रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध- Rani Laxmi Bai Essay in Hindi

In this article, we are providing Rani Laxmi Bai Essay in Hindi  | Rani Laxmi Bai   Par Nibandh रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध  हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Rani Lakshmi Bai Essay in Hindi लिखा है रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध  हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Rani Lakshmi Bai   information in Hindi essay & Speech.

रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध- Short Essay on Rani Laxmi Bai in Hindi ( 150 words )

‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी’ – झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को बच्चा-बच्चा जानता है।

लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मन था। उनका जन्म सन 1835 में बनारस में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था।

मनु को घुड़सवारी, तलवार चलाना और तीर चलाना अच्छा लगता था। सब उसे छबीली भी कहते थे।

मनु बहुत चतुर थी। उसने बचपन में ही संस्कृत, हिंदी और मराठी सीख ली थी। सन् 1842 में उसका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ। रानी ने दामोदर राव नाम के एक बालक को गोद लिया। अंग्रेज़ उनके राज्य को हड़पना चाहते थे। रानी ने स्वतंत्रता संग्राम आरम्भ किया। देश के लिए लड़ते-लड़ते वह शहीद हो गईं। 17 जून, 1857 की शाम देश कभी भुला नहीं सकता। देश ने एक वीरांगना को खो दिया।

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रानी लक्ष्मी बाई पर निबंध- Rani Laxmi Bai Essay in Hindi ( 300 words )

भारत की वीर नारियों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली लक्ष्मीबाई पर भारत माता को गर्व है। भारत के इतिहास में ऐसी वीरांगना का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। इनका जन्म 1835 ई. में सतारा के निकट बाई नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम भागीरथी था जो मनु को चार वर्ष की अवस्था में छोड़कर चल बसी थीं। मनु के पिता का नाम मोरो पंत था। वे बिठूर के पेशवा के यहाँ नौकरी करते थे। मनु बचपन में पेशवा बाजीराव के पुत्र नाना साहब के साथ खेला करती थी। बचपन में मनु को पुरुषों के खेलों में रुचि थी। तीर चलाना, तलवार चलाना और घुड़सवारी मनु ने बचपन में सीख लिया था ।

मनु का विवाह बचपन में झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हो गया। इस प्रकार वह मनु के स्थान पर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाई। जिनका एक पुत्र भी ची हुआ किन्तु उसकी जल्दी मृत्यु हो गई। इस आघात को गंगाधर राव न सहन कर सके, और स्वर्ग सिधार, गए। उन्होंने एक बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाया। अंग्रेजों ने इसकी आज्ञान न दी। अतः अंग्रेजों से लोहा लेने की वे प्रतीक्षा करने लगी।

सन् 1857 में विदेशी शासन के विरुद्ध आग भड़क उठी-मेरठ, कानपुर लखनऊोआदि मे क्रांति की ज्वाला भड़क ऊठी | इस अवसर पर लक्ष्मीबाई के सैनिकों और तोपचियों ने अंग्रेजी सेना के जनरल हयूरोज को छठी का दूध याद करा दिया। कालपी जाते समय लक्ष्मीबाई का मुकाबला जनरल बौकर ने किया। उसे भी मुँह की खानी पड़ी। सेना के लिए साधन जुटाने के लिए रानी ने ग्वालियर के, विलासी राजा से दुर्ग छीन प्लिया और अपनी, सेना संगठित की। दामोदर राव को पीछे बाँधे दोनों में हाथों में तलवार लिये और मुँह में घोड़े की लगाम, लिए वह शत्रुओं का डटकर मुकाबला करती रही। युद्ध में बहुत घायल होने पर वह अपने घोड़े को लेकर एक और निकल गई। रानी का नया घोड़ा नाला पार न कर सका। एक साधु की कुटिया के पास रानी ने अपने प्राण त्याग दिए। रानी द्वारा लगाई आजादी की चिंगारी धीरे-धीरे सुलगती रही और अन्त में देश 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हो गया।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध- Long Rani Laxmi Bai Essay in Hindi ( 600 words )

अनेक भारतीय वीरांगनाओं ने देश के हित के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, उन्हीं में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी अमर है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि सन् 1857 में सुलगती हुई स्वतन्त्रता की चिनगारी 1950 ई० में पूर्णतया प्रकाशित हो उठी थी।

जन्म और शैशवकाल

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म सन् 1835 ई० को ‘सतारा के समीप ‘बाई’ नामक ग्राम में हुआ था। इनका नाम मनुबाई था। इनके पिता मोरोपंतबिठुर के पेशवा बाजीराव के विश्वासपात्र कर्मचारी थे। उनकी माता भागीरथी देवी का स्नेहांचल चार वर्ष की अल्पावस्था में ही इनके सिर से उठ गया था । इनका बचपन वाजीराव पेशवा के पुत्र नाना साहब के साथ बीता । वे अपनी इस मुंहबोली बहन को छबीली कह कर पुकारते थे। इन्हें शैशवकाल से ही पुरुषों के खेलों में रुचि थी। ये शैशवावस्था में ही शस्त्र विद्या और शास्त्र विद्या में पूर्णतया दक्ष हो गई थी।

विवाह | पुत्र और पति की मृत्यु

16 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हो गया । इस प्रकार छबीली ने झांसी की रानी बनकर झांसी के दुर्ग में प्रवेश किया। इन्होंने राजसी सुख भोगते हुए एक पुत्र को जन्म दिया पर विधाता ने उसे अधिक दिन तक जीवित नहीं रखा । राजा गंगाधर राव वृद्धावस्था में पुत्र के वियोग को सहन न कर सके । कुछ ही दिन के बाद वे भी चल बसे । महारानी ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को गद्दी पर बिठाया। इसे अंग्रेज सरकार सहन न कर सकी । लार्ड डलहौजी ने झांसी को अपने राज्य में मिलाने की आज्ञा दे दी और रानी लक्ष्मीबाई की पेंशन बांध दी। रानी लक्ष्मीबाई हुंकार उठी, ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।’ इसके साथ ही वे अवसर की ताक में रहने लगीं।

अंग्रेजों से टक्कर | झांसी, कालपी और ग्वालियर में संघर्ष

इसी बीच सन् 1857 की प्रथम क्रांति आरम्भ हो गई । भारतीय सपूतों ने राष्ट्र को स्वतन्त्र कराने की ठान ली। सारे राष्ट्र में विद्रोहाग्नि भड़क उठी। सेना ने विद्रोह कर दिया । कानपुर, लखनऊ, मेरठ, भोपाल आदि नगरों में यह अग्नि भयंकर रूप से भड़क उठी । भारतीय सपूतों ने दिल्ली के लालकिले पर अधिकार कर लिया । रानी लक्ष्मीबाई ने भी इस अवसर से लाभ उठाया । सैनिक पहले से ही तैयार बैठे थे। संकेत पाते ही उन्होंने और तोपचियों ने शत्रु सेना के जनरल ह्यू रोज को छठी का दूध याद करा दिया। रानी ने रणचण्डी का रूप धारण किया तभी कालपी से तात्या टोपे 20 सहस्र सैनिक लेकर झांसी की रानी की सहायता के लिए आए पर दुर्भाग्य ने इनका साथ नहीं दिया। उस समय भी जयचन्दों की कमी नहीं थी। नत्थे खां ने अंग्रेजों को झांसी के दुर्ग का भेद दे दिया । फलतः रानी को दुर्ग छोड़ना पड़ा और ये अपने वीरों के साथ कालपी की ओर बढ़ी । जनरल वोकर ने इनका पीछा किया, उसे मुंह की खानी पड़ी।

उधर ह्यू रोज भी रानी लक्ष्मीबाई का पीछा करता हुआ कालपी आ पहुंचा। झांसी की रानी ने उसका डट कर समाना किया और फिर अपने साथियों के साथ ग्वालियर की ओर बढ़ी । ग्वालियर नरेश विलासी और अंग्रेजों का पक्षपाती था। रानी ने उससे. दुर्ग छीन लिया और सैन्य संगठन में जुट गई । कुछ ही दिनों बाद इनका पता ह्यू रोज को लग गया। वह अपमान का बदला लेने के लिए विशाल सेना के साथ वहां पहुंच गया।

रानी लक्ष्मीबाई ने रणचण्डी बनकर अंग्रेजों से लोहा लिया। घोड़े पर सवार रानी के मुख में लगाम थी, दोनों हाथों में तलवार थी और पीछे पीठ पर दामोदर राव को बांध रखा था। रानी अधिक देर तक विशाल सेना का सामना न कर सकी। घायलावस्था में विवश होकर घोड़ा दौड़ना पड़ा। दो अंग्रेज इनका पीछा कर रहे थे। घोड़ा नया होने के कारण नाले पर पहुंच कर रुक गया। इस विवशता में रानी ने उन दोनों अंग्रेजों का सामना किया। उन्हें मार कर स्वंय भी बेदम हो गई। पास में ही साधु की कुटिया थी। उसने रानी का दाह संस्कार कर दिया।

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इस लेख के माध्यम से हमने Rani Laxmi Bai Par Nibandh | Essay on Rani Lakshmi Bai in Hindi  का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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