बर 1946 को हुई थी और इसके लिए पहले चुनाव जुलाई 1946 को हुए थे। हम भी देश के इस संविधान का सम्मान करते है। 

भारतीय संविधान पर निबंध ( 800 शब्द ) 

हमारे देश का संविधान हमारे देश और लोकतंत्रता का मुख्य अंग हैं। देश का संविधान देश के नागरिकों को आजादी देता है की वो कैसे अपना जीवन यापन करे और देश में कैसे रहे। हर देश का अपना एक कानून होता हैं, वैसे ही भारत में भी कानून हैं और वो सभी कानून हमारे देश के संविधान का ही अंग हैं। 

सविधान को बनाने में हमारे देश के तत्कालीन नेताओं और क्रांतिकारियों का बहुत बड़ा योगदान है। हमारे देश का संविधान को बनाने में जितना ही समय लगा हैं, उस में उन सब महान व्यक्तित्व का काफी योगदान है। 

संविधान की परिभाषा

संविधान को कानूनों और सिद्धांतो का समूह कहा जाता हैं। देश का संविधान यह बताता हैं की उस देश का शासन कैसा चलेगा और उस देश को चलाने के लिए किन कानूनों के बारे जानकारी देश नेताओं और अधिकारियों को होनी चाहिए। 

एक संविधान को किसी देश के मूल अधिकारों और मूल नियमों का पुंज भी कहा जा सकता हैं। देश के नागरिको के अधिकार और उनके कर्तव्यो के बारे में भी जानकारी हमे संविधान के माध्यम से ही मिलती हैं। इसके साथ ही देश की शक्तियों के बारे में भी देश का संविधान बताता हैं। 

संविधान का निर्माण 

हमारे देश का संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह 18 दिन समय लगा हैं । इतने समय में हमारे देश का संविधान बन के पूरा हुआ है। संविधान के निर्माण से पहले देश में कई रियासतों और देश के तत्कालीन भारतीय प्रतिनिधित्व वाले लोगों के बीच कई मीटिंग हुई और कई समझोते हुए, तब तब जाकर देश का यह संविधान अस्तित्व में आया। 

जब संविधान शुरूआती समय में लिखा गया था, तब देश के कुछ लोग इस संविधान सभा के पक्ष में नही थे। वे अपना एक अलग देश चाहते हैं। देश की मुस्लिम लीग यह चाहती थी की उनका एक अलग देश बने। तभी आज वर्तमान में पाकिस्तान अस्तित्व में आया है। 

संविधान के मूल भाग

भारत में वैसे तो 25 भाग है, जिसमें देश का संविधान बंटा हुआ है। इन संविधानो में कुछ भाग हैं जो संविधान में काफी अहम हैं। जिनमें से कुछ निम्न है। 

  • भाग 1 – देश के संविधान का भाग 1, जिसमें भारत को एक राज्य के तौर पर बताया गया हैं। भाग 1 में संघ और उसके क्षेत्र के बारे में बताया गया है। 
  • भाग 2 – भारतीय संविधान का भाग 2 भी ऐसा हैं जिसमें देश में रहने वाले लोगों को देश से बाहर से आने वाले ओर देश में बसने वालों के लिए नागरिकता के बारे में बताया गया हैं। भाग 2 मुख्य रूप से नागरिकता के बारे में हैं। 
  • भाग 3 – संविधान के भाग 3 में मुख्य रूप से मौलिक अधिकारों का वर्णन हैं। देश के नागरिको के लिए संविधान में कुछ मौलिक अधिकार हैं, जिनका वर्णन भाग 3 में हैं। 
  • भाग 5 – संविधान के भाग 5 में संघ के बारे में बताया गया हैं। इसमें संसद और राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों के बारे में बताया गया हैं। 
  • भाग 9 – संविधान के भाग 9 में पंचायतीराज के बारे में बताया गया हैं। पंचायतीराज और इनसे जुडी पूरी जानकारी हमें संविधान के इसी भाग से मिलती हैं।
  • भाग 15 – भारत एक लोकतान्त्रिक देश हैं। लोकतंत्र के इस देश में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण हैं। देश में चुनाव और इसकी प्रक्रिया के बारे में संविधान के भाग 15 में बताया गया हैं। 
  • भाग 20 – संविधान का भाग 20 सबसे महत्वपूर्ण हैं। संविधान में हर वक़्त संशोधन होते रहते हैं और उन्ही संशोधन की जानकारी और संशोधन की प्रक्रिया के बारे में हमे संविधान के भाग 20 में मिलती हैं। 

हमारे देश का संविधान हमारे लिए सर्वोपरि हैं। इससे हमें हमारे देश का सम्मान करना चाहिए। 

हमारे देश का संविधान हमें कई तरह की आजादी और कई तरह के अधिकार देता हैं। हमारे देश का संविधान हमारे लिए सबसे सर्वोपारी हैं। हम देश और देश का संविधान का सबसे पहले मान – सम्मान करते हैं। संविधान देश का मुख्य हैं। जय हिन्द।

अंतिम शब्द  

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मौलिक अधिकारों पर निबंध (Fundamental Rights Essay in Hindi)

मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) भारतीय संविधान का अभिन्न अंग हैं। सभी नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के भाग-III में यह कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के लिंग, जाति, धर्म, पंथ या जन्म स्थान की स्थिति के आधार पर भेदभाव ना करके उन्हें ये अधिकार दिए जाते हैं। ये सटीक प्रतिबंधों के अधीन न्यायालयों द्वारा लागू होते हैं। इन्हें नागरिक संविधान के रूप में भारत के संविधान द्वारा गारंटी दी जाती है जिसके अनुसार सभी लोग भारतीय नागरिकों के रूप में सद्भाव और शांति में अपना जीवन-यापन कर सकते हैं।

मौलिक अधिकारों पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Fundamental Rights in Hindi, Maulik Adhikaron par Nibandh Hindi mein)

मौलिक अधिकारों पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

मौलिक अधिकार ऐसे मूलभूत अधिकार है जो लोगों को सुगमता से जीवन जीने के लिए शक्ति प्रदान करते है। मौलिक अधिकार भारत के संविधान में निहित अधिकार है, जो प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार प्रदान करते है। फ्रेंच क्रांति और अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के बाद नागरिकों को मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) प्रदान करने की आवश्यकता महसूस हुई।

मौलिक अधिकारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

फ्रांसीसी नेशनल असेंबली द्वारा 1789 में “दी डिक्लेरेशन ऑफ़ राइट्स ऑफ़ मैन” को अपनाया गया था। अमरीकाके संविधान में मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) पर एक सेक्शन भी शामिल था। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाया जिसे दिसंबर 1948 में बनाया गया था। इसमें लोगोंके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल थे। भारत में नागरिकों के मूल अधिकारों के रूपमें धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों को शामिल करने का सुझाव 1928 में नेहरू समिति की रिपोर्ट ने दिया था।

मौलिक अधिकारोंका महत्व

1947 में स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा ने भविष्य के सुशासन के लिए शपथ ली। इसने एक संविधान की मांग की जो भारत के सभी लोगों को – न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता, नौकरी के समान अवसर, विचारों की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति, विश्वास, संघ, व्यवसाय और कानून तथा सार्वजनिक नैतिकता के अधीन कार्रवाई की गारंटी देता है। इसके साथ ही अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति के लोगों के लिए विशेष सुविधाओं की गारंटी भी दी गई।

संविधान में व्यक्त समानता का अधिकार भारत गणराज्य में लोकतंत्र की संस्था के प्रति एक ठोस कदम के रूप में है। भारतीय नागरिकों को इन मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के माध्यम से आश्वासन दिया जा रहा है कि वे जब तक भारतीय लोकतंत्र में रहेंगे तब तक वे अपने जीवन को सद्भाव में जी सकते हैं।

यूट्यूब पर देखें : मौलिक अधिकारों पर निबंध

निबंध – 2 (400 शब्द)

भारतीय संविधान में शामिल मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि लोग देश में सभ्य जीवन जीते हैं। इन अधिकारों में कुछ अनोखी विशेषताएं हैं जो आमतौर पर अन्य देशों के संविधान में नहीं मिलती हैं।

मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के विशिष्ट लक्षण

मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) पूर्ण नहीं हैं वे उचित सीमाओं के अधीन हैं। वे एक व्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा के बीच स्थिरता को निशाना बनाते हैं लेकिन उचित प्रतिबंध कानूनी समीक्षा के अधीन हैं। यहां इन अधिकारों की कुछ विशिष्ट विशेषताओं पर एक नजर डाली गई है:

  • सभी मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को निलंबित किया जा सकता है। देश की सुरक्षा और अखंडता के हित में आपातकाल के दौरान स्वतंत्रता के अधिकार को स्वचालित रूप से निलंबित कर दिया जाता है।
  • अनेक मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) भारतीय नागरिकों के लिए हैं लेकिन कुछ मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का फायदा देश के नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के द्वारा उठाया जा सकता है।
  • मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) में संशोधन किया जा सकता है लेकिन उन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है। मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को खत्म करने से संविधान की बुनियादी नीवं का उल्लंघन होगा।
  • मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) दोनों सकारात्मक और नकारात्मक हैं। नकारात्मक अधिकार देश को कुछ चीजें करने से रोकते हैं। यह देश को भेदभाव करने से रोकता है।
  • कुछ अधिकार देश के खिलाफ उपलब्ध हैं। कुछ अधिकार व्यक्तियों के विरुद्ध उपलब्ध हैं।
  • मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) न्यायसंगत हैं। अगर किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का उल्लंघन होता है तो वह न्यायालय में जा सकता है।
  • कुछ बुनियादी अधिकार रक्षा सेवाओं में काम करने वाले व्यक्तियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि वे कुछ अधिकारों से प्रतिबंधित हैं।
  • मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) प्रकृति में राजनीतिक और सामाजिक हैं। भारत के नागरिकों को कोई आर्थिक अधिकार की गारंटी नहीं दी गई है हालांकि उनके बिना अन्य अधिकार मामूली या महत्वहीन हैं।
  • प्रत्येक अधिकार कुछ कर्तव्यों से सम्बन्धित है।
  • मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का एक व्यापक दृष्टिकोण है और वे हमारे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक हितों की रक्षा करते हैं।
  • ये संविधान का एक अभिन्न अंग हैं। इसे आम कानून से बदला या हटाया नहीं जा सकता।
  • मौलिक अधिकार हमारे संविधान का अनिवार्य हिस्सा हैं।
  • चौबीस आर्टिकल इन बुनियादी अधिकारों के साथ शामिल हैं।
  • संसद एक विशेष प्रक्रिया द्वारा मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) में संशोधन कर सकती है।
  • मौलिक अधिकार का उद्देश्य व्यक्तिगत हित के साथ सामूहिक हित बहाल करना है।

ऐसा कोई अधिकार नहीं है जिससे संबंधित कोई दायित्व नहीं है। हालांकि यह याद रखने की बात है कि संविधान ने बड़े पैमाने पर अधिकारों का विस्तार किया है और कानून की अदालतों के पास अपनी सुविधा के अनुरूप कर्तव्यों को मरोड़ना-तोड़ना शामिल नहीं है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

भारत का संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) की गारंटी देता है और नागरिकों के पास भाषण और अभिव्यक्ति का अधिकार हो सकता है लेकिन इन अधिकारों से जुड़े कुछ प्रतिबंध और अपवाद भी हैं।

मौलिक अधिकार  पर रोक

एक नागरिक पूरी तरह से मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का प्रयोग नहीं कर सकता लेकिन कुछ संवैधानिक प्रतिबंध के साथ वही नागरिक अपने अधिकारों का आनंद उठा सकता है। भारत का संविधान इन अधिकारों को इस्तेमाल में लाने पर कुछ तर्कसंगत सीमाएं लागू करता है ताकि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य बरकरार रहे।

संविधान हमेशा व्यक्तिगत हितों के साथ-साथ सांप्रदायिक हितों की भी रक्षा करता है। उदाहरण के लिए धर्म का अधिकार सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य हित में राज्य द्वारा सीमाओं के अधीन है ताकि धर्म की स्वतंत्रता अपराध या असामाजिक गतिविधियां करने के लिए इस्तेमाल में ना लाई जाए।

इसी प्रकार अनुच्छेद -19 द्वारा अधिकारों का तात्पर्य पूर्ण स्वतंत्रता की गारंटी नहीं है। किसी भी वर्तमान स्थिति से पूर्ण व्यक्तिगत अधिकारों का आश्वासन नहीं दिया जा सकता है। इसलिए हमारे संविधान ने देश को उचित सीमाएं लागू करने के लिए अधिकार दिया है क्योंकि यह समुदाय के हित के लिए आवश्यक है।

हमारा संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक नियंत्रण के बीच संतुलन को रोकने और एक कल्याणकारी राज्य स्थापित करने का प्रयास करता है जहां सांप्रदायिक हित व्यक्तिगत हितों पर महत्व देता है। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी राज्य द्वारा अपमान, अदालत की अवमानना, सभ्यता या नैतिकता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, अपमान के लिए उत्तेजना, सार्वजनिक व्यवस्था और भारत की अखंडता तथा संप्रभुता के रखरखाव के लिए तर्कसंगत प्रतिबंधों के अधीन है।

सभा करने की स्वतंत्रता भी राज्य द्वारा लगायी जाने वाली उचित सीमाओं के अधीन है। सभा अहिंसक और हथियारों के बिना होनी चाहिए और सार्वजनिक आदेशों के हित में होनी चाहिए। प्रेस की स्वतंत्रता, जो अभिव्यक्ति की व्यापक स्वतंत्रता में शामिल है, को भी उचित सीमाओं के अधीन किया जाता है और सरकार प्रेस की स्वतंत्रता पर देश के बेहतर हित में या अदालत की अवमानना, मानहानि या उत्पीड़न से बचने के लिए प्रतिबंध लगा सकती है।

भारत सरकार के लिए बहु-धार्मिक, बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राष्ट्र में शांति और सद्भाव बनाए रखना परम कर्तव्य है। 1972 में मौजूद सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इस चिंता को समझा जा सकता है – जब बांग्लादेश की आजादी का युद्ध खत्म हो चुका था और देश उस वक़्त भी शरणार्थी अतिक्रमण से उबरने की कोशिश कर रहा था। उस समय के दौरान शिवसेना और असम गण परिषद जैसे स्थानीय और क्षेत्रीय दलों में अधिक असंतोष उत्पन्न हो रहा था और आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक संगठन के स्वर और कृत्य हिंसक हो गए थे। फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत सरकार ने इन सबसे निपटने में आईपीसी के सेक्शन लागू करने के बारे में अधिक प्रतिक्रिया दिखाई।

कोई स्वतंत्रता बिना शर्त या पूरी तरह से अप्रतिबंधित नहीं हो सकती है। हालांकि लोकतंत्र में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखना और रक्षा करना आवश्यक है इसलिए भी सामाजिक आचरण के रखरखाव के लिए इस आजादी पर कुछ हद तक प्रतिबंध लगाना आवश्यक है। तदनुसार अनुच्छेद 19 (2) के तहत सरकार सार्वजनिक व्यवस्था, संप्रभुता और भारत की अखंडता की सुरक्षा के हित में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अभ्यास पर या न्यायालय की अवमानना ​​के संबंध में व्यावहारिक प्रतिबंधों को लागू कर सकती है।

Essay on Fundamental Rights in Hindi

निबंध – 4 (600 शब्द)

कुछ बुनियादी अधिकार हैं जो मानव अस्तित्व के लिए मौलिक और मानव विस्तार के लिए महत्वपूर्ण होने के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन अधिकारों की अनुपस्थिति में किसी भी आदमी का अस्तित्व बेकार होगा। इस प्रकार जब राजनीतिक संस्थाएं बनाई गईं, उनकी भूमिका और जिम्मेदारी मुख्य रूप से लोगों को (विशेषकर अल्पसंख्यकों को) समानता, सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ जीने के लिए केंद्रित की गयी।

मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) का वर्गीकरण

मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को 6 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। य़े हैं:

समानता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार

शोषण के खिलाफ अधिकार

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

संवैधानिक उपाय करने का अधिकार

आईये जानते हैं अब हम संक्षिप्त में इन 6 मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के बारे में:

इसमें कानून के सामने समानता शामिल है जिसका मतलब है कि जाति, पंथ, रंग या लिंग के आधार पर कानून का समान संरक्षण, सार्वजनिक रोजगार, अस्पृश्यता और टाइटल के उन्मूलन पर प्रतिबंध। यह कहा गया है कि सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं और किसी के साथ किसी भी तरीके का कोई भेदभाव नहीं हो सकता है। यह अधिकार यह भी बताता है कि सभी की सार्वजनिक स्थानों पर समान पहुंच होगी।

समान अवसर प्रदान करने के लिए, सरकार की सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के सिवाय सैनिकों की विधवाएँ और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को कोई आरक्षण नहीं होगा। यह अधिकार मुख्य रूप से अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए बनाया गया था जिसका दशकों से भारत में अभ्यास किया गया था।

इसमें भाषण की अभिव्यक्ति, बोलने की स्वतंत्रता, यूनियन और सहयोगी बनाने की स्वतंत्रता तथा भारत में कहीं भी यात्रा करने की स्वतंत्रता, भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने की स्वतंत्रता और किसी पेशे का चयन करने की स्वतंत्रता शामिल है।

इस अधिकार के तहत यह भी कहा गया है कि भारत के किसी भी नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में संपत्ति खरीदने, बेचने और बनाए रखने का पूर्ण अधिकार है। लोगों को किसी भी व्यापार या व्यवसाय में शामिल होने की स्वतंत्रता है। यह अधिकार यह भी परिभाषित करता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता है और उसे स्वयं के खिलाफ गवाह के रूप में खड़ा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

इसमें किसी भी तरह की जबरन मजदूरी के खिलाफ़ प्रतिबंध शामिल है। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खानों या कारखानों, जहां जीवन का जोखिम शामिल है, में काम करने की अनुमति नहीं है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह से दूसरे व्यक्ति का फायदा उठाने का अधिकार नहीं है। इस प्रकार मानव तस्करी और भिखारी को कानूनी अपराध बनाया गया है और इसमें शामिल पाए गए लोगों को दंडित किए जाने का प्रावधान शामिल है। इसी तरह बेईमान उद्देश्यों के लिए महिलाओं और बच्चों के बीच दासता और मानव तस्करी को अपराध घोषित किया गया है। मजदूरी के लिए न्यूनतम भुगतान को परिभाषित किया गया है और इस संबंध में किसी भी तरह के समझौता करने की अनुमति नहीं है।

इसमें कहा गया है कि भारत के सभी नागरिकों के लिए विवेक की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। सभी को अपनी पसंद के धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, अभ्यास करने और फैलाने का अधिकार होगा और केंद्र और राज्य सरकार किसी भी तरह के किसी भी धार्मिक मामलों में किसी भी तरह से बाधा उत्पन्न नहीं करेगा। सभी धर्मों को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों को स्थापित करने और बनाए रखने का अधिकार होगा और इनके संबंध में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र होगा।

यह सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक है क्योंकि शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का प्राथमिक अधिकार माना जाता है। सांस्कृतिक अधिकार कहता है कि हर देश अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना चाहता है। इस अधिकार के अनुसार सभी अपनी पसंद की संस्कृति को विकसित करने के लिए स्वतंत्र हैं और किसी भी तरह की शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी भी व्यक्ति को उसकी संस्कृति, जाति या धर्म के आधार पर किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा। सभी अल्पसंख्यकों को अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार है।

यह नागरिकों को दिया गया एक बहुत खास अधिकार है। इस अधिकार के अनुसार हर नागरिक को अदालत में जाने की शक्ति है। यदि उपर्युक्त मौलिक अधिकारों में से किसी भी अधिकार की पालन नहीं की गई तो अदालत इन अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ एक गार्ड के रूप में खड़ी है। अगर किसी भी मामले में सरकार बलपूर्वक या जानबूझकर किसी व्यक्ति के साथ अन्याय करती है या किसी व्यक्ति को बिना किसी कारण या अवैध कार्य से कैद किया जाता है तो संवैधानिक उपाय करने का अधिकार व्यक्ति को अदालत में जाने और सरकार के कार्यों के खिलाफ न्याय प्राप्त करने की अनुमति देता है।

नागरिकों के जीवन में मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट्स) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अधिकार जटिलता और कठिनाई के समय बचाव कर सकते हैं और हमें एक अच्छे इंसान बनने में मदद कर सकते हैं।

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Constitution of India

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भारतीय संविधान पर निबंध

Essay on Indian Constitution in Hindi

भारतीय संविधान पर निबंध : Essay on Indian Constitution in Hindi :- आज के इस लेख में हमनें ‘भारतीय संविधान पर निबंध’ से सम्बंधित जानकारी प्रदान की है।

यदि आप भारतीय संविधान पर निबंध से सम्बंधित जानकारी खोज रहे है? तो इस लेख को शुरुआत से अंत तक अवश्य पढ़े। तो चलिए शुरू करते है:-

भारतीय संविधान पर निबंध : Essay on Indian Constitution in Hindi

प्रस्तावना :-

संविधान किसी भी देश को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक होता है। संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है, जो देश के संचालन व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

एक देश में संविधान का होना काफी आवश्यक होता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें ही सम्पूर्ण देश को चलाने के लिए सभी कानूनों का संग्रहण है।

भारत का संविधान दुनिया का एक सबसे बड़ा लिखित संविधान है अर्थात हमारा पूरा संविधान एक लिखित रूप में है। यह संविधान ही हमें एक लोकतान्त्रिक देश बनाता है।

भारत का संविधान कब व कितने समय में बनकर तैयार हुआ था? :-

भारत के संविधान को 26 जनवरी 1950 के दिन लागू किया गया था। इस दिन को पूरा देश एक त्यौहार की तरह मनाता है और इसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते है।

यह संविधान 26 नवंबर 1949 के दिन बनकर तैयार हुआ था और इसके ठीक दो माह बाद इसे सम्पूर्ण देश में लागू किया गया था। इसे तैयार होने में कुल 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिनों का समय लगा, तब जाकर आज इस भारत को इसका संविधान प्राप्त हुआ है।

भारत का संविधान :-

भारत का संविधान पूरी दुनिया के संविधानों को अध्ययन करने के बाद बनाया गया है। भारत के संविधान के निर्माण के लिए एक संविधान सभा का बनाई गई।

इस सभा के प्रमुख सदस्य अब्दुल कलाम, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, आदि थे। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को इस सभा का अध्यक्ष बनाया गया था।

संविधान के निर्माण के समय इसे 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियां तथा 22 भागों में बाँटा गया था, जिसे अब 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भागों में बाँटा गया है। इसमें समय-समय पर कईं संसोधन किये गए है।

भारत संविधान दिवस या गणतंत्र दिवस कैसे मनाया जाता है? :-

संविधान देश के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इस दिन को भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन विद्यालयों में ध्वजारोहण किया जाता है और कईं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है और मिठाइयाँ बांटी जाती है।

इसके साथ ही सरकारी कार्यालयों में भी ध्वजारोहण किया जाता है। इस दिन दिल्ली के लाल किले से राष्ट्रपति द्वारा ध्वजा रोहण किया जाता है और उसके बाद राष्ट्रपति द्वारा लोगों को सम्बोधित किया जाता है।

इस दिन भव्य परेड का आयोजन भी किया जाता है, जिसमे सेना अपने शौर्य का प्रर्दशन करती है और करतब दिखाती है। इसमें अलग-अलग राज्यों की प्रदर्शनी भी की जाती है। इसके साथ-साथ बच्चों के द्वारा नृत्य कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।

भारतीय संविधान के निर्माता डाँ. भीमराव अम्बेडकर को माना जाता है। इस संविधान के निर्माण में 1 करोड़ रुपयों का खर्च आया था और इसे हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखा गया है।

भारत के संविधान से ही इस देश के लोगों को मौलिक अधिकारों की प्राप्ति हुई है। हमारे देश का संविधान काफी लचीला है, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर संशोधन किया जा सकता है।

इसमें आजादी से आज तक 100 से भी अधिक बार संशोधन किया जा चुका है। संविधान को बनाना कोई आसान कार्य नहीं था वह भी तब, जब आपका देश 200 वर्षों तक गुलाम रहा हो।

इसे बनाने के लिए काफी अधिक मेहनत की गई। इसके निर्माण के लिए कईं देशों के संविधान को पढ़ा गया और उसके अनुसार भारत के संविधान का निर्माण किया गया।

अंत में आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा और आपको हमारे द्वारा इस लेख में प्रदान की गई अमूल्य जानकारी फायदेमंद साबित हुई होगी।

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नमस्कार, मेरा नाम सूरज सिंह रावत है। मैं जयपुर, राजस्थान में रहता हूँ। मैंने बी.ए. में स्न्नातक की डिग्री प्राप्त की है। इसके अलावा मैं एक सर्वर विशेषज्ञ हूँ। मुझे लिखने का बहुत शौक है। इसलिए, मैंने सोचदुनिया पर लिखना शुरू किया। आशा करता हूँ कि आपको भी मेरे लेख जरुर पसंद आएंगे।

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Essay on Constitution of India

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A Constitution is a set of rules and regulations guiding the administration of a country. The Constitution is the backbone of every democratic and secular fabric of the nation. The Constitution of India is the longest Constitution in the world, which describes the framework for political principles, procedures and powers of the government. The Constitution of India was written on 26 November 1949 and came into force on 26 January 1950. In this essay on the Constitution of India, students will get to know the salient features of India’s Constitution and how it was formed.

Constitution of India Essay

On 26th January 1950, the Constitution of India came into effect. That’s why 26th January is celebrated as Republic Day in India.

How Was the Constitution of India Formed?

The representatives of the Indian people framed the Indian Constitution after a long period of debates and discussions. It is the most detailed Constitution in the world. No other Constitution has gone into such minute details as the Indian Constitution.

The Constitution of India was framed by a Constituent Assembly which was established in 1946. Dr Rajendra Prasad was elected President of the Constituent Assembly. A Drafting Committee was appointed to draft the Constitution and Dr B.R. Ambedkar was appointed as the Chairman. The making of the Constitution took a total of 166 days, which was spread over a period of 2 years, 11 months and 18 days. Some of the salient features of the British, Irish, Swiss, French, Canadian and American Constitutions were incorporated while designing the Indian Constitution.

Also Read: Evolution and Framing of the Constitution

Features of The Constitution of India

The Constitution of India begins with a Preamble which contains the basic ideals and principles of the Constitution. It lays down the objectives of the Constitution.

The Longest Constitution in the world

The Indian Constitution is the lengthiest Constitution in the world. It had 395 articles in 22 parts and 8 schedules at the time of commencement. Now it has 448 articles in 25 parts and 12 schedules. There are 104 amendments (took place on 25th January 2020 to extend the reservation of seats for SCs and STs in the Lok Sabha and state assemblies) that have been made in the Indian Constitution so far.

How Rigid and Flexible is the Indian Constitution?

One of the unique features of our Constitution is that it is not as rigid as the American Constitution or as flexible as the British Constitution. It means it is partly rigid and partly flexible. Owing to this, it can easily change and grow with the change of times.

The Preamble

The Preamble has been added later to the Constitution of India. The original Constitution does not have a preamble. The preamble states that India is a sovereign, socialist, secular and democratic republic. The objectives stated by the Preamble are to secure justice, liberty, and equality for all citizens and promote fraternity to maintain the unity and integrity of the nation.

Federal System with Unitary Features

The powers of the government are divided between the central government and the state governments. The Constitution divides the powers of three state organs, i.e., executive, judiciary and legislature. Hence, the Indian Constitution supports a federal system. It includes many unitary features such as a strong central power, emergency provisions, appointment of Governors by the President, etc.

Fundamental rights and fundamental duties

The Indian Constitution provides an elaborate list of Fundamental Rights to the citizens of India. The Constitution also provides a list of 11 duties of the citizens, known as the Fundamental Duties. Some of these duties include respect for the national flag and national anthem, integrity and unity of the country and safeguarding of public property.

Also Read: Difference between Fundamental Rights and Fundamental Duties

India is a republic which means that a dictator or monarch does not rule the country. The government is of the people, by the people and for the people. Citizens nominate and elect its head after every five years.

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The Constitution serves as guidelines for every citizen. It helped India to attain the status of a Republic in the world. Once Atal Bihari Vajpayee said that “governments would come and go, political parties would be formed and dissolved, but the country should survive, and democracy should remain there forever”.

We hope that this essay on the “Constitution of India” must have helped students. For the latest updates on ICSE/CBSE/State Board/Competitive Exams, stay tuned to BYJU’S. Also, download the BYJU’S App for watching interesting study videos.

Also Read: Independence Day Essay | Republic Day Essay | Essay on Women Empowerment

Frequently Asked Questions on Constitution of India Essay

Who is the father of our indian constitution.

Dr. B. R. Ambedkar is the father of our Indian Constitution. He framed and drafted our Constitution.

Who signed the Indian Constitution?

Dr. Rajendra Prasad was the first person from the Constitution Assembly to have signed the Indian Constitution.

What is mentioned in the Preamble of our Indian Constitution?

The preamble clearly communicates the purpose and emphasis the importance of the objectives of the Indian Constitution.

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