- नई कहानियां
- अनमोल इंडियंस
- घर हो तो ऐसा
- प्रेरक किसान
- प्रेरक बिज़नेस
- कहानी का असर
- हमारे बारे में
- Follow Us On
रबिन्द्रनाथ टैगोर की रचित ‘काबुलीवाला’ – छोटी सी मिनी की कहानी !
रवीन्द्रनाथ की कहानियों में क़ाबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियां हैं। और इसी खजाने से आज आपके सामने प्रस्तुत है गुरुदेव की कहानी काबुलीवाला का हिंदी अनुवाद !
रबिन्द्रनाथ की कहानियों में क़ाबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियां हैं। और इसी खजाने से आज आपके सामने प्रस्तुत है गुरुदेव की कहानी काबुलीवाला का हिंदी अनुवाद !
Picture Source – Wikipedia
काबुलीवाला.
Picture Source- wikipedia
मेरा घर सड़क के किनारे पर था, सहसा मिनी अपने अटकन-बटकन को छोड़कर कमरे की खिड़की के पास दौड़ गई, और जोर-जोर से चिल्लाने लगी, ”काबुलीवाला, ओ काबुलीवाला”…, इस घटना के कुछ दिन बाद एक दिन सवेरे मैं किसी आवश्यक कार्यवश बाहर जा रहा था। देखूँ तो मेरी बिटिया दरवाजे के पास बेंच पर बैठी हुई काबुली से हँस-हँसकर बातें कर रही है और काबुली उसके पैरों के समीप बैठा-बैठा मुस्कराता हुआ, उन्हें ध्यान से सुन रहा है और बीच-बीच में अपनी राय मिली-जुली भाषा में व्यक्त करता जाता है।.
उन दोनों मित्रों में और भी एक-आध बात प्रचलित थी। रहमत मिनी से कहता, ”तुम ससुराल कभी नहीं जाना, अच्छा?”
उलटे, वह रहमत से ही पूछती, ”तुम ससुराल जाओगे?”
मिनी की माँ बड़ी वहमी तबीयत की है। राह में किसी प्रकार का शोर-गुल हुआ नहीं कि उसने समझ लिया कि संसार भर के सारे मस्त शराबी हमारे ही घर की ओर दौड़े आ रहे हैं। उसके विचारों में यह दुनिया इस छोर से उस छोर तक चोर-डकैत, मस्त, शराबी, साँप, बाघ, रोगों, मलेरिया,तिलचट्टे और अंग्रेजों से भरी पड़ी है। इतने दिन हुए इस दुनिया में रहते हुए भी उसके मन का यह रोग दूर नहीं हुआ।
लेकिन, जब देखता हूँ कि मिनी ‘ ओ काबुलीवाला ‘ पुकारती हुई हँसती-हँसती दौड़ी आती है और दो भिन्न-भिन्न आयु के असम मित्रों में वही पुराना हास-परिहास चलने लगता है, तब मेरा सारा हृदय खुशी से नाच उठता है।, रहमत का चेहरा क्षण-भर में कौतुक हास्य से चमक उठा। उसके कंधे पर आज झोली नहीं थी। अत: झोली के बारे में दोनों मित्रों की अभ्यस्त आलोचना न चल सकी। मिनी ने आते ही पूछा, ”तुम ससुराल जाओगे।”, रहमत ने प्रफुल्लित मन से कहा, ”हां, वहीं तो जा रहा हूं।”, हमारे घर पर सूर्यदेव के आगमन से पूर्व ही शहनाई बज रही है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे यह मेरे हृदय की धड़कनों में से रो-रोकर बज रही हो। उसकी करुण भैरवी रागिनी मानो मेरी विच्छेद पीड़ा को जाड़े की धूप के साथ सारे ब्रह्माण्ड में फैला रही है। मेरी मिनी का आज विवाह है।, देखा कि कागज के उस टुकड़े पर एक नन्हे-से हाथ के छोटे-से पंजे की छाप है। फोटो नहीं, तेलचित्र नहीं, हाथ में-थोड़ी-सी कालिख लगाकर कागज के ऊपर उसी का निशान ले लिया गया है। अपनी बेटी के इस स्मृति-पत्र को छाती से लगाकर, रहमत हर वर्ष कलकत्ता के गली-कूचों में सौदा बेचने के लिए आता है और तब वह कालिख चित्र मानो उसकी बच्ची के हाथ का कोमल-स्पर्श, उसके बिछड़े हुए विशाल हृदय में अमृत उड़ेलता रहता है।, यदि आपको ये कहानी पसंद आई हो या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें [email protected] पर लिखे, या facebook और twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।.
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:
Subscribe to our newsletter
Get your daily dose of uplifting stories, positive impact, and updates delivered straight into your inbox.
राजस्थान की भीषण गर्मी में भी इनके घर में रहती है ठंडक
इन जगहों पर जाएं और खो जाएं सितारों की दुनिया में
रंगीले भारत के रंगीन शहर
भारत का गौरव बढ़ाने वाली वो कलाएं जिन्हें मिला है GI टैग
गर्मियां शुरू होने से पहले ही उगा ले ये सब्जियां
भारत को ऑस्कर दिलाने वाले अनमोल भारतीय
समाज की बेड़ियां तोड़ने वाली शक्तिशाली महिलाओं के विचार
भारत के इन बागानों को देख गार्डन-गार्डन हो जाएगा आपका दिल
‘ऐ वतन मेरे वतन’: 22 साल की स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता की कहानी
मटके में उगाएं मशरूम, जानिए पूरी विधि
प्राकृतिक सुंदरता का खजाना है द्वारका के पास मौजूद ये 5 बीच
Rabindranath Tagore
Everything you need for every book you read..
IMAGES
VIDEO
COMMENTS
सुनते ही उसके शब्द मेरे कानों में खट से बज उठे। किसी खूनी को मैंने कभी आँखों से नहीं देखा था, उसे देखकर मेरा सारा मन एकाएक सिकुड़-सा ...
Kabuliwala, is a Bengali short story written by Rabindranath Tagore in 1892, during Tagore's "Sadhana" period (named for one of Tagore's magazines) from 1891 to 1895. The story is about a fruit seller, a Pashtun (his name is Rahmat) from Kabul , Afghanistan , who visits Calcutta (present day Kolkata, India ) each year to sell dry fruits.
The narrator nervously asks the Kabuliwala to leave because they are busy, but as he’s leaving the Kabuliwala asks to see the narrator’s “little girl.”. The narrator believes that the Kabuliwala thinks Mini “was still just as she was” years before, the Kabuliwala has even brought some grapes, nuts, and raisins for her.