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महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय

Srinivasa Ramanujan Ki Jivani

श्रीनिवास रामानुजन अयंगर भारत के महानतम गणितज्ञों में से एक थे, जिन्होंने अपनी अलौकिक ज्ञान से गणित के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए थे। उन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। उनके द्धारा गणित में किए गए प्रयोगों का इस्तेमाल आज तक किया जाता है।

वे एक ऐसे गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणित विषय में कभी कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया था, लेकिन फिर भी गणित के क्षेत्र में अपनी महान खोजों के माध्यम से एक महान गणितज्ञ के रुप में पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। आपको बता दें कि उन्होंने अपने अल्प जीवन काल में गणित की करीब 3900 प्रमेयों का संकलन किया और करीब 120 सूत्र लिखे थे। उनके द्धारा संकलित की गई प्रमेयों में से रामानुजन प्राइम और रामानुजन थीटा प्रसद्धि हैं।

इसके अलावा उनकी शोधों को इंटरनेशनल प्रकाशन रामानुजन जर्नल में भी प्रकाशित किया है, ताकि उनके द्धारा किए गए गणित प्रयोगों का इस्तेमाल पूरे विश्व भर में किया जा सके। तो आइए जानते हैं गणित के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में-

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय – Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi

Srinivasa Ramanujan

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी एक नजर में – Srinivasa Ramanujan Information in Hindi

श्रीनिवास रामानुजन का प्रारंभिक जीवन – srinivasa ramanujan life history.

श्रीनिवास रामानुजन 22 दिसम्बर 1887 को भारत के तमिलनाडु के कोयंबटूर के ईरोड गांव में एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्में थे। उनके पिता श्रीनिवास अय्यंगर  एक साड़ी की दुकान में मुनीम थे। उनकी माता, कोमल तम्मल एक घरेलू गृहिणी थी और साथ ही स्थानीय मंदिर की गायिका भी थीं। उन्हें अपनी माता से काफी लगाव था। वह अपने परिवार के साथ शुरुआत में कुम्भकोणम गांव में रहते थे।

श्रीनिवास रामानुजन की शिक्षा – Srinivasa Ramanujan Education

रामानुजन ने अपनी शुरुआती शिक्षा कुंभकोणम के प्राथमिक स्कूल से ही हासिल की थी। इसके बाद मार्च 1894 में, रामानुजन का दाखिला तमिल मीडियम स्कूल में करवाया गया। हालांकि, शुरु से ही गणित विषय से अत्याधिक लगाव की वजह से रामानुजन का मन पारंपरिक शिक्षा में नहीं लगता था।

इसके बाद उन्होंने 10 साल की उम्र में प्राइमरी परीक्षा में जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए और आगे की शिक्षा टाउन हाईस्कूल से प्राप्त की। वे शुरु से ही काफी होनहार और मेधावी छात्र एवं सरल एवं सौम्य स्वभाव के बालक थे। उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में ही उच्च स्तर की गणित का अच्छा ज्ञान हो गया था।

वहीं गणित और अंग्रेजी विषय में रामानुजन के सबसे अच्छे अंक आने की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली थी, धीरे-धीरे रामानुजन गणित में इतने खो गए कि उन्होंने अन्य विषयों को पढ़ना तक छोड़ दिया था, जिसकी वजह से वे गणित को छोड़कर अन्य सभी विषयों में फेल हो गए और वे 12वीं में पास नहीं कर सके।

विपरीत परस्थितियों में भी गणित के शोध चलाते रहे रामानुजन –  Srinivasa Ramanujan Contribution To Mathematics

रामानुजन को अपने युवावस्था में काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। उनके जीवन में एक दौर ऐसा भी आया था, जब वे गरीबी और बेरोजगारी से बुरी तरह जूझ रहे थे। वे किसी तरह ट्यूशन आदि पढ़ाकर अपना गुजर-बसर करते थे। वहीं गणित की शिक्षा हासिल करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था।

यहां तक की उन्हें लोगों के सामने भीख तक मांगनी पड़ी थी। लेकिन इन विपरीत परस्थितियों में भी श्रीनिवास रामानुजन ने कभी हिम्मत नहीं हारी और गणित से संबंधित अपनी रिसर्च जारी रखी। हालांकि इस दौरान उन्हें अपने काम के लिए सड़कों पर पड़े कागज उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था, कई बार तो वे नीली स्याही से लिखे कागजों पर लाल कलम से लिखते थे।

साल 1908 में रामानुजन की मां ने इनकी शादी जानकी नाम की लड़की से कर दी। इसके बाद वे अपनी शादीशुदा जिंदगी की जिम्मेदारी उठाने के लिए नौकरी की तलाश में मद्रास चले गए और लेकिन 12वीं में उत्तीर्ण नहीं होने के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिली, दूसरी तरफ उनकी हेल्थ में भी लगातार गिरावट आ रही थी।

जिसकी वजह से इन्हें वापस अपने घऱ कुंभकोणम का रुख करना पड़ा। हालांकि अपने दृढ़संकल्प के प्रति अडिग रहने वाले रामानुजन अपने स्वास्थ्य में सुधार होते देख एक बार फिर से मद्रास नौकरी की तलाश में चले गए और इस बार वे अपने गणित की रिसर्च को दिखाने लगे। फिर कुछ दिनों के कड़े संघर्ष और चुनौतियों के बाद उनकी मुलाकात वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से हुईं, जो कि गणित के प्रकंड विद्वान थे।

इसके बाद ही उनका जीवन बदल दिया। अय्यर ने उनकी गणित की विलक्षण प्रतिभा को पहचान लिया और फिर उनके लिए  25 रूपये मासिक स्कॉलरशिप देने का प्रावधान दिया। जिसके सहारे रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना पहला शोधपत्र “जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी” में प्रकाशित किया।

इसका शीर्षक था “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण”। उनके इस शोधपत्र को काफी सराहना मिली और वे गणित के महान विव्दान के रुप में पहाचाने जाने लगे। इसके बाद उन्होंने साल 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी ज्वॉइन कर ली। नौकरी के साथ-साथ वे अपनी कल्पना शक्ति के बल पर गणित के रिसर्च और नए-नए सूत्र लिखते थे।

रामानुजन का मशहूर गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी से पत्राव्यवहार एवं उनका विदेश जाना – Srinivasa Ramanujan Story

विलक्षण प्रतिभा के धनी रामानुजन दिन पर दिन गणित पर नए रिसर्च कर रहे थे। हालांकि उस दौरान रामानुजन को गणित संबंधी रिसर्च काम को आगे बढ़ाने के लिए अंग्रेजी गणितज्ञ की सहायता की जरूरत थी, लेकिन उस दौरान भारतीय गणितज्ञ को अंग्रेज वैज्ञानिकों के सामने अपनी प्रस्तुत करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था।

लेकिन रामानुजन ने अपने कुछ प्रशंसकों और मित्रों की मद्द से अपने गणितीय सिद्धांत के सूत्रों को प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए जिसके बाद उन्होंने इसे प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी के पास भेजने की सलाह दी। साल 1913 में रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखकर गणित में खोजी गईं उनकी प्रमेयों की लिस्ट भेजी, जिसे पहले तो हार्डी की समझ में नहीं आई, लेकिन बाद में वे रामानुजन की गणित की अद्भुत प्रतिभा का अंदाजा हो गया था।

इसके बाद रामानुजन और हार्डी के बीच पत्राव्यवहार शुरु हो गया और फिर प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को इंग्लैंड के कैम्ब्रिज में गणित संबंधी रिसर्च करने के लिए कहा। इसके बाद रामानुजन कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में जाकर हार्डी के साथ मिलकर रिसर्च करने लगे और कई शोधपत्र प्रकाशित किए।

इस दौरान श्रीनिवास रामानुजन की गणित की एक विशेष रिसर्च के लिए उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने बी . ए . की उपाधि से भी नवाजा। इस दौरान वे अपने करियर में सफलता के नए आयाम छू रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ रामानुजन की हेल्थ उनका साथ नहीं दे रही थी, उस दौरान वे टीबी रोग से ग्रसित हो गए और फिर कुछ दिन उन्होंने सेनेटोरियम में बिताए।

सबसे कम उम्र में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता पाने वाले पहले व्यक्ति – Royal Society Membership

गणित के क्षेत्र में उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया। वे रॉयल सोसाइटी सदस्यता ग्रहण करने वाले इतिहास के सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। इसके बाद ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले वे पहले ऐसे भारतीय बने। इसके साथ ही उन्हें कैम्ब्रिज फिलोसॉफिक सोसायटी का फेलो भी चुना गया था।

इसके बाद वे अपनी अद्भुत कल्पना शक्ति से गणित में एक के बाद एक नए प्रयोग करते रहे, इस दौरान वे अपने कैरियर में काफी उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ उनका लगातार बिगड़ता स्वाथ्य उनके मार्ग में रुकावट पैदा कर रहा था। वहीं इसके बाद डॉक्टरों की सलाह पर वे भारत वापस लौटे और फिर मद्रास यूनिवर्सिटी में अध्यापन और रिसर्च कामों में फिर से जुट गए।

श्रीनिवास रामानुजन अयंगर का निधन – Srinivasa Ramanujan Death

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन अपनी जिंदगी के आखिरी समय में काफी बीमार रहने लगे थे, वे टीबी रोग से ग्रसित हो गए थे, जिसकी वजह से उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आती रही, जिसके चलते उन्होंने महज 33 साल की अल्पआयु में 26 अप्रैल, 1920 को अपनी आखिरी सांस ली।

श्रीनिवास रामानुजन के बारेमें महत्वपूर्ण जानकारी – Information About Srinivasa Ramanujan

  • श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan स्कूल में हमेशा ही अकेले रहते थे। उनके सहयोगी उन्हें कभी समझ नही पाए थे। रामानुजन गरीब परीवार से सम्बन्ध रखते थे और अपने गणितों का परीणाम देखने के लिए वे पेपर की जगह कलमपट्टी का इस्तेमाल करते थे। शुद्ध गणित में उन्हें किसी प्रकार का प्रशिक्षण नही दिया गया था।
  • गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज में पढ़ने के लिए उन्हें अपनी शिष्यवृत्ति खोनी पड़ी थी और गणित में अपने लगाव के कारण अन्य दूसरे विषयो में वे फेल हो गए थे।
  • रामानुजन ने कभी कोई कॉलेज डिग्री प्राप्त नही की। फिर भी उन्होंने गणित के काफी प्रचलित प्रमेयों को लिखा। लेकिन उनमे से कुछ को वे सिद्ध नही कर पाये।
  • इंग्लैंड में हुए जातिवाद के रामानुजन गवाह बने थे।
  • उनकी उपलब्धियों को देखते हुए 1729 नंबर हार्डी-रामानुजन नंबर के नाम से जाना जाता है।
  • 2014 में उनके जीवन पर आधारीत तमिल फ़िल्म ‘रामानुजन का जीवन’ बनाई गई थी।
  • रामानुजन की 125 वीं एनिवर्सरी पर गूगल ने डूगल बनाकार उन्हें सम्मान अर्जित कीया था।
  • श्रीनिवास रामानुजन को गणित में दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदानों के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।

और अधिक लेख:

  • गणितज्ञ यूक्लिड की जीवनी
  • महान गणितज्ञ आर्यभट की जीवनी

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12 thoughts on “महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय”

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श्रीनिवास रामानुजन पर निबंध – Srinivasa Ramanujan Essay in Hindi & English Pdf Download

Srinivasa Ramanujan Essay in Hindi

भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 में मद्रास, भारत में हुआ था। सोफी जर्मिन की तरह, उन्हें गणित में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली लेकिन उन्होंने गणित के उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

गणित में उनका मुख्य योगदान मुख्य रूप से विश्लेषण, गेम सिद्धांत और अनंत श्रृंखला में है।

उन्होंने प्रकाश और नए उपन्यास विचारों को लाकर विभिन्न गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए गहराई से विश्लेषण किया, जिसने गेम सिद्धांत की प्रगति को बढ़ावा दिया।

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Srinivasa ramanujan par nibandh

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Srinivasa Ramanujan – श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। उन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। उन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी उन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिये। उन्होंने गणित के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण प्रयोग किये थे जो आज भी उपयोग किये जाते है। उनके प्रयोगों को उस समय जल्द ही भारतीय गणितज्ञो ने मान्यता दे दी थी। जब उनका हुनर ज्यादातर गणितज्ञो के समुदाय को दिखाई देने लगा। तब उन्होंने इंग्लिश गणितज्ञ जी.एच्. हार्डी से भागीदारी कर ली। उन्होंने पुराने प्रचलित थ्योरम की पुनः खोज की ताकि उसमे कुछ बदलाव करके नया थ्योरम बना सके। श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan ज्यादा उम्र तक तो जी नही पाये लेकिन अपने छोटे जीवन में ही उन्होंने लगभग 3900 के आस-पास प्रमेयों का संकलन कीया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके है। और उनके अधिकांश प्रमेय लोग जानते है। उनके बहोत से परीणाम जैसे की रामानुजन प्राइम और रामानुजन थीटा बहोत प्रसिद्ध है। यह उनके महत्वपूर्ण प्रमेयों में से एक है। उनके काम को उन्होंने उनके अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन रामानुजन जर्नल में भी प्रकाशित किया है। ताकि उनके गणित प्रयोगों को सारी दुनिया जान सके और पूरी दुनिया में उनका उपयोग हो सके। उनका यह अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन पुरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया था। और काफी लोग गणित के क्षेत्र में उनके अतुल्य योगदान से प्रभावित भी हुए थे। श्रीनिवास रामानुजन का प्रारंभिक जीवन / Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयंबटूर के ईरोड, मद्रास (अभी का तमिलनाडु) नाम के गांव में हुआ था। वह पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पिता श्रीनिवास अय्यंगर जिले की ही एक साडी की दुकान में क्लर्क थे। उनकी माता, कोमल तम्मल एक गृहिणी थी और साथ ही स्थानिक मंदिर की गायिका थी। वह अपने परीवार के साथ कुम्भकोणम गाव में सारंगपाणी स्ट्रीट के पास अपने पुराने घर में रहते थे। उनका परीवारीक घर आज एक म्यूजियम है। जब रामानुजन देड (1/5) साल के थे, तभी उनकी माता ने एक और बेटे सदगोपन को जन्म दिया, जिसका बाद में तीन महीनो के भीतर ही देहांत हो गया। दिसंबर 1889 में, रामानुजन को चेचक की बीमारी हो गयी। इस बीमारी से पिछले एक साल में उनके जिले के हजारो लोग मारे गए थे। लेकिन रामानुजन जल्द ही इस बीमारी से ठीक हो गये थे। इसके बाद वे अपने माता के साथ मद्रास (चेन्नई) के पास के गाव कांचीपुरम में माता-पिता के घर में रहने चले गए। नवंबर 1891 और फीर 1894 में, उनकी माता ने दो और बच्चों को जन्म दिया। लेकिन फिर से उनके दोनों बच्चो की बचपन में ही मृत्यु हो गयी। 1 अक्टूबर 1892 को श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan को स्थानिक स्कूल में डाला गया। मार्च 1894 में, उन्हें तामील मीडियम स्कूल में डाला गया। उनके नाना के कांचीपुरम के कोर्ट में कर रहे जॉब को खो देने के बाद, रामानुजन और उनकी माता कुम्भकोणम गाव वापिस आ गयी और उन्होंने रामानुजन को कंगयां प्राइमरी स्कूल में डाला। जब उनके दादा का देहांत हुआ, तो रामानुजन को उनके नाना के पास भेज दिया गया। जो बाद में मद्रास में रहने लगे थे। रामानुजन को मद्रास में स्कूल जाना पसन्द नही था, इसीलिए वे ज्यादातर स्कूल नही जाते थे। उनके परिवार ने रामानुजन के लिये एक चौकीदार भी रखा था ताकि रामानुजन रोज स्कूल जा सके। और इस तरह 6 महीने के भीतर ही रामानुजन कुम्भकोणम वापिस आ गये। जब ज्यादातर समय रामानुजन के पिता काम में व्यस्त रहते थे। तब उनकी माँ उनकी बहोत अच्छे से देखभाल करती थी। रामानुजन को अपनी माता से काफी लगाव था। अपनी माँ से रामानुजन ने प्राचीन परम्पराओ और पुराणों के बारे में सीखा था। उन्होंने बहोत से धार्मिक भजनों को गाना भी सीख लिया था ताकि वे आसानी से मंदिर में कभी-कभी गा सके। ब्राह्मण होने की वजह से ये सब उनके परीवार का ही एक भाग था। कंगयां प्राइमरी स्कूल में, रामानुजन एक होनहार छात्र थे। बस 10 साल की आयु से पहले, नवंबर 1897 में, उन्होंने इंग्लिश, तमिल, भूगोल और गणित की प्राइमरी परीक्षा उत्तीर्ण की और पुरे जिले में उनका पहला स्थान आया। उसी साल, रामानुजन शहर की उच्च माध्यमिक स्कूल में गये जहा पहली बार उन्होंने गणित का अभ्यास कीया। Srinivasa Ramanujan Childhood: 11 वर्ष की आयु से ही श्रीनिवास रामानुजन / Srinivasa Ramanujan अपने ही घर पर किराये से रह रहे दो विद्यार्थियो से गणित का अभ्यास करना शुरू कीया था। बाद में उन्होंने एस.एल. लोनी द्वारा लिखित एडवांस ट्रिग्नोमेट्री का अभ्यास कीया। 13 साल की अल्पायु में ही वे उस किताब के मास्टर बन चुके थे और उन्होंने खुद कई सारे थ्योरम की खोज की। 14 वर्ष की आयु में उन्हें अपने योगदान के लिये मेरिट सर्टिफिकेट भी दिया गया और साथ ही अपनी स्कूल शिक्षा पुरी करने के लिए कई सारे अकादमिक पुरस्कार भी दिए गए और सांभर तंत्र की स्कूल में उन्हें 1200 विद्यार्थी और 35 शिक्षको के साथ प्रवेश दिया गया। गणित की परीक्षा उन्होंने दिए गए समय से आधे समय में ही पूरी कर ली थी। और उनके उत्तरो से ऐसा लग रहा था जैसे ज्योमेट्री और अनंत सीरीज से उनका घरेलु सम्बन्ध हो। रामानुजन ने 1902 में घनाकार समीकरणों को आसानी से हल करने के उपाय भी बताये और बाद में क्वार्टीक (Quartic) को हल करने की अपनी विधि बनाने में लग गए। उसी साल उन्होंने जाना की क्विन्टिक (Quintic) को रेडिकल्स (Radicals) की सहायता से हल नही किया जा सकता।

Essay about srinivasa ramanujan

Srinivasa ramanujan par nibandh

Srinivasa Ramanujan was one of India’s greatest mathematical geniuses. He made substantial contributions to the analytical theory of numbers and worked on elliptic functions, continued fractions, and infinite series. Ramanujan was born in his grandmother’s house in Erode, a small village about 400 km southwest of Madras. When Ramanujan was a year old his mother took him to the town of Kumbakonam, about 160 km nearer Madras. His father worked in Kumbakonam as a clerk in a cloth merchant’s shop. In December 1889 he contracted smallpox. When he was nearly five years old, Ramanujan entered the primary school in Kumbakonam although he would attend several different primary schools before entering the Town High School in Kumbakonam in January 1898. At the Town High School, Ramanujan was to do well in all his school subjects and showed himself an able all round scholar. In 1900 he began to work on his own on mathematics summing geometric and arithmetic series. Ramanujan was shown how to solve cubic equations in 1902 and he went on to find his own method to solve the quartic. The following year, not knowing that the quintic could not be solved by radicals, he tried (and of course failed) to solve the quintic. It was in the Town High School that Ramanujan came across a mathematics book by G S Carr called Synopsis of elementary results in pure mathematics. This book, with its very concise style, allowed Ramanujan to teach himself mathematics, but the style of the book was to have a rather unfortunate effect on the way Ramanujan was later to write down mathematics since it provided the only model that he had of written mathematical arguments. The book contained theorems, formulae and short proofs. It also contained an index to papers on pure mathematics which had been published in the European Journals of Learned Societies during the first half of the 19th century. The book, published in 1856, was of course well out of date by the time Ramanujan used it. By 1904 Ramanujan had begun to undertake deep research. He investigated the series ∑(1/n) and calculated Euler’s constant to 15 decimal places. He began to study the Bernoulli numbers, although this was entirely his own independent discovery. Ramanujan, on the strength of his good school work, was given a scholarship to the Government College in Kumbakonam which he entered in 1904. However the following year his scholarship was not renewed because Ramanujan devoted more and more of his time to mathematics and neglected his other subjects. Without money he was soon in difficulties and, without telling his parents, he ran away to the town of Vizagapatnam about 650 km north of Madras. He continued his mathematical work, however, and at this time he worked on hypergeometric series and investigated relations between integrals and series. He was to discover later that he had been studying elliptic functions. In 1906 Ramanujan went to Madras where he entered Pachaiyappa’s College. His aim was to pass the First Arts examination which would allow him to be admitted to the University of Madras. He attended lectures at Pachaiyappa’s College but became ill after three months study. He took the First Arts examination after having left the course. He passed in mathematics but failed all his other subjects and therefore failed the examination. This meant that he could not enter the University of Madras. In the following years he worked on mathematics developing his own ideas without any help and without any real idea of the then current research topics other than that provided by Carr’s book. Continuing his mathematical work Ramanujan studied continued fractions and divergent series in 1908. At this stage he became seriously ill again and underwent an operation in April 1909 after which he took him some considerable time to recover. He married on 14 July 1909 when his mother arranged for him to marry a ten year old girl S Janaki Ammal. Ramanujan did not live with his wife, however, until she was twelve years old. Ramanujan continued to develop his mathematical ideas and began to pose problems and solve problems in the Journal of the Indian Mathematical Society. He devoloped relations between elliptic modular equations in 1910. After publication of a brilliant research paper on Bernoulli numbers in 1911 in the Journal of the Indian Mathematical Society he gained recognition for his work. Despite his lack of a university education, he was becoming well known in the Madras area as a mathematical genius. In 1911 Ramanujan approached the founder of the Indian Mathematical Society for advice on a job. After this he was appointed to his first job, a temporary post in the Accountant General’s Office in Madras. It was then suggested that he approach Ramachandra Rao who was a Collector at Nellore. Ramachandra Rao was a founder member of the Indian Mathematical Society who had helped start the mathematics library. He writes in [30]:- A short uncouth figure, stout, unshaven, not over clean, with one conspicuous feature-shining eyes- walked in with a frayed notebook under his arm. He was miserably poor. … He opened his book and began to explain some of his discoveries. I saw quite at once that there was something out of the way; but my knowledge did not permit me to judge whether he talked sense or nonsense. … I asked him what he wanted. He said he wanted a pittance to live on so that he might pursue his researches.

श्रीनिवास रामानुजन निबंध

जन्म: 22 दिसम्बर 1887 मृत्यु: 26 अप्रैल 1920 कार्यक्षेत्र: गणित उपलब्धियां: लैंडॉ-रामानुजन् स्थिरांक, रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक, रामानुजन् थीटा फलन, रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक, रामानुजन् अभाज्य, कृत्रिम थीटा फलन, रामानुजन् योग दुनिया में कभी-कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जिनके बारे में जानकार सभी आश्चर्य चकित रह जाते हैं। महान गणितग्य श्रीनिवास अयंगर रामानुजन एक ऐसी ही भारतीय प्रतिभा का नाम है जिनपर न केवल भारत को परन्तु पूरे विश्व को गर्व है। महज 33 वर्ष की उम्र में शायद ही किसी वैज्ञानिक और गणितग्य ने इतना कुछ किया हो जितना रामानुजन ने किया। यह आश्चर्य की ही बात है कि किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद उन्होंने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण खोजें कीं जिससे इस क्षेत्र में उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। ये न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व का दुर्भाग्य था कि गणित का ये साधक मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में तपेदिक के कारण परलोक सिधार गया। रामानुजन बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इन्होंने स्वयं गणित सीखा और अपने चिर जीवनकाल में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। उनके द्वारा दिए गए अधिकांश प्रमेय गणितज्ञों द्वारा सही सिद्ध किये जा चुके हैं। उन्होंने अपने प्रतिभा के बल पर बहुत से गणित के क्षेत्र में बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनपर आज भी शोध हो रहा है। हाल ही में रामानुजन के गणित सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये और इस महान गणितग्य को सम्मानित करने के लिए रामानुजन जर्नल की स्थापना भी की गई है। प्रारंभिक जीवन श्रीनिवास अयंगर रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को तमिल नाडु के कोयंबटूर के ईरोड नामक गांव में एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था। जब बालक रामानुजन एक वर्ष के थे तभी उनका परिवार कुंभकोणम में आकर बस गया था। इनके पिता एक स्थानिय व्यापारी के पास मुनीम का कार्य करते थे। शुरू में बालक रामानुजन का बौद्धिक विकास दूसरे सामान्य बालकों जैसा नहीं था और वह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे, जिससे उनके माता-पिता को चिंता होने लगी। जब बालक रामानुजन पाँच वर्ष के थे तब उनका दाखिला कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय में करा दिया गया। पारंपरिक शिक्षा में रामानुजन का मन कभी भी नहीं लगा और वो ज्यादातर समय गणित की पढाई में ही बिताते थे। आगे चलकर उन्होंने दस वर्ष की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सर्वोच्च अंक प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल गए। रामानुजन बड़े ही सौम्य और मधुर व्यवहार के व्यक्ति थे। वह इतने सौम्य थे कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। धीरे-धीरे इनकी प्रतिभा ने विद्यार्थियों और शिक्षकों पर अपना छाप छोड़ना शुरू कर दिया। वह गणित में इतने मेधावी थे कि स्कूल के समय में ही कॉलेज स्तर का गणित पढ़ लिया था। हाईस्कूल की परीक्षा में इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण छात्रवृत्ति मिली जिससे कॉलेज की शिक्षा का रास्ता आसान हो गया। उनके अत्यधिक गणित प्रेम ने ही उनकी शिक्षा में बाधा डाला। दरअसल, उनका गणित-प्रेम इतना बढ़ गया था कि उन्होंने दूसरे विषयों को पढना छोड़ दिया। दूसरे विषयों की कक्षाओं में भी वह गणित पढ़ते थे और प्रश्नों को हल किया करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि कक्षा 11वीं की परीक्षा में वे गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए जिसके कारण उनको मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही ठीक नहीं थी और छात्रवृत्ति बंद होने के कारण कठिनाईयां और बढ़ गयीं। यह दौर उनके लिए मुश्किलों भरा था। घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए रामानुजन ने गणित के ट्यूशन और कुछ एकाउंट्स का काम किया। वर्ष 1907 में उन्होंने बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी लेकिन इस बार भी वह अनुत्तीर्ण हो गए। इस असफलता के साथ उनकी पारंपरिक शिक्षा भी समाप्त हो गई। संघर्ष का समय बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के बाद के कुछ वर्ष उनके लिए बहुत हताशा और गरीबी भरे थे। इस दौरान रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का अवसर। इन विपरीत परिस्थितियों में भी रामानुजन ने गणित से सम्बंधित अपना शोध जारी रखा। गणित के ट्यूशन से महीने में कुल पांच रूपये मिलते थे और इसी में गुजारा करना पड़ता था। यह समय उनके लिए बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। उन्हें अपने भरण-पोषण और गणित की शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और लोगों से सहायता की मिन्नतें भी करनी पड़ी। इधर रामानुजन बेरोजगारी और गरीबी से जूझ ही रहे थे कि उनकी माता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया। आर्थिक तंगी और पत्नी की बढ़ी जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए वे नौकरी की तलाश में मद्रास चले गए। चूँकि उन्होंने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की थी इसलिए इन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही थी और इसी बीच उनका स्वास्थ्य भी बुरी तरह खराब हो गया जिसके कारण वापस कुंभकोणम लौटना पड़ा। स्वास्थ्य ठीक होने के बाद वे दोबारा मद्रास गए और कुछ संघर्षों के बाद वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले जो गणित के बड़े विद्वान थे। अय्यर ने उनकी दुर्लभ प्रतिभा को पहचाना और अपने जिलाधिकारी रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध करा दिया। 25 रूपये की इस छात्रवृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र “जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी” में प्रकाशित किया। इसका शीर्षक था “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण”। राव की सहायता से उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी कर ली। इस नौकरी में उन्हें गणित के लिए पर्याप्त समय मिल जाता था।

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आप ये जानकारी हिंदी, इंग्लिश, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या निबंध प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|

Srinivasa Ramanujan, (born December 22, 1887, Erode, India—died April 26, 1920, Kumbakonam), Indian mathematician whose contributions to the theory of numbers include pioneering discoveries of the properties of the partition function. When he was 15 years old, he obtained a copy of George Shoobridge Carr’s Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics, 2 vol. (1880–86). This collection of thousands of theorems, many presented with only the briefest of proofs and with no material newer than 1860, aroused his genius. Having verified the results in Carr’s book, Ramanujan went beyond it, developing his own theorems and ideas. In 1903 he secured a scholarship to the University of Madras but lost it the following year because he neglected all other studies in pursuit of mathematics. Ramanujan continued his work, without employment and living in the poorest circumstances. After marrying in 1909 he began a search for permanent employment that culminated in an interview with a government official, Ramachandra Rao. Impressed by Ramanujan’s mathematical prowess, Rao supported his research for a time, but Ramanujan, unwilling to exist on charity, obtained a clerical post with the Madras Port Trust. In 1911 Ramanujan published the first of his papers in the Journal of the Indian Mathematical Society. His genius slowly gained recognition, and in 1913 he began a correspondence with the British mathematician Godfrey H. Hardy that led to a special scholarship from the University of Madras and a grant from Trinity College, Cambridge. Overcoming his religious objections, Ramanujan traveled to England in 1914, where Hardy tutored him and collaborated with him in some research. Ramanujan’s knowledge of mathematics (most of which he had worked out for himself) was startling. Although he was almost completely unaware of modern developments in mathematics, his mastery of continued fractions was unequaled by any living mathematician. He worked out the Riemann series, the elliptic integrals, hypergeometric series, the functional equations of the zeta function, and his own theory of divergent series. On the other hand, he knew nothing of doubly periodic functions, the classical theory of quadratic forms, or Cauchy’s theorem, and he had only the most nebulous idea of what constitutes a mathematical proof. Though brilliant, many of his theorems on the theory of prime numbers were wrong. In England Ramanujan made further advances, especially in the partition of numbers (the number of ways that a positive integer can be expressed as the sum of positive integers; e.g., 4 can be expressed as 4, 3 + 1, 2 + 2, 2 + 1 + 1, and 1 + 1 + 1 + 1). His papers were published in English and European journals, and in 1918 he was elected to the Royal Society of London. In 1917 Ramanujan had contracted tuberculosis, but his condition improved sufficiently for him to return to India in 1919. He died the following year, generally unknown to the world at large but recognized by mathematicians as a phenomenal genius, without peer since Leonhard Euler (1707–83) and Carl Jacobi (1804–51). Ramanujan left behind three notebooks and a sheaf of pages (also called the “lost notebook”) containing many unpublished results that mathematicians continued to verify long after his death.

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ஸ்ரீனிவாச ராமானுஜன் (இந்தியாவின் ஈரோடு, டிசம்பர் 22, 1887, இறந்தார் ஏப்ரல் 26, 1920, கும்பகோணம்) இந்திய கணிதவியலாளர்கள் எண்களின் கோட்பாட்டின் பங்களிப்பாளர்களாக உள்ளனர். அவர் 15 வயதாக இருந்தபோது, ​​ஜார்ஜ் ஷோவிரிட்ஜ் கார் இன் சஸ்பொபிஸ் ஆஃப் எலிமெண்டரி எஃபெக்ட்ஸ் இன் தூய அண்ட் அப்ளைடு கணிதத்தில், 2 தொகுதி. (1880-86). ஆயிரக்கணக்கான கோட்பாடுகளின் தொகுப்புகள், 1860 க்கும் மேலாக எந்தவொரு புதிய ஆதாரமும் இல்லாமல், அவற்றின் பலத்தை மட்டுமே அளித்த பலர் அவருடைய மேதைமையை தூண்டிவிட்டனர். காரியின் புத்தகத்தில் முடிவுகளை சரிபார்த்து, ராமானுஜன் அதைத் தாண்டி சென்று தனது சொந்த கோட்பாடுகளையும் கருத்துக்களையும் வளர்த்துக் கொண்டார். 1903 ஆம் ஆண்டில் அவர் மெட்ராஸ் பல்கலைக் கழகத்தில் ஸ்காலர்ஷிப்பைப் பெற்றார், ஆனால் அடுத்த ஆண்டு அதை கணிதத்தில் முனைப்புடன் நடத்தினார். ராமானுஜன் தனது வேலையைத் தொடர்ந்தார், வேலை இல்லாமல், மிக மோசமான சூழ்நிலைகளில் வாழ்ந்தார். 1909-ல் திருமணம் செய்துகொண்ட பிறகு, நிரந்தர வேலைவாய்ப்புக்காகத் தேட ஆரம்பித்தார், அது அரசாங்க அதிகாரி ராமச்சந்திர ராவுடன் ஒரு பேட்டியில் முடிந்தது. ராமானுஜன் கணித ரீதியிலான ஆர்வத்தால் ஈர்க்கப்பட்டார், ராவ் தனது ஆராய்ச்சியை ஒரு காலத்திற்கு ஆதரித்தார், ஆனால் ராமானுஜன், அறநெறிக்கு விருப்பமில்லாததால், சென்னை துறைமுக அறக்கட்டளைக்கு ஒரு மதகுரு பதவியைப் பெற்றார். 1911 இல் ராமானுஜன் இந்திய கணிதவியல் சங்கத்தின் ஜர்னலில் தனது ஆவணங்களில் முதன்முதலில் வெளியிட்டார். அவரது மேதையானது மெதுவாக அங்கீகாரம் பெற்றது, 1913 ஆம் ஆண்டில் அவர் பிரிட்டிஷ் கணிதவியலாளரான கோட்ஃபிரே ஹெர்டி உடன் ஒரு கடிதத்தைத் தொடங்கினார், அது மெட்ராஸ் பல்கலைக் கழகத்திலிருந்து சிறப்பு புலமைப்பரிசில் வழிவகுத்தது மற்றும் கேம்பிரிட்ஜ் டிரினிட்டி கல்லூரியில் இருந்து வழங்கப்பட்டது. அவரது மத எதிர்ப்புகளை மீறி, ராமானுஜன் 1914 இல் இங்கிலாந்திற்குப் பயணம் செய்தார், அங்கு ஹார்டி அவரை வழிநடத்தியார் மற்றும் சில ஆராய்ச்சிகளில் அவருடன் இணைந்து பணியாற்றினார். ராமானுஜன் கணித அறிவைப் பற்றி அறிந்திருந்தார் (அவற்றில் பெரும்பாலானவை அவர் தனக்காக வேலை செய்திருந்தன) திடுக்கிடும். அவர் கணிதத்தில் நவீன வளர்ச்சிகளை பற்றி முழுமையாக அறியவில்லை என்றாலும், எந்த கணிதவியலாளரும் தொடர்ந்து கூறுபாடுகளில் தேர்ச்சி பெற்றார். ரிமேன் தொடர், நீள்வட்ட ஒருங்கிணைப்பு, ஹைபர்ஜெக்ட்ரிக் தொடர், ஜெட்டா செயல்பாட்டின் செயல்பாட்டு சமன்பாடுகள், மற்றும் அவரது சொந்த தியரம் வேறுபட்ட தொடர் ஆகியவற்றை அவர் உருவாக்கினார். மறுபுறம், இரட்டையர் கால இடைவெளிகளையோ, இருபடி வடிவங்களின் பாரம்பரிய கோட்பாட்டையோ, அல்லது கோச்சியின் தேற்றம் பற்றியோ எதுவும் அவருக்குத் தெரியாது, மேலும் அவர் கணித ஆதாரங்களைக் கொண்டிருப்பது மிக அபூர்வமான கருத்தைத்தான் கொண்டிருந்தார். புத்திசாலித்தனமாக இருந்த போதினும், பிரதான எண்களின் கோட்பாட்டின் பல கோட்பாடுகள் தவறானவை. இங்கிலாந்தில் ராமானுஜன் மேலும் முன்னேற்றங்களைச் செய்தார், குறிப்பாக எண்களின் பகிர்வில் (நேர்மறை முழுமையாய் நேர்மறையான முழு எண்ணாக வெளிப்படுத்தக்கூடிய வழிகளின் எண்ணிக்கை, எ.கா 4, 4, 3 + 1, 2 + 2, 2 + 1 + 1 மற்றும் 1 + 1 + 1 + 1). அவருடைய தாள்கள் ஆங்கில மற்றும் ஐரோப்பிய இதழ்களில் வெளியிடப்பட்டன, மேலும் 1918 ஆம் ஆண்டில் லண்டனின் ராயல் சொசைட்டிக்கு தேர்ந்தெடுக்கப்பட்டார். 1917 ஆம் ஆண்டில் ராமானுஜன் காசநோய் தொடர்பாக ஒப்பந்தம் செய்தார். ஆனால் அவரது நிலை 1919 ல் இந்தியாவிற்குத் திரும்புவதற்கு அவருக்கு போதுமான அளவு முன்னேற்றம் கண்டது. அடுத்த ஆண்டு அவர் இறந்துவிட்டார், பொதுவாக கணிதவியலாளர்களால் தனிமனிதராக அறியப்பட்டவர், லியனார்ட் யூலர் (1707) -83) மற்றும் கார்ல் ஜாகோபி (1804-51). ராமானுஜன் மூன்று குறிப்பேடுகள் மற்றும் பக்கங்களின் ஒரு கூரையை (“இழந்த நோட்புக்” என்றும் அழைக்கப்படுகிறார்) கணிதவியலாளர்கள் அவரது மரணத்திற்குப் பிறகு நீண்ட காலத்திற்குத் தொடர்ந்து சரிபார்க்கப்பட்ட பல வெளியிடப்படாத முடிவுகளைக் கொண்டிருந்தனர்.

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गणित दिवस पर निबंध एवं भाषण | Speech & Essay on National Mathematics Day in Hindi

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राष्ट्रीय गणित दिवस पर निबंध व भाषण (मैथमेटिक्स डे पर निबंध कैसे लिखे) गणित दिवस कब है और गणित दिवस क्यों मनाया जाता है गणित दिवस, रामानुजन पर निबंध हिंदी में (Speech and Essay on National Mathematics Day in Hindi, Essay on srinivasa ramanujan hindi)

22 दिसंबर को हर साल भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) मनाया जाता है। 22 दिसंबर के दिन ही भारत के महान आधुनिक गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन पैदा हुए थे जिन्हें आधुनिक काल के महानतम गणितज्ञों में गिना जाता है।

यही कारण है कि National Mathematics Day के अवसर पर 22 दिसंबर को भारत में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और शिक्षा से जुड़े हुए कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। इन कार्यक्रमों के जरिए भारत वासियों को भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन और गणित में उनके योगदानों  के बारे में बताया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

वैसे तो भारत में कई महान गणितज्ञ पैदा हुए हैं लेकिन श्रीनिवास रामानुजन को आर्यभट्ट के बाद भारत का सबसे महान गणितज्ञ माना जाता है जिन्होंने बिना किसी विशेष डिग्री के खुद से ही गणित का अध्ययन किया और 12वीं फेल होने के बावजूद भी गणित का जादूगर बन गए।

तो चलिए आज आपको इस आर्टिकल के जरिए राष्ट्रीय गणित दिवस के इतिहास (Hindi Essay on National Mathematics Day in Hindi) के बारे में बताते हैं।

विषय–सूची

राष्ट्रीय गणित दिवस पर निबंध एवं भाषण (Speech & Essay on National Mathematics Day in hindi)

राष्ट्रीय गणित दिवस भारत के द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिवस है इस दिवस के माध्यम से हम महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर को हम लोग श्रद्धांजलि अर्पित कर उनको सम्मान देने का काम करते हैंI

गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है उनके द्वारा गणित के क्षेत्र में बनाए गए अनंत श्रृंखला, संख्या सिद्धांत, गणितीय विश्लेषण इत्यादि का अध्ययन मैथमेटिक्स की पढ़ाई करने वाले प्रत्येक छात्र को करना पड़ता हैI क्योंकि इसके माध्यम से ही आप मैथमेटिक्स का कोर्स पूरा कर पाएंगे यही वजह है कि 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनकी 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में गणित दिवस मनाने की घोषणा की कि भारत में आपसे 22 दिसंबर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाएगा और तब से ही राष्ट्रीय गणित दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई जो आज तक कायम है आने वाले भविष्य में भी कायम रहेगीI

Ramanujan-Speech-Essay on National Mathematics Day in Hindi

राष्ट्रीय गणित दिवस का संक्षिप्त विवरण (Essay on National Mathematics Day in hindi)

राष्ट्रीय गणित दिवस कब और क्यों मनाया जाता हैं (National Mathematics Day Kab Manaya Jata Hai)

राष्ट्रीय गणित दिवस 22 दिसंबर 2022 को भारत में उत्साह पूर्वक मनाया जाएगा इस दिन भारत के स्कूल और कॉलेजों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जिसमें छात्रों को महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन जीवन के बारे में व्यापक जानकारी दी जाएगी उन्होंने गणित के क्षेत्र में क्या-क्या चीजें अविष्कार किया थाI

छात्र उनके जीवन से प्रेरणा लेकर गणित के क्षेत्र में अपना करियर बना कर देश के विकास में अपनी भागीदारी को ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ निर्वाह कर सकें गणित के क्षेत्र में श्रीनिवासन अयंगर राम अर्जुन का योगदान रहा उन्होंने गणित के ऐसे-ऐसे फामूर्लो की खोज की जिनका प्रयोग आज के आधुनिक युग में जटिल से जटिल गणनाओं की पहेली सुलझाने में किया जा रहा है।

राष्ट्रीय गणित दिवस के उद्देश्य (National Mathematics Day Aim)

राष्ट्रीय गणित दिवस का प्रमुख उद्देश्य लोगों के मन में मैथमेटिक्स के डर को दूर करना है जैसा कि आप लोग जानते हैं कि मैथमेटिक्स से कई लोग घबराते हैं क्योंकि मैथमेटिक्स में ऐसे नियम और सिद्धांत होते हैं जिसे समझ पाना सभी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है राष्ट्रीय गणित दिवस के माध्यम से लोगों को मैथ के क्षेत्र में रुचि हो सके उसके लिए प्रोत्साहित करना राष्ट्रीय गणित दिवस का प्रमुख उद्देश्य है इसके अलावा मैथमेटिक्स का हमारे जीवन के साथ गहरा संबंध है क्योंकि दैनिक दिनचर्या में हम सभी लोग मैथमेटिक्स का इस्तेमाल करते हैं तभी जाकर हमारा जीवन सुचारू रूप से संचालित होता हैI

गणित दिवस के अवसर पर निबंध एवं रामानुजन जीवन से जुड़ी खास व रोचक बातें (Facts about Srinivasa Ramanujan in hindi)

  • रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 के दिन 400 किलोमीटर दूर ईरोड नगर, मद्रास में हुआ था।
  • वह छोटी सी उम्र से ही अपने साथी दोस्तों को गणित की शिक्षा देते थे। उन्होंने सातवी कक्षा में ही बीए के छात्रों को गणित पढ़ाते थे।
  • वह दिन रात गणित के फामूलों बनाने में लगा देते थे।
  • उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में गणित के 3000 से भी अधिक प्रेमेंयों का संकलन किया
  • रामानुजन ट्रिनीटी कॉलेज के फिलास्फर बनने वाले पहले भारतीय व्यक्ति थे।
  • 1913 में उन्होंने अपने सारे गणित के फामूर्लो को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और गणिज्ञ जी.एच. हार्डी को भेज दिये।
  • उनकी चिट्ठी में ऐसे-ऐसे फामूर्ले लिखे हुये थे जिसे देखकर हार्डीं दंग रह गये थे।
  • 1918 में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलॉस्फिीकल सोसाइटी, रॉयल सोसाइटी तथा ट्रिनीटी कॉलेज का फेलो व सदस्य चुना गया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले गणिज्ञ थे।
  • उन्होंने 1919 में मॉक थिटा की खोज उनके द्वारा की गई थी जिसका इस्तेमाल ब्लैक हॉल की पहली सुलझाई गई थी।
  • रामानुजन ने अनंत की श्रृंखला दिखाने के लिये 17 अलग-अलग फार्मूले लिखे थे।
  • रामानुजन की मृत्यु सन को टीवी के कारण हुई थी लेकिन जब उनकी तबीतयन ठीक नहीं थी तब भी वह पेट के बल गणित के फार्मूलों को लिखा करते थे।
  • उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले तीन नोटबुक में लिखे गणित के हजारों फार्मूले जो कि ट्रिनीटी कॉलेज के ग्रंथालय में पहुंच गई। इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिकल फिजिक्स द्वारा 2005 में रामानुजन पुरस्कार देने की शुरूआत की गई। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को विभिन्न देशों के प्रतिभाशाली 45 वर्ष से कम आयु के युवाओं को गणित के क्षेत्र में कार्य करने वालों दिया जाता है।

इन्हें भी पढ़ें-

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  • ऊर्जा संरक्षण दिवस पर निबंध
  • मानवाधिकार दिवस क्यों मनाया जाता है? निबंध व भाषण
  • मृदा बचाओ आंदोलन (Save Soil Movements) क्या है?
  • विश्व ओजोन दिवस पर निबंध व भाषण
  • विश्व ओज़ोन दिवस का इतिहास और महत्व

राष्ट्रीय गणित दिवस पर भाषण (Speech & Essay on National Mathematics Day in Hindi)

मेरे प्यारे सहपाठियों और माननीय शिक्षक और प्रधानाचार्य आप सभी को राष्ट्रीय गणित दिवस की हार्दिक शुभकामनाए।

मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप लोगों ने श्रीनिवासन अयंगर रामानुजन जैसे महान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के जीवन के ऊपर अपना भाषण प्रस्तुत करने का अवसर दिया जैसा कि आप लोग जानते हैं। 

आपको बता दूं कि भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस श्रीनिवास रामानुजन जैसे महान गणितज्ञ के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है। गणित के क्षेत्र में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने अपने जीवन में गणित का प्रचार प्रसार पूरी दुनियां में किया और 3000 से अधिक गणितीय प्रेमियों का संकलन भी किया।

उनका जन्म 22 दिसंबर  1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दूर ईरोड नगर में हुआ था। उन्हें बचपन से ही गणित विषय में काफी रुचि थी यही कारण था कि वह पढ़ने के लिए गणित को ज्यादा समय देते थे जबकि दूसरे विषयों पर ध्यान नहीं देते।

इसी के चलते उन्हें 11वीं और 12वीं में फेल भी होना पड़ा था लेकिन उन्होंने अपनी गाड़ी साधना जारी रखी और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि अगर इंसान ठान ले तो खुद से कुछ भी सीख सकता है।

श्रीनिवास रामानुजन न केवल भारत के महान गणितज्ञ हैं बल्कि उन्हें दुनिया में आज भी आधुनिक काल के महानतम गणितज्ञ में गिना जाता है। महज 32 साल के छोटे से जीवन में उन्होंने गणित के 3000 से भी अधिक प्रेमेंयों का संकलन किया और गणित पर विश्लेषण के माध्यम से कई सारे सिद्धांत प्रतिपादित किए जिन्हें आज दुनिया भर की स्कूल और यूनिवर्सिटीज में पढ़ाया जाता है।

उनके द्वारा प्रतिपादित गणित सिद्धांत व फार्मूलों का इस्तेमाल ब्लैक हॉल को समझने में किया जाता है। उनके फार्मूलो को शोधकर्ताओं एवं गणिज्ञाें भी नहीं समझ नहीं पाते थे। वह जटिल से जटिल गणित के समीकरणों को चुटकियों में सुलझा लेते थे उनके लिये गणित के फार्मूले बनाना उनकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग थे।

श्रीनिवास रामानुजन के इन्हीं योगदान ओं को देखते हुए उनके सम्मान में प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को उनका जन्मदिन राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है बाकी लोग श्रीनिवास रामानुजन के जीवन और गणित में उनके योगदानों के बारे में जान सके और उनसे प्रेरणा ले सकें।

राष्ट्रीय गणित दिवस कब से मनाया जा रहा है ?

2012 में मनमोहन सिंह जो भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे उन्होंने श्रीनिवास रामानुजन के 125 वर्षगांठ पर इस बात की घोषणा की गई कि आप से भारत में 22 दिसंबर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाएगाI

राष्ट्रीय गणित दिवस किसकी याद में मनाया जाता है?

श्रीनिवास रामानुजन के याद में राष्ट्रीय गणित दिवस 22 दिसंबर को मनाया जाता हैI

प्रथम राष्ट्रीय गणित दिवस कब मनाया गया?

2012 में तत्कालिन प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री डॉ- मनमोहन सिंह जी द्वारा सन 2012 में म मनाने की शुरुआत की गई।

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महान गणितज्ञ आर्यभट्ट.

Last Updated: April 5, 2017 By Gopal Mishra 11 Comments

भारत के इतिहास में जिसे ‘गुप्त काल’ या ‘सुवर्ण युग’ के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। प्राचीन काल में भारतीय गणित और ज्योतिष शास्त्र अत्यंत उन्नत था। गुप्त काल में ही महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म माना जाता है। भारत को विश्व में चमकाने वाले अनमोल नक्षत्र आर्यभट्ट ने वैज्ञानिक उन्नति में योगदान ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र में चार चाँद लगाया। ‘ आर्यभट्टीय’ नामक ग्रंथ की रचना करके, उन्होंने भारत को विश्व में गौरवान्वित किया। आर्यभट्ट द्वारा की गई जीरो की खोज ने समस्त विश्व को नई दिशा दी।

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उस समय मगध विश्वविद्यालय विद्या का केन्द्र था। यहाँ पर खगोल शास्त्र के अध्ययन के लिये एक अलग विभाग था और बौद्ध धर्म विख्यात था। उस दौरान जैन धर्म भी अपने चरम पर था। लेकिन आर्यभट्ट के श्लोकों से लगता है कि वे इन धर्मो का अनुसरण नहीं करते थे । प्राचीन कृतियों के रचनाकारों की तरह वे अपने श्लोकों के प्रारंभ में इष्ट देव की स्तुति करते और माना जाता है कि ब्रह्मा के वरदान से ही उन्होंने सम्पूर्ण ज्ञान आदि प्राप्त किया था। हालांकि भारत में खगोल शास्त्र का जन्म आर्यभट्ट से पहले सदियों पूर्व हो चुका था। यहाँ पर पंचांग के नियम नक्षत्र विभाजन आदि ईसा के जन्म से 13-14 शताब्दी पूर्व ही बनाये जा चुके थे। वेदों में भी खगोल विद्या का विवरण मिलता है। किन्तु आर्यभट्ट के समय खगोल शास्त्र की स्थिति खास अच्छी नहीं थी। उस समय प्रचलित पितामह सिद्धान्त, सौर्य सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्धान्त रोमक सिद्धान्त और पॉली सिद्धान्त पुराने हो चुके थे। इनसे गणित के सिद्धान्त हल नहीं हो रहे थे। ग्रहण की स्थिति की सही जानकारी नहीं मिल पा रही थी, जिससे लोगों का विश्वास भारतीय ज्योतिष  से उठने लगा था। आर्यभट्ट ने, उसमें मौजूद त्रुटियों को दूर करके उसे नवीन तथा प्रभावी रूप प्रदान किया। गुप्त काल के महान गणितज्ञ और खगोल शास्त्री आर्य भट्ट ने तीन ग्रन्थ लिखे थे। दश गितिका, आर्यभट्टियम तथा तन्त्र। आर्यभट्ट का मानना था कि, रचना महान होती है रचनाकार नहीं।

अद्भुत प्रतिभा के धनी आर्यभट्ट ने अनेक कठिन प्रश्नों के उत्तर को एक श्लोक में समाहित कर दिया है, गणित के पाँच नियम एक ही श्लोक में प्रस्तुत करने वाले आर्यभट्ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होंने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होंने सूर्यग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला। आर्यभट्ट को यह भी पता था कि चन्द्रमा और दूसरे ग्रह स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं, बल्कि सूर्य की किरणें उसमें प्रतिबिंबित होती हैं।

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23 वर्ष की आयु में आर्यभट्ट ने ‘आर्यभट्टीय ग्रंथ’ लिखा था, जिससे प्रभावित होकर राजा बुद्ध गुप्त ने आर्यभट्ट को नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया। उनके सम्मान में भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट  रखा गया था। 16वीं सदी तक के सभी गुरुकुल में आर्यभट्ट के श्लोक पढाये जाते थे। आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले  ‘पाई’ (pi) की वैल्यू और ‘साइन’ (SINE) के बारे में बताया। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्धति का आविष्कार किया। बीज गणित  में भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण संशोधन किए और गणित ज्योतिष का ‘आर्य सिद्धांत’ प्रचलित किया।

भारत के पहले गणितज्ञ और खगोल शास्त्री आर्यभट्ट को सम्मान देते हुए 2012 को गणित वर्ष मनाया गया था। शिकागो से जारी वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में आर्यभट्ट का नाम भी पूरे सम्मान से स्थापित किया गया है। आर्यभट्ट एक महान व्यक्ति थे, जिन्होंने गणित विषय का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण किया। दुनिया को महानतम खोज देने वाले भारत के इस महान गणितज्ञ को हम हम शत शत नमन करते हैं।

अनिता शर्मा

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mathematician essay in hindi

October 22, 2017 at 9:35 pm

दोस्तों प्रतिदिन इस तरह बताओ कि आपका दिन बेकार हो जाए और यह जो इस स्कॉलर ाबैठाया जा रहा है सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में इसे रोकने का प्रयास करो ताकि अच्छे स्टूडेंट अपने देश का भविष्य बने

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राष्ट्रीय गणित दिवस Essay on National Mathematics Day India in Hindi

राष्ट्रीय गणित दिवस Essay on National Mathematics Day India in Hindi

भारत ने सम्पूर्ण विश्व के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की धरती पर अनेक ऐसे वैज्ञानिकों तथा गणितज्ञों ने जन्म लिया। जिन्होंने भारत को वैश्विक स्तर पर एक नई बुलंदी पर पहुँचाने का काम किया है।

प्राचीन काल से भारत और गणित के मध्य का रिश्ता बहुत अटूट रहा है क्योंकि भारत ही वह देश है जिसने पूरी दुनिया को गणित के सबसे महत्वपूर्ण अंक ‘शून्य’, नकारात्मक संख्या, दशमलव प्रणाली, बीजगणित, त्रिकोणमिति जैसे विषयों से अवगत कराया था।

22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में एक ऐसे महान भारतीय गणितज्ञ का जन्म होता है जिसकी गिनती आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में होता है। इस महान गणितज्ञ का नाम श्रीनिवास रामानुजन इयंगर था।

इनको गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला था इसके बावजूद इन्होंने अपनी प्रतिभा और लगन से ना केवल गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए अपितु भारत को वैश्विक स्तर पर गौरव प्रदान कराने का भी काम किया था।

इनके द्वारा गणित के लिए दिए गए अतुलनीय योगदान को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2012 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी के द्वारा इनके 125वीं जयंती पर इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में घोषित किया गया था। वर्ष 2012 में ही संपूर्ण भारतवर्ष में पहली बार 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया गया था।

भारत की इस पवित्र धरती ब्रम्हागुप्त, आर्यभट्ट तथा श्रीनिवास रामानुजन आदि जैसे अनेकों महान गणितज्ञों ने जन्म लिया था। जिन्होंने गणित के अनेक सूत्रों, प्रमेयों तथा सिद्धांतों का विकास एवं प्रतिपादन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इन सब के द्वारा किए गए इन्हीं कार्यों को प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रयोग करना तथा इनके गौरवशाली इतिहास को आगे बढ़ाने के लिए ही भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस को मनाया जाता है। भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस को मनाने का एक उद्देश्य इन सभी महान गणितज्ञों को सच्ची श्रद्धा से श्रद्धांजलि अर्पित करना भी है।

राष्ट्रीय गणित दिवस के दिन भारत के सभी शैक्षिक संस्थानों जैसे कि स्कूल कॉलेजों में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है इस कार्यक्रम में भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन तथा इनके द्वारा गणित के क्षेत्र में किए गए अतुलनीय योगदान पर प्रकाश डाला जाता है।

श्रीनिवास रामानुजन का जीवन आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। अपने शिक्षा के प्रारंभिक चरण में श्रीनिवास रामानुजन का मन पढ़ाई में बिल्कुल भी नहीं लगता था परंतु ये बहुत ही जिज्ञासु प्रकृति के व्यक्ति थे इसी कारण से ये अपने अध्यापक से पूछने में बहुत अधिक रुचि रखते थे।

जिज्ञासु प्रकार के होने के कारण यह गणित विषय में अत्यधिक रुचि रखते थे। गणित विषय में अधिक रुचि रखने के कारण ही यह अन्य विषयों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे पाते थे। इसका परिणाम यह हुआ था कि ये अपनी 11वीं की परीक्षा में गणित के विषय में तो टॉप कर लिए थे लेकिन अन्य सभी विषयों में अनुत्तीर्ण हो गए थे।

श्रीनिवास रामानुज की प्रतिभा का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब यह सातवीं कक्षा में अध्ययन करते थे तो उसी समय ये बी. ए. के छात्रों को गणित पढ़ाया करते थे। लोनी के द्वारा प्रसिद्ध त्रिकोणमिति जिसे हल करने में बड़े-बड़े गणितज्ञ असफल हो जाया करते थे, इन्होंने अपनी मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में ही हल करके अपनी प्रतिभा को प्रमाणित कर दिया था।

तथा अपनी 16 वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने विश्व के महान गणितज्ञो में से एक G. S CARR द्वारा लिखीं गयी पुस्तक ‘A synopsis of elementary results in pure and applied mathematics’ में लिखीं गयी 5000 से अधिक प्रमेयों को सिद्ध करके उनकी प्रमाणिकता को सुनिश्चित किया था।

श्रीनिवास रामानुजन के बारे में यह कहा जाता था कि ये गणित के किसी भी प्रश्न को सबसे अधिक तरीके से हल कर सकते थे इनकी इसी विलक्षण प्रतिभा ने इनको विश्व में गणित का गुरु होने का दर्जा दिलाया था।

इन्होंने अपने पूरे जीवन काल में लगभग 3,884 प्रमेयों को संकलित किया था। इनके द्वारा संकलित की गयी प्रमेयों में से अधिकांश को सही सिद्ध भी किया जा चुका है।

परंतु इनके द्वारा बताये गए कुछ सिद्धांत तथा प्रमेय आज भी गणितज्ञो के लिए एक अनसुलझी हुई पहेली बने हुए है। इनका पहला शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” नामक शीर्षक से जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था।

श्रीनिवास रामानुजन ने पाँच वर्षों तक इंग्लैंड में संख्या सिद्धांत पर कार्य किया था जिसके बाद इन्होंने गणित के दो सबसे महत्वपूर्ण नियतांको ‘पाई’ तथा ‘ई’ के मध्य सम्बद्ध एक अनंत सतत भिन्न क माध्यम से स्थापित किया था।

इन्होंने ऐसी प्राकृतिक संख्याओ की भी खोज की थी जिनको दो अलग-अलग प्रकार से दो संख्याओं के घनो के योग के द्वारा निरूपित किया जा सकता है। इन संख्याओ की खोज श्रीनिवास रामानुजन के द्वारा किये जाने के कारण से ही इन संख्याओं को ‘रामानुजन संख्याएँ’ भी कहा जाता है।

इनके द्वारा गणित के क्षेत्र में ऐसे ही अनेकों महान कार्य किये गए थे जिसकी वजह से इनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित किया गया है। इन्होंने अपने कार्यो के द्वारा भारत के सम्मान में भी चार चाँद लगाया था।

इन्ही वजहों से भारत सरकार के द्वारा इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में घोषित किया था जिससे की सम्पूर्ण भारतवर्ष अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेते हुए इसी तरह विकास के पथ पर अग्रसर रहे।

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Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi: महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के विचार, जो आपको करेंगे प्रेरित

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  • Updated on  
  • सितम्बर 2, 2023

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi

जीवन का वास्तविक अर्थ है निरंतर यात्रा। यात्रा संघर्षों की, यात्रा सफलता की, यात्रा सीखने की, यात्रा कुछ कर गुज़रने की। जीवन की इस यात्रा को प्रेरणा से भरने के लिए इतिहास में अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया, जिनके तप-त्याग से सृष्टि का हर कण प्रेरित हुआ। हर सदी में ऐसे महापुरुष जन्म लेते हैं जो समाज से अज्ञानता का तमस मिटाकर, समाज को निज ज्ञान से प्रकाशित करने का काम करते हैं। ऐसे ही एक महापुरुष, महान गणितज्ञ जिनके बारे में आप इस पोस्ट में जानेंगे, उनका नाम श्रीनिवास रामानुजन है। Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi के माध्यम से श्रीनिवास रामानुजन के विचार पढ़ें जा सकते हैं, जो युवाओं को प्रेरित करेंगे। 

This Blog Includes:

कौन हैं श्रीनिवास रामानुजन, टॉप 10 srinivasa ramanujan quotes in hindi, विद्यार्थियों के लिए श्रीनिवास रामानुजन के अनमोल विचार, श्रीनिवास रामानुजन के सामाजिक विचार, srinivasa ramanujan quotes in english .

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi के बारे में जानने से पहले आपको महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के बारे में जान लेना चाहिए। श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के कोयंबतूर जिले के इरोड नामक गांव में, एक साधारण से ब्राह्मण परिवार में हुआ। श्रीनिवास इयंगर और कोमल तम्मल की विलक्षण बुद्धि वाली इस संतान ने मात्र 33 वर्ष की आयु में ऐसे कर्म किए कि पूरा संसार उनको और उनके राष्ट्र को सम्मानजनक दृष्टि से देखने लगा।

श्रीनिवास रामानुजन ने मात्र 13 साल की आयु में एस.एल. लोनी द्वारा लिखित पुस्तक “एडवांस ट्रिगनोमेट्री” के मास्टर बन चुके थे, साथ ही उन्होंने बहुत सारी प्रमेय यानि कि थियोरम बनाई। फिर 17 साल की आयु में उन्होंने बर्नोली नम्बरों की जाँच की और दशमलव के 15 अंको तक ओएलर (Euler) कांस्टेंट की वैल्यू खोज की थी।

वर्ष 1918 में उन्होंने 31 साल की उम्र तक गणित के 120 सूत्र लिखे, साथ ही अपनी रिसर्च को अंग्रेजी प्रोफ़ेसर जी.एच. हार्डी के पास भेजा। गणित में अपने जीवन को खपा देने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का टीबी की बीमारी के चलते वर्ष 26 अप्रैल 1920 को मात्र 33 साल की उम्र में निधन हो गया।

टॉप 10 Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi निम्नवत हैं, श्रीनिवास रामानुजन के विचार सदा ही आपका मार्गदर्शन करेंगे-

गणित एक भाषा है।

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi

मेरे लिए एक समीकरण का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि यह भगवान के बारे में एक विचार व्यक्त नहीं करता है।

गणित के बिना, आप कुछ भी नहीं कर सकते। आपके आसपास सब कुछ गणित है। आपके आस-पास सब कुछ नंबर है।

जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे ऊपर हैं , वैसे ही वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे ऊपर है।

बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ हैं ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना समझा नहीं जा सकता।

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi

अपने दिमाग को सुरक्षित रखने के लिए मुझे भोजन चाहिए और अब यह मेरा पहला विचार है। आप का कोई भी सहानुभूतिपूर्ण पत्र यहाँ छात्रवृत्ति प्राप्त करने में मेरे लिए सहायक होगा।

अगर मैं फिर से अपनी पढ़ाई शुरू कर रहा था, तो मैं प्लेटो की सलाह का पालन करूँगा और गणित से शुरू करूँगा।

ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखतें हैं, जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है।

मेरी गणित में दिलचस्पी केवल एक रचनात्मक कला के रूप में है।

गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है।

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi

श्रीनिवास रामानुजन के विचार विद्यार्थियों को हमेशा ही एक नई दिशा दिखाने का कार्य तो करेंगे ही, साथ ही शिक्षा के महत्व के बारे में छात्रों को समझाएंगे। विद्यार्थियों के लिए Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi कुछ इस प्रकार हैं-

गणित की आजादी में ही इसका सार है।

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गणित संख्याओं, समीकरणों, एल्गोरिथ्म की गणना के बारे में नहीं है यह समझ के बारे में है।

मैंने हमेशा गणित का आनंद लिया है। यह किसी भी विचार को व्यक्त करने का सबसे सटीक और संक्षिप्त तरीका है।

ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में, हम उन अक्षरों को सीखते हैं जिनसे दुनिया की यह महान पुस्तक लिखी गई है।

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गणित के मानकों से भी पांडुलिपि अव्यवस्थित दिखती है।

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Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi के इस ब्लॉग में आपको श्रीनिवास रामानुजन के सामाजिक विचारों के बारे में पढ़ने को मिल जाएगा, जो कि निम्नलिखित हैं-

लोटरी को मैं गणित न जानने वालों के ऊपर एक कर की भांति देखता हूँ।

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi

गणित कोई वर्ण या भौगोलिक सीमा नहीं जानता है। गणित के लिए, सांस्कृतिक दुनिया केवल एक देश है।

गणित में खोज करना ही मेरे लिए ईश्वर की खोज करने के समान है।

मैंने हमेशा गणित का आनंद लिया है यह किसी भी बिचार को व्यक्त करने का सबसे सटीक और संछिप्त तरीका है।

गणित संख्या समीकरणों एल्गोरिथम के बारे में नहीं है यह तो समझ के बारे में है।

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi

Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi के इस ब्लॉग में आपको श्रीनिवास रामानुजन के कुछ इंग्लिश कोट्स भी पढ़ने को मिल जाएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं-

Mathematics is a language.

The essence of mathematics lies in its freedom.

I’ve always enjoyed mathematics. It is the most precise and concise way of expressing any idea.

Without mathematics, there’s nothing you can do. Everything around you is mathematics. Everything around you is numbers.

An equation for me has no meaning, unless it expresses a thought of God.

To preserve my brain I want food and this is now my first consideration. Any sympathetic letter from you will be helpful to me here to get a scholarship.

If I were again beginning my studies, I would follow the advice of Plato and start with mathematics.

In the lines and pictures of geometry, we learn the letters from which this great book of the world has been written.

Just as Shikha among peacocks and Mani are at the top of Nagas, in the same way Vedang and Shastras are at the top of mathematics.

What are the benefits of doing a lot of babbling? Whatever is in this pasture world is not without mathematics / it cannot be understood without mathematics.

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आशा है कि Srinivasa Ramanujan Quotes in Hindi के माध्यम से आपको श्रीनिवास रामानुजन के विचारों को पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, जो कि आपको सदा प्रेरित करेंगे। इसी प्रकार के कोट्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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मयंक विश्नोई

जन्मभूमि: देवभूमि उत्तराखंड। पहचान: भारतीय लेखक । प्रकाश परिवर्तन का, संस्कार समर्पण का। -✍🏻मयंक विश्नोई

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मेरा प्रिय विषय गणित पर निबंध my favourite subject maths essay in hindi

Mera priya vishay ganit essay in hindi.

दोस्तों आज मैं आपको मेरे प्रिय विषय गणित के बारे में बताने जा रहा हूं । जब मैं पांचवी क्लास में पढ़ाई करता था तब मुझे गणित का विषय बहुत ही पसंद था। मैं हमेशा गणित सब्जेक्ट को पूरी मेहनत से पढ़ता था ।आज भी मुझे गणित के सवाल करने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती है । आज मैं आपको यह बताने जा रहा हूं कि मैंने गणित की पढ़ाई में सफलता किस तरह से प्राप्त की थी ।

मैं जब दसवीं क्लास में आया तब मुझे सभी सब्जेक्ट में अच्छे नंबर लाने के लिए मेरे परिवार ने कहा था । मैं यह जानता था की गणित में मुझे अच्छे नंबर लाने से कोई भी नहीं रोक सकता है । मैं गणित के साथ साथ सभी सब्जेक्ट की तैयारी अच्छी तरह से करता हूं । मैं बचपन से ही यही सोचता था कि मुझे एक अच्छा गणितज्ञ बनना है क्योंकि मेरा सबसे अच्छा सब्जेक्ट गणित है । गणित विषय के सवाल को हल करते समय मुझे अच्छा लगता है । गणित विषय के सवालों को जब मैं हल करता हूं तो मुझे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है ।

mera priya vishay ganit essay in hindi

image source- https://www.eslprintables.com/powerpoint.asp?id=4403

मुझे गणित के विषय में सूत्र याद करना बड़ा ही अच्छा लगता है । मुझे गणित के सभी सूत्र अच्छी तरह से याद है और मुझे गणित के सवाल हल करने में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती है । मेरे कई दोस्त गणित की पढ़ाई करने के लिए मेरे पास आते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि गणित के सवाल करने में मुझे किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आती है । मैं गणित सब्जेक्ट में परफेक्ट हूं। इसलिए मुझे और भी विषयों को पढ़ने के लिए समय मिल जाता है क्योंकि गणित के सवाल मुझे अच्छी तरह से आते हैं । अन्य सब्जेक्ट विज्ञान , इंग्लिश मैं याद करना पड़ता है जिसके लिए ज्यादा समय लगता है लेकिन गणित के सवाल हल करने में मुझे जायदा समय नहीं लगता है ।

मैं बचपन से ही गणित के सब्जेक्ट में मजबूत रहा हूं मेरे स्कूल के टीचर यह कहते हैं कि यह लड़का गणित सब्जेक्ट में अच्छे नंबर लाएगा और गणित के टीचर मुझसे बड़े खुश रहते हैं । टीचर जब कोई सवाल हल करने के लिए देते हैं तो वह सवाल में कुछ समय में ही हल करके दिखा देता हूं । मैं हमेशा बचपन से ही यह सोचता हूं कि यदि मैं गणितज्ञ बन जाऊं तो मुझे बड़ी खुशी होगी । मैं अपने आपको तब सफल मानूंगा जब मैं एक अच्छा गणितज्ञ के बन जाऊंगा यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना है।

मेरे घर के पड़ोस में रहने वाले बच्चे जब मेरे पास गणित सीखने के लिए आते हैं तो मुझे बड़ी खुशी होती है और मैं उनको पूरी लगन के साथ गणित सिखाता हूं । जब वह बच्चे मेरे पास पढ़ने के लिए आते हैं तो मैं सारे काम छोड़ कर उनको गणित विषय पढ़ाने लगता हूं और वह बच्चे भी गणित विषय में अच्छे नंबर लाकर पास हो जाते हैं तब उनके मां-बाप यह कहते हैं कि यह लड़का कितना अच्छा गणित पढ़ाता है यह आगे जाकर गणित विषय में सफलता हासिल जरूर करेगा । मैं हमेशा गणित के वैज्ञानिक आर्यभट्ट के बारे में पढ़ता रहता हूं और उनकी किताबों के माध्यम से गणित की ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेकर एक अच्छा गणितज्ञ बनने की कोशिश करता रहता हूं । मैं एक अच्छा गणितज्ञ बनकर एक अच्छा वैज्ञानिक बनना चाहता हूं और लोगों को गणित सिखा कर उनको भी एक अच्छा गणितज्ञ बनाना चाहता हूं । मैं अपने सपने को जरूर पूरा करूंगा इसके लिए चाहे कितनी भी मेहनत मुझे करनी पड़े। दोस्तों गणित विषय में मुझे क्षेत्रमिति , ज्यामिति और त्रिकोणमिति के सवालों को हल करना बहुत अच्छा लगता है ।

दोस्तों यह लेख mera priya vishay ganit essay in hindi आपको पसंद आए तो शेयर जरूर करें धन्यवाद।

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आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान 2023 – aryabhatt ka jivan parichay.

आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान

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आर्यभट्ट केवल एक खगोलशास्त्री ही नहीं बल्कि महान गणितज्ञ भी थे। भारत में आधुनिक काल में जैसे महान गणितज्ञ रामानुजन का नाम लिया जाता है। ठीक उसी तरह पौराणिक भारत में आर्यभट्ट का बहुत बड़ा नाम था।

आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम दुनियाँ को शून्य (0) का ज्ञान दिया। इस महान् खगोलशास्त्री के सम्मान में भारत सरकर ने अपना पहला उपग्रह का नाम ‘ आर्यभट्ट उपग्रह ‘ रखा था। जिसे सन 1975 में छोड़ा गया था। आईये इस महान गणितज्ञ के बारें में विस्तार से जानते हैं।

आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान

आर्यभट्ट कौन थे – Who is Aryabhatta in Hindi

आर्यभट्ट भारत के महान खगोलज्ञ, ज्योतिषशास्त्री और गणितज्ञ थे जिसने दुनियाँ को शून्य का ज्ञान दिया। आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में उनके योगदान से पता चलता है की भले ही आज निकोलस कोपरनिकस को सौरमंडल का खोजकर्ता माना जाता है।

लेकिन आज से करीव 1500 साल पहले भारत के महान खगोलज्ञ आर्यभट्ट ने सौरमंडल के राज पर से पर्दा उठाया था। उन्होंने दुनियाँ को पहली बार बताया की पृथ्वी गोल है और वह अपनी धुरी पर चारों ओर घूमती है।

आर्यभट्ट का जीवन परिचय – Aryabhatta Biography in Hindi

सबसे पहले उन्होंने ही बताया था की पृथ्वी के घूर्णन के कारण ही दिन और रात होते है। आर्यभट्ट का मानना था की ब्रह्मांड का केंद्र विंदु पृथ्वी है।

इन्हीं कारणों से आर्यभट्ट को प्राचीन भारतीय विज्ञान का सबसे चमकीला सितारा कहा जाता है। चलिए इस लेख में A ryabhatt ka jivan parichay aur unke yogdan के बारें में जानते हैं।

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय – Aryabhatta biography in Hindi

आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान.

महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट का जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों के बीच मतांतर पाया जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में हुआ था ।

इनका जन्म स्थान वर्तमान में महाराष्ट्र में अवस्थित नर्मदा और गोदावरी नदी के मध्य का अश्मक नामक देश में माना जाता है। वहीं कुछ विद्वान का मानना है की आर्यभट्ट का जन्म पटना विहार में हुआ था। पटना का पुराना नाम पाटलीपुत्र था।

आर्यभट्ट के जन्म के समय पाटलीपुत्र को कुसुमपुर के नाम से जाना जाता था। इसी कुसुमपुर में आर्यभट्ट का जन्म माना जाता है। वर्तमान में यह बिहार राज्य की राजधानी है।

अक्सर पूछे जाते हैं की आर्यभट्ट की माता का नाम क्या है। उनकी पत्नी का नाम क्या थी। तो हम जानकारी के लिए बता दें की उनकी माता का नाम और पत्नी के बारें में को सटीक जानकारी नहीं मिलती है।

आर्यभट्ट की शिक्षा – दीक्षा

जैसे उनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों में एक मत नहीं है। उसी तरह उनकी शिक्षा को लेकर भी विद्वानों में मतांतर है। कहा जाता है की आर्यभट्ट शिक्षा प्राप्ति के लिए पाटलिपुत्र गये।

आर्यभट्ट ने अपनी शिक्षा मगध साम्राज्य के प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उस बक्त बिहार का यह विश्वविध्यालय विश्व प्रसिद्ध शिक्षा का केंद्र था।

उस बक्त नालंदा विश्वविद्यालय की गिनती विश्व के सबसे बड़े शिक्षा केन्द्रों में की जाती थी। यहीं से ज्ञान प्राप्त कर आर्यभट्ट प्रख्यात गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और ज्योतिषशास्त्री बने। आर्यभट्ट गुप्त साम्राज्य के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहते थे।

खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट का योगदान

आर्यभट्ट ने पहली बार समझाया की धरती गोल है। आर्यभट्ट प्रथम खगोलशास्त्री थे जिन्होंने विश्व को पृथ्वी के गोल होने की जानकारी दी। उन्होंने बताया था की पृथिवी को अपने अक्ष पर घूमने के कारण ही दिन और रात होते हैं।

आर्यभट्ट ने विश्व को बताया था की घरती अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 24 घंटे का समय लगाती है। पहले यह माना जाता था की ग्रह  और तारे गतिशील हैं और पृथ्वी अपने जगह पर स्थिर है।

आर्यभट्ट का जीवन परिचय – Aryabhatta Biography in Hindi

लेकिन बाद में उन्होंने बताया की धरती गतिशील है। जैसे की हम जब ट्रेन या बस में सफर करते हैं तब हमें वाहर झाँकने पर पेड़ पौधे और मकान भागते दिखाई देते हैं। लेकिन असल में ट्रेन या बस चल रही होती है।

उसी तरह सूरज पूर्व में उगकर पश्चिम में नहीं आ जाते हैं। बल्कि धरती के घूर्णन के कारण ही ऐसा भ्रम प्रतीत होता है।

घरती की घूर्णन अवधि का सटीक ज्ञान  

आर्यभट्ट ने बताया की चंद्रमा का रंग असल में काला है। चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं होता है। बल्कि वह सूर्य के प्रकाश के प्राबर्तन के कारण ही चमकीला दिखाई पड़ता है। आज से हजारों साल पहले जब विज्ञान उतना उन्नत नहीं था।

आर्यभट्ट ने धरती की घूर्णन गति की अवधि की सटीक जानकारी प्रदान की। उन्होंने विश्व को बताया की धरती अपने धुरी पर एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे नहीं बल्कि 23 घंटे, 56 मिनट और 1 सेकंड का समय लगाती है।

उन्होंने दुनियाँ को इस बात से भी अवगत कराया की घरती सूर्य का एक चक्कर लगाने में 1 वर्ष अर्थात लगभग 365 दिन, 6 घंटे और 30 मिनट का समय लगाती है।

चांद का रंग काला

आर्यभट्ट ने अपने खोज से इस निष्कर्ष पर पहुंचे की चन्द्रमा काले रंग की है। साथ ही इन्होंने दुनियाँ को बताया की चाँद में अपना प्रकाश नहीं होता बल्कि वह सूर्य के रोशनी के कारण चमकीला दिखाई पड़ता है।

सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण

उन्हें सूर्य और चन्द्र ग्रहण के बारें में भी जानकारी थी। उन्होंने सूर्य और चन्द्र ग्रहण के बारें में फैली गलत धारणा पर से पर्दा उठाया। उन्होंने बताया की ग्रहण पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य को एक ही सीध में होने के कारण लगते हैं। 

आर्यभट्ट का जीवन परिचय – Aryabhatta Biography in Hindi

उन्होंने बताया की ग्रहण के दौरान अंधेरा का होने परछाई के कारण होता है। आर्यभट्ट मानते थे की पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र हो सकता है।

यदपि बाद में उनके इस धारणा को स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने दुनियाँ को ग्रह और उपग्रह के बारें में कई अहम जानकारी प्रदान की।

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय और गणित में योगदान

आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सिर्फ खगोल विज्ञानी ही नहीं बल्कि अपने समय के एक प्रख्यात गणितज्ञ भी थे। आर्यभट्ट का गणित में योगदान उल्लेखनीय रहा है। गणित के क्षेत्र में उनका योगदान खगोलविज्ञान की तरह ही महत्वपूर्ण हैं।

भारतीय गणितज्ञ रामानुजन की तरह आर्यभट्ट ने गणित के वर्गमूल, घनमूल, ज्यामिति और मेन्सुरेशन के बारें में उन्होंने अहम जानकारी प्रदान की। आर्यभट्ट का जीवन परिचय और उनका गणित में योगदान

साथ ही इन्होंने द्विघात समीकरण, टेबल ऑफ sines की विवेचना की है जिसका उपयोग गणित के क्षेत्र में वृहद पैमाने पर किया जाता है।

दुनियाँ को शून्य का ज्ञान – discovery of zero by aryabhatta in hindi

आर्यभट्ट का जीवन परिचय – Aryabhatta Biography in Hindi

भारत के महान सपूत भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने Zero Ki Khoj की थी। सबसे पहले उन्होंने ही दुनियाँ को शून्य का ज्ञान दिया। शून्य के आविष्कार के फलस्वरूप गणितीय गणना में आसानी हुई। उन्होंने बड़ी-बड़ी संख्याओं को शब्दों में लिखने का अहम तरीका से भी अवगत कराया।

पाई का सटीक मान की खोज   

आर्यभट्ट ने सबसे पहले दुनियाँ को पाई का सटीक मान 3.1416 बताया था। आर्यभट्ट ने π के मान को दशमलव के तीन अंकों तक सही अनुमानित किया था, उनका यह अनुमान उनके अपने समय का सबसे सटीक अनुमान था।

उन्हें पहला गणितज्ञ माना जाता है। जिन्होंने एक तालिकाएँ बनाईं जो बाद में Sines तालिकाओं के नाम से गणित के दुनियाँ में प्रसिद्ध हुआ।

आर्यभट्ट द्वारा लिखित प्रसिद्ध ग्रंथ

कहा जाता है की महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने ज्योतिष, गणित और खगोल विज्ञान के संबंधित अनेक रचनायें की। उनकी प्रमुख रचनायें का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं।

आर्यभटीय – नालंदा विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद आर्यभट्ट ने ‘ आर्यभटिया ‘ नामक ग्रन्थ की रचना की। ‘आर्यभटिया को अपने समय का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ माना जाता था।

आर्यभटिया में उन्होंने गणित के साथ-साथ ज्योतिष विज्ञान के कई पहलुओं के बारें में जिक्र किया है। आर्यभट्ट के शिष्य भाषकर प्रथम ने इस रचना को अश्मक तंत्र के नाम से संबोधित किया।

चार पदों (गितिकापद, गणितपद, कालक्रिया पद और गोलपद) में विभक्त यह वृहद ग्रंथ 108 छंदों/श्लोकों का समायोजन है।   प्राचीन समय में गुप्त वंश के बुद्धगुप्त ने इस ग्रन्थ को एक प्रसिद्ध ग्रन्थ के रूप में मान्यता प्रदान की थी।

आर्यभट्ट सिद्धांत – आर्यभटिया नामक ग्रंथ के बाद इन्होंने एक अन्य ग्रन्थ ‘आर्यभट्ट सिद्धांत’ की रचना की। इस ग्रंथ में ज्योतिष विज्ञान की गणनाओं के बारें में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया। इनकी इस पुस्तक में कई खगोलीय उपकरण का भी वर्णन मिलता है।

इस उपकरण में शंकु यंत्र, छाया यंत्र, कोण मापी उपकरण आदि का वर्णन मिलता है। इस पुस्तक में आर्यभट्ट द्वारा दिये गए आँकड़े का आज भी देश में पंचांग तैयार करने में मदद लिया जाता है। कहा जाता ही उनकी इस रचना में सूर्य सिद्धांत का प्रयोग मिलता है।

सम्मान व पुरस्कार

खगोलविज्ञान, गणित और ज्योतिषशास्त्र में उनके अहम योगदानों को हमेशा याद रखा जायेगा। भारत के इस महान खगोलशास्त्री के सम्मान में भारत सरकार ने देश के पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा था।

भारत के ऐसे महान् गणितज्ञ और ज्योतिषी को आने वाली पीढ़ी कभी नहीं भुल सकेंगी। जिस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से आर्यभट्ट ने शिक्षा ग्रहण की, बाद में उसी नालंदा विश्वविद्यालय का उन्हें प्रमुख नियुक्त किया था।

आर्यभट्ट के सम्मान में

भारत के इस महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के सम्मान में भारत सरकार ने प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा। इस उपग्रह आर्यभट्ट को सन् 1973 ईस्वी में रूस के द्वारा अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया गया। करीव 400 कि. ग्रा. के बजन वाली यह उपग्रह मार्च 1981 तक पृथ्वी की कक्षा मे परिभ्रमण करता रहा था।

आर्यभट्ट की मृत्यु  

आर्यभट्ट की मृत्यु कब और कहाँ हुई इसको लेकर भी विद्वान एक मत नहीं हैं। लेकिन कुछ विद्वान के अनुसार उनकी मृत्यु 550 ईस्वी में हुआ था।

कहा जाता है की कभी-कभी भारत की धरती ऐसे महान सपूतों को जन्म देती है जो अपने कार्यों के द्वारा एक अमीट छाप छोड़ देते हैं। आर्यभट्ट भारत की धरती पर जन्मे ऐसे ही महान सपूत थे जिन्होंने अपने कार्यों से भारतवर्ष को गौरान्वित किया। 

इन्हें भी पढ़ें : टॉप 25 भारतीय गणितज्ञ का जीवन परिचय

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (F.A.Q )

प्रश्न – आर्यभट्ट ने गणित में क्या योगदान दिया.

उत्तर – आर्यभट्ट ने ‘पाई’ (p) की मान निर्धारित किया। साथ ही उन्होंने द्विघात समीकरण, शून्य के सिद्धांत के आविष्कार, बीजगणित, रेखागणित और त्रिकोणमिति में अहम योगदान दिया।

प्रश्न – आर्यभट्ट का जन्म कौन से युग में हुआ था?

उत्तर – आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी पूर्व कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) अर्थात आधुनिक पटना में हुआ था।

प्रश्न – आर्यभट्ट ने कौन से ग्रंथ की रचना की?

उत्तर – आर्यभट्ट ने आर्यभटिया और ‘ आर्यभट्ट सिद्धांत ‘ नामक ग्रंथ की रचना की। आर्यभटिय जहाँ गणित से संबंधित है वहीं आर्यभट्ट सिद्धांत सिद्धांत ज्योतिष और खगोल विज्ञान पर आधारित है।

प्रश्न – आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान में क्या योगदान दिया?

उत्तर – आर्यभट्ट प्राचीन भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। साथ ही उन्होंने सौर मंडल से संबंधित अहम जानकारी प्रदान की।

प्रश्न – आर्यभट्ट किसके दरबार में थे?

उत्तर – आर्यभट्‍ट   गणित और खगोलशास्त्र के प्रकांड विद्वान थे। वे महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के  दरबार  के जाने माने राजनीतिज्ञ विद्वानों में से एक  थे ।

प्रश्न-आर्यभट्ट का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

उत्तर – महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी पूर्व कुसुमपुर(पटना का प्राचीन नाम) में हुआ था।

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अंत में (conclusion)

इस लेख में आर्यभट्ट का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों का विवेचन किया गया है। भारतीय गणितज्ञ की जीवनी की इस शृंखला में आर्यभट्ट का जीवन परिचय हिंदी में जरूर अच्छा लगा होगा।

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Essay on Srinivasa Ramanujan

500 words essay on srinivasa ramanujan.

Srinivasa Ramanujan is one of the world’s greatest mathematicians of all time. Furthermore, this man, from a poor Indian family, rose to prominence in the field of mathematics. This essay on Srinivasa Ramanujan will throw more light on the life of this great personality.

Essay On Srinivasa Ramanujan

                                                                                             Essay On Srinivasa Ramanujan

Early Life of Srinivasa Ramanujan

Ramanujan was born in Erode on December 22, 1887, in his grandmother’s house.  Furthermore, he went to primary school in Kumbakonamwas when he was five years old.  Moreover, he would attend several different primary schools before his entry took place to the Town High School in Kumbakonam in January 1898.

At the Town High School, Ramanujan proved himself as a talented student and did well in all of his school subjects. In 1900, he became involved with mathematics and began summing geometric and arithmetic series on his own.

In the Town High School, Ramanujan began reading a mathematics book called ‘Synopsis of Elementary Results in Pure Mathematics’. Furthermore, this book was by G. S. Carr.

With the help of this book, Ramanujan began to teach himself mathematics . Furthermore, the book contained theorems, formulas and short proofs. It also contained an index to papers on pure mathematics.

His Contribution to Mathematics

By 1904, Ramanujan’s focus was on deep research. Moreover, an investigation took place by him of the series (1/n). Moreover, calculation took place by him of Euler’s constant to 15 decimal places. This was entirely his own independent discovery.

Ramanujan gained a scholarship because of his outstanding performance in his studies. Consequently, he was a brilliant student at Kumbakonam’s Government College. Moreover, his fascination and passion for mathematics kept on growing.

In the spring of 1913, there was the presentation of Ramanujan’s work to British mathematicians by Narayana Iyer, Ramachandra Rao and E. W. Middlemast. Afterwards, M.J.M Hill did not made an offer to take Ramanujan on as a student, rather, he provided professional advice to him. With the help of friends, Ramanujan sent letters to leading mathematicians at Cambridge University and was ultimately selected.

Ramanujan spent a significant time period of five years at Cambridge. At Cambridge, collaboration took place of Ramanujan with Hardy and Littlewood. Most noteworthy, the publishing of his findings took place there.

Ramanujan received the honour of a Bachelor of Arts by Research degree in March 1916. This honour was due to his work on highly composite numbers, sections of the first part whose publishing had taken place the preceding year. Moreover, the paper’s size was more than fifty pages long.

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Conclusion of the Essay on Srinivasa Ramanujan

Srinivasa Ramanujan is a man whose contributions to the field of mathematics are unmatchable. Furthermore, experts in mathematics worldwide all recognize his tremendous worth. Most noteworthy, Srinivasa Ramanujan made his country proud at a time when India was still under British occupation.

FAQs For Essay on Srinivasa Ramanujan

Question 1: What is Srinivasa Ramanujan famous for?

Answer 1: Srinivas Ramanujan is famous for his discoveries that have influenced several areas of mathematics. Furthermore, he is famous for his contributions to number theory and infinite series. Moreover, he came up with fascinating formulas that facilitate in the calculation of the digits of pi in unusual ways.

Question 2: What is the special quality of number 1729 discovered by Srinivasa Ramanujan?

Answer 2:  Srinivas Ramanujan discovered that the number 1729 had a special characteristic.  Furthermore, this quality is that the number 1729 is the only number whose expression can take place as the sum of the cubes of two different sets of numbers. Consequently, people call 1729 the magic number.

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Hindi Essay (Hindi Nibandh) 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन

Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics

हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

निबंध – Nibandh In Hindi – Hindi Essay Topics

  • सच्चा धर्म पर निबंध – (True Religion Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – (Role Of Youth In Nation Building Essay)
  • अतिवृष्टि पर निबंध – (Flood Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – (Role Of Teacher In Nation Building Essay)
  • नक्सलवाद पर निबंध – (Naxalism In India Essay)
  • साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – (Literature And Society Essay)
  • नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – (Drug Abuse Essay)
  • मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – (It is the Mind which Wins and Defeats Essay)
  • एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – (Gst One Nation One Tax Essay)
  • युवा पर निबंध – (Youth Essay)
  • अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – (Renewable Sources Of Energy Essay)
  • मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – (Price Rise Essay)
  • परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – (Philanthropy Essay)
  • पर्वतीय यात्रा पर निबंध – (Parvatiya Yatra Essay)
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इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

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होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi): इतिहास, महत्व, 200 से 500 शब्दों में होली पर हिंदी में निबंध लिखना सीखें

Updated On: March 07, 2024 12:55 pm IST

  • होली पर निबंध 200 शब्दो में (Essay on Holi in …
  • होली पर निबंद 500 शब्दो में (Essay on Holi in …

होली पर निबंध 10 लाइन (Holi Par Nibandh 10 Lines)

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi)

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi)  - होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसे हिन्दू धर्म के लोग पूरे उत्साह और सौहार्द के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हिन्दू धर्म के लोगो के बीच भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सभी लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं। होली रंगो और खुशियों का त्योहार है। होली का त्यौहार विश्व भर में प्रसिद्ध है। होली का त्यौहार (Holi Festival) हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार है। इस त्यौहार को रंगो के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। होली का त्यौहार भारत के साथ-साथ नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे कई देशों में भी प्रसिद्ध है। इस त्यौहार को सभी वर्गों के लोग मनाते हैं। वर्तमान में तो अन्य धर्मों को मानने वाले लोग भी इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाने लगे हैं। इस त्यौहार में ऐसी शक्ति है कि वर्षों पुरानी दुश्मनी भी इस दिन दोस्ती में बदल जाती है। इसीलिए होली को सौहार्द का त्यौहार भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि होली का त्योहार (Festival of Holi) हजारों वर्षों से मनाया जा रहा है। होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। ये भी पढ़ें - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भाषण होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) लिखने के इच्छुक छात्र इस लेख के माध्यम से 200 से 500 शब्दों तक हिंदी में होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi)  लिखना सीख सकते हैं। 

होली पर निबंध 200 शब्दो में (Essay on Holi in 200 words)

होली पर निबंध (holi par nibandh) - होली का महत्व , होली पर निबंध (essay on holi in hindi) - होली कब और क्यों मनाई जाती है.

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi) - होली के पर्व को हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अधिकतर फरवरी और मार्च के महीने में पड़ता है। इस त्योहार को बसंतोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। हर त्योहार के पीछे कोई न कोई कहानी या किस्सा प्रचलित होता है। ‘होली’ मनाए जाने के पीछे भी कहानी है। वैसे तो होली पर कई कहानियां सुनाई व बताई जाती है लेकिन कुछ कहानियां हैं जो गहराई से हमारी संस्कृति एंव भाव से जुड़ी है। तो आईये जानते है होली मनाने के पीछे का कारण और संस्कृति एंव भाव।

इसी तरह भगवान कृष्ण पर आधारित कहानी होली का पर्व किस खुशी में मनाया जाता है, इसके विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने दुष्टों का वध कर गोप व गोपियों के साथ रास रचाई तब से होली का प्रचलन हुआ। वृंदावन में श्री कृष्ण ने राधा और गोप गोपियों के साथ रंगभरी होली खेली थी इसी कारण वृंदावन की होली सबसे अच्छी और विश्व की सबसे प्रसिद्ध होली मानी जाती है। इस मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण दुष्टों का संहार करके वृंदावन लौटे थे तब से होली का प्रचलन हुआ और तब से हर्षोल्लास के साथ होली मनाई जाती है।

होली पर निबंद 500 शब्दो में (Essay on Holi in 500 words)

प्रस्तावना .

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi):  होली भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख धार्मिक पर्व है। यह पर्व फागुन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है और भारत वर्ष में खुशी, आनंद, प्रेम और एकता का प्रतीक है। होली एक सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें लोग अपनी पूर्वाग्रहों और विभिन्न सामाजिक प्रतिष्ठानों को छोड़कर आपसी भाईचारा और प्रेम का आनंद लेते हैं। यह पर्व विभिन्न आदतों, परंपराओं और धार्मिक आराधनाओं के साथ मनाया जाता है और भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण और आनंदमय अवसर है।

होली का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

विश्व के अलग-अलग कोने में अलग-अलग तरह से होली खेली जाती है कहीं फूल भरी होली खेली जाती है तो कहीं लठमार होली तो कहीं होली का नाम ही अलग होता है। होली खेलने का तरीका भले ही सबका अलग अलग हो लेकिन होली हर जगह रंगों के साथ ज़रूर खेली जाती है। होलिका दहन के लिए बड़कुल्ले बनाना, होली की पूजा करना, पकवान बनाना, होलिका का दहन करना इत्यादि किया जाता है।

होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) - होली की तैयारी कैसे करें?

पकवान बनाने के बाद घर के सभी लोग उसे एक थाली में सजाकर होलिका दहन वाली जगह जाते हैं। इसके अलावा वे अपने साथ बड़कुल्ले और पूजा का अन्य सामान भी लेकर जाते हैं जिसमें कच्चा कुकड़ा (सूती धागा), लौटे में जल, चंदन इत्यादि सम्मिलित हैं। फिर उस जगह पहुंचकर होली की पूजा की जाती हैं, पकवान का भोग लगाया जाता हैं और बड़कुल्लों को उस ढेर में रख दिया जाता हैं। उसके बाद सभी लोग कच्चे कुकड़े को उस गोल घेरे के चारों और बांधते हैं और भगवान से प्रह्लाद की रक्षा की प्रार्थना करते हैं। पूजा करने के पश्चात सभी अपने घर आ जाते हैं। 

रात में सूर्यास्त होने के बाद पंडित जी वहां की पूजा करते हैं। सभी लोग उस स्थल पर एकत्रित हो जाते हैं। उसके बाद उन लकड़ियों में अग्नि लगा दी जाती हैं। अग्नि लगाते ही, उस ढेर के बीच में रखे मोटे बांस (प्रह्लाद) को बाहर निकाल लिया जाता हैं। होलिका दहन को देखने के लिए लोग अपने घर से पानी का लौटा, कच्चा कुकड़ा, हल्दी की गांठ व कनक के बाल लेकर जाते हैं। पानी से होली को अर्घ्य दिया जाता है। दूर से उस अग्नि को कच्चा कुकड़ा, हल्दी की गांठ और कनक के बाल दिखाए जाते हैं। कुछ लोग होलिका दहन के पश्चात उसकी राख को घर पर ले जाते हैं। 

होली पर निबंध (Holi Par Nibandh in Hindi) - होली कैसे खेलते है?

इन सब के बाद शुरू होता हैं असली रंगों का त्यौहार। सभी लोग अपने मित्रों, रिश्तेदारों, जान-पहचान वालों के साथ होली का त्यौहार खेलते हैं। पहले के समय में केवल प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलने का विधान था लेकिन आजकल कई प्रकार के रंगों से होली खेली जाती हैं।

इसी के साथ लोग फूलों, पानी, गुब्बारों से भी होली खेलते हैं। कई जगह लट्ठमार होली खेली जाती हैं तो कहीं पुष्प वर्षा की जाती हैं। कई जगह कपड़ा-फाड़ होली खेलते हैं तो कई लड्डुओं की होली भी खेलते है। यह राज्य व लोगों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। बस रंग हर जगह उड़ाए जाते हैं।

यह उत्सव लगभग दोपहर तक चलता हैं और उसके बाद सभी अपने घर आ जाते हैं। इसके बाद होली का रंग उतार लिया जाता हैं, घर की सफाई कर ली जाती हैं और नए कपड़े पहनकर तैयार हुआ जाता हैं। भाषण पर हिंदी में लेख पढ़ें- 

होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) -  होली के हानिकारक प्रभाव

होली  का इन्तजार लोगो को पुरे साल भर रहता है। लेकिन कई बार होली पर बहुत सी दुर्घटनाएं भी हो जाती है जिसका ध्यान रखना चाहिए। लोगों द्वारा होली के दिन गुलाल का प्रयोग न कर के केमिकल और कांच मिले रंगों का प्रयोग किया जाता है। जिससे चेहरा खराब हो जाता है कई लोग मादक पदार्थों का सेवन व भाग मिला कर नशा करते हैं जिससे कई लोग दुर्घटना का शिकार भी हो जाते हैं। ऐसे ही होली के दिन बच्चे गुब्बारों में पानी भर कर गाड़ियों के ऊपर फेंकते हैं या पिचकारी और रंगो को आँखों में फेंक के मरते हैं होली में ऐसे रंगों व हरकतों को न करें जिससे किसी व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ें इसलिए होली के दिन सावधानीपूर्वक रंगो को खेलिये जिससे किसी के लिए हानिकारक न हो।

सुरक्षित तरीके से होली खेलने के सुझाव 

होली का त्योहार (Holi Festival) ऐसा त्योहार है, जिसमें सभी लोग इसके रंग में डूबे नजर आते हैं, लेकिन इसकी मौज-मस्ती आपको इन बातों का भी विशेष ख्याल रखना चाहिए ताकि इस प्यार भरे उत्सव का मजा किरकिरा न हो।

  • होली खेलने से पहले अपने पूरे शरीर और बालों पर अच्छी तरह तेल और मॉइश्चराइजर लगा लें। ताकि रंग आसानी से छूट जाएं।
  • होली खेलने के लिए नैचुरल और ऑर्गेनिक रंगों का इस्तेमाल करें, कैमिकल भरे रंगों के इस्तेमाल से बचें। क्योंकि कैमिकल वाले रंगों की वजह से कई बार स्किन एलर्जी तक हो जाती है।
  • होली में ज्यादा पानी को बर्बाद न करें।
  • होली पर फुल कपड़े पहनने की कोशिश करें, ताकि कलर ज्यादा स्किन पर न आए।
  • होली में किसी पर जबरदस्ती कलर नहीं डालें और ध्यान रखें कि मौज-मस्ती में किसी को चोट न आए।
  • होली की मौज-मस्ती में बच्चों का विशेष ख्याल रखें, कई बार ज्यादा समय तक पानी में गीले रहने से बच्चे बीमार भी पड़ जाते हैं

होली रंग का त्योहार है, जिसे मस्ती और आनंद के साथ मनाया जाता है। होली में पानी और रंग में भीगने के लिए तैयार रहें, लेकिन खुद को और दूसरों को नुकसान न पहुंचाने के लिए भी सावधान रहें। अपने दिमाग को खोलें, अपने अवरोधों को बहाएं, नए दोस्त बनाएं, दुखी लोगों को शांत करें और टूटे हुए रिश्तों को जोड़ें। चंचल बनें लेकिन दूसरों के प्रति भी संवेदनशील रहें। किसी को भी अनावश्यक रूप से परेशान न करें और हमेशा अपने आचरण की देखरेख करें। इस होली में केवल प्राकृतिक रंगों से खेलने का संकल्प लें।

होली पर निबंध (Essay on Holi in Hindi) - होली से जुड़ी सामाजिक कुरीतियां 

होली जैसे धार्मिक महत्व वाले पर्व को भी कुछ असामाजिक तत्व अपने गलत आचरण से प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। कुछ असामाजिक तत्व मादक पदार्थों का सेवन कर आपे से बाहर हो जाते हैं और हंगामा करते नजर आते हैं। कुछ लोग होलिका में टायर जलाते हैं, उनको इस बात का अंदाजा नहीं होता कि इससे वातावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुँचता है। कुछ लोग रंग और गुलाल की जगह पर पेंट और ग्रीस लगाने का गंदा काम करते हैं जिससे लोगों को शारीरिक क्षति होने की आशंका रहती है। अगर में होली से इन कुरीतियों को दूर रखा जाए तो होली का पर्व वास्तव में हैप्पी होली बन जाएगा। इसलिए होली में कुरीतियों से बचें और खुशुयों से होली मनाये यह लोगो के बीच एकता और प्यार लाता है। होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) कुछ लाइनों में लिखने के इच्छुक छात्र इस लेख के माध्यम से होली पर निबंध 10 लाइनों (Holi Par Nibandh 10 Lines) में लिखना सीखें।

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How will you prove that the drafts are original and unique?

Chelsea Becker plays with a toddler and baby in a bright living room.

Now Hiring: Sophisticated (but Part-Time) Chatbot Tutors

The human work of teaching A.I. is getting a lot more complex as the technology improves.

Chelsea Becker, with her two children, started gig work training chatbots after she went on leave after her daughter was born. Credit... Hannah Yoon for The New York Times

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Yiwen Lu

By Yiwen Lu

Reporting from San Francisco

  • April 10, 2024

After her second child was born, Chelsea Becker took an unpaid, yearlong leave from her full-time job as a flight attendant. After watching a video on TikTok, she found a side hustle: training artificial intelligence models for a website called Data Annotation Tech.

For a few hours every day, Ms. Becker, 33, who lives in Schwenksville, Pa., would sit at her laptop and interact with an A.I.-powered chatbot. For every hour of work, she was paid $20 to $40. From December to March, she made over $10,000.

The boom in A.I. technology has put a more sophisticated spin on a kind of gig work that doesn’t require leaving the house. The growth of large language models like the technology powering OpenAI’s ChatGPT has fueled the need for trainers like Ms. Becker, fluent English speakers who can produce quality writing.

Ms. Becker sits on a couch with a baby and toddler.

It is not a secret that A.I. models learn from humans. For years, makers of A.I. systems like Google and OpenAI have relied on low-paid workers, typically contractors employed through other companies, to help computers visually identify subjects. (The New York Times has sued OpenAI and its partner, Microsoft, on claims of copyright infringement.) They might label vehicles and pedestrians for self-driving cars or identify images on photos used to train A.I. systems.

But as A.I. technology has become more sophisticated, so has the job of people who must painstakingly teach it. Yesterday’s photo tagger is today’s essay writer.

There are usually two types of work for these trainers: supervised learning, where the A.I. learns from human-generated writing, and reinforcement learning from human feedback , where the chatbot learns from how humans rate their responses.

Companies that specialize in data curation, including the San Francisco-based start-ups Scale AI and Surge AI, hire contractors and sell their training data to bigger developers. Developers of A.I. models, such as the Toronto-based start-up Cohere, also recruit in-house data annotators.

It is difficult to estimate the total number of these gig workers, researchers said. But Scale AI, which hires contractors through its subsidiaries, Remotasks and Outlier, said it was common to see tens of thousands of people working on the platform at a given time.

But as with other types of gig work, the ease of flexible hours comes with its own challenges. Some workers said they never interacted with administrators behind the recruitment sites, and others had been cut off from the work with no explanation. Researchers have also raised concerns over a lack of standards, since workers typically don’t receive training on what are considered to be appropriate chatbot answers.

To become one of these contractors, workers have to pass an assessment, which includes questions like whether a social media post should be considered hateful, and why. Another one requires a more creative approach, asking contracting prospects to write a fictional short story about a green dancing octopus, set in Sam Bankman-Fried’s FTX offices on Nov. 8, 2022. (That was the day Binance, an FTX competitor , said it would buy Mr. Bankman-Fried’s company before later quickly backing out of the deal.)

Sometimes, companies look for subject matter experts. Scale AI has posted jobs for contract writers who hold master’s or doctoral degrees in Hindi and Japanese. Outlier has job listings that mention requirements like academic degrees in math, chemistry and physics.

“What really makes the A.I. useful to its users is the human layer of data, and that really needs to be done by smart humans and skilled humans and humans with a particular degree of expertise and a creative bent,” said Willow Primack, vice president of data operations at Scale AI. “We have been focusing on contractors, particularly within North America, as a result.”

Alynzia Fenske, a self-published fiction writer, had never interacted with an A.I. chatbot before hearing a lot from fellow writers who considered A.I. a threat. So when she came across a video on TikTok about Data Annotation Tech, part of her motivation was just to learn as much about A.I. as she could and see for herself whether the fears surrounding A.I. were warranted.

“It’s giving me a whole different view of it now that I’ve been working with it,” said Ms. Fenske, 28, who lives in Oakley, Wis. “It is comforting knowing that there are human beings behind it.” Since February, she has been aiming for 15 hours of data annotation work every week so she can support herself while pursuing a writing career.

Ese Agboh, 28, a master’s student studying computer science at the University of Arkansas, was given the task of coding projects, which paid $40 to $45 an hour. She would ask the chatbot to design a motion sensor program that helps gymgoers count their repetitions, and then evaluate the computer codes written by the A.I. In another case, she would load a data set about grocery items to the program and ask the chatbot to design a monthly budget. Sometimes she would even evaluate other annotators’ codes, which experts said are used to ensure data quality.

She made $2,500. But her account was permanently suspended by the platform for violating its code of conduct. She did not receive an explanation, but she suspected that it was because she worked while in Nigeria, since the site wanted workers based in only certain countries.

That is the fundamental challenge of online gig work: It can disappear at any time. With no one available for help, frustrated contractors turned to social media, sharing their experiences on Reddit and TikTok. Jackie Mitchell, 26, gained a large following on TikTok because of her content on side hustles, including data annotation work.

“I get the appeal,” she said, referring to side hustles as an “unfortunate necessity” in this economy and “a hallmark of my generation and the generation above me.”

Public records show that Surge AI owns Data Annotation Tech. Neither the company nor its chief executive, Edwin Chen, responded to requests for comments.

It is common for companies to hire contractors through subsidiaries. They do so to protect the identity of their customers, and it helps them avoid bad press associated with working conditions for its low-paid contract workers, said James Muldoon, a University of Essex management professor whose research focuses on A.I. data work.

A majority of today’s data workers depend on wages from their gig work. Milagros Miceli, a sociologist and computer scientist researching labor conditions in data work, said that while “a lot of people are doing this for fun, because of the gamification that comes with it,” a bulk of the work is still “done by workers who actually really need the money and do this as a main income.”

Researchers are also concerned about the lack of safety standards in data labeling. Workers are sometimes asked to address sensitive issues like whether certain events or acts should be considered genocide or what gender should appear in an A.I.-generated image of a soccer team, but they are not trained on how to make that evaluation.

“It’s fundamentally not a good idea to outsource or crowdsource concerns about safety and ethics,” Professor Muldoon said. “You need to be guided by principles and values, and what your company actually decides as the right thing to do on a particular issue.”

Yiwen Lu reports on technology for The Times. More about Yiwen Lu

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News  and Analysis

U.S. clinics are starting to offer patients a new service: having their mammograms read not just by a radiologist, but also by an A.I. model .

OpenAI unveiled Voice Engine , an A.I. technology that can recreate a person’s voice from a 15-second recording.

Amazon said it had added $2.75 billion to its investment in Anthropic , an A.I. start-up that competes with companies like OpenAI and Google.

The Age of A.I.

Teen girls are confronting an epidemic of deepfake nudes in schools  across the United States, as middle and high school students have used A.I. to fabricate explicit images of female classmates.

A.I. is peering into restaurant garbage pails  and crunching grocery-store data to try to figure out how to send less uneaten food into dumpsters.

David Autor, an M.I.T. economist and tech skeptic, argues that A.I. is fundamentally different  from past waves of computerization.

Economists doubt that A.I. is already visible in productivity data . Big companies, however, talk often about adopting it to improve efficiency.

The Caribbean island Anguilla made $32 million last year, more than 10& of its G.D.P., from companies registering web addresses that end in .ai .

When it comes to the A.I. that powers chatbots, China trails the United States. But when it comes to producing the scientists behind a new generation of humanoid technologies, China is pulling ahead .

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