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नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास की पूरी जानकारी – Nalanda University Information In Hindi

Nalanda University In Hindi : नालंदा विश्वविद्यालय एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है जो भारत के बिहार राज्य में स्थित है। नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक के रूप में जाना जाता है और कभी इसे नालंदा महावीर के रूप में भी जाना जाता था। आपको बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय की उत्पत्ति तीसरी शताब्दी से पहले की बताई जाती है। पटना से लगभग 85 किमी दूर स्थित इस विश्वविद्यालय में भारत के सबसे पुराने महाकाव्यों के साथ-साथ ह्वेन त्सांग की यात्रा के संदर्भ मिलते हैं। गुप्त राजाओं ने वास्तुकला की पुरानी कुसान शैली में यहां विभिन्न मठों का निर्माण किया।

सम्राट अशोक और हर्षवर्धन भी इस विश्वविद्यालय के संरक्षक थे और उन्होंने विश्वविद्यालय के लिए कुछ मंदिरों, विहारों और मठों का निर्माण किया। नालंदा विश्वविद्यालय 1915 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा रिकवर किया गया था। बताया जाता है कि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में इतनी सारी किताबें और पांडुलिपियाँ थीं कि यहां आग लगने के बाद पुस्तकें छह महीने तक जलती रही। अगर आप नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास के बारे में या अन्य चीजें जानना चाहते हैं तो इस लेख को जरुर पढ़ें, इसमें हम आपको नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास, फैक्ट्स और जाने के तरीके के बारे में बताने जा रहें हैं –

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास- Nalanda University History In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय में देखने लायक चीजें – Nalanda University Me Ghumne Layak Jagah

नालंदा विश्वविद्यालय के रोचक तथ्य – Facts About Nalanda University In Hindi

नालंदा में खाने के लिए प्रसिद्ध भोजन – Famous Food In Nalanda In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय घूमने जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Nalanda In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय कैसे जाये – How To Reach Nalanda University In Hindi

  • फ्लाइट से नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे – How To Reach Nalanda By Flight In Hindi
  • नालंदा विश्वविद्यालय सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे – How To Reach Nalanda By Road In Hindi
  • नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे ट्रेन से – How To Reach Nalanda By Train In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय का नक्शा – Nalanda University Map

नालंदा विश्वविद्यालय की फोटो गैलरी – Nalanda University Images

1. नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास – Nalanda University History In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया में स्थापित होने वाले पहले विश्वविद्यालयों में से एक है। नालंदा एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित एक समृद्ध गाँव था जो राजगृह (‘राजगीर’) से गुजरा, जो उस समय की राजधानी मगध था। मगध वर्तमान बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों के साथ एक विशाल राज्य था। जब 7 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान चीनी विद्वान ह्वेनसांग तथा इत्सिंग नालंदा आए थे, तब नालंदा विश्वविद्यालय में लगभग 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे। कन्नौज के राजा हर्षवर्धन (7 वीं शताब्दी ईसवी) और पाल शासकों (8 वीं – 12 वीं शताब्दी ईसवी) के साथ-साथ विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न शासकों द्वारा संचालित, यह एक अंतरराष्ट्रीय संस्था थी जिसमें कोरिया, जापान, चीन, फारस, तिब्बत, इंडोनेशियातथा तुर्की सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों से छात्र आते थे।

विश्वविद्यालय में छात्रों ने ‘ग्रेट व्हील’ (महायान) और बौद्ध धर्म के सभी अठारह पंथों का अध्ययन किया था। इसके अलावा उन्होंने वेदों, साहित्य, चिकित्सा और गणित का भी अध्ययन किया। इतिहास बताता है कि विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के शासनकाल के दौरान किया गया था। विश्वविद्यालय के फाउंडेशन का श्रेय शक्रादित्य को दिया जाता है। इस विश्वविद्यालय के इतिहास को दो भागों में विभाजित किया गया था एक छठी शताब्दी से नौवीं तक जिसमें विश्वविद्यालय का विकास और नौवीं शताब्दी के दौरान तेरहवीं के दौरान क्रमिक गिरावट और विघटन शामिल है।

और पढ़े: भारत में यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल

2. नालंदा विश्वविद्यालय में देखने लायक चीजें – Nalanda University Me Ghumne Layak Jagah

नालंदा विश्वविद्यालय में देखने लायक चीजें

नालंदा विश्वविद्यालय में खंडहर पुरातात्विक परिसर की खुदाई का कुल क्षेत्रफल लगभग 14 हेक्टेयर है। ये इमारतें लाल ईंटों की हैं और बगीचे बेहद खूबसूरत हैं। इमारतों को एक केंद्रीय पैदल मार्ग द्वारा विभाजित किया जाता है। मठ पैदल मार्ग के पूर्व में स्थित हैं और मंदिर पश्चिम में स्थित हैं। खुदाई के दौरान ईंटों और ग्यारह मठों से बने छह मंदिरों को व्यवस्थित रूप से प्रकट किया गया था। यहां का अन्य दर्शनीय स्थल नालंदा पुरातत्व संग्रहालय हैं जो विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार के सामने स्थित हैं। इस संग्रहालय में बौद्ध और हिंदू मूर्तियों का एक सुंदर संग्रह है। यहां चार गैलरी में 13,463 में से केवल 349 संग्रह प्रदर्शन में हैं। आप यहां पर नवा नालंदा महाविहार और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल भी देख सकते हैं।

3. नालंदा विश्वविद्यालय के रोचक तथ्य – Facts About Nalanda University In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय के रोचक तथ्य -

नालंदा विश्वविद्यालय अध्यन की एक अच्छी जगह थी और विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों को पढ़ाया जाता था। विश्वविद्यालय में कठोर प्रवेश मूल्यांकन के बाद ही छात्रों को प्रवेश दिया जाता था। यहां पर हूण, गौड़ और भक्तियार खिलजी आक्रमणकारियों द्वारा तीन बार हमला किया गया था। इसके बाद 800 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से खोला गया था।

और पढ़े: पटना के प्रमुख पर्यटन स्थल और घूमने की जानकारी

4. नालंदा में खाने के लिए प्रसिद्ध भोजन – Famous Food In Nalanda In Hindi

नालंदा में खाने के लिए प्रसिद्ध भोजन

नालंदा में बौद्ध प्रभाव होने की वजह से यहां बेहद सादा भोजन उपलब्ध है। भोजन में दाल रोटी और मौसमी सब्जियों से युक्त शाकाहारी भोजन उपलब्ध है। लिट्टी चोखा यहां के लोगों का सबसे पसंदीदा स्नैक है। कुछ अन्य लोकप्रिय स्नैक्स हैं समोसा, कचौरी, लालू कचालू, भूजा, घुग्गी चूरा, दही चूरा, झाल मुढ़ी आदि। खाजा नालंदा के बगल में सिलो नामक एक छोटे से गाँव में मिलने वाली एक अलग दिलकश मिठाई है। गाढ़े दूध से बनी मिठाइयों में भी इस जगह पर मिलती है। तिलकुल और अनारसा क्षेत्र की कुछ अन्य लोकप्रिय मिठाइयाँ हैं। अगर आप नालंदा की यात्रा करते हैं तो आपको यहां के प्रसिद्ध प्रसिद्ध पेय- सत्तू पानी (भुने हुए अनाज, मसाले और पानी से बना हुआ) का स्वाद जरुर रहना चाहिए। यहां आपको लाली या आम झोर का टेस्ट भी लेना चहिये।

5. नालंदा विश्वविद्यालय घूमने जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time To Visit Nalanda In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय घूमने जाने का सबसे अच्छा समय

नालंदा की यात्रा करने का अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है। इस दौरान यहां का मौसम ठंडा रहता है। ग्रीष्मकाल के दौरान यहां पर भीषण गर्मी पड़ती है इसलिए इस मौसम में नालंदा की यात्रा करने की सलाह नहीं दी जाती। मानसून के दौरान यहां भारी बारिश होती है जो आपकी यात्रा की योजना को बाधित कर सकती है।

और पढ़े: बनारस घूमने की जानकारी और 12 दर्शनीय स्थल 

6. नालंदा विश्वविद्यालय कैसे जाये – How To Reach Nalanda University In Hindi

पटना हवाई अड्डा नालंदा तक पहुँचने के लिए निकटतम (100 किमी) हवाई अड्डा है। इस शहर में अपना नालंदा रेलवे स्टेशन रेलवे स्टेशन है, और अन्य निकटतम स्टेशन राजगीर में (13 किमी) है। पटना, गया, बिहार शरीफ और राजगीर से नालंदा के लिए बस सुविधा भी उपलब्ध है।

6.1 फ्लाइट से नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे – How To Reach Nalanda By Flight In Hindi

फ्लाइट से नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे

अगर आप हवाई जहाज से नालंदा की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा, पटना में लोक नायक जयप्रकाश अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो 75 किमी दूर है। यह हवाई अड्डा नियमित उड़ानों के माध्यम से देश के मुख्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

6.2 सड़क मार्ग से नालंदा विश्वविद्यालय सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे – How To Reach Nalanda By Road In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे

नालंदा आसपास के शहरों जैसे पटना, बोधगया और राजगीर से सड़कों के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। नियमित रूप से चलने वाली और निजी बसें नालंदा से इन शहरों की ओर जाती हैं।

6.3 नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे ट्रेन से – How To Reach Nalanda By Train In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय कैसे पहुँचे ट्रेन से

अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि नालंदा में पूर्व मध्य रेलवे द्वारा नियंत्रित नालंदा रेलवे स्टेशन, दिल्ली-कोलकाता लाइन और पटना-मुगलसराय लाइन के माध्यम से भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस मार्ग पर नियमित सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेनें उपलब्ध हैं।

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इस आर्टिकल में आपने नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास और इसकी यात्रा से जुडी पूरी जानकारी को जाना है आपको हमारा यह लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में जरूर बतायें।

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7. नालंदा विश्वविद्यालय का नक्शा – Nalanda University Map

8. नालंदा विश्वविद्यालय की फोटो गैलरी – Nalanda University Images

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नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास निबंध Essay On Nalanda University History In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास निबंध Essay On Nalanda University History In Hindi : आज हम नालंदा महाविहार का इतिहास पढेगे, 7 वीं सदी में ह्वेंसाग जब भारत आया तो उसने नालंदा युनिवर्सिटी के विषय में लिखा कि यहाँ दस हजार छात्र थे जिन्हें 2000 शिक्षक पढाते थे.

बिहार की राजधानी पटना से 90 किमी दूर नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त द्वारा की गई थी.

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास निबंध Essay On Nalanda University History In Hindi

Here We Read Short नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास निबंध Essay On Nalanda University History In Hindi Language or Nalanda University Real Story & History in Hindi Given Blow.

प्राचीन भारत की सम्रद्ध शिक्षा व्यवस्था का प्रतीक बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय अपने काल में विश्व का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय था, कुमारगुप्त प्रथम ने इसे पांचवीं सदी में स्थापित किया था.

गुप्त काल के बाद भी सभी शासकों ने इसके निर्माण व प्रबंधन में योगदान दिया. सातवीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय अपने चरमोत्कर्ष पर जब ह्वेनसांग भारत आया,

उस समय इस विश्वविद्यालय में 10,000 भारतीय व विदेशी छात्र तथा 1500 अध्यापक अध्यापन का कार्य करवाते थे. उस समय नालंदा विश्व का सबसे बड़ा स्कूल था, जहाँ से छात्र स्नातक उतीर्ण करने के बाद बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे.

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना

नालंदा बिहार प्रान्त में पटना से 50 मील दक्षिण ओर स्थित हैं. नालंदा की ख्याति महात्मा बुद्ध के समय से थी. 500 श्रेष्ठियों ने मिलकर 10 करोड़ मुद्राओं से नालंदा क्षेत्र को खरीदकर महात्मा बुद्ध को अर्पित किया था. कालांतर में अशोक महान ने वहा एक विशाल विहार का निर्माण कराया.

नालंदा का महत्व धीरे धीरे शिक्षा की दृष्टि से बढ़ता गया. पाँचवी शताब्दी तक शिक्षा के केंद्र के रूप में इसकी ख्याति हो चुकी थी.

समय समय पर गुप्त सम्राटों ने नालंदा विश्वविद्यालय के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. सर्वप्रथम कुमारगुप्त ने शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए यहाँ एक विशाल विश्वविद्यालय भवन का निर्माण कराया.

इस समय से नालंदा की शिक्षा केंद्र के रूप में ख्याति बढ़ने लगी. इसके बाद बुद्ध गुप्त, तथागतगुप्त, नरसिंहगुप्त, बालादित्य आदि अनेक गुप्त राजाओं ने इसे संरक्षण प्रदान कर यहाँ बहुत सी ईमारते बनवाई और नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के खर्च के लिए बहुत सा धन दिया.

सातवीं शताब्दी में जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया, तो उस समय नालंदा विश्वविद्यालय अपनी प्रसिद्धि की पराकाष्ठा पर पहुँच चूका था.

नालंदा विश्वविद्यालय किसने बनवाया

हीनयान बौद्ध धर्मं के व अन्य सभी धर्मों के विद्यार्थी यहाँ ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे. आज के समय में नालन्दा महाविहार बिहार राज्य की राजधानी पटना से 89 किमी दक्षिण पूर्व में राजगीर गाँव के 10 किमी दुरी पर स्थित था. वर्तमान में इसका ढांचा उपलब्ध नही हैं, इस महान शिक्षालय के भग्नावशेष इसकी उपस्थिति का अहसास करवाते हैं.

नालंदा संस्कृत शब्‍द नालम्+दा से बना है। संस्‍कृत में ‘नालम्’ का अर्थ ‘कमल’ होता है, यहाँ कमल का अर्थ प्रकाश अथवा ज्ञान से हैं, बौद्ध महाविहार की स्थापना के बाद इसे नालंदा महाविहार के नाम से जाना गया.

कई सदियों तक यहाँ धर्म, राजनीति, शिक्षा, इतिहास, ज्योतिष, विज्ञान विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती थी. माना जाता हैं, कि नालंदा में इतनी पुस्तकों का संग्रह था कि एक विद्यार्थी अपने जीवनकाल में उसे गिन नही पाता था.

चीनी यात्री ह्वेनसांग न सिर्फ नालंदा विश्वविद्यालय आए, उन्होंने कई वर्षों तक यहाँ विद्यार्थी जीवन व्यतीत किया तथा इसके पश्चात उसने अध्यापन का कार्य भी करवाया.

इस महान शिक्षा के मंदिर के विध्वंस की दास्ता भी जुड़ी हुई हैं. बख्तियार खिलजी ने इस महाविहार को जलाकर समाप्त कर दिया था.

विश्वविद्यालय भवन

नालंदा विश्वविद्यालय एक मील लम्बे तथा आधे मील चौड़े क्षेत्र में स्थापित किया गया था. यह क्षेत्र एक विशाल और सुद्रढ़ चहारदीवारी से घिरा हुआ था. ह्वेनसांग ने लिखा है कि यहाँ अनेक विहारों का निर्माण किया गया था. इन विहारों में कुछ तो काफी बड़े और भव्य थे जिनके गगनचुंबी शिखर अत्यंत आकर्षक थे.

यहाँ का सबसे बड़ा विवाह 203 फीट लम्बा तथा 164 फीट चौड़ा था इसके कक्ष साढ़े नौ फीट से 12 फीट लम्बे थे. यहाँ अनेक जलाशय थे जिनमें कमल तैरते थे. विश्वविद्यालय भवन में व्याख्यान के लिए 7 विशाल कक्ष और 300 छोटे बड़े कक्ष थे. विद्यार्थी छात्रावासों में रहते थे.

तथा प्रत्येक कोने पर कुओं का निर्माण किया गया था. इसमें 6-6 मंजिल की ईमारतों बनी हुई थी. इनकी ऊँची ऊँची मीनारें आकाश को छूती थीं.

विश्वविद्यालय के प्रवेश

नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए इच्छुक विद्यार्थियों के लिए बड़े कठोर नियम थे. प्रवेश पाने के इच्छुक विद्यार्थि यों को विश्वविद्यालय के द्वार पर एक परीक्षा में ऊतीर्ण होना आवश्यक था. यह परीक्षा द्वार पंडित द्वारा ली जाती थी. चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार प्रवेश द्वार पर 8-10 विद्यार्थी परीक्षा में असफल हो जाया करते थे.

और केवल एक या दो सफल हो पाते थे. विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में ऊतीर्ण होकर बाहर आने वाले विद्यार्थियों के ज्ञान एवं विद्वता का सर्वत्र आदर होता था.

इस विश्वविद्यालय का शिक्षा स्तर वास्तव में बहुत ऊँचा था, इसलिए देश तथा विदेश से आए हुए विद्यार्थियों की भीड़ सी लग जाती थी. चीन, कोरिया, तिब्बत, जापान, बर्मा आदि अनेक देशों के विद्यार्थी यहाँ रहकर विद्याअध्ययन करते थे.

प्रबंध एवं प्रशासन

यहाँ का प्रबंध तथा प्रशासन आदर्श ढंग का था. इस विश्वविद्यालय में लगभग दस हजार विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे तथा अध्यापकों की संख्या 1510 थी. विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए व्याकरण, हेतु विद्या/ न्याय तथा अभिधम्म कोश का ज्ञान आवश्यक था.

1010 अध्यापक सूत्र निकायों में दक्ष थे तथा शेष 500 अध्यापक अन्य विषयों में दक्ष थे. ह्वेनसांग के समय इस विश्वविद्या लय का कुलपति शीलभद्र था. शीलभद्र के पहले धर्मपाल यहाँ का कुलपति था. कुलपति को परामर्श देने के लिए दो समितियां होती थी.

पहली समिति शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में कुलपति को परामर्श देती थी तथा दूसरी समिति प्रशासनिक कार्यों में कुलपति को परामर्श दिया करती थी. यहाँ के शिक्षक भी अपने ज्ञान एवं विद्वता के लिए प्रसिद्ध थे. उनकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुई थी.

नालंदा विश्वविद्यालय के पास दान में प्राप्त हुए 200 गाँवों की आय थी. इन गाँवों की आय से यहाँ के भिक्षुओं व विद्यार्थियों का पोषण होता था.

इसके अतिरिक्त इन गाँवों के निवासी प्रतिदिन कई मन चावल और दूध यहाँ भेजा करते थे. साथ ही प्रति मास, तेल घी और अन्य खाद्य पदार्थ भी निश्चित मात्रा में दिए जाते थे.

नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म की शिक्षा के अतिरिक्त व्याकरण, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, दर्शन, भाषा विज्ञान, यंत्र शास्त्र, योग, शिल्प, रसायन आदि विषय भी पढाये जाते थे. इस प्रकार यह विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था.

नालंदा विश्वविद्यालय में धर्मज्ञ नामक एक विशाल पुस्तकालय था. यह पुस्तकालय भवन 9 मंजिला था जिसकी ऊँचाई लगभग 300 फीट थी.

इसमें सभी विषयों की पुस्तकों का विशाल संग्रह था. यह पुस्तकालय तीन भागों में विभाजित था, रत्न सार, रत्नोंदधि तथा रत्नरंजक. ह्वेनसांग के अनुसार इस पुस्तकालय में जिज्ञासु तथा अध्ययनशील विद्यार्थियों की प्रायः भीड़ रहा करती थी.

यहाँ अनुशासन की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था. विश्वविद्यालय का अनुशासन बहुत कठोर था तथा नियम भंग करने वालों को खूब डाटा फटकारा जाता था

और घोर अपराध करने वालों को निष्कासित कर दिया जाता था. विद्यार्थियों को स्नान, अध्ययन, भोजन, शयन आदि का समय निश्चित होता था.

नालंदा विश्वविद्यालय के विद्वान् आचार्य

विश्वविद्यालय में प्रतिदिन 100 व्याख्यान होते थे. यहाँ के अध्यापक अपने ज्ञान और पांडित्य के लिए विख्यात थे. धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुनमति, स्थिरमति, प्रभामित्र, जिनमित्र, आर्यदेव, दिड्नाग, ज्ञानचन्द्र आदि यहाँ के उच्च कोटि के विद्वान् आचार्य थे. यहाँ के आचार्यों का सम्पूर्ण भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी आदर सम्मान था.

विदेशी विद्वान्

ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के अतिरिक्त यहाँ अनेक विदेशी विद्वान् नालंदा में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आए थे. इत्सिंग ने यहाँ लगभग 400 ग्रंथों का अध्ययन किया, जिनके श्लोकों की संख्या 5 लाख थी.

श्रमण हिएनचिन सातवीं शताब्दी में नालंदा आया और तीन वर्ष तक यही रहा. चेहांग नामक एक अन्य चीनी भिक्षु सातवीं शताब्दी में नालंदा आया और आठ वर्ष तक यही अध्ययन करता रहा.

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया (who destroyed nalanda university history information)

इस्लाम धर्म का कट्टर समर्थक व प्रचारक तुर्की का शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी 1203 में दिल्ली का शासक बना, उसने अपने राजनितिक रुतबे को बढ़ाने तथा गैर मुस्लिम शिक्षा, संस्कृति को समाप्त करने के उद्देश्य से बिहार पर आक्रमण किया.

उस समय बिहार के दों मुख्य विश्वविद्यालय जिनकी सम्पूर्ण विश्व में तूती बोलती थी, नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय को जलाकर पूरी तरह समाप्त कर दिया.

नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की इस घटना के बारे में कहा जाता हैं, कि यहाँ किताबों का इतना भंडार था कि इस आगजनी के तीन माह बाद भी किताबें सुलग सुलग कर जलती रही, खिलजी यही नही रुका यहाँ अध्यापन करवाने वाले हजारों बौद्ध भिक्षुओं का भी नरसंहार करवा दिया था.

इस विश्वविद्यालय में आग लगाने के पीछे इतिहासकार एक हास्यास्पद प्रसंग बताते हैं, जिनके अनुसार खिलजी एक बार इतना बीमार पड़ गया था, कि अब उनके जीने की ज्यादा आस नही थी.

नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद शाखा के प्रधान राहुल श्रीभद्रजी को बुलाकर उसने चेतावनी दी कि वों भारतीय आयुर्वेद की दवाई नही खाएगा परन्तु उसे ठीक करना हैं. यदि कल तक उसकी तबियत में सुधार नही हुआ तो वह नालंदा को तबाह कर देगा.

आचार्य जी रात भर उस पहेली पर सोचते रहे, आखिर उन्हें एक उपाय सुझा. उन्होंने कुरान के पन्नों पर दवाई रगड़ दी, तथा खिलजी को किताब के दस बीस पेज पढ़ने को कहा, मुहं का थूक लगाकर पन्ने बदलने से दवाई उसके शरीर तक पहुच गई तथा वह जल्दी ही स्वस्थ हो गया.

उन्हें यह घटना किसी चमत्कार से कम नही लगी. अरबी चिकित्सा के हजारों कदम आगे भारतीय आयुर्वेद के प्रति अब उसे जलन होने लगी तथा इसे समाप्त करने के लिए खिलजी ने ११९९ में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी.

नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी (Nalanda University Real Story & History in Hindi)

उत्तर कालीन गुप्त सम्राटों में से एक पांचवी सदी में इसकी स्थापना की. भारत तथा सुदूर पार के भारतीय उपनिवेशों के धनी व्यक्तियों ने इसके लिए धन की व्यवस्था की. कालान्तर में यह अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान का मंदिर बन गया था.

“नालंदा विश्वविद्यालय” में कम से कम आठ कॉलेज थे, जिन्हें आठ विद्यानुरागियों ने बनवाया था. नालंदा में केवल भव्य महल न थे, बल्कि विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं भी दी जाती थी.

उसमें तीन बड़े पुस्तकालय थे. जिन्हें क्रमशः रत्नसागर, रत्नादाही और रत्नरंजक कहा जाता था. वहां 10 हजार से अधिक विद्यार्थी पढ़ते थे. और लगभग 1500 अध्यापक अध्यापन करवाते थे.

वे कोरिया, मंगोलिया, जापान, चीन, तिब्बत, श्रीलंका, वृहत्तर भारत और भारत के विभिन्न भागों से छात्र पढ़ने आते थे. तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए यहाँ से विभिन्न भागों में लोग जाते भी थे.

‘नालंदा विश्वविद्यालय’ में अध्ययन के प्रमुख विषय वेद, तर्क विद्या, व्याकरण, चिकित्सा, विज्ञान, गणित, ज्योतिष, दर्शन, सांख्य, योग, न्याय आदि एवं बौद्ध धर्म की विभिन्न शाखाओं को पढाया जाता था. हर्षवर्धन ने इस विश्वविद्यालय को प्रश्रय दिया था.

  • कन्हैया कुमार का जीवन परिचय
  • भारत में विज्ञान का इतिहास
  • प्राचीन भारत में शिक्षा के प्रमुख केंद्र
  • भारत में उच्च शिक्षा पर निबंध
  • गुप्त काल का इतिहास और मुख्य शासक
  • भारत की विरासत पर निबंध

उम्मीद करता हूँ फ्रेड्स नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास निबंध Essay On Nalanda University History In Hindi का यह लेख आपको पसंद आया होगा.

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नालन्दा विश्‍वविद्यालय

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नालन्दा विश्‍वविद्यालय ( अंग्रेज़ी : Nalanda University ) प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। बिहार के नालन्दा ज़िले में एक नालन्दा विश्‍वविद्यालय था, जहां देश - विदेश के छात्र शिक्षा के लिए आते थे। आजकल इसके अवशेष दिखलाई देते हैं। पटना से 90 किलोमीटर दूर और बिहार शरीफ़ से क़रीब 12 किलोमीटर दक्षिण में, विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय, नालंदा के खण्डहर स्थित हैं। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।

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इस विश्वविद्यालय के निर्माण के विषय में निश्चित जानकारी का अभाव है फिर भी गुप्त वंशी शासक कुमारगुप्त (414-455 ई.) ने इस बौद्ध संघ को पहला दान दिया था। ह्नेनसांग के अनुसार 470 ई. में गुप्त सम्राट नरसिंह गुप्त बालादित्य ने नालन्दा में एक सुन्दर मन्दिर निर्मित करवाकर इसमें 80 फुट ऊंची तांबे की बुद्ध प्रतिमा को स्थापित करवाया।

विश्‍वविद्यालय की स्थापना

  • गुप्तकालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ई.पू. नालन्दा विश्‍वविद्यालय की स्थापना की थी।
  • नालंदा संस्कृत शब्‍द 'नालम् + दा' से बना है। संस्‍कृत में 'नालम' का अर्थ ' कमल ' होता है। कमल ज्ञान का प्रतीक है। नालम् + दा यानी कमल देने वाली, ज्ञान देने वाली। कालक्रम से यहाँ महाविहार की स्‍थापना के बाद इसका नाम 'नालंदा महाविहार' रखा गया।

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  • महाराज शकादित्य, सम्भवत: गुप्तवंशीय सम्राट कुमार गुप्त, 415-455 ई., ने इस जगह को विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी अन्य राजाओं ने यहाँ अनेक विहारों और विश्वविद्यालय के भवनों का निर्माण करवाया। इनमें से गुप्त सम्राट बालादित्य ने 470 ई. में यहाँ एक सुंदर मंदिर बनवाकर भगवान बुद्ध की 80 फीट की प्रतिमा स्थापित की थी।
  • नालन्दा विश्‍वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए जावा, चीन , तिब्बत , श्रीलंका व कोरिया आदि के छात्र आते थे।
  • जब ह्वेनसांग भारत आया था उस समय नालन्दा विश्‍वविद्यालय में 8500 छात्र एवं 1510 अध्यापक थे। इसके प्रख्यात अध्यापकों शीलभद्र ,धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति, स्थिरमति , प्रभामित्र, जिनमित्र, दिकनाग , ज्ञानचन्द्र, नागार्जुन , वसुबन्धु , असंग , धर्मकीर्ति आदि थे।
  • विदेशी यात्रियों के वर्णन के अनुसार नालन्दा विश्वविद्यालय में छात्रों के रहने की उत्तम व्यवस्था थी। उल्लेख मिलता है कि यहाँ आठ शालाएं और 300 कमरे थे। कई खंडों में विद्यालय तथा छात्रावास थे। प्रत्येक खंड में छात्रों के स्नान लिए सुंदर तरणताल थे जिनमें नीचे से ऊपर जल लाने का प्रबंध था। शयनस्थान पत्थरों के बने थे। जब नालन्दा विश्वविद्यालय की खुदाई की गई तब उसकी विशालता और भव्यता का ज्ञान हुआ। यहाँ के भवन विशाल, भव्य और सुंदर थे। कलात्मकता तो इनमें भरी पड़ी थी। यहाँ तांबे एवं पीतल की बुद्ध की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं।
  • इस विश्‍वविद्यालय में पालि भाषा में शिक्षण कार्य होता था। 12वीं शती में बख़्तियार ख़िलजी के आक्रमण से यह विश्वविद्यालय नष्ट हो गया था।
  • पहले यहाँ केवल एक बौद्ध विहार बना था जो धीरे-धीरे एक महान् विद्यालय के रूप में परिवर्तित हो गया। इस विश्वविद्यालय को गुप्त तथा मौखरी नरेशों तथा 'कान्यकुब्जाधिप' हर्ष से निरंतर अर्थ सहायता और संरक्षण प्राप्त होता रहा
  • युवानच्वांग के पश्चात् भी अगले 30 वर्षों में नालंदा में प्रायः ग्यारह चीनी और कोरियायी यात्री आए थे।
  • नालन्दा विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने ज्ञान एवं विद्या के लिए विश्व में प्रसिद्ध थे। इनका चरित्र सर्वथा उज्ज्वल और दोषरहित था। छात्रों के लिए कठोर नियम था। जिनका पालन करना आवश्यक था। चीनी यात्री हेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन , धर्म और साहित्य का अध्ययन किया था। उसने दस वर्षों तक यहाँ अध्ययन किया। उसके अनुसार इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना सरल नहीं था। यहाँ केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। प्रवेश के लिए पहले छात्र को परीक्षा देनी होती थी। इसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रवेश संभव था। विश्वविद्यालय के छ: द्वार थे। प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पण्डित होता था। प्रवेश से पहले वो छात्रों की वहीं परीक्षा लेता था। इस परीक्षा में 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश के बाद भी छात्रों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था तथा अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। यहाँ से स्नातक करने वाले छात्र का हर जगह सम्मान होता था।
  • चीन में इत्सिंग और हुइली और कोरिया से हाइनीह, यहाँ आने वाले विदेशी यात्रियों में मुख्य है। 630 ई. में जब युवानच्वांग यहाँ आए थे तब यह विश्वविद्यालय अपने चरमोत्कर्ष पर था। इस समय यहाँ दस सहस्त्र विद्यार्थी और एक सहस्त्र आचार्य थे।

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  • विद्यार्थियों का प्रवेश नालंदा विश्वविद्यालय में काफ़ी कठिनाई से होता था क्योंकि केवल उच्चकोटि के विद्यार्थियों को ही प्रविष्ट किया जाता था।
  • शिक्षा की व्यवस्था महास्थविर के नियंत्रण में थी। शीलभद्र उस समय यहाँ के प्रधानाचार्य थे। ये प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् थे। यहाँ के अन्य ख्यातिप्राप्त आचार्यों में नागार्जुन , पदमसंभव , जिन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया, शांतिरक्षित और दीपंकर , ये सभी बौद्ध धर्म के इतिहास में प्रसिद्ध हैं।
  • नालंदा 7वीं शती में तथा उसके पश्चात् कई सौ वर्षों तक एशिया का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था। यहाँ अध्ययन के लिए चीन के अतिरिक्त चंपा , कंबोज , जावा, सुमात्रा, ब्रह्मदेश, तिब्बत , लंका और ईरान आदि देशों के विद्यार्थी आते थे और विद्यालय में प्रवेश पाकर अपने को धन्य मानते थे।
  • नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षा, आवास, भोजन आदि का कोई शुल्क छात्रों से नहीं लिया जाता था। सभी सुविधाएं नि:शुल्क थीं। राजाओं और धनी सेठों द्वारा दिये गये दान से इस विश्वविद्यालय का व्यय चलता था। इस विश्वविद्यालय को 200 ग्रामों की आय प्राप्त होती थी।

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  • नालंदा के विद्यार्थियों के द्वारा ही एशिया में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विस्तृत प्रचार व प्रसार हुआ था। यहाँ के विद्यार्थियों और विद्वानों की मांग एशिया के सभी देशों में थी और उनका सर्वत्रादर होता था। तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर भदंत शांतिरक्षित और पद्मसंभव तिब्बत गए थे और वहाँ उन्होंने संस्कृत , बौद्ध साहित्य और भारतीय संस्कृति का प्रचार करने में अप्रतिम योग्यता दिखाई थी।
  • नालंदा में बौद्ध धर्म के अतिरिक्त हेतुविद्या, शब्दविद्या, चिकित्सा शास्त्र, अथर्ववेद तथा सांख्य से संबंधित विषय भी पढ़ाए जाते थे। युवानच्वांग ने लिखा था कि नालंदा के एक सहस्त्र विद्वान् आचार्यों में से सौ ऐसे थे जो सूत्र और शास्त्र जानते थे, पांच सौ, 3 विषयों में पारंगत थे और बीस, 50 विषयों में। केवल शीलभद्र ही ऐसे थे जिनकी सभी विषयों में समान गति थी।

नालंदा विश्वविद्यालाय के तीन महान् पुस्तकालय थे-

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इनके भवनों की ऊँचाई का वर्णन करते हुए युवानच्वांग ने लिखा है कि 'इनकी सतमंजिली अटारियों के शिखर बादलों से भी अधिक ऊँचे थे और इन पर प्रातःकाल की हिम जम जाया करती थी। इनके झरोखों में से सूर्य का सतरंगा प्रकाश अन्दर आकर वातावरण को सुंदर एवं आकर्षक बनाता था। इन पुस्तकालयों में सहस्त्रों हस्तलिखित ग्रंथ थे।' इनमें से अनेकों की प्रतिलिपियां युवानच्वांग ने की थी। जैन ग्रंथ 'सूत्रकृतांग' में नालंदा के 'हस्तियान' नामक सुंदर उद्यान का वर्णन है। 1303 ई. में मुसलमानों के बिहार और बंगाल पर आक्रमण के समय, नालंदा को भी उसके प्रकोप का शिकार बनना पड़ा। यहाँ के सभी भिक्षुओं को आक्रांताओं ने मौत के घाट उतार दिया। मुसलमानों ने नालंदा के जगत् प्रसिद्ध पुस्तकालय को जलाकर भस्मसात कर दिया और यहाँ की सतमंजिली भव्य इमारतों और सुंदर भवनों को नष्ट-भ्रष्ट करके खंडहर बना दिया। इस प्रकार भारतीय विद्या, संस्कृति और सभ्यता के घर नालंदा को जिसकी सुरक्षा के बारे में संसार की कठोर वास्तविकताओं से दूर रहने वाले यहाँ के भिक्षु विद्वानों ने शायद कभी नहीं सोचा था, एक ही आक्रमण के झटके ने धूल में मिला दिया।

अब तक हुए उत्खनन में मिले अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर व्याख्यान हेतु 7 बड़े कक्ष एवं 300 छोटे कक्ष बनाये गये थे। विद्यार्थियों के रहने के लिए छात्रावासों की सुविधा थी। शैलेन्द्र शासक बालपुत्र देव ने तत्कालीन मगध नरेश देवपाल की अनुमति से नालन्दा में जावा से आये भिक्षुओं के निवास के लिए एक विहार का निर्माण करवाया था। यहां हस्तलिखित ग्रंथों का एक नौ मंजिला 'धर्मगज' नामक पुस्तकालय था जो तीन बड़े भवन रत्नसागर रत्नोदधि एवं रत्नरंजक नाम से विभाजित था।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ.

  • संग्रहालय-नालंदा
  • भारत के प्राचीन शिक्षा केन्द्र
  • नालन्दा-शिक्षण का प्राचीन अधिष्ठान
  • भागलपुर:एक परिचय
  • नालंदा विश्‍वविद्यालय, जहाँ ज्ञान प्राप्‍त किए बिना शिक्षा अधूरी मानी जाती थी
  • बिहार : प्रमुख ऎतिहासिक स्थल

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Nalanda University History: भारत में खुला था दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय, जानें नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ी बातें

Nalanda university: नालंदा को तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है।.

  • सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 450 ई. में की थी नालंदा विश्वविद्यालय की स्‍थापना।
  • एक समय यह विश्‍व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय था।
  • नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है।

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नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास | Nalanda University History

Nalanda vishwavidyalaya history in hindi, नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास.

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विद्या के क्षेत्र में कभी भारत का ऐसा बोलबाला था कि विदेशों से विद्यार्थी नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा लेने आते थे। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि यह सब बातें बस इतिहास बन कर रह गयी। आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने भारत को विद्याविहीन करने का प्रयास किया। आइये जानते हैं ( Nalanda University History In Hindi ) नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास क्या है :-

नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर फोटो :-

नालंदा विश्वविद्यालय फोटो - नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

Nalanda University History In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय नाम का अर्थ :-.

नालंदा विश्विद्यालय का उदय 5वीं शताब्दी में माना जाता है। नालंदा विश्वविद्यालय विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। वर्तमान समय में यह बिहार में स्थित है । 7 वीं शताब्दी के शुरुआती चीनी तीर्थयात्री, जुआनज़ांग ( Xuanzang ) के अनुसार स्थानीय परंपरा बताती है कि नालंदा नाम एक नागा से आया है – भारतीय धर्मों में नाग देवता – जिसका नाम नालंदा था।

ऐसा भी कहा जाता है कि नालंदा संस्कृत के 3 शब्दों से मिल कर बना है – ना + अलम + दा । जिसका अर्थ होता है न रुकने वाला ज्ञान का प्रवाह। नालंदा की जानकारी हमें ह्वेन सांग और इत्सिंग जैसे चीनी यात्रियों के अकाउंट से मिलती है।

ह्यून सांग ( Xuanzang ) 7 वीं शताब्दी में नालंदा आते हैं। वे इसकी स्थापना का श्रेय गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्ता 1 को देते हैं। वे लिखते हैं कि यहाँ 10,000 विद्यार्थी और  2,000 से अधिक अध्यापक रहते थे। मतलब यह एक रिहायशी विश्वविद्यालय हुआ करता था। जहाँ चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया, पर्शिया, तुर्की और श्री लंका जैसे देशों से लोग पढ़ने के लिए आते थे।

यहाँ बुद्ध धर्म शिक्षा ( Buddhism ) के साथ-साथ गणित, खगोल विज्ञान ( Astronomy ), दर्शनशास्त्र ( Philosphy ), औषधि ( Medicine ) और व्याकरण ( Grammar ) जैसे विषयों की शिक्षा भी दी जाती थी। यहाँ तक कि उपनिषदों की कुछ असली प्रतियाँ भी यहाँ मौजूद मानी जाती थीं। इतना ही नहीं यहाँ पढ़ने वालों से किसी भी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता था।

यहाँ पढ़ने वालों में हर्षवर्धन, वासुबंधू, धर्मपाल, नागार्जुन, ह्यून सांग, पद्मसंभव जैसे बड़े-बड़े नाम शामिल हैं। ऐसा भी माना जाता है प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट इस विश्विद्यालय के विद्यार्थी रहे थे। ज्ञान का ये केंद्र लगभग 800 सालों तक ऐसे ही फलता-फूलता रहा। लेकिन 12 वीं शताब्दी में अचानक ही यह अतीत के अंधेरों में खो जाता है। इसके पीछे की कहानी बड़ी रोमांचक है।

नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि नालंदा पर एक नहीं तीन आक्रमण हुए थे। पहले दो आक्रमण के बाद इसे दुबारा बना लिया गया था। लेकिन तीसरा आक्रमण इसके लिए घातक सिद्ध हुआ।

सबसे पहला आक्रमण स्कन्दगुप्त के समय 455-467 AD मिहिरकुल के नेतृत्व में हून ने किया था। हून मध्य एशिया के कबीले के एक समूह को कहते हैं। जो ख्य्बर पास के रस्ते भारत में प्रवेश करते हैं। 4 और 6 ई.पू. हुन लोगों ने भारत पर आक्रमण किया था। लेकिन स्कन्दगुप्त के वंशजों ने न सिर्फ नालंदा को दुबारा बनाया बल्कि इसे पहले से भी बड़ा और मजबूत बनाया।

नालंदा पर दूसरा आक्रमण 7 वीं शताब्दी में बंगाल के गौदास राजवंश के द्वारा किया गया था। इस आक्रमण के बाद बौद्ध राजा हर्षवर्धन इसे दुबारा बनवाते हैं।

नालंदा पर तीसरा आक्रमण किया था 1193 AD में तुर्की के शासक बख्तियार खिलजी ने। आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी को कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्विद्यालय को ध्वस्त कर दिया।

कहा जाता है की एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ गया था । बहुत से उपाय और हकीमों के इलाज के बाद भी सेहत में कोई सुधार न हुआ । ऐसे में किसी ने सलाह दी कि नालंदा महावीरा के प्रधानाध्यापक ( Principal ) राहुल श्री भद्र इलाज कर सकते हैं । एक बार उनसे इलाज करवा कर देखा जाए । बख्तियार खिलजी को किसी गैर-मुसलमान से इलाज करना मंजूर नहीं था । मगर जब उसकी सेहत में कोई सुधार न हुआ तो उसने सोचा कि एक बार राहुल को बुला कर देख लेना चाहिए।

राहुल श्री भद्र जब बख्तियार खिलजी का उपचार करने पहुंचे तो खिलजी ने उनके सामने यह शर्त रख दी कि वो इनकी दी गयी कोई भी दवा नहीं खाएगा । वह राहुल श्री भद्र को चुनौती देना चाहता था और हिन्दू को भी नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा था इसके बावजूद राहुल श्री भद्र उसको विश्वास दिलाते हैं कि वह जल्दी ही ठीक हो जाएगा । वह खिलजी को क़ुरान देते हिं और कहते हैं कि इसके कुछ पन्ने रोज पढ़िएगा। कुछ-ही दिनों में उनकी सेहत में सुधार हो जाता है ।

राहुल श्री भद्र ने क़ुरान में एक ऐसी दवा लगाई थी जो पढ़ते समय खिलजी तक पहुँच जाती। जिस कारण वह पूर्ण तौर पर सही हो जाता है। जब खिलजी को इस बारे में पता चलता है तो उसे बहुत ज्यादा असुरक्षा और उत्कंठा की भावना आ जाती है कि इन काफिरों के पास मुस्लिम हकीमों से ज्यादा ज्ञान कैसे है । बस इसी भावना में खिलजी यह निर्णय लेता है कि वह इस ज्ञान के स्त्रोत को ही समाप्त कर देगा। और यहीं से शुरुआत हुई नालंदा की बर्बादी की ।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया

नालंदा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का स्त्रोत थीं नालंदा विश्विद्याल के परिसर में स्थित पुस्तकालय की पुस्तकें। उस समय यह विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। इसका नाम धर्मगंज हुआ करता था। यह तीन बहुमंजिला ईमारत से मिल कर बनी थी। इन तीनों इमारतों का नाम था रतनसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। इसमें लगभग 90,00,000 पुस्तकों का संग्रह था।

खिलजी को जब इस बात का पता चला तो वो नालंदा पर आक्रमण करने का निर्णय लेता। हजारों की संख्या में रह रहे निहत्थे विद्यार्थियों की हत्या कर दी जाती है जिसमें से कईयों को तो जिन्दा ही जला दिया जाता है। इसके बाद पुस्तकालय में आग लगा दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि पुस्तकालय में रखी पुस्तकों को जलने में 3 महीने लग जाते हैं।

यह मात्र एक विश्विद्यालय पर ही नहीं बल्कि एक सभ्यता पर आक्रमण था। यह आक्रमण इतना गंभीर था कि इसके बाद नालंदा को एक बार फिर से वही रूप देने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। कुछ बचा तो बस दीवारों के अवशेष। बख्तियार खिलजी यहीं नहीं रुका था नालंदा के बाद उसने बिहार में स्थित विक्रमशिला और ओदान्तापुरी नामक विश्वविद्यालयों को भी नष्ट कर दिया। यह मात्र भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की हानि थी।

एक व्यक्ति की ईर्ष्या के कारण हजारों वर्षों का ज्ञान संग्रह जल कर राख हो गया। अब इस ज्ञान संग्रह को दुबारा नहीं प्राप्त किया जा सकता परन्तु भारत सरकार ने नालंदा महावीरा को शैक्षिक केंद्र ( Educational Hub ) बनाने की शुरुआत की है। जब भारत के पूर्व राष्ट्रपति, माननीय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने मार्च 2006 में बिहार राज्य विधान सभा को संबोधित करते हुए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का विचार रखा तब पुराने नालंदा के पुनर्निर्माण के सपने को साकार करने की दिशा में पहला कदम उठाया गया था।

लगभग उसी समय, सिंगापुर सरकार ने भारत सरकार को “नालंदा प्रस्ताव” प्रस्तुत किया। और प्राचीन नालंदा को एक बार फिर से एशिया का केंद्र बिंदु बनाने के लिए उसे फिर से स्थापित करने का सुझाव दिया।

उसी भावना में, बिहार की राज्य सरकार ने दूरदर्शी विचार को अपनाने के लिए तत्परता से आगे बढ़ने के लिए भारत सरकार के साथ परामर्श किया। साथ ही, इसने नए नालंदा विश्वविद्यालय के लिए उपयुक्त स्थान की खोज शुरू की। प्रकृति के पास होने के आधार पर राजगीर हिल्स में 450 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया। इस प्रकार, बिहार राज्य और भारत सरकार के बीच उच्च स्तर के सहयोग ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना शुरू से ही अपने नए अवतार में की।

अंत में, परियोजना ने गति पकड़ी, जब नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 को भारतीय संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया। जाने-माने अर्थशास्त्री ( Economist ) अमर्त्य सेन को इस विश्विद्यालय की संचालन समिति ( Governing Committee) का अध्यक्ष भी बनाया गया। सितंबर 2014 में, विश्वविद्यालय ने छात्रों के पहले बैच के लिए अपने दरवाजे खोले, लगभग आठ सौ वर्षों के अंतराल के बाद एक ऐतिहासिक विकास का आरंभ हुआ।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास से सामान्य ज्ञान :-

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महाविहार नालंदा का इतिहास | Nalanda history in Hindi

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प्राचीन वैदिक प्रक्रिया को अपनाकर प्राचीन समय में बहुत सी शिक्षात्मक संस्थाओ की स्थापना की गयी थी, जैसे की तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जिन्हें भारत की प्राचीनतम यूनिवर्सिटी में गिना जाता है।

बिहार के पटना से करीब 90 किलोमीटर और बोधगया से करीब 62 किलोमीटर दूर दक्षिण में। 14 हैक्टेयर में फैला नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष फैले है। पुरातात्विक और साहित्यिक सबूतों के आधार पर, नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ईसा पूर्व के आसपास की गई थी। जिसकी स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने की थी।

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महाविहार नालंदा का इतिहास – Nalanda History in Hindi

ऐसा कहा जाता है कि, इसके लिए हर्षवर्द्धन ने भी दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों की ओर से भी इसे संरक्षण प्राप्त था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना हुआ था।

इतिहास का अध्ययन करने पर पता चलता है कि, इस विश्व विद्यालय में करीब 780 साल तक पढ़ाई हुई थी। तब बौद्ध धर्म, दर्शन, चिकित्सा, गणित, जैसे विषयों की पढ़ाई होती थी। ऐसी मान्यता है कि।माहात्मा बुद्ध ने कई बार इस विश्वविद्यालय का दौरा किया था। और यही वजह है कि।पांचवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच यहां बौद्ध शिक्षा की भी शुरूआत की गई।

विश्व के इस पहले आवासीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर के करीब 10 हजार से भी ज्यादा छात्र एक साथ शिक्षा हासिल करते थे। जिन्हे पढ़ाने की जिम्मेदारी करीब 2 हजार शिक्षकों पर थी। यहां पढ़ने वाले छात्रों में बौद्ध छात्रों की संख्या काफी ज्यादा थी। इतिहासकारों की माने तो इस विश्वविद्यालय में सम्राट अशोक ने सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था।

कनिंघम ने की थी विश्व धरोहर नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज:

इतिहासकारों की माने तो, विश्व धरोहर नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने किया था। खुदाई से मिली जानकारी के मुताबिक विश्वविद्यालय के सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था।

इस परिसर को दक्षिण से उत्तर की ओर बनाया गया है। मठ और विहार परिसर के पूर्व में बने थे। जबकि मंदिर पश्चिम दिशा में बना हुआ है।

अभी भी इस परिसर में दो मंजिली इमारत है। ये इमारत परिसर के मुख्य आंगन के पास बना हुआ है। पुरात्व विभाग को इसे लेकर संभावना है कि, इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक इसी स्थान पर छात्रों को संबोधित करते होंगे। इस परिसर में एक छोटा सा प्रार्थना सभागार भी है। जो अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। और इस प्रार्थना सभागार में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है।

खिलजी ने क्यों जला थी नालंदा यूनिवर्सिटी- पूरा सच – Nalanda University

हम सभी जानते हैं कि।एक समय में भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। और यही वजह थी कि, यहां कई मुस्लिम आक्रमणकारियों का आना- जाना लगा रहा था। औऱ उन्ही में से एक था। तुर्की का शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी। उस वक्त भारत पर खिलजी का ही राज था।

इतिहासकारों की माने तो, एक वक्त पर खिलजी बीमार पड़ा। जिसके बाद उसके हकीमों ने उसका खूब इलाज किया लेकिन वो स्वस्थ्य नहीं हो सका। फिर किसी ने खिलजी को नालंदा यूनिवर्सिटी की आयुर्वेद विभाग के प्रधान से इलाज कराने की सलाह दी। जिसे उसने पहले ठुकरा दिया।

दरअसल खिलजी ये मानता था कि, कोई हिंदुस्तानी डॉक्टर उसके हकीमों से ज्यादा बेहतर नही हो सकता है। आखिर कार अपने सलाहकारों की राय पर खिलजी इलाज के लिए तैयार तो हो गया।

लेकिन उसने शर्त रखी कि, वो किसी भारतीय का दवा इस्तेमाल नहीं करेगा। साथ ही अगर वो स्वस्थ्य नहीं होता है। तो डॉक्टर को मौत की सजा देगा। खिलजी की ये शर्त सुनकर इलाज करने वाले डॉक्टर राहुल श्रीभद्र चिंता में पड़ गए।

इसके बावजूद उन्होने उसका इलाज किया। और खिलजी ठीक भी हो गया। लेकिन बाद में उसने द्वेश की भावना से पूरे यूनिवर्सिटी को बर्बाद कर दिया। जिसके लिए हिन्दुस्तान उसे कभी मांफ नहीं करेगा।

यहां थी तीन विशाल लाइब्रेरी:

विश्व के इस पहले विश्वविद्यालय में तीन लाइब्रेरी थीं। ऐसा कहा जाता है कि। जब विश्वविद्यालय में आग लगाई गई। तो यहां की पुस्तकें जलने में करीब 6 महीने का वक्त लगा।यहीं नहीं ये भी कहा जाता है कि, विज्ञान की खोज से संबंधित पुस्तकें विदेश लेकर चले गए थे।

नालंदा से जुडी इतिहासिक चीजे और बाते:

पारंपरिक सूत्रों के अनुसार महावीर और बुद्धा दोनों पाचवी और छठी शताब्दी में नालंदा आये थे। इसके साथ-साथ यह शरिपुत्र के जन्म और निर्वाण की भी जगह है, जो भगवान बुद्धा के प्रसिद्ध शिष्यों में से एक थे।

  • दिग्नगा, बुद्ध तर्क के संस्थापक
  • शीलभद्र, क्सुँझांग के शिक्षक
  • क्सुँझांग, चीनी बौद्ध यात्री
  • यीजिंग, चीनी बौद्ध यात्री
  • आर्यदेव, नागार्जुन का विद्यार्थी
  • अतिषा, महायाना और वज्रायण विद्वान
  • चंद्रकिर्ती, नागार्जुन के विद्यार्थी
  • धर्मकीर्ति, तर्क शास्त्री
  • नारोपा, तिलोपा के विद्यार्थी और मारप के शिक्षक

पर्यटन – Nalanda Tourism अपने राज्य में नालंदा एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो भारत ही नही बल्कि विदेशी लोगो को भी आकर्षित करता है। इसके साथ ही बुद्ध धर्म के लोग इसे पवित्र तीर्थ स्थल भी मानते है।

नालंदा मल्टीमीडिया म्यूजियम – Nalanda Multimedia Museum नालंदा में हमें एक और वर्तमान तंत्रज्ञान पर आधारित म्यूजियम देखने को मिलता है। जिनमे में 3 डी एनीमेशन के सहारे नालंदा के इतिहास से संबंधित जानकारियाँ हासिल कर सकते है।

क्सुँझांग मेमोरियल हॉल – प्रसिद्ध बुद्ध भिक्षु और यात्रियों को सम्मान देने के उद्देश्य से क्सुँझांग मेमोरियल हॉल की स्थापना की गयी थी। इस मेमोरियल हॉल में बहुत से चीनी बुद्ध भिक्षुओ की प्रतिमाये भी लगायी गयी है।

नालंदा आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम – Nalanda Archaeological Museum भारतीय आर्कियोलॉजिकल विभाग ने पर्यटकों के आकर्षण के लिये यहाँ एक म्यूजियम भी खोल रखा है। इस म्यूजियम में हमें नालंदा के प्राचीन अवयवो को देखने का अवसर मिलता है। उत्खनन के दौरान जमा किये गए 13, 463 चीजो में से केवल 349 चीजे ही म्यूजियम में दिखायी जाती है।

और अधिक लेख:

  • History in Hindi

Note:  आपके पास About Nalanda History in Hindi मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे। अगर आपको Nalanda History In Hindi Language अच्छी लगे तो जरुर हमें Whatsapp और Facebook पर Share कीजिये।

8 thoughts on “महाविहार नालंदा का इतिहास | Nalanda history in Hindi”

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Thank you. आपके द्वारा दी गई जानकारी अच्छी है

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Who constructed the Tamra Vihar in Nalanda

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नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था? जनिए इसका इतिहास | Nalanda University History in hindi

Nalanda-University-History-in-hindi

किसने जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय, इतिहास, नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ है? (Nalanda University History in hindi, kahan hai Nalanda University, Interesting Facts about Nalanda University, nalanda vishwavidyalay kahan hai) क्यों जलाया गया था नालंदा?

आज हमारे भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालयों को विश्व के टॉप शैक्षणिक संस्थानों में भले शामिल नहीं किया जाता है, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब यह देश पूरे विश्व में शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।

हमारा भारत ही था, जहां दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय खुला था, जिसका नाम नालंदा विश्वविद्यालय था। यह विश्वविध्यालय दुनिया के सबसे प्राचीन विश्वविध्यालयो मे से एक था।

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450 ई. में स्थापित हुआ यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था।

आइए आज हम आपको हमारे भारत के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास से जुड़े कुछ किस्से बताते हैं। ताकि आपको पता चल सके कि आखिर नालंदा विश्वविद्यालय को क्यो जलाया गया था?

  • भारत का नाम इंडिया कैसे पड़ा? भारत के अलग अलग नामों का इतिहास क्या है?

Nalanda-University-History-in-hindi

विषय–सूची

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास (Nalanda University History in hindi)

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की थी.

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में की गई थी। सम्राट कुमारगुप्त ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।

लेकिन सन् 1199 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद यह विश्वविद्यालय जलाकर तोड़ दिया गया था।

इतिहास के अनुसार, इस आक्रमण के दौरान विश्वविद्यालय में आग लगा दी गई थी और इस विश्वविद्यालय में उस वक्त इतनी किताबें थीं कि यह आग गई सप्ताह तक बुझ नहीं पाई थी।

इस हादसे में विश्वविद्यालय में कार्य करने वाले कई धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार दिया गया था।

वहीं, विश्वविद्यालय में मौजूद भव्य स्तूप, मंदिरों और बुद्ध भगवान की सूंदर-सूंदर मूर्तियों को भी नष्ट कर दिया गया था, लेकिन पटना से 90 किलोमीटर और बिहार शरीफ से 12 किलोमीटर दूर दक्षिण में फैले इस विश्वविद्यालय में आज भी प्राचीन खंडहर स्थित हैं।

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नालंदा विश्वविद्यालय कहां है?

दुनिया का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय बिहार की राजधानी पटना से करीब 120 किलोमीटर दक्षिण-उत्तर में मौजूद है, जहां आज भी इसके अवशेष देखे जाते हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विश्वविद्यालय में 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कक्ष और पढ़ने के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें लगभग 3 लाख से भी ज्यादा किताबें मौजूद हुआ करती थीं।

इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को मेरिट के आधार पर चुना जाता था और यहां बच्चों को फ्री में शिक्षा दी जाती थी।

यही नहीं, इस विश्वविद्यालय में बच्चों का रहना और खाना भी पूरी तरह से निशुल्क होता था।

छात्रों और अध्यापकों की बात करें, तो यहां उस समय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी और 2700 से ज्यादा अध्यापक थे।

इस विश्वविद्यालय में उस समय पर केवल भारत के ही नहीं, बल्कि कोरिया, चीन, तिब्बत, जापान, ग्रीस, इंडोनेशिया, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ने आते थे।

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नालंदा विश्वविद्यालय में कितनी लाइब्रेरी थी ?

5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त द्वारा स्थापित हुए इस विश्वविद्यालय को सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला था।

इस विश्ववविद्यालय में केवल एक ही लाइब्रेरी थी, जिसका नाम ‘धर्म गूंज’ था, जिसका मतलब होता है ‘सत्य का पर्वत।’

जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि इस लाइब्रेरी में 9 मंजिल थे और इन 9 मंजिलों में तीन भाग बनाए गए थे, जिनका नाम ‘रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’ था।

इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, लैंग्‍वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषय पढ़ाए जाते थे।

इस विश्वविद्यालय में कई ऐसे महान विद्वानों ने पढ़ाई की थी, जिनमें हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन जैसे कई सम्राट शामिल हैं।

भारत के महान गणिज्ञ आचार्य आर्यभट्ट विश्ववविद्यालय का एक हिस्सा थे और गुप्त शसको द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख बनाए गए थे। केवल इतना ही नही वराहमिहिर भी इसी विश्ववविद्यालय का एक हिस्सा थे।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने आग लगाई और क्यों?

भारत के इस प्राचीन विश्वविद्यालय को तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने आग लगवा दी थी। दरअसल, खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था।

फिर एक दिन बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गए थे, उनके हकीमों ने उनकी बीमारी का काफी इलाज किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार करवाने की सलाह दी गई।

जिसके बाद आचार्य को बुलवाया गया और उनके सामने इलाज से पहले शर्त रख दी की वह किसी हिंदुस्तानी दवाई का इस्तेमाल नहीं करेंगे। यही नहीं, आचार्य को यह भी कहा गया कि अगर वह ठीक नहीं हुए तो आचार्य की हत्या करवा दी जाएगी।

आचार्य ने खिलजी की शर्त को मानते हुए उनका उपचार किया और अगले दिन उनके पास कुरान लेकर गए और खिलजी से कहा कि कुरान के इस पृष्ठ को पढ़िए आप ठीक हो जाएंगे।

खिलजी ने आचार्य की बात को मानते हुए कुरान को पढ़ा और वो ठीक हो गए। खिलजी को अपने ठीक होने की खुशी तो हुई लेकिन उन्हें इस बात का गुस्सा था कि भारतीय वैद्यों के पास हकीमों से ज्यादा ज्ञान क्यों है?

आचार्य और बौद्ध धर्म का एहसान मानने की बजाय खिलजी ने गुस्से में सन् 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगवा दी।

विश्वविद्यालय में जितनी भी किताबें थी सब में आग लग गई थी और वह किताबें लगभग तीन सप्ताह तक जलती रही थी। खिलजी ने उस विश्वविद्यालय के हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु को भी मार डाला था।

जिस खिलजी को आचार्य ने बचाया उसी खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय का नामो-निशान मिटाकर रख दिया था।

नालंदा विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है?

नालंदा विश्वविद्यालय अपने प्राचीन इतिहास के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्धा है। यहां आज भी विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद है। यही कारण है कि नालंदा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।

यहां आप विश्वविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देख सकते हैं। वहीं, इस विश्वविद्यालय के आस-पास में भी घूमने के लिए कई स्थल हैं, जो बेहद सुंदर है।

भगवान बुद्ध ने इसी विश्वविद्यालय में अपना उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। इतनी ही नहीं, नालंदा में राजगीर में कई गर्म पानी के झरने है। इसके अलावा यहां पर ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड और लंगटे कुण्ड भी मौजूद है।

इस विश्वविद्यालय के आस-पास कई विदेशी मंदिर भी हैं, जिनमें चीन का मंदिर, जापान का मंदिर और जामा मस्जिद भी है, जो बिहार में काफी पॉपुलर है। यह बिहार का बेहद पुराना और विशाल मस्जिद है।

नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting Facts about Nalanda University)

  • नालंदा विश्वविद्यालय में 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कमरे और अध्यन के लिए 9 मंजिला विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से भी ज्यादा किताबें मौजूद थीं।
  • नालंदा विश्वविद्यालय लगभग 800 साल तक अस्तित्व में रहा था।
  • इस विश्वविद्यालय में छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी और बच्चों का खाना-रहना भी पूरी तरह से नि:शुल्क होता था।
  • इस विश्वविद्यालय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ाई करते थे और 2700 से ज्यादा अध्यापक इस विश्वविद्यालय में शिक्षा देते थे।
  • जब नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई की गई थी, तब यहां कई मुद्राएं मिली थी, जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि सम्राट कुमारगुप्त के बाद यह विश्वविद्यालय कई सालों तक महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों के संरक्षण में रहा था।
  • नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास चीन के हेनसांग और इत्सिंग ने तब खोज निकाला था, जब ये दोनों 7वीं शताब्दी में भारत देश आए थे। यहां से लौटने के बाद इन्होंने इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से लिखा था।
  • इस विश्वविद्यालय में लोकतान्त्रिक प्रणाली से कार्य किया जाता था और यहां पर फैसले सभी की सहमति से लिए जाते थे, जिनमें सन्यासियों, बच्चों और टीचर्स की राय भी शामिल होती थी।

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Nalanda University History, Library, Destruction and Reconstruction_1.1

Nalanda University History, Library, Destruction and Reconstruction

Nalanda, an ancient center of higher learning in Bihar, India, holds a remarkable history spanning from 427 to 1197 AD.

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Table of Contents

Nalanda, an illustrious institution of ancient India, stands as a historic epicenter of advanced education located in Bihar, India. Established in AD 427 in the northeastern part of India, near the present-day southern border of Nepal, this renowned university continued its educational legacy until AD 1197. While its primary focus lay in the realm of Buddhist studies, it also offered a wide spectrum of education, encompassing fine arts, medicine, mathematics, astronomy, politics, and military strategy. This article serves as a comprehensive exploration of Nalanda University.

History of Nalanda University

Nalanda, an ancient center of higher learning in Bihar, India, holds a remarkable history spanning from 427 to 1197 AD. Founded in the 5th century AD, this prestigious institution, situated in northeastern India not far from the current southern border of Nepal, stood as a beacon of knowledge and wisdom.

Initially dedicated to Buddhist studies, Nalanda University evolved over time to encompass a diverse curriculum, including fine arts, medicine, mathematics, astronomy, politics, and the art of warfare. Its sprawling campus featured eight separate compounds, ten temples, meditation halls, classrooms, serene lakes, and lush parks.

Who Built Nalanda University?

Nalanda University was founded during the reign of the Gupta dynasty by Kumaragupta I, often referred to as Kumaragupta I (also known as Kumaragupta the Great). Kumaragupta I was a notable Gupta emperor who ruled during the 5th century CE. He is credited with the establishment of Nalanda University in Bihar, India, around the early 5th century AD. Kumaragupta I’s patronage and support played a crucial role in the foundation and development of this prestigious institution. However, it was under the patronage of his successors, particularly King Harsha, that Nalanda flourished and reached its zenith. The university received generous grants and support from various rulers, which contributed to its growth and reputation.

Why Nalanda University is Famous?

Nalanda University gained fame not only for its sheer size but also for its commitment to academic excellence. It boasted a vast library, known as the “Dharma Gunj,” which housed countless scrolls, manuscripts, and texts from different parts of the world. This library was a treasure trove of knowledge and played a pivotal role in the dissemination of wisdom across borders.

Moreover, Nalanda was home to renowned scholars such as Nagarjuna, Aryadeva, and Dharmapala, whose contributions to Buddhism and other fields of study are still revered today. The university’s intellectual and cultural exchange between scholars of different backgrounds enriched its academic environment.

Attacks on Nalanda University

Nalanda University, a symbol of ancient Indian knowledge and scholarship, faced two notable attacks during its history.

  • The first attack occurred between 455 and 470 AD when the Hunas, a Central Asian tribal group, invaded Nalanda during the reign of Emperor Samudragupta of the Gupta Empire. The motive behind this attack was primarily plunder, as the Hunas sought to loot the university’s valuable resources. Although the damage was not severe, Skanda Gupta, another Gupta Emperor, re-established the university, and during his reign, the renowned Nalanda library was founded.
  • The second attack transpired in the early 7th century when Goudas Rajvansh, the emperor of Bengal, targeted Nalanda due to political tensions with Emperor Harshavardhana of Kannauj. The attack was motivated by political rivalry, leading to some destruction. However, Harshavardhana’s efforts led to the university’s restoration, enabling Nalanda to continue its mission of global knowledge dissemination. These incidents, while disruptive, underscore Nalanda’s enduring legacy as a center of learning.

Ancient Nalanda University’s Destruction

In 1193 AD, Nalanda University suffered a devastating attack by Bakhtiyar Khilji, a general serving under Qutubuddin Aibak. Unlike previous attacks on the university, this invasion was particularly fatal, and it marked the end of Nalanda’s prominence as a center of learning.

The motivation behind Bakhtiyar Khilji’s assault on Nalanda was not political but rather personal. It is recounted that Khilji was in poor health and had sought medical help from various practitioners without success. Desperate for a cure, he turned to Rahul Sri Bhadra, the principal of Nalanda University at the time, who successfully treated him. However, Khilji’s sense of insecurity grew as he felt threatened by the knowledge possessed by Indian scholars, particularly in the field of Ayurveda. In an attempt to eliminate this perceived threat, he decided to destroy Nalanda University.

The destruction wrought by Bakhtiyar Khilji’s attack was catastrophic. His primary target was the university’s library, which housed an astonishing collection of approximately 90 lakh (9 million) books and manuscripts. He set fire to the library, and historians estimate that it took three months to burn down this repository of knowledge completely. In addition to the destruction of the library, Bakhtiyar Khilji mercilessly killed the monks and scholars residing within the university. His intent was to prevent the transmission of knowledge from one generation of scholars to the next.

The devastation inflicted upon Nalanda University during this attack was so profound that it marked the end of an era. Subsequent rulers were unable to restore the institution to its former glory, and the flow of knowledge from Nalanda came to a tragic and irreversible halt. This tragic event remains a poignant reminder of the fragility of human knowledge and the consequences of cultural and intellectual destruction.

Nalanda University Library

                                                              

The library of the ancient Nalanda University is referred to as Dharmaganja (also written as Dharma Gunj) by traditional Tibetan sources, and loosely translates to “Treasury of Truth.”This grand edifice had the remarkable capacity to house an astounding 90 lakh (9 million) books and manuscripts. Such was its vastness that during the devastating invasion led by Bakhtiyar Khilji, it tragically took three long months for this immense repository of knowledge to be completely consumed by flames. The loss of Dharma Gunj and its invaluable collection remains a somber testament to the destruction of an irreplaceable treasure trove of ancient wisdom and scholarship.

Nalanda University Reconstruction

The reconstruction of Nalanda University in the modern era is a remarkable and ambitious endeavor aimed at reviving the legacy of this ancient center of learning. Here is an overview of the reconstruction of Nalanda University:

  • Idea and Inception: The idea of reviving Nalanda University was first mooted by the former President of India, Dr. A.P.J. Abdul Kalam, in 2006 during his address to the Bihar State Legislative Assembly. Simultaneously, the Singapore government proposed the “Nalanda Proposal” to the Indian government, suggesting the re-establishment of Nalanda as a prominent educational institution.
  • Government Initiatives: The Government of India, along with the State Government of Bihar, played a pivotal role in the reconstruction of Nalanda University. A suitable location for the new university campus was identified, comprising 450 acres of land at the base of the scenic Rajgir Hills in Bihar.
  • International Support: Recognizing the historical significance of Nalanda and its potential as a modern center of learning, leaders from sixteen member states of the East Asia Summit (EAS) endorsed the proposal to re-establish Nalanda University. This international support underscored the importance of this initiative on a global scale.
  • Nalanda University Act: The project took a significant step forward when the Nalanda University Act 2010 was passed in both houses of the Indian Parliament. This act provided the legal framework for the establishment and functioning of the new Nalanda University.
  • Inauguration and Enrollment : In September 2014, Nalanda University opened its doors for the first batch of students, marking a historic moment after a gap of nearly eight centuries. The new university focused on interdisciplinary studies and global collaboration, embodying the spirit of its ancient predecessor.
  • Contemporary Focus : The revived Nalanda University aims to carry forward the essence of the original institution by fostering an environment of diverse learning, research, and international cooperation. It focuses on a wide range of academic disciplines and encourages scholars and students from across the world to engage in collaborative knowledge creation.
  • Recognition: Nalanda University has been recognized as an “Institute of National Importance” by the Government of India, highlighting its critical role in modern education and research.

The reconstruction of Nalanda University serves as a testament to the enduring value of education and the preservation of intellectual heritage. It strives to recapture the spirit of ancient Nalanda while adapting to the needs and challenges of the contemporary world, making it a symbol of India’s commitment to education and global collaboration.

Nalanda University’s current status

Nalanda University (NU) presently operates from its temporary campus located in Rajgir, Bihar. Additionally, the university utilizes the Rajgir International Convention Centre, an impressive facility equipped with diverse auditoriums, seminar rooms, an art gallery, a cinema theater, and a cafeteria.

Nalanda University’s legacy

Nalanda University’s legacy is a testament to intellectual excellence, interdisciplinary learning, and global outreach. Established in the 5th century AD, it attracted scholars and students from across the world, fostering cultural exchange and knowledge dissemination. The university’s legendary library, the “Dharma Gunj,” symbolized the importance of preserving and sharing knowledge. Despite facing adversity, Nalanda demonstrated resilience and continued its mission of education. Its revival in the modern era underscores the enduring legacy of this ancient institution. Nalanda’s influence inspires scholars and institutions worldwide, serving as a symbol of human curiosity and the pursuit of enlightenment.

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Nalanda University FAQs

Who established nalanda university.

Kumargupta founded Nalanda University in the 5th century A.D. He was also called Shakraditya.

What was the name of the library at Nalanda?

The library of the ancient Nalanda University is referred to as Dharmaganja (also written as Dharma Gunj).

Who destroyed Nalanda University?

In the 1190s the university was destroyed by a marauding troop of invaders led by Turko-Afghan military general Bakhtiyar Khilji.

Why the Nalanda University was so famous?

Nalanda's main importance comes from its Buddhist roots as a center of learning.

When was Nalanda University rebuilt?

The university came into existence on 25 November 2010, when the Nalanda University Act 2010 was implemented.

Piyush

Greetings! I'm Piyush, a content writer at StudyIQ. I specialize in creating enlightening content focused on UPSC and State PSC exams. Let's embark on a journey of discovery, where we unravel the intricacies of these exams and transform aspirations into triumphant achievements together!

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Nalanda: powerful then, powerful now.

Profile image of Jan  Westerhoff

2023, Buddhadharma Magazine, Spring 2023, 12-23.

This essay provides a popular account of the historical and religious significance of Nālandā university.

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Dr. Pintu Kumar

This article has been published in 2010 by the Icfai University Journal of History and Culture. It talks about the cultural/everyday life of ancient Nalanda University, the oldest, largest organised Buddhist educational institution of the pre-modern India. It shows that there was a close relationship between the study and the veneration.

The Journal of the World Universities Forum

Śrī Nālandā Mahāvihāra was a symbol of monastic, organized and institutional learning in ancient India. It provided instruction to all in Buddhist religion and philosophy. Nationalist historians claimed that Nālandā's curriculum incorporated both religious and secular subjects and Medicine was one of the popular courses here. The present research critically examines this popular conception and investigates how popular was studied medicine at Nālandā. It seems that studies in medicine at Nālandā was not serious about religion and philosophy and concentrated on minor health problems of its monks and residents. The disciplined and simple life of residents keep them healthy and the medical studies did not play that much important role in the life of the campus.

Hualin International Journal of Buddhist Studies

Kashshaf Ghani

Nalanda University has been established with a vision of being a foremost international institution in India. It begun its academic activities from 2014. The University is posed to be a unique meeting ground for various branches of knowledge from across the globe. The article is an attempt at highlighting some of the primary ideas keeping which in mind the University was conceived, and which the academic community in Nalanda University is committed to pursuing as part of its teaching-learning programme.

Soraj Hongladarom

During its heyday from the fifth to the twelfth centuries C.E., Nalanda Monastery was one of the largest and most advanced knowledge producing and transmitting institutions in the world. Tens of thousands of monks came from many parts of India as well as various parts of Asia to study there. The monastery complex taught not only the teachings of the Buddha, but also subjects such as astrology, music, grammar, rhetoric, medicine, indeed the entire corpus of knowledge that was available in the world at that time. It is therefore not difficult to imagine that these intense academic activities included not only teaching of transmitted texts, but must also have included active interpretations of these texts, as well as very strong creative activities in producing new knowledge. Thus, in the attempt to search for the indigenous source of scientific and technological creativity for Asia, it is impossible to neglect the formidable contribution of Nalanda Monastery. In the proposed paper, I will discuss the role of the Monastery (or university) in knowledge production and refinement of technological capabilities. The paper will also focus on the philosophical and epistemological aspects of Mahayana Buddhism, especially on how the Doctrine of Emptiness (Śūnyatā) might have a bearing on how scientific and technological capabilities in Asia could be further developed.

The NSC Working Paper Series is published electronically by the Nalanda–Sriwijaya Centre of ISEAS- Yusok Ishak Institute © Copyright is held by the author or authors of each Working Paper. NSC Working Papers cannot be republished, reprinted, or reproduced in any format without the permission of the paper’s author or authors. Citations of this electronic publication should be made in the following manner: Mark E. Long, An Eighth-Century Commentary on the Nāmasaṅgīti and the Cluster of Temples on

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facts about nalanda university in hindi - नालन्दा विश्वविद्यालय

facts about nalanda university in hindi – नालंदा विश्वविद्यालय

Table of Contents

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास और रोचक तथ्य – nalanda history in hindi

नालंदा विश्वविद्यालय को आज भी पूरी दुनिया बहुत सम्मान के साथ याद करती है. अपने समय में यह दुनिया का सबसे महान शिक्षा केन्द्र माना जाता था, जहां पूरी दुनिया से विद्यार्थी विद्या अध्ययन करने आते थे. इस विश्वविद्यालय को भारत का गौरव स्थल माना जाता है.

लगभग ढाई हजार साल पहले भारत में नालंदा विश्वविद्यालय भारत के तीन प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक था. बाकि दो विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे. तक्षशिला विश्वविद्यालय आज पाकिस्तान में है. विक्रमशिला विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय बिहार में स्थित है.

नालंदा विश्वविद्यालय कहां स्थित है? – story of nalanda vishwavidyalaya

नालंदा विश्वविद्यालय बिहार के नालंदा जिले में स्थित है. इस जिले का नामकरण इस प्राचीन विश्वविद्यालय के सम्मान में रखा गया है. नालंदा के खंडहर को इसी जिले में खोजा गया था. विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है.

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास- short note on nalanda university in hindi

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना है. यह उस वक्त एशिया में शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र था. इसकी विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक समय में इसमें 10 हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे और 1 हजार 500 शिक्षक उन्हें ज्ञान देने का काम किया करते थे.

इस बारे में कोई पुष्ट प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इतिहासविद् यह मानते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने 5वीं शताब्दी में की थी.

नालंदा विश्वविद्यालय में नागार्जुन, शीलभद्र, आर्यदेव, संतरक्षित, वसुबंधु, दिग्नाग, धर्मकीर्ति, कमनशील, अतिस, दीपकर, कुमार जीव तथा पद्मसंभव आदि आचार्यों ने नालंदा से ही शिक्षा प्राप्त की थी. नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के हरेक विधा की शिक्षा प्रदान किया करता था. सभी भारतीय राजवंशों ने नालंदा को पर्याप्त सहयोग और दान दिया जिससे यह संस्था समय के साथ मजबूत होती चली गई.

नालंदा विश्वविद्यालय का नाम कैसे पड़ा?

नालंदा विश्वविद्यालय का नामकरण भी बहुत रोचक है. नालंदा दरअसल संस्कृत के एक श्लोक से प्रभावित होकर इस विश्वविद्यालय को नामित किया गया. वह श्लोक है- नालम् ददाति इति नालन्दा. इसका अर्थ जो नालम यानि ज्ञान प्रदान करे वही नालन्दा है. संस्कृत में कमल के फूल की डंडी को नाल कहा जाता है. कमल के फूल की कल्पना ब्रह्मा की नाभि से निकलने वाले कमल नाल से की गई है जिस पर विष्णु विराजमान है. यहां ब्रह्मा को परम और नाल को ज्ञान का प्रतीक माना गया है. दा का अर्थ देना है और ज्ञान देने वाले संस्थान को इसी आधार पर नालंदा कहा गया.

नालंदा जिले का इतिहास- Nalanda district history in hindi

नालंदा विश्वविद्यालय बिहार के नालंदा जिले में स्थित है. बिहार का नालंदा जिला अपने इतिहास के पूरी दुनिया में जाना जाता है. नालंदा में पांचवीं और छठी ईसा पूर्व में भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने अपने दर्शन का लाभ दिया. जैन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि नालंदा राजगीर नाम के गणराज्य का एक विकसित उपनगर था. कुछ जैन ग्रंथों में यह माना गया कि भगवान महावीर का जन्म नालंदा के निकट कुण्डलपुर ग्राम में हुआ था. यहां उन्हांेने अपने जीवन के बहुमूल्य 15 वर्ष बितायें.

नालंदा में ही भगवान बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों सारिपुत्र और मार्दगलापन का जन्म हुआ था. सारिपुत्र की मृत्यु भी यहीं पर हुई और उनका मृत्यु स्थल आज बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिये पवित्र स्थल बन चुका है. सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये नालंदा में कई स्मारकों और मंदिरों का निर्माण करवाया. यहां स्थित नालंदा विहार सम्राट अशोक द्वारा ही बनवाया गया था. ह्वेनसांग नाम का चीनी यात्री भी नालंदा आया और उसने यहां स्थित विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की थी.

कैसे नष्ट हुआ नालंदा विश्वविद्यालय? – Why Bakhtiyar Khilji destroyed Nalanda University?

नालंदा विश्वविद्यालय के नष्ट होने की प्रक्रिया बहुत ही दुखद है. भारत उस समय मुस्लिम आक्रमणों का सामना कर रहा था. भारत के सोमनाथ को महमूद गजनवी ने नष्ट कर दिया था. समय-समय पर आये आक्रमणकारियों में बख्तियार खिलजी भी एक था. उस समय बंगाल और बिहार मुस्लिम आक्रांताओं की भेंट चढ़ रहे थे.

बख्तियार खिलजी ने 1193 में नालंदा पर आक्रमण कर दिया. उसने इस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगवा कर उसे नष्ट कर दिया. मान्यताओं के अनुसार वह आग कई माह तक जलती रही. मान्यताओं के अनुसार यहां पुस्तकालय में 90 हजार से ज्यादा पांडूलिपियां रखी हुई थी और लाखों की संख्या में पुस्तकों का संग्रह था.

इसके बाद मुद्रित मुद्रा नाम के एक व्यापारी ने इसका पुनर्निर्माण करवाया और मगध के मंत्री कुकूटा सिद्ध ने एक मंदिर का निर्माण करवाया जो कुछ समय बाद देख-रेख के अभाव में नष्ट हो गये. नालंदा के उस विराट भवन के खंडहर आज भी मौजूद है. यहां से हिंदू और बौद्ध मूर्तियां मिलती है.

नालंदा विश्वविद्यालय का भवन – Nalanda University Real Story & History in Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर जिले में स्थित बड़ा गांव नाम के स्थान पर मिले. सबसे पहले इन खंडहरों को बकानन हैमिल्टन नाम के अंग्रेज इतिहासकार ने खोजा. समय के साथ इस स्थान पर खुदाई होती रही. एक अनुमान के अनुसार यह विश्वविद्यालय सात मील में फैला हुआ था लेकिन खुदाई का काम सिर्फ एक मील के भीतर ही किया गया है.

खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर यह अंदाजा लगाया गया है कि यह शिक्षा केन्द्र मूल रूप से दो भागों में बंटा हुआ था. एक हिस्से में शिक्षा केन्द्र था और दूसरे हिस्से में बौद्ध मंदिर तथा विहार था. यहां बौद्ध मंदिरों की एक श्रृंखला मिलती है. मंदिरों के तीन तल मिले है, इससे अंदाजा लगाया गया है कि यहां कम से कम तीन तल तो थे ही, हो सकता है कि ऊपर के तल समय के साथ नष्ट हो गये हों.

यहां खुदाई से चार मंदिर और भगवान बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र की समाधि मिली है. समाधि को बौद्ध धर्म में स्तूप कहा गया है. इस स्थान को सारिपुत्र स्तूप भी कहा जाता है. इस स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था और यह करीब ढाई हजार साल पुराना है. यह स्तूप सात बार नष्ट किया गया. यह मिट्टी से ढका हुआ है.

नालंदा के प्रमुख बौद्ध मंदिर – about nalanda khandar

नालंदा अपने बौद्ध मंदिरों के लिये भी विख्यात है. यहां वैसे तो कई मंदिर है लेकिन उनके खंडहर ही शेष हैं. मंदिरों का नामकरण नहीं है इसलिये इनको संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया गया है. मंदिर संख्या 1 और मंदिर संख्या 2 सामान्य है लेकिन मंदिर संख्या 3 विशेष है. यहां स्तूपों की एक श्रृंखला मिलती है और चैकोर आकार के इस मंदिर के सात बार बनने और गिरने के साक्ष्य मिलते हैं.

यहां के खंडहरों में बौद्ध मूर्तियां और छोटे-बड़े कई स्तूप दिखाई देते हैं जो यहां के महान गुरूओं से संबंधित हैं. नालंदा में सिर्फ बौद्ध मंदिर ही नहीं बल्कि हिंदू मंदिर भी बहुतायत से मिलते हैं. यहां स्थित सूर्य मंदिर दर्शनीय है. यहां शिव-पार्वती, सूय और विष्णु की मूर्तियां देखने योग्य है. यहां साल में दो बार मेले का आयोजन होता है. दिपावली के बाद लगने वाला छठ मेला ज्यादा बड़ा मेला है.

नालंदा के अन्य दर्शनीय स्थल

नालंदा में विश्वविद्यालय के साथ जुड़े कई और दर्शनीय स्थान है. यहां पर सरकार द्वारा पाली भाषा के अध्ययन के लिये पाली संस्थान की स्थापना की गई है. नालंदा के खण्डहरों के अवशेषों को सुरक्षित रूप से पर्यटकों को दिखाने के लिये एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है.

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Nalanda: 9 Million Books Burnt in 1193 by Bakhtiyar Khilji

Nalanda University

Nalanda University! The very utterance of this name will transport you to India’s ancient terrain of knowledge. This ancient center of higher learning, located in Bihar (in the ancient kingdom of Magadha), is India’s second oldest university after Takshila. Spread over an area of 14 hectares, it was a principal seat of learning from the last century of BCE till (the Turkish invasion of) 1193, attracting students from as far as Tibet, China, Greece, and Persia. While datable history of Nalanda University as per literary records and inscriptions started from the Gupta period, dating back to at least 2100 years, archaeological excavations and further discoveries prove it existed since the period beyond 1200 BCE.

All of the ancient Indian universities including Nalanda followed highly formalized methods of Vedic learning. It was the Guptas who patronized university education, leading to the establishment of Nalanda University. A seal identifying a monarch named Shakraditya believed to be Kumaragupta I, a Gupta emperor, is considered the founder of Nalanda.

While students from across the world enrolled for higher studies, there have been evidences of kings from foreign lands donating for the building of structures within the Nalanda University complex. There is archaeological evidence of a Shailendra king of Indonesia who built a structure within the campus. Nalanda University was a residential seat of learning and the campus contained 10 temples, classrooms, meditation halls, monasteries, dormitories, etc. including lakes and parks spread across eight compounds. The university accommodated over 10,000 students and 2,000 teachers.

To quote AICTE on Nalanda University from its article on ‘Ancient Universities in India’,

“The center had eight separate compounds, 10 temples, meditation halls, classrooms, lakes and parks. It had a nine-story library where monks meticulously copied books and documents so that individual scholars could have their own collections. It had dormitories for students, perhaps a first for an educational institution, housing 10,000 students in the university’s heyday and providing accommodations for 2,000 professors. Nalanda University attracted pupils and scholars from Korea, Japan, China, Tibet, Indonesia, Persia and Turkey.”

According to accounts by pilgrim monks from East Asia and other historians, the curriculum in Nalanda University included study of Mahayana Buddhism, the Vedas , Logic, Sanskrit Grammar, Medicine, Samkhya, and more subjects on every field of learning.

Nalanda was ransacked and destroyed by Turkish Muslim invaders, also called Mamluks, under Bakhtiyar Khilji in 1193 AD. The great library of Nalanda University was so vast that it is reported to have housed more than 9 million manuscripts. According to traditional Tibetan sources, the library at Nalanda University was spread over three large multi-storeyed buildings. One of these buildings had nine storeys that housed the most sacred manuscripts. The library burned for three months after the invaders set fire to the buildings. The Muslim invaders ransacked and destroyed the monasteries and drove the monks from the site.

To quote Paul Monroe’s Encyclopaedia of History of Education, Volume 1 by Paul Monroe about the three multi-storey libraries and Sanskrit texts:

We have already seen that I-tsing stayed for his studies at Nalanda for the long period of ten years (A. D. 675-85), during which he collected there some 400 Sanskrit texts amounting to 500,000 slokas (p.xvii). This shows that Nalanda possessed a well-equipped library. Information on the Nalanda University Library is given in the Tibetan accounts, from which we know that the Library, situated in a special area known by the poetical name of Dharmaganj a (Mart of Religion), comprised three huge buildings, called Ratnaagara, Ratnodadhi, and Rat-naranjala, of which Ratnasagara, which was a ninestoreyed building, specialized in the collection of rare sacred works like Praniapa-ramtia-sutra and Tantrika books like Samajaguhya and the like.

Nalanda Libraries

Description about Nalanda University Libraries in the book ‘Paul Monroe’s Encyclopaedia of History of Education, Volume 1’ by Paul Monroe.

Bakhtiyar Khilji, a chieftain, was in the service of a commander in Awadh. The Persian historian, Minhaj-i-Siraj in his book  Tabaqat-i Nasiri , recorded his deeds a few decades later. Khilji was assigned two villages on the border of Bihar which had become a political no-man’s land. Sensing an opportunity, he began a series of successful plundering raids into Bihar. He was recognized and rewarded for his efforts by his superiors. Emboldened, Khilji decided to attack a fort in Bihar and was able to successfully capture it, looting it of a great booty.

nalanda university essay in hindi

Barbarian Khilji in a painting from Hutchinson’s ‘Story of the Nations’. It depicts Khilji trying to make sense of a manuscript. Source: Wikipedia

Minhaj-i-Siraj wrote of this attack:

“Muhammad-i-Bakht-yar, by the force of his intrepidity, threw himself into the postern of the gateway of the place, and they captured the fortress, and acquired great booty. The greater number of the inhabitants of that place were Brahmans, and the whole of those Brahmans had their heads shaven; and they were all slain. There were a great number of books there; and, when all these books came under the observation of the Musalmans, they summoned a number of Hindus that they might give them information respecting the import of those books; but the whole of the Hindus had been killed. On becoming acquainted [with the contents of those books], it was found that the whole of that fortress and city was a college, and in the Hindui tongue, they call a college Bihar.”

Here is a screenshot of the above quote from Minhaj-i-Siraj’s book Tabaqat-i Nasiri translated by Raverty:

Nalanda University attack

Minhaj-i-Siraj also wrote in his book Tabaquat-I-Nasiri  about thousands of monks being burned alive and thousands beheaded as Khilji tried his best to uproot Buddhism and plant Islam by the sword. The burning of the library continued for several months and ‘smoke from the burning manuscripts hung for days like a dark pall over the low hills.’

Nalanda University

Nalanda University before excavations. Source: Wiki Commons

According to another historical source, Rahul Sri Bhadra, a Buddhist scholar of Ayurveda treated Bakhtiyar Khilji for an illness which was deemed incurable by his court Haqims. Disturbed by the fact that an Indian scholar and teacher knew more than the Haqims of his own court, Khilji decided to destroy the roots of all knowledge and Ayurveda in this country. So he set fire to the Great Library of Nalanda and burned down 9 million manuscripts! Given the three multi-story libraries that also included a nine storey library evidenced by literary records, 9 million is just a number. The number of manuscripts the libraries accommodated that catered to 10,000 students and 2000 teachers must be beyond this number.

It has been wrongly interpreted that Nalanda was only a Buddhist centre. According to finds by the ASI, many artefacts discovered were of Hindu deities. To quote a few lines from a research paper on these finds titled ‘ Recent Archaeological Investigations in Nalanda and Surroundings (Bihar), India ‘ by Jalaj Kumar Tiwari and Neetesh Saxena, published in academia.edu, “ Eighteen stone sculptural fragments, datable from post-Gupta to Pala period, were noticed at  Gauraiya-sthana . Among them  Uma- Maheshwar, Surya, Vishnu, Chamunda , birth of  Buddha  and an inscribed votive  stupa  are noteworthy.”  To quote further, in another site of Nalanda were discovered amongst many artefacts were  “ Ganesha, Uma-Maheshwar, Brahma  (48 × 38 cm),  Tara,  Vishnu,  Buddha , votive  stupa ,  Mahisamardani  (70 × 40 × 15 cm) are noteworthy. A stone axe (celt)  having 7.5 cm length is also worshiped as  Siva-linga  at  Sati-sthana.”

Shakyashribhadra, the recorded last king of Nalanda fled to Tibet in 1204 CE at the invitation of the Tibetan translator Tropu Lotsawa (Khro-phu Lo-tsa-ba Byams-pa dpal). In Tibet he started an ordination lineage of the Mulasarvastivadins to complement the two existing ones.

When the Tibetan translator Chag Lotsawa (Chag Lo-tsa-ba, 1197–1264) visited the site in 1235, he found it damaged and looted, with a 90-year-old teacher, Rahula Shribhadra, instructing a class of about 70 students. During Chag Lotsawa’s time, there was an incursion by Turkish soldiers that caused the remaining students to flee. Despite all this, “remnants of the debilitated Buddhist community continued to struggle on under scare resources until c. 1400 CE when Chagalaraja was reportedly the last king to have patronized Nalanda.”

Author Shri D.C. Ahir considers the destruction of the temples, monasteries, centers of learning at Nalanda and northern India to be responsible for the demise of ancient Indian scientific thought in mathematics, astronomy, alchemy, and anatomy. Most of the manuscripts burnt contained valuable inputs on these subjects.

Regarding antiquity of Nalanda University, most historians consider 3rd to 5th century. According to ‘Puranas’, inscriptions, and severa l Indian literary historical evidences, Gupta era was during the last 300 years of BCE. As per Vedveer Arya’s book Chronology of Ancient India , the Gupta era commenced from 335 BCE. As the foundation of Nalanda University was laid by a Gupta Emperor, this learning centre flourished from the last years of BCE until Bakhtiyar Khilji destroyed it.

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Disclaimer: The views expressed here and/or research done are solely of the author. My India My Glory does not assume any responsibility for the validity or information shared in this article by the author.

Featured image courtesy:  Masterstudies.

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Nalanda University History: शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र कैसे बना खंडहर? जानें नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

तक्षशिला के बाद नालंदा विश्वविद्यालय की चर्चा होती है. बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे..

दुनिया के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों की बात जब भी आती है तो नालंदा विश्वविद्यालय का नाम सबसे ऊपर आता है. बिहार की राजधानी पटना से करीब 120 किलोमीटर दक्षिण-उत्तर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं. इतिहासकारों की मानें तो, यह भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्वविख्यात केंद्र था.

दुनिया के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों की बात जब भी आती है तो नालंदा विश्वविद्यालय का नाम सबसे ऊपर आता है. बिहार की राजधानी पटना से करीब 120 किलोमीटर दक्षिण-उत्तर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं. इतिहासकारों की मानें तो, यह भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्वविख्यात केंद्र था.

बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे. बताया जाता है कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फ्रांस और तुर्की से छात्र इस विश्वविद्यालय आते थे. आज वो विश्वविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है. आइए जानते हैं दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय के इतिहास (Nalanda University History) पर एक नजर डालते हैं.

बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे. बताया जाता है कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फ्रांस और तुर्की से छात्र इस विश्वविद्यालय आते थे. आज वो विश्वविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है. आइए जानते हैं दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय के इतिहास (Nalanda University History) पर एक नजर डालते हैं.

नालंदा, प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध केन्द्र था. बौद्धकाल में भारत शिक्षा का केंद्र था. इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी. नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी. यहां इतनी किताबें रखी थीं कि जिन्हें गिन पाना आसान नहीं था. हर विषय की किताबें इस विश्वविद्यालय में मौजूद थीं.

नालंदा, प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध केन्द्र था. बौद्धकाल में भारत शिक्षा का केंद्र था. इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी. नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी. यहां इतनी किताबें रखी थीं कि जिन्हें गिन पाना आसान नहीं था. हर विषय की किताबें इस विश्वविद्यालय में मौजूद थीं.

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में तीन सौ कमरे, सात बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए नौ मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें तीन लाख से भी अधिक किताबें थीं. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था.

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में तीन सौ कमरे, सात बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए नौ मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें तीन लाख से भी अधिक किताबें थीं. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था.

सन् 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि, इस विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि पूरे तीन महीने तक आग धधकती रही थी. नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास सभी को जानना चाहिए.

सन् 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि, इस विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि पूरे तीन महीने तक आग धधकती रही थी. नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास सभी को जानना चाहिए.

तक्षशिला के बाद नालंदा विश्वविद्यालय की चर्चा होती है. इस शिक्षा-केंद्र में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे. यहां धर्म ही नहीं, राजनीति, शिक्षा, इतिहास, ज्योतिष, विज्ञान आदि की भी शिक्षा दी जाती थी. आज के समय यह बिहार राज्य का प्रमुख आकर्षण है.

तक्षशिला के बाद नालंदा विश्वविद्यालय की चर्चा होती है. इस शिक्षा-केंद्र में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे. यहां धर्म ही नहीं, राजनीति, शिक्षा, इतिहास, ज्योतिष, विज्ञान आदि की भी शिक्षा दी जाती थी. आज के समय यह बिहार राज्य का प्रमुख आकर्षण है.

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Nalanda Ancient Seat of Learning Summary in English and Hindi by Dr. Rajendra Prasad

Nalanda Ancient Seat of Learning Summary in English and Hindi Pdf. The prose piece Nalanda Ancient Seat of Learning has been written by Dr. Rajendra Prasad. Learncram.com has provided Nalanda Ancient Seat of Learning Objective Questions and Answers Pdf, Chapter Story Ka Meaning in Hindi.

Students can also check  English Summary  to revise with them during exam preparation.

Nalanda Ancient Seat of Learning by Dr. Rajendra Prasad About the Author

Dr. Rajendra Prasad (1884 – 1962) was the first President of India. He was born in Ziradei, Bihar in 1884. He shared Gandhiji’s great vision – the making of a new man in society. A living embodiment of plan living and high thinking’. Dr. Prasad was a statesman, scholar, historian, educationist, lofty idealist social reformer and above all great constructive thinker. As president he had moderating influence on the political thinking of the period.

Nalanda Ancient Seat of Learning Summary in English

Remembering the ancient glory of the Nalanda University, the government of Bihar took a decision to establish the Magadh Research Institute for the study of Pali and Prakrit and research in Buddhist literature and Philosophy. In ancient days, Nalanda did glorious work not only in the field of knowledge but also in uniting various parts of Asia.

The message of Nalanda was heard across the mountains and oceans of the Asian main land. It continued to be the centre of Asian consciousness for nearly six centuries. The history of Nalanda dates back to the age of Lord Buddha and Lord Mahavira.

The history shows that Nalanda University flourished from Lord Buddha and emperor Ashoka to the Gupta Age. Fa-Hien, a Chinese pilgrim, visited Nalanda in the 4th century AD. In the 7th century AD, during the reign of Emperor Harshavardhana, Hieun T’sang visited India and found Nalanda at the height of its glory. Hieun T’sang writes that the name ‘Nalanda’ derived from Naalam-Da, the peace of mind.

Nalanda University was established with the help of public charity and donations. The 8th century inscription of Yasovarman gives full description of Vihars and Sangha in India. The teachers and students at Nalanda were made completely free from economic worries. To met the recurring expenditure of the University, there was a trust. The resources of income were the gists of land, building and also the revenue of 100 villages. This property of the trust increased to 200 villages by the time of It-Sing’s visit. Uttar Pradesh, Bihar and Bengal had taken considerable part in the going on of Nalanda University.

Nalanda played a vital role in the field of international relation also. Being impressed by the achievement of Nalanda, the emperor of Java had a large Vihar constructed here to give visible expression of his devotion to Lord Buddha. Thus, Nalanda enjoyed its glory all over the world.

Nalanda had 10,000 students and 1,500 teachers at the time of Hieun T’sang’s visit. Infact, Nalanda was then an only centre of higher education. Scholoars from distant countries as China, Korea, Tibet, Turkistan and Manglia visited Nalanda to study and collect Buddhist literature. It had the biggest library in Asia. Scholars from distant countries here studied the copies of many manuscripts and translated them into their own languages. In the 12th century, the library was destroyed and many of the manuscripts had already found their way to other countries and are still there.

At least 100 lectures were delivered everyday at nalanda. Both Brahmanical and Buddhist literature, philosophy, science and art were the subjects of the syllabus. Vedas and allied literature were also taught and read there.

In the Syllabus of Nalanda University, grammar, logic, medical science and handicrafts were compulsory while the study of philosophy and religion was on one’s own special interest. The knowledge of grammar enabled students to get mastery of the language. Logic taught them to judge every issue rationally. Medical science enabled them to keep themselves in perfect health. Handicraft was compulsory to make them financially independent. Hieun T’sang studied law, yoga, phonetics and panini’s grammar at the feet of Acharya Sheelbhadra, the chancellor of the University.

Besides studies in literature and religion, Nalanda was also the centre of fine arts. It is true that the achievement of Nalanda was all-round in which religion, philosophy, language and handicrafts had equal importance.

We should aim at reviving the educational system of the past and re-establish Nalanda as a centre of art, literature, philosophy, religion and science.

Nalanda Ancient Seat of Learning Summary in Hindi

1. We have gathered……………………………and philosophy. अनुवाद : हम नालन्दा के इस प्राचीन, प्रसिद्ध विश्वविद्यालय नगर में ज्ञान के संसार में नालन्दा की कीर्ति को पुनर्जीवित करने के श्रेष्ठ उद्देश्य से एकत्रित हुए हैं। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस राज्य की सरकार ने पाली और प्राकृत के अध्ययन व बौद्ध साहित्य व दर्शन के अनुसन्धान के लिए मगध अनुसंधान संस्थान स्थापित करने का निश्चय किया है।

2. Nalanda is the symbol…………………………….a temple around it. अनुवाद : नालन्दा हमारे इतिहास का भव्य प्रतीक है, न केवल इसलिए कि यहाँ पर ज्ञान की जिज्ञासा अपने श्रेष्ठ रूप में विकसित हुई थी बल्कि इसलिए भी कि उस समय इसने एशिया के विभिन्न भागों को ज्ञान की कड़ियों से जोड़ रखा था । ज्ञान के क्षेत्र में कोई राष्ट्रीय या प्रजातीय भेदभाव नहीं होते और यह बात नालन्दा के बारे में सत्य थी। नालन्दा का संदेश एशिया की मुख्य भूमि के पर्वतों व सागरों के पार सुना गया था, और लगभग छः शताब्दियों तक यह एशिया की चेतना का केन्द्र बना रहा था। नालन्दा का इतिहास बुद्ध और महावीर स्वामी के युग से आरम्भ होता है। जैन लेखों के अनुसार, महावीर स्वामी की आचार्य मन्खिला से भेंट नालन्दा में हुई थी। कहते हैं कि महावीर स्वामी चौदह वर्ष यहाँ रहे थे। सूत्र-कृतंग के अनुसार, नालन्दा के एक धनी व्यक्ति लेपा ने अपनी समस्त धन-सम्पत्ति के साथ बुद्ध का स्वागत किया था और उनका शिष्य बन गया था । तिब्बत के विद्वान इतिहासकार, लामा तारानाथ के अनुसार नालन्दा सरिपुत्र का जन्मस्थान है, जिसकी समाधि अशोक के राज्यकाल तक विद्यमान थी, जिसका अशोक ने उसके चारों ओर मन्दिर बनवाकर विस्तार किया था।

3. Though tradition…………………………… hisprevious births. अनुवाद : यद्यपि परम्परा के अनुसार नालन्दा को बुद्ध व सम्राट अशोक से सम्बन्धित किया जाता है, फिर भी यह गुप्त काल में फलता-फूलता विश्वविद्यालय उभरकर सामने आया था। तारानाथ का कथन है कि भिक्षु नागार्जुन और आर्यदेव नालन्दा से संबंधित थे और आगे वह कहता है कि दिग्नाथ नालन्दा गया था और उसने शास्त्रीय विचार-विमर्श किया था। चौथी शताब्दी में एक चीनी यात्री फाहियान नालन्दा गया था, और उसने उस स्थान पर स्तूप का निर्माण होते देखा था जहाँ सरिपुत्र ने जन्म लिया था और मरा था। परन्तु नालन्दा ने उत्कृष्ट स्थान उसके काफी समय पश्चात् प्राप्त किया था। सातवीं शताब्दी में, सम्राट हर्षवर्धन के राजकाल में हियूनत्सांग भारत आया था, उस समय नालन्दा अपने वैभव के शिखर पर था। एक जातक कथा का उल्लेख करते हुए हियूनत्सांग लिखता है कि इसका नाम नालमदा, अर्थात् मन की शांति से निकला था, जो कि बुद्ध अपने पिछले जन्मों में प्राप्त करने में असफल रहे थे।

4. Nalanda University ……………………………Nalanda University. अनुवाद : नालन्दा विश्वविद्यालय का जन्म जनता के उदार दान व चन्दे से हुआ था । ऐसा विश्वास किया जाता है कि मूलतः इसकी स्थापना 500 व्यापारियों द्वारा बनाई स्थायी निधि द्वारा की गई थी जिन्होंने अपने धन से भूमि मोल लेकर बुद्ध को भेंट कर दी थी। हियूनत्सांग की यात्रा के समय तक नालन्दा पूर्ण विकसित विश्वविद्यालय बन चुका था और उस समय इसमें छः विहार थे। आठवीं शताब्दी के यशोवर्मा के शिलालेख में नालन्दा का प्रभावशाली वर्णन है । एक पंक्ति में विहारों के ऊंचे शिखर आकाश जितने ऊँचे प्रतीत होते थे, और उनके चारों ओर स्वच्छ जल के ताल थे जिनमें लाल व पीले कमल तैर रहे थे, और बीच-बीच में आम के कुंज छितराए हुए थे। बड़े कमरे (हॉल) जिनमें सुन्दर सज्जा व मूर्तियाँ हैं, उनकी भवन-निर्माण कला व मूर्तिकला को देखकर अचम्भा होता है। यद्यपि भारत में कई संघराम हैं, परन्तु नालन्दा का तो अद्वितीय है। चीनी यात्री इत-सिंग की यात्रा के समय वहाँ 300 बड़े-बड़े कमरे और आठ हॉल थे। पुरातत्त्वीय खुदाई से खोजे गए अवशेष इस कथन की पुष्टि करते हैं। नालन्दा के आचार्य व शिष्य पूर्णतः धन-सम्बन्धी चिन्ताओं से मुक्त कर दिए गए थे। धरती व भवनों के उपहार के अतिरिक्त, 100 गाँवों के कर (लगान) को एक न्यास के रूप में अलग से बना दिया गया था जिससे निरन्तर खर्च को पूरा किया जा सके । न्यास की यह सम्पत्ति इत-सिंग की यात्रा के समय बढ़कर 200 गाँव हो गई थी। उत्तर प्रदेश, बिहार व बंगाल के तीन राज्यों ने नालन्दा विश्वविद्यालय के निर्माण व उसके वित्तीय रख-रखाव में काफी बड़ा भाग लिया था।

5. Copper plates and……………………………found at Nalanda. अनुवाद : पुरातत्त्वीय खुदाई में उस समय के बंगाल के महाराजा धर्मपाल देव और देवपाल देव के ताम्रपत्र व बुत नालन्दा में प्राप्त हुए हैं। इन ताम्रपत्रों में से एक नालन्दा द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध बनाए रखने पर प्रकाश डालता है। इससे हमें पता चलता है कि स्वर्णद्वीप (जो अब इन्डोनेशिया का भाग है) के शैलेन्द्र सम्राट श्री बालपुत्र देव ने मगध के शासक के पास एक दूत इस प्रार्थना के साथ भेजा कि वह उसकी ओर से पाँच गाँव नालन्दा को भेंट कर दें। उसके ताम्रपत्र के लेख के अनुसार जावा के सम्राट बलपुत्र ने नालन्दा की उपलब्धियों से प्रभावित होकर, बुद्ध के प्रति अपनी निष्ठा को प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त करने के लिए, वहाँ एक बड़े विहार का निर्माण कराया । यह केवल एक उदाहरण है जो मात्र संयोगवश बच गया और यह हमारे समक्ष नालन्दा के उस वैभव का जो उसे संसार भर में प्राप्त था, अमिट छाप प्रस्तुत करता है। निस्संदेह नालन्दा महाविहारिय आर्य भिक्षु संघ एशिया भर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था.। इस संघ की कई मिट्टी की मोहरें नालन्दा में पाई गई हैं।

6. At the time of……………………………are still there. अनुवाद : हियूनत्सांग के आगमन के समय नालन्दा में 10,000 शिक्षार्थी और 1,500 आचार्य थे। इससे यह सुस्पष्ट है कि आचार्य अपने विद्यार्थियों की शिक्षा व प्रशिक्षण में व्यक्तिगत रूप से ध्यान दे सकते थे। वास्तव में उस समय नालन्दा उच्चतर शिक्षा का ऐसा ही केन्द्र था जैसा कि अब हम स्नातकोत्तर अनुसंधान संस्थान बनाने का प्रस्ताव कर रहे हैं। चीन, कोरिया, तिब्बत, तुर्किस्तान और मंगोलिया जैसे सुदूर देशों से विद्वान बौद्ध साहित्य का अध्ययन व संग्रह करने के लिए नालन्दा आते थे। वहाँ एशिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। नालन्दा ही से अनेक हस्तलिपियाँ यात्रियों के द्वारा चीन पहुँची और वहाँ उनका चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। एक प्रकार से, नालन्दा उच्चतर शिक्षा के ऐसे केन्द्र के रूप में विकसित हो गया था कि नालन्दा से सम्बन्धित होना सम्मान की बात थी । नागरिकों ने कई दुर्लभ पुस्तकों की नकल कराकर और उन्हें अभिरक्षा में रखकर उनका सुरक्षित रहना सुनिश्चित किया था। जब बारहवीं शताब्दी में इसके पुस्तकालय को नष्ट कर दिया गया, कई हस्तलिपियाँ नेपाल व तिब्बत पहुँच चुकी थीं, और यह हस्तलिपियाँ आज भी वहाँ हैं।

7. Without any ……………………….. prejudice whatsoever. अनुवाद : किसी धर्म विशेष का नाम लिए, नालन्दा में 100 प्रवचन प्रतिदिन होते थे। ब्राह्मण व बौद्ध साहित्य, दर्शन, विज्ञान और कला नालन्दा विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के भाग थे। बहुधा भिक्षु महायान व बुद्ध धर्म के 18 निकायों का अध्ययन करते थे परन्तु वेदों व उनसे सम्बद्ध साहित्य के अध्ययन व शिक्षा की भी व्यवस्था थी। नालन्दा के शैक्षणिक अधिकारियों का उदारवाद निराला था, और नालन्दा की उन्नति के बीज शैक्षणिक दृष्टिकोण में निहित थे जो कि बिना किसी भेदभाव के मानवजाति के सभी धर्मों व दर्शनों के लिए खुला था।

8. The syllabus of …………………………… Therawada at Nalanda. अनुवाद : नालन्दा विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम बड़ी बुद्धिमत्ता से बनाया गया था, और उसका अनुसरण करके विद्यार्थी अपने दैनिक जीवन में अधिकतम सफल होते थे। इसमें पाँच विषयों का अध्ययन अनिवार्य था-व्याकरण, जिससे भाषा पर काफी महारत प्राप्त होती थी; तर्कशास्त्र, जो विद्यार्थियों को हर विषय को विवेक द्वारा समझना सिखाता था; वैद्यशास्त्र, जिससे विद्यार्थी स्वयं को व अन्य लोगों को पूर्णतः स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होता था और अन्ततः हस्तकला । किसी-न-किसी हस्तकला का ज्ञान अनिवार्य था, जिससे विद्यार्थी धन के सम्बन्ध में स्वावलम्बी बन सकते थे। इन चार विषयों के अतिरिक्त धर्म व दर्शन का अध्ययन किया जाता . था जो कि किसी की अपने विशेष रुचि पर निर्भर करता था। नालन्दा ने पाठ्यक्रम के बारे में जो उच्च आदर्श रखा था, वह हमारे विचार करने योग्य है। इस भली-भाँति समन्वित पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों का ज्ञान गहन व व्यवहार में उपयोगी बन जाता था। हियूनत्सांग ने विधि, योग, उच्चारण व पाणिनी के व्याकरण का अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र के चरणों में बैठकर प्राप्त किया और इसके पश्चात् पाँच वर्ष बौद्ध लेखों का अध्ययन किया, व विशेष रूप से उसकी रुचि महायान में थी। इसी प्रकार चीनी यात्री इत-सिंग ने नालन्दा में थेरवाद की पुस्तकों का अध्ययन किया

9. The scholars of…………………………… be extant in Korea. अनुवाद : नालन्दा के विद्वान ज्ञान की मशाल विदेशों में ले गए । उदाहरण के लिए, तिब्बत के सम्राट स्ट्रांग चन गम्पो ने अपने देश में संस्कृत लिपि व भारत के ज्ञान को प्रचलित करने व लोकप्रिय बनाने के विचार से थोनिम सम्भोत नाम के एक विद्वान को नालन्दा भेजा था, जहाँ उसने आचार्य देवविद सिंह के अधीन बौद्ध व ब्राह्मण साहित्य का अध्ययन किया था। इसके पश्चात् आठवीं शताब्दी में सम्राट के निमन्त्रण पर नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शान्ति रक्षित तिब्बत गए थे। तन्त्रविद्या के प्रमुख विशेषज्ञ आचार्य कमल शील भी तिब्बत गए थे। नालन्दा के विद्वानों ने तिब्बती भाषा सीखी थी और बौद्ध व संस्कृत लेखों का उसमें अनुवाद किया था। इस प्रकार उन्होंने तिब्बत को बिल्कुल नया साहित्य दिया और धीरे-धीरे वहाँ के निवासियों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया। नालन्दा के आचार्य शान्ति रक्षित ने 749 ई० में पहला बौद्ध विहार स्थापित किया था। यह आवश्यक हो गया कि तिब्बत के त्रिपिताकर साहित्य में जो पुस्तकें उपलब्ध हैं उनका फिर से संस्कृत में अनुवाद कराया जाए। वे न केवल भारतीय इतिहास और संस्कृत पर प्रकाश डालेंगी, बल्कि नालन्दा विश्वविद्यालय ने ज्ञान की खोज में जो योगदान दिया है, उसका पूरा चित्र प्राप्त करने में भी सहायता करेंगी। इसके अतिरिक्त यह माना जाता है कि कोरिया के विद्वान भी विनय और अभिधर्म का अध्ययन करने नालन्दा आए थे। यह सम्भव है कि मूल संस्कृत लेखों का कोरियन में अनुवाद अब भी वहाँ विद्यमान हो ।

10. Besides being…………………………… had equal importance. अनुवाद : साहित्य व धर्म के अध्ययन में प्रसिद्ध होने के अतिरिक्त, नालन्दा ललित कलाओं का भी केन्द्र था और इसने नेपाल, तिब्बत, इंडोनेशिया और मध्य एशिया की कला को प्रभावित किया था । नालन्दा की काँसे की मूर्तियाँ प्रभावकारी व सुन्दर हैं और विद्वान मानते हैं कि कुर्किहार में मिली बुद्ध की मूर्तियों पर नालन्दा स्कूल के चिह्न हैं । यह सत्य हैं कि नालन्दा की उपलब्धियाँ ज्ञान के सभी अंगों की खोज के कारण पैदा हुईं जिनमें धर्म और दर्शन, भाषा व हस्तकला का समान महत्त्व था।

11. We should aim…………………………… we wish it to be. अनुवाद : हमारा उद्देश्य अतीत काल की शैक्षणिक प्रणाली को पुनर्जीवित करने का और नालन्दा को कला, साहित्य, दर्शन, धर्म और विज्ञान का केन्द्र बनने का होना चाहिए। सांस्कृतिक नवचेतना किसी राष्ट्र में तभी आ सकती है जब बड़ी संख्या में दृढ़संकल्प विद्वान जीवन-भर सत्य की खोज में लगे रहें । यद्यपि मगध अनुसंधान अभी बच्चा ही है, परन्तु बड़ी आयु को आवश्यकता के अनुसार ढाला गया है । इसलिए आशा की जा सकती है कि यह ऐसा केन्द्र के रूप में विकसित होगा जैसा हम इच्छा करते हैं।

Word-Meanings renowned (adj)-famous = प्रसिद्ध | symbol (n)-emblem = प्रतीक । quest (n) – search = खोज, जिज्ञासा । blossom (v)- (here) developed = विकसित होना । racial (np)-of arace= प्रजातीय | realm (n)- sphere, field = क्षेत्र | consciousness (n) – experience = चेतना । pilgrim (a) – traveller = यात्री। telling (adj) – impressive=प्रभावशाली | remains-relics = अवशेष | archaeological excavations ~digging ancient sites = पुरातत्त्वीय खुदाई। envoy (n)- ambassador = राजदूत । devotion (n)- dedication = निष्ठा । indelible (adj)- impossible to remove = अमिट | preservation (n)-conservation = सुरक्षा । bygone era (n)- past age = बीता हुआ युग।

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नालंदा एक प्रशंसित महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (आधुनिक बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था। यह साइट बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है, और पांचवीं शताब्दी सीई से 1200 सीई तक सीखने का केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।

वैदिक शिक्षा के अत्यधिक औपचारिक तरीकों ने टैक्सिला, नालंदा और विक्रमाशिला जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों की स्थापना को प्रेरित करने में मदद की, जिन्हें अक्सर भारत के शुरुआती विश्वविद्यालयों के रूप में चिह्नित किया जाता है। नालंदा 5 वीं और छठी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के संरक्षण के तहत और बाद में कन्नौज के सम्राट हर्ष के अधीन विकसित हुए। गुप्त युग से विरासत में मिली उदार सांस्कृतिक परंपराओं के परिणामस्वरूप नौवीं शताब्दी तक विकास और समृद्धि की अवधि हुई। बाद की शताब्दियों में धीरे-धीरे गिरावट का समय था, एक अवधि जिसके दौरान बौद्ध धर्म के तांत्रिक विकास पूर्वी साम्राज्य में पाला साम्राज्य के तहत सबसे अधिक स्पष्ट हो गए थे।

Nalanda

1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा नालंदा का नक्शा

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Short Essay on Nalanda University in English Language

India’s second famous university was known as Nalanda in modern-day Bargaon, 40 miles southwest of Patna.

It was developed in the middle of the fifth century by the donations of the Gupta kings.

Shakaditya probably laid the foundation of Nalanda by establishing a Bihar. The Buddhist temple of this Bihar was a famous temple for many centuries.

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Later Tathagata Gupta, Narasimha, Baladitya built one each and the Vajra king built two Bihars in the sixth century.

In the 6th century, this school suffered a lot at the hands of Mihir Kul and Shashanka, but by the 7th century it was completely lost.

Yuan Chang wrote that the top floors of Nalanda were higher than the clouds and the spectator sitting there could see how the clouds changed their shape.

It is known from the description of the Chinese traveler that the number of monks in it was 10,000. Inising wrote that more than 3000 monks lived here.

From its remains and excavations it is known that there were one and two bedded rooms for the monks.

There were rocks for sleeping, ledges for lamps and books. In this university there were famous Buddhist masters like Dharmapala, Chandrapala, Gunamat, Sthiramat, Prabhakar Mitra, Jinmitra, Jinchandra, Shilabhadra, etc., who could explain the entire Buddhist literature.

It had eight large rooms and 300 smaller rooms. Hundreds of students from Korea, China, Tibet, Japan and Central Asia used to come for the study.

Nalanda had a huge library called Dharmaganj, being the center of Mahayana Buddhism, Buddhist philosophy was its main subject.

Apart from this, other subjects were also taught here. Due to the encouragement of Vikramshila by the Pallava kings in the 11th century, its value and function declined.

It was abolished by the Turks in the 12th century. Bihar government is trying to regain the glory of Nalanda University.

Final Thoughts –

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    Nalanda (IAST: Nālandā, pronounced [naːlən̪d̪aː]) was a renowned Buddhist mahavihara (great monastery) in ancient and medieval Magadha (modern-day Bihar), eastern India. Nalanda is considered to be among the greatest centers of learning in the ancient world.It was located near the city of Rajagriha (now Rajgir) and about 90 kilometres (56 mi) southeast of Pataliputra (now Patna).

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